मायका दूर है – रीमा ठाकुर

विवाह के बाद पहली बार  छवि को लेने बडे भैया “

आये थे नई नवेली छवि सिर पर पल्लू डाले बडे भाई के सामने सकुचा रही थी! 

पति आकाश के आते ही, वो पानी का गिलास थामे उसकी ओर बढ गयी! छवि की आहट वैसे भी आकाश पहचान लेता था! 

छवि चुपचाप आकाश पीछे जाकर खडी हौ गयी! 

छवि ” आकाश धीरे से बोला, 

हूँ “” छवि का छोटा सा, जबाब “

तुम न जाओ तो मायके, पानी का गिलास हाथ में लेते हुए आकाश बोला “

छवि मौन’

उसके विचारों की क्षंखला मे अंतर्द्वंद शुरू हो चुका था! 

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आकाश उसके मन के भाव समझ चुका था! 

छवि जाओ पैकिंग कर लो, 

कुछ अनमने मन से बोला आकाश, 



छवि अब भी कुछ न बोली “”

अब सोचो मत जाओ” बोलता हुआ बाहर चला गया आकाश “

छवि तराजू के दो पलडो में फस गयी! 

उसने मन ही मन अवलोकन किया ”  

पल भर में ख्यालो में मायके पहुँच गयी, 

जहाँ उन्नीस वर्ष बिताऐ थे!! 

 

माँ बाबू जी भैया भाभी, भरा पूरा परिवार, जहाँ प्यार दुलार से उसको पोषित किया गया था! 

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मजाल कभी किसी ने उसे  बेटी होने का अहसास   दिलाया हो! 

उसने मन ही मन निर्णय लिया, और पैकिंग के लिए, बेग निकालने लगी! 

पर मन विचलित होने लगा, 

आकाश के लिए, कुछ दिनों में आकाश को कितना प्यार करने लगी थी! उसे ऐसा लगने लगा था छोडकर जायेगी तो, 

लगा जैसे सांस अटक गयी! 

आकाश की आंखों में उसके जाने की वेदना साफ नजर आ रही थी! उसने सोचा, ये पति पत्नी का रिश्ता भी कैसा होता है! 

कुछ ही दिनों में, कितना एक दूसरे से, बंध जाते हैं! 



छवि अपने ही विचारों में जाने कब तक खोई रहती, की सास सरला जी की आवाज कान में पडी! 

 

बहू पैकिंग हो गयी  “

जी माँ जी “

रास्ते के लिए कुछ मंगाना हो तो बता दो, 

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आकाश बाजार जा रहा है! 

नही माँ जी “

छवि समझ चुकी थी की आकाश उसके जाने के निर्णय से खुश नहीं है! 

पर मायके को इतनी जल्दी भूलना आसान तो नहीं! 

रात के एक बज चुके थें! 

मायके जाने की खुशी में नींद नही आ रही थी छवि को “

पूरे एक महिने, बाद जा रही थी! 

सुबह की गाड़ी थी! 

छवि अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है! 

आकाश छवि के चेहरे को देखते हुए बोला, 

उसकी आंखे भरी हुई थी! 

आकाश “

हूँ “”

उसके आंखो मे झांका छवि ने,

ये क्या पागलपन है! 

नही जी सकता तुम्हारे बिना “

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आकाश करवट बदलते हुए बोला “

कुछ दिनों की तो बात है, कुछ रीति रिवाज होते हैं, 

मुझे कौन सा आपके बिना, वहाँ अच्छा लगने वाला है! 

अच्छा, आकाश के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गयी! 

मेरे भोले से पति “

गाडी कानपुर स्टेशन पर खड़ी हो गयी, सुबह चार बजे का समय था! 

छोटे चाचाजी स्टेशन पर लेने आ गये थे! 

छवि चाचाजी को देखते ही खिल उठी “

पूरे तीस घंटे का सफर करके माले गाँव से कानपुर पहुंची थी! 

अभी एक घंटे का रास्ता और तय करना था! 

बिटिया कैसी है, सुसराल में सब ठीक ठाक है, जी चाचा जी “

घर पहुंचते पहुंचते सुबह हो गयी थी! 

 

छवि के आसपास पूरे परिवार ने घेरा बना लिया था ! 

सबका प्यार जैसे उसके लिए ही था! 



बीस दिन  कैसे निकल गये, पता ही नही चला! 

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आकाश कल लेने आने वाले थे! 

और घर में माँ ने विदाई की तैयारी में, बहुत सारी खरीदी कर ली थी! 

बड़े भैया की जान बसती थी, छवि मे “

पर भाभी को छवि से कुछ   ईष्र्या थी! 

छवि भैया के कमरे में सोयी थी! 

छवि,

भैया ने आवाज दी “

चलो लग रहा छवि गहरी नींद में है! हम बाहर बैठक वाले रूम में सो जाते हैं, भैया भाभी से बोले “

आपको तो बहन के अलावा किसी की फिकर कभी हुई है! 

नेहा, ये कैसी बात कर रही हो “

छवि की ओर देखा भैया ने “

कही उसने सुन तो नही लिया, 

अब क्या , हो गयी शादी, ज्यादा प्यार बरसाओगे तो यही पडी रहेगी’

नेहा बाहर चलो “

वो भाभी का हाथ खीचते हुए बोले “

छवि उनकी बात सुनकर आवाक रह गयी ” भैया भाभी बैठक में जा चुके थे! 

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अभी तक उनकी आवाज आ रही थी, 

शायद वो लड रहे थे! 

आखिर मेरी गलती क्या है, समझ नही पा रही थी, 

छवि ” आंसू की कुछ बूंदे उसके गालो पर लुढक गयी! 

काफी रात गुजर गयी थी “

किसी ने छवि के सिर पर हाथ फेरा, वो बडे भैया थे! 

वो रो रहे थे, ये महसूस किया छवि ने “

भैया उसे सोता समझ कर कुछ देर बाद बाहर जा चुके थे! 

अगली सुबह ही आकाश आ गये थें! 

जब छवि की आंख खुली तो, भाभी की हंसी गूंज रही थी! 

ननदोई जी कोई तकलीफ तो नही हुई’

ननद जी तो अभी सो रही है! 

तो हम उठा देते हैं, आखिर आये ही उनके लिए है! 

आकाश जी छवि के सामने आकर खड़े हो गये! 

अरे वाह हमारी हर हायनस अभी सोयी है! 

हम बिचारे पति इतना सफर करके आये है, और कोई इंतजार नही! 

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छवि के चेहरे को छूते हुए बोले आकाश जी “



अरे आपको तो बुखार है, आकाश छवि के पास बैठते हुए बोला, 

छवि ने आकाश को भीचं लिया, और सुबक पडी “

ये क्या हालत बना ली है! 

छवि क्या हुआ “

कुछ ही देर में सारा परिवार इकट्ठा हो गया! 

शाम तक छवि का मूड सही हो गया था! 

माँ ने बहुत पूछा पर छवि कुछ न बोली, बस भैया की आंखे रिक्त थी! 

शाम घर से विदाई होते वक्त छवि ने पलट कर देखा सबकी आंखो में आंसू थे! 

बेटा जल्दी आना “

हा बाबू जी, 

गाडी चल चुकी थी, छवि गुमसुम थी, पास बैठी औरत ने पूछा कहा जा रही हो, 

मालेगांव “

शायद मायके आयी थी! 

जी, 

तभी उदास हो”

वो बस इतना ही बोल सकी मायका दूर है, 

 

समाप्त “

रीमा महेंद्र ठाकुर लेखिका “

राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत”

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