आज बहुत अरसे बाद मेहरा निवास में खुशियों ने दस्तक दी थी। परेश मेहरा और उनकी पत्नी विभा मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। उनकी आंखों में बसी गहरी उदासी किसी से छुपी नहीं थी लेकिन उन्होंने अपने दर्द के साथ जीना सीख लिया था। आज उनके बेटे राज की शादी पूर्वी से होने जा रही थी। पूर्वी को विभा जी ने स्वयं राज के लिए पसंद किया था और वह सुंदर होने के साथ-साथ सुशील और संस्कारी भी थी। धूमधाम से शादी संपन्न हुई और पूर्वी बहू बनकर मेहरा निवास में आ गई। कहने को तो घर में सब कुछ था लेकिन एक अनकही सी उदासी हर समय बिखरी रहती। पूर्वी इसका कारण जानती थी। आज से करीब पांच साल पहले राज की बहन महक की सङक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। महक राज से दो साल बड़ी थी और दुर्घटना के समय वह सिर्फ 26 साल की थी। इस हृदय विदारक घटना से यह परिवार उबर नहीं पा रहा था। महक जिंदादिल और खुशमिजाज थी और हर समय पूरे घर को हंसी से गुलजार रखती। उसके जाने के बाद मानो घर में सुनसानी छा गई। तीन चार बरस बीतने के बाद राज की बुआ ने सबको समझाया कि जाने वाले के साथ जिंदगी खत्म नहीं हो जाती। राज की शादी कर दो। बहू घर में आएगी तो घर में रौनक हो जाएगी। बहुत मुश्किल से राज को विभा और परेश ने शादी के लिए मनाया।
दुल्हन के जोड़े में सजी पूर्वी को देखकर मानो विभा के घाव हरे हो गए। कितने अरमान थे उनके अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में देखने के पर विधि को तो कुछ और ही मंजूर था। दिल कड़ा करके मुस्कुराते हुए उन्होंने बहू का घर में स्वागत किया था। पूर्वी बहुत समझदार लड़की थी। वह घर के माहौल को खुशनुमा बनाए रखने की भरपूर कोशिश करती। कहते हैं कि अगर अपने दुख दर्द के बारे में बात करें तो कुछ हद तक दर्द का एहसास कम हो जाता है। पूर्वी कई बार महक के बारे में अपने सास-ससुर से बात किया करती। उसकी पसंद नापसंद, आदतों आदि के बारे में जानने की कोशिश करती ताकि उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा बात करके उनका मन हल्का हो सके।
एक दिन राज की अलमारी साफ करते हुए पूर्वी को एक फाइल मिली। उसने उस फाइल को पहले कभी नहीं देखा था। जिज्ञासावश उसने उसे खोला तो उसमें कुछ मेडिकल पेपर्स थे। ठीक से देखने पर उसे पता चला कि ससुराल के सभी सदस्यों ने अंगदान के फॉर्म भर के रखे थे। शाम को उसने राज को वह पेपर दिखाते हुए पूछा कि क्या महक के मरने के बाद उसके भी अंग दान किये गये थे? राज ने भरे गले से पूर्वी को बताया कि हां सड़क दुर्घटना में ब्रेन डेड हो जाने के बाद महक के महत्वपूर्ण अंगों जैसे हृदय, लिवर, किडनी और आंखों को अस्पताल में दान कर दिया गया था। यह जानकर पूर्वी के मन में एक विचार आया। अब तक वह जान चुकी थी कि महक का एक्सीडेंट इसी शहर में हुआ था और उसे यह भी पता था कि उसे किस अस्पताल में ले जाया गया था।
अगले दिन बाजार जाने के बहाने पूर्वी अस्पताल में पहुंची और वहां पर पूछताछ कर महक के एक्सीडेंट से संबंधित जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की। इसमें उसे काफी समय लगा। उसे पता चला कि जिस डॉक्टर ने महक का ऑपरेशन किया था वह अभी भी इसी अस्पताल में थे। वह डॉक्टर खन्ना से मिली और उन्हें अपना परिचय दिया। उसने अनुरोध किया कि वह उसे उन लोगों का नाम पता बताएं जिन्हें महक के अंगदान से नया जीवन प्राप्त हुआ था। आमतौर पर इस जानकारी को गुप्त रखा जाता है किंतु पूर्वी ने जब अपने सास-ससुर की दुखी अवस्था का जिक्र किया और कहा कि वह बस एक बार उन्हें उन