सुनो जी.. सुबह ऋतु का फोन आया था आज फिर उनके घर में क्लेश हुआ है। मैं तो रोज – रोज यही बातें सुनकर थक गई हूं।
बेटी को समझाओ कि तुम उनके हिसाब से एडजेस्ट करो तो वह आधी बात सुनने को तैयार नहीं है.. भुनभुना कर फोन पटक देती है, कहती है कि आपको तो हमेशा से मैं ही गलत दिखाई पड़ती हूं अब करें तो क्या करें कुछ समझ में नहीं आता।
सच कह रही हो सुमन .. हरदम यही डर सताता रहता है कि बेटी कहीं कुछ ऐसा – वैसा न कर बैठे। पिछली बार जब उसके ससुर ने बुलाया था
तो सारी कमियां उन्होंने बेटी में ही निकाल दी थीं और उन सबके सामने वह एक शब्द भी नहीं बोल पाई थी। हम बाप – बेटी नज़रें झुकाए बैठे हुए थे और वो सारे हमें कोसे जा रहे थे कि आपने अपनी बेटी को कोई संस्कार ही नहीं दिए।
मन तो कर रहा था कि चीख – चीख कर सुनाऊं कि आपने अपने बेटे को क्या सिखाया है??? यही कि बात – बात पर गाली – गलौंच करे और जब जी चाहे अपनी नाकामयाबी का ठीकरा उसके सर फोड़ते हुए उसके साथ मारपीट करे।
अगर बेटी से कहते कुछ दिन यहां आ जाओ तो वह कह देती.. यह कोई सॉल्यूशन नहीं है पापा.. जब तक हिम्मत है झेल रही हूं। जिस दिन सहनशक्ति जवाब दे जाएगी
तब सोचूंगी क्या करना है। हो सकता है कभी मेरे भी दिन फिर जाएं और सब कुछ ठीक हो जाए। मैं जानती हूं पापा कि मेरे अपने खून के रिश्ते भी मुझ में ही खोट निकलेंगे और आपका जीना दुश्वार हो जाएगा।
बेटी की बात एकदम सही थी इसीलिए वो भी उससे सहमत थे।
एकदिन उसकी ससुराल वालों का फोन आया.. ऋतु आपके पास है क्या??
नहीं तो वह तो यहां नहीं आई.. क्यों क्या हुआ?? वह वहां नहीं है क्या??
नहीं.. आज झगड़े के बाद वह बिना किसी को कुछ बताए घर से चली गई है और उसका फोन भी स्विच ऑफ आ रहा है। आप लगाकर देखो और अगर आपकी बात हो तो हमें भी बता देना।
विनीत के हाथ कांप रहे थे। वे धम्म से सोफे पर गिर पड़े। हे भगवान! मेरी बेटी की रक्षा करना वह जहां भी हो सलामत हो। वह बार – बार फोन ट्राई कर रहे थे पर वह स्विच ऑफ जा रहा था।
आखिर ऋतु का ही फोन आया.. पापा मैं बहुत थक गई हूं। यह रोज – रोज का क्लेश बर्दाश्त नहीं होता अब.. इससे तो अच्छा है इस जीवन से मुक्त हो जाऊं। सभी के दिल को चैन मिल जाएगा और आपको भी मेरी वजह से उल्टी – सीधी बातें नहीं सुननी पड़ेंगी।
ऐसा कुछ मत करना तुम वरना हम भी जीते जी मर जाएंगे। अच्छा यह बताओ तुम हो कहां??
रेल्वे स्टेशन पर.. हिचकियां लेते हुए उसने कहा।
यह तुमने बहुत गलत किया है जानती हो आजकल जमाना कितना खराब है। ऊपर से रात होने वाली है।अभी तुम एक काम करो तुरंत ही ऑटो पकड़ कर यहां आ जाओ बाकी बातें यहीं करेंगे.. विनीत ने आदेशात्मक स्वर में कहा।
थोड़ी देर बाद जब ऋतु घर आई तो बहुत परेशान थी। रो – रो कर उसकी आँखें सूजी हुई थी। अब तुम वहां नहीं जाओगी यह मेरा फैसला है। बेटी दी है उन्हें कोई गुलाम थोड़े ही न हो गए हैं उनके कि जो मर्जी हो वे करते जाएं और हम चुपचाप तमाशा देखते रहें।
लेकिन पापा लोग क्या कहेंगे?? वे ताने दे – दे कर हम सबका जीना मुश्किल कर देंगे।
अब वह भी देखेंगे.. बेटी के दो ही घर होते हैं मायका और ससुराल। अगर हालात इतने खराब हो जाएं कि जान पर बन आए और लोगों के बारे में सोच कर बच्चे को मरने के लिए छोड़ दिया
जाए तो यह बहुत बड़ा अपराध होगा और ईश्वर भी हमें माफ नहीं करेगा। लोगों का क्या है उन्हें तो बातें बनाने के बहाने चाहिए होते हैं अगर यही सब उनकी बेटी के साथ हुआ होता तो भी क्या उनका यही रिएक्शन होता??
