एक नगर में एक सेठ रहता था. ईश्वर में बहुत भक्ति भाव रखता था, रोजाना सुबह-सुबह पास के मंदिर में जाकर भगवान की पूजा करता। फिर घर आकर अपने घर में बने छोटे से मंदिर में पूजा करता उसके बाद ही वह अपनी दुकान पर जाता था. ऐसा वह सालों से करता आ रहा था.
1 दिन सुबह जब वह मंदिर में पूजा कर रहा था तो उसके मन में एक सवाल आया और उसने भगवान से पूछा, “भगवान मैं इतने सालों से आपको पूजता आ रहा हूं लेकिन आज तक मुझे कभी भी आपके होने का एहसास नहीं हुआ, आप भले मुझको अपना दर्शन ना दे, लेकिन मैं चाहता हूं कि आप कुछ ऐसा कर दीजिए कि मुझे यह एहसास हो जाए सच में भगवान है.
कुछ देर के बाद एक आकाशवाणी गूंजी और सेठ से कहा सेठ मानिकचंद क्या तुम्हें याद है? जो रोज तुम सुबह-सुबह नदी के किनारे सैर करने जाते हो जब तुम रेत पर चलते हो तो वहां पर ध्यान देना तुम्हें दो पैरो की जगह पर चार पैर दिखाई देंगे उसमें से दो पैर तुम्हारे होंगे और दो पैरों के निशान मेरे होंगे इस तरह तुम्हें मेरे होने का एहसास हो जाएगा.
अगले दिन सुबह जब वह सेठ नदी के किनारे सैर करने गया तो उसने देखा उसके पैरों के साथ-साथ दो पैरों के निशान और बनते जा रहे हैं वह बहुत खुश हुआ उसे इस बात का एहसास हो गया कि सचमुच भगवान है अब वह 1 दिन भी नदी किनारे सैर करने जाना नहीं भूलता था.
कुछ दिनों बाद सेठ को उसके अपने व्यापार में दिन पर दिन घाटा होने शुरू हो गया उस घाटे में उसका बिजनेस पूरी तरह से चौपट हो गया। वह अब सेठ से भिखारी बन गया था। उसके सारे रिश्तेदार दोस्त मित्र सब उसको छोड़ कर चले गए थे. लेकिन उस सेठ को इससे जरा सा भी कष्ट नहीं हुआ। उसे पता था कि यह दुनिया मुसीबत में साथ छोड़ देती है लेकिन अगले दिन वह जब नदी के किनारे सैर करने गया तो वह क्या देख रहा है आज उसके चार पैरों के निशान के बदले सिर्फ दो ही पैरों के निशान दिखाई दे रहे हैं।
अब वह सेठ बहुत ही क्रोधित हुआ उसने भगवान से कहा भगवान यह तो बहुत बड़ा अन्याय है मैंने तो सुना था कि बुरे वक्त में दुनिया चाहे साथ छोड़ दे लेकिन भगवान कभी साथ नहीं छोड़ते हैं लेकिन यहां तो मैं देख रहा हूं कि आपने भी मेरा साथ छोड़ दिया है.
सेठ के पास कितने भी बुरे दिन क्यों नहीं आ गए थे वह नदी के किनारे सैर करना कभी नहीं छोड़ा और ना ही भगवान की पूजा अर्चना करना। समय के साथ धीरे धीरे सेठ की मेहनत रंग लाई और वह दोबारा से उसका बिजनेस चल पड़ा जब वह फिर से सुखी संपन्न हो गया।
अब उसने देखा कि अब नदी किनारेदो पैर की जगह पर चार पैर फिर से दिखाई देने लगे हैं अब वह पहले से ज्यादा क्रोधित हो गया और भगवान से बोला भगवान जब मेरा बुरा वक्त चल रहा था तो आपने भी मेरा साथ छोड़ दिया था लेकिन जैसे ही मेरा अच्छा वक्त शुरू हुआ आप भी मेरे साथ हो गए यह तो बहुत गलत है ना मुझे नहीं पता था कि भगवान भी अपने भक्तों के साथ ऐसा कर सकते हैं.
समुद्र के किनारे फिर से एक आकाशवाणी गूंजी और सेठ को कहा, “सेठ मैं अपने भक्तों का साथ कभी नहीं छोड़ता हूं तुम कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूंगा जो अपने बुरे समय में भी मेरी पूजा अर्चना करना नहीं छोड़ा.
तुम्हें लगता है कि बुरे वक्त में मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया था लेकिन भक्त ऐसा नहीं है बुरे वक्त में नदी के किनारे जो तुम्हें दो पैरों के निशान दिखाई देते थे वह पैरों के निशान तुम्हारे नहीं थे वह पैरों के निशान सिर्फ मेरे थे।
मैंने तो तुझे अपने गोद में उठा लिया था ताकि जब तुम्हारा बुरा वक्त समाप्त हो जाएगा तब मैं फिर से तुम्हें दोबारा जमीन पर उतार दूंगा जैसे ही तुम्हारे बुरे दिन खत्म हो गए मैंने तुम्हें फिर से जमीन पर उतार दिया और तुम्हें चार पैरों के निशान दिखाई देने लगे.
दोस्तों यह एक भले ही काल्पनिक कहानी है लेकिन इस कहानी का नैतिक शिक्षा यही है कि हमें अपने आप पर और ईश्वर पर कभी भरोसा नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि बुरे वक्त अंधेरी रात की तरह होता है। चाहे वह कितना भी अंधेरा क्यों ना हो 1 दिन सूरज अपनी रोशनी में उसे खत्म कर ही देता है। इसीलिए आप हमेशा एक जैसा बने रहें क्योंकि अच्छा वक्त और बुरा वक्त या एक गाड़ी के दो पहियों की तरह होते हैं जो जीवन में न हो तो इनके बिना हम अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। क्योंकि अगर आपके जीवन में सिर्फ अच्छा ही अच्छा होगा तो आप कैसे समझ पाएंगे किसी के दुख दर्द और उसकी व्यथा को। आदमी घमंडी हो जाएगा अहंकार से भर जाएगा इसीलिए ईश्वर हमारे जीवन में थोड़ा सा कष्ट भी देता है ताकि हम दूसरे के कष्ट को अनुभूति को समझ सके।