मृत्यु भोज,, बहिष्कार अथवा स्वीकार,, – सुषमा यादव

,,,हम अपने देश में बहुत सी परम्पराओं और संस्कारों, तथा प्रथाओं को ज़माने से निभाते आ रहे हैं,, इनमें से समय के साथ कुछ कुरीतियों और कुप्रथाओं में तब्दील हो चुकी हैं हमारे रीति रिवाज,,जो समय के साथ जरूरी भी है,,कब तक हम इन अंधविश्वासी बेड़ियों में जकड़े रहेंगे,, परिवर्तन होना ही चाहिए,, आज़ के इस दौर की मांग भी है,,

 

पर कुछ रीति रिवाज हम चाह कर भी नहीं छोड़ सकते,, वो हमारी अमूल्य धरोहर है, हमारी पहचान है,,,पर हमें लकीर का फकीर भी नहीं बनना है,,जो हमें पसंद है,जो 

परम्परायें हम‌ निभाना चाहते हैं, किसी की परवाह किए बगैर हम निभा सकते हैं,,,पर हां, हमें दुराग्रही नहीं बनना है,,

 

,, यहां हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि यदि हम किसी रीति रिवाज का विरोध करते हैं, तो हमें निष्पक्ष होकर उस पर अमल करना चाहिए,,

,, ऐसे ही हमारे यहां ये परम्परा है कि हमारे अपने किसी आत्मीय जन के जाने पर हम उनका तेरहवीं , श्राद्ध कर्म करते हैं,, मृत्यु भोज करते हैं,, ब्राह्मण और हमारे रिश्तेदार तथा जान पहचान वालों को हम सादर भोजन करवाते हैं,,

आज़ कल बहुत सारे मैसेज कुछ लोगों द्वारा डाले जाते हैं,, वो इसका बहिष्कार करने को कहते हैं,,,, मृत्यु भोज बंद करो,,इस कुप्रथा का बहिष्कार करो,, किसी के भी तेरहवीं, श्राद्ध में भोजन करने नहीं जाना है,,,हमारा मक़सद ये बिल्कुल नहीं है कि आप इसे किस रूप में लेते हैं,, इसका बहिष्कार करते हैं या इसे स्वीकार करते हैं,हम तो बस ये बताना चाहते हैं कि कुछ लोग इस तरह की पोस्ट डाल देते हैं और लोग उसे फारवर्ड कर देते हैं,, फिर सब उसका समर्थन भी करते हैं,, चलिए, ये भी ठीक है, पर जब किसी साधारण परिवार में या   



जिसके साथ उनका संबंध अच्छा नहीं है,, उनके घर मृत्यु भोज में शामिल होने तो जायेगें पर उन्हीं में से कुछ लोग जो इसका विरोध करते हैं, वो कहेंगे,,,,ना भई,हम तो तेरहवीं, श्राद्ध का भोजन नहीं करते हैं,,बस दरवाजे पर आना चाहिए,हो आ गये हैं,, और हाथ जोड़कर चलते बनते हैं,, और कुछ खा लेते हैं,चलो, बुजुर्ग हैं, कोई जवान और बच्चा तो है नहीं,, वरना नहीं खाते,,

,, और मैं हैरान हो जाती हूं,जो इसका प्रबल विरोध करते हैं, वो अपने प्रिय जनों के यहां,या प्रतिष्ठित लोगों के यहां अथवा किसी विशेष दोस्तों के यहां आंसू बहाते हुए आराम से मृत्यु भोज खाते हैं,, उम्र कोई हो, किसी भी परिस्थिति में मृत्यु हुई हो, कोई परहेज़ नहीं,,ऐसी दोहरी मानसिकता क्यों,,समझ में नहीं आता,, क्या इससे उनका दोहरा चरित्र हमारे सामने उभर कर नहीं आता,,, यदि हमें सच में ये कुप्रथा

लगती है तो दृढ़ता से इसका निष्पक्ष पालन करना चाहिए,,

हम सब जानते हैं, हमारे पुराणों में जो लिखा है, कि इस संस्कार को करने से मृतात्मा को शांति मिलती है,,उसका उद्धार होता है,, समाज और पुरखों के नियमों से हम बंधे हैं,, बहुत से कुप्रथाओं, कुरीतियों तथा अंधविश्वासों से हम सब‌ धीरे धीरे मुक्त हो रहें हैं,,पर क्या इस मृत्यु भोज से हम मुंह मोड़ सकते हैं,, फिलहाल अभी तो नहीं,, मैं तो कदापि नहीं,, क्या वो तथाकथित लोग जो इसका विरोध करते हैं,कि इसे बंद करो, वो अपने घर मृत्यु भोज नहीं करते, बिल्कुल करते हैं,,

,,बस मेरा कहने का मतलब है कि

आंख बंद करके किसी भी चीज़ का समर्थन,या विरोध नहीं करना चाहिए,, यदि आप करते हैं तो उस पर डटे रहिए,, दोहरी मानसिकता को बदलिए,,अपनी बात पर अडिग रहें,, अपनी हंसी ना उड़ायें ,,

 

, ये आपकी अपनी विचारधारा है, अपनी सोच है, इसको दूसरों पर मत थोपिए,, आप इसे स्वीकार करें या ना करें, ये आपकी मर्ज़ी,,

 

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित मौलिक, अप्रकाशित,,

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