कर्ज की बेदी – डॉ बीना कुण्डलिया

राधे मोहन जी परेशान से घर में चहलकदमी कर रहे। हफ्ते भर से उनका यही हाल आँखों से नींद गायब एक माह बाद बेटी की शादी तय हुई कपड़े गहने लतते पंडाल होटल सभी मिलाकर काफी खर्चा होने वाला कैसे होगा सब ? पैसा तो कम पड़ जायेगा ।

कर्ज तो लेना ही पड़ेगा । हुई तो है एक दो जगह बात मिल तो रहा है क़र्ज़, कहते हुए मन ही मन में बडबडाये । तभी फोन की खनखनाती आवाज से चौक पडते है ।

हैलोऽऽ कौन अरे ऽऽ समधी जी आप “कहिए कैसे याद किया वो दबी आवाज में बोले” उधर से आवाज आई अजी राधे मोहन जी क्यों भई बिना वजह हम फ़ोन नहीं कर