अभी तो आप हैं जो मेरी ढाल बन कर खड़े हैं पर जब आप नहीं होंगे तो भी मुझे इस घर में क्या यही मान- सम्मान मिलेगा?
अब तुम जॉब की तैयारी करो और अपने पैरों पर खड़े हो कर दिखाओ। तुम्हें किसी पर बोझ बनने की जरूरत नहीं है। अपनी जिंदगी की कहानी अब तुम खुद लिखोगी।
लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं था। जो भी मिलता लंबा सा लेक्चर जरूर सुनाता.. अरे झगड़े किस घर में नहीं होते पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि बेटी को छाती पर बैठा लो। आप लोगों की शह है तभी तो इसने निभाने की कोशिश नहीं की होगी। कब तक इसे ऐसे रखेंगे आप??
और तो और लोग अपनी बहू – बेटियों को ऋतु का उदाहरण दे कर कहते कि तुम हमारी ऐसी नाक मत कटवा देना जैसी ऋतु ने अपने मां – बाप की कटवा दी है। अब तलाक ले कर मायके में बैठी है।
यह हमारे समाज का नियम है कि गलती चाहे किसी भी हो अपराधी के कठघरे में हमेशा स्त्री ही खड़ी होती है। ऋतु ने और उसके परिवार वालों ने सामाजिक समारोहों में आना – जाना लगभग बंद ही कर दिया था क्योंकि लोगों की चुभती निगाहें उन्हें अंदर तक छलनी कर देती थीं।
इस तरह चार साल बीत गए।तभी विनीत को उनके मित्र ने ऋतु के लिए एक रिश्ता बताया। उस लड़के की पत्नी की कोरोना में मृत्यु हो गई थी। सरकारी नौकरी थी, अच्छा परिवार था।
उन्हें भी इस बात की चिंता खाए जा रही थी कि इतनी लंबी जिंदगी बेटी अकेली कैसे गुजारेगी। उन्होंने जब इस बारे में ऋतु से बात की तो वह बोली.. पहले ही बहुत भुगत चुकी हूं मैं अब फिर वह सब भुगतने के लिए तैयार नहीं हूं मैं।
सब एक जैसे नहीं होते बेटा.. पहले तुम रोहित से मिलो और उसे अच्छे से समझो तब शादी के लिए हां बोलना.. हमें कोई जल्दी नहीं है हम भी नहीं चाहते कि फिर कोई झंझट हो।
धीरे – धीरे ऋतु और रोहित की मुलाकातें दोस्ती में बदल गईं। ऐसा लगने लगा उन्हें कि जैसे वे एक – दूसरे के लिए ही बने हैं। जब विनीत ने रोहित के पापा से बात की तो वे बोले..
आप अपने परिवार में सलाह कर लो हम तो बिल्कुल तैयार हैं। हमें आपसे कुछ नहीं चाहिए बस मंदिर में पंडित जी को बुलाकर फेरे करवा लें ताकि हम अपनी बहू को घर ला सकें। सच में बिना बहू के घर बड़ा सूना लगता है।
मुझे किसी से बात नहीं करनी क्योंकि जब मेरी बेटी और हम सब तनाव से गुजर रहे थे तो किसी ने एक बार भी नहीं पूछा कि आप के दिल पर क्या गुज़र रही है
उल्टे फालतू बातें ही सुनाते रहे। मैं जानता हूं कि बातें तो फिर भी बनेंगी क्योंकि #कुछ तो लोग कहेंगे.. उनका यही काम है पर अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। अब मैंने अपने और अपने बच्चों की खुशियों के लिए जीना सीख लिया है।
#कुछ तो लोग कहेंगे
कमलेश राणा
ग्वालियर