सब लोगों से मिलाना चाहती है जिनके अंदर महक अभी भी जीवित है। पूर्वी के बार-बार अनुरोध करने पर अंततः डॉ खन्ना ने ऑफिस से पुरानी फाइलें मंगवा कर देखीं और पूर्वी को उन दो लोगों के नाम पते बताए जिन्हें महक की आंखें और ह्रदय लगाया गया था। उसकी किडनी और लीवर एक दूसरे शहर में भेजे गए थे। उसने डॉ खन्ना से उन अस्पतालों का पता लिया और संबंधित डॉक्टर के नंबर भी लिए। बाद में उनसे फोन पर अनुरोध करके बाकी दो लोगों का भी विवरण ले लिया। अगले दिन राज के घर आने पर पूर्वी ने राज को यह सब बातें बताईं और उसे कहा कि मैं चाहती हूं कि मां पिताजी इन लोगों से मिले। उन्हें और उनके परिवार को हंसता मुस्कुराता हुआ देखकर उनके मन को बहुत संतुष्टि होगी कि उनकी बेटी ने इतने सारे लोगों को जीवनदान दिया और उनकी जिंदगी को रोशन किया। पहले तो राज ने मना कर दिया कि शायद इस से मम्मी पापा को और ज्यादा दुख होगा लेकिन पूर्वी के बार-बार समझाने पर और उसके यह कहने पर कि क्यों नहीं आप इस मुलाकात को एक सकारात्मक रूप में देखते हैं, राज मान गया। राज ने एक-एक करके उन सब लोगों को फोन किया और उन्हें पूरी स्थिति से अवगत कराया। वो सब भी यह नहीं जानते थे कि ऐसा कौन सा नेक परिवार है जिनके कारण उनका परिवार आज खुशहाल है और वह सभी भी हृदय से इनका आभार करना चाहते थे।
अगले महीने महक की जन्म तिथि थी। राज और पूर्वी ने निश्चय किया कि वह उस दिन इन सभी लोगों को बुलाएंगे। हर साल महक की जन्म तिथि पर मेहरा परिवार अनाथाश्रम और वृद्धाश्रम में मिठाइयां और कपड़े आदि बांटते थे। इस वर्ष भी सुबह उन्होंने यही किया। राज और पूर्वी वहां से घर आ गए। पूर्वी ने महक की पसंद का खाना बनाया। परेश और विभा आज बिल्कुल शांत थे। उन्होंने हमेशा की तरह मंदिर में जाकर महक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भी की।
जब करीब सुबह 11:00 बजे वह मंदिर से लौटे तो घर में घुसते ही अंदर से आती आवाजों को सुनकर चौंक गए। “घर पर क्या आज कुछ मेहमान आए हैं”? परेश ने विभा से पूछा तो उन्होंने अनिश्चय में सर हिलाया। जब दोनों अंदर पहुंचे तो देखा कि कुछ लोग ड्राइंग रूम में बैठे हैं और राज और पूर्वी उन से बातें कर रहे हैं। परेश और विभा को देखकर राज ने उनसे कहा कि देखो मां आज दीदी अपने जन्मदिन पर हमसे मिलने आई हैं। परेश और विभा कुछ भी नहीं समझे। उनके चेहरे पर असमंजस के भाव थे। तब पूर्वी ने आगे बढ़कर कहा “मां, पिताजी महक दीदी आज हमारे आसपास हैं। वह इन सभी लोगों में मौजूद हैं। यह हैं शालिनी जी” उसने वहां बैठी एक लगभग चालीस साल की महिला से परिचय कराते हुए कहा “इन्हें महक दीदी का ह्रदय लगाया गया था जिसकी वजह से न सिर्फ इनके प्राण बचे बल्कि आज इनके पति, बच्चे और पूरा परिवार बहुत खुश हैं। और यह है मिस्टर स्वामीनाथन जिन्होंने एक एक्सीडेंट में अपनी आंखें खो दी थी। आज ये अपने बच्चों के चेहरे की खुशी देख सकते हैं। आसपास बिखरे रंग देख सकते हैं तो सिर्फ और सिर्फ महक दीदी की आंखों की वजह से और इनसे मिलिए यह है बाईस साल का सौरभ जिसे किडनी की असाध्य बीमारी थी और उसकी वजह से इसका जीना लगभग असंभव था किंतु आज यह एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज का छात्र है जिसके सामने एक उज्जवल भविष्य है और यह सिर्फ महक दीदी की वजह से हुआ जिन की किडनी सौरभ को लगाई गई।”
