किराया – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

जनमते ही अम्मा ने देह त्याग दिया ,और जब देह त्याग दिया तो भला मुझ जैसी अभागन को कौन देखता,और फिर बेटा होता तो लोग भले मां मर जाती पर हाथों हाथ लिए रहते ,पर मुझे ननिहाल भेज दिया गया।

हां ननिहाल, काकी बताती है कि उनके कोई आल औलाद नहीं थी तो वो खुद मुझे लेना चाह रही थी।

पर दादी ने चिंता की आग ठंडी भी नहीं हु थी और बेटे के लिए एक नई बहू ले आईं।

वो मुझे फूटी आंख देखना नहीं चाहती थी तो भला अपनी देवरानी को गोद कैसे लेने देती।

खुदा की कुछ ऐसी मर्जी की उससे कोई आल औलाद नहीं हुई ,और वो रोड़ एक्सीडेंट में अकाल मौत मर गई।

उसके बाद भले पापा की उम्र कम थी पर तीसरी शादी के लिए खुद तैयार नहीं हुए।

और बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने मुझे अपने घर लाने का निश्चय किया।

हालांकि दादी ने भर सक बहुत कोशिश किया कि वो न लाएं पर ममता कही न कही हिलोरें मार रही थी ।और उन्होंने एक न सुनी मुझे घर ले आए।

तब तक अपनी भी उम्र लगभग चार साल की हो गई थी।

अब नाना नानी तो रहे नहीं , परवरिश की जिम्मेदारी जबरन मामा मामी पर आ गई थी।सो उन्होंने टूटे मन से भी एक बार मना नहीं किया।

बल्कि देख रेख की सीख लेकर दो जोड़ी ने कपड़े दिला कर झूठे टेसुओं के साथ विदा कर दिया।



और फिर कभी पलट कर नहीं देखा।

काकी बताती है कि मुझे वापस लेकर वो बहुत खुश हुई।

और पापा जब दफ्तर चले जाते तो वो ही मेरा ख्याल रखती।

धीरे धीरे वक्त खिसकने लगा,उर बढ़ने लगी।

पढ़ाई में अच्छी होने के कारण पापा ने कभी हाथ दंग नहीं किया।

और तब तक पढ़ाया जब तक हम अपने पैरो पर खड़े नहीं हो गए।

अब वक्त हाथ पीले करने की आई तो उन्होंने मेरी खुद की पसंद जानना चाहा मेरे ना करने पर एक सुयोग्य वर ढूंढ़कर हाथ पीला करना चाहा इस पर उनकी आंखें नम हो आईं।

अब हो भी क्यों न आखिर सालों परवरिश किया है

उसकी जिसे छोड़कर एक दिन इस रैन बसेरे को चले जाना है।

उस रैन बसेरे को जिसका किराया वो उनकी इज्जत रख कर चुकाई है।

कभी उनकी इज्जत पर आंच नहीं आने दी।

कल उसकी बारात आने वाली है और परसों विदाई है।

उसने देखा दूर बैठी काकी रो और पापा सिसक रहे हैं ,कल बिना मां की औरों के भरोसे पली  बिटिया होने वाली पराई है।

होने वाली पराई है।

 

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

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