परेश और विभा मानो जङ हो गए। निशब्द से यह सब सुनते जा रहे थे और उनकी आंखों से अविरल आंसू बहे जा रहे थे। सबसे आखिर में राज ने उनका परिचय मिस्टर वर्मा से कराया जो अपनी शराब पीने की आदत से कम उम्र में ही अपने लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा चुके थे। उनके जीने की कोई उम्मीद नहीं थी पर उन्हें एक नए जीवन की रोशनी दी महक ने जब उसका लिवर इनके शरीर में ट्रांसप्लांट किया गया। आज यह अपने ऑफिस के काम के साथ-साथ लोगों को नशा मुक्ति के लिए जागरूक करते हैं और अंगदान के लिए भी प्रेरित करते हैं।
“आज कितना खुशी का दिन है कि महक दीदी इन सभी के रूप में हमारे साथ अपना जन्मदिन मना रही हैं।” पूर्वी ने कहा। विभा और परेश भावातिरेक में कुछ भी नहीं बोल पा रहे थे। एक-एक करके सभी लोगों ने आगे आकर उनके पैर छुए और भरे गले से उनका धन्यवाद दिया कि उन्होंने अपने जीवन में आए इस दारुण दुख के समय में भी इतना नेक काम करके इतने सारे परिवारों को जीवनदान दिया। बड़ा ही भावुक दृश्य था। सभी निशब्द थे और उनकी आंखों से बहते आंसू उनके दिल की बात कह रहे थे। विभा ने धीरे-धीरे आगे बढ़कर स्वामीनाथन के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसकी आंखों में देखा। उन आंखों में जो उनकी बेटी की थी। उसे लगा मानो वह ज़िंदगी से भरपूर आँखे कह रही हों “माँ मैं यहीं तो हूं तुम्हारे आसपास। मैं तुमसे दूर नहीं गई” और वह भावविभोर होकर रोती जा रही थी। यह देखकर पूर्वी की आंखों से भी आंसू बहने लगे। फिर उसने माहौल को हल्का करने के प्रयास में जोर से सबसे कहा, “आज तो खुशी मनाने का दिन है। आज महक दीदी का जन्मदिन है और वह इतने सालों बाद आज अपने घर पर वापस आई हैं।” कहते हुए वह अंदर से केक निकाल कर ले आई और टेबल पर रख दिया फिर उसने सभी मेहमानों से आग्रह किया कि वह मिलकर इस केक को काटें। मां और पापा को केक खिलाते हुए पूर्वी ने कहा “देखिए ना मां, पापा महक दी, जो सिर्फ हमारी एक घर को गुलजार रखती थी, आज उन्होंने इन चार घरों को, इन चार परिवारों को खुशियों से भर दिया है। महक दीदी की महक इन सब के जीवन को महका रही है।” विभा जी अब तक पहली बार बोली कि मैंने कभी सोचा भी नहीं था आप लोगों से मिलना मेरे जीवन में खुशियां लेकर आएगा। मैं कई बार आपसे मिलना चाहती थी पर मेरे मन में हमेशा यह आशंका थी कि मैं आप सब का सामना कर पाऊंगी या नहीं पर हमारी बेटी पूर्वी ने आप सब से मिलवा कर हमारे मन का एक बहुत बड़ा बोझ हल्का कर दिया। आप सब लोगों से मिलकर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरी बच्ची, मेरी महक मेरे आस-पास ही है। परेश जी ने भी सिर हिलाते हुए पत्नी की बात का अनुमोदन किया हालांकि वह अभी भी इतने भावुक थे कि कुछ बोल नहीं पा रहे थे। महक के जाने के बाद वह अपने प्रयासों से पत्नी को खुश रखने की कोशिश तो करते थे परंतु अंदर ही अंदर खुद भी महक की याद में घुलते रहते थे। आज मानो उनकी आंखों ने ही उनके दिल की बात कह दी।
फिर सब लोगों ने महक का पसंदीदा खाना खाया और उन लोगों ने अपने अपने परिवार के बारे में मेहरा परिवार को सब कुछ बताया कि किस तरह से उनके द्वारा किए गए महक के अंगदान से इन परिवारों में खुशहाली लौट आई थी। बाद में एक-एक करके सभी ने मेहरा परिवार से विदा ली और साथ ही सब ने आपस में यह वायदा भी किया कि वे नियमित रूप से मिलते रहेंगे और एक दूसरे के संपर्क में भी रहेंगे क्योंकि महक का एक खूबसूरत सा रिश्ता जो इन्हें एक सूत्र में बांधे हुए था।
यह रचना मौलिक एवं स्वरचित है। कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है परंतु इसमें निहित संदेश आज के समाज की सच्चाई और जरूरत है। पाठकों के अनुकूल सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं का स्वागत है।
तृप्ति उप्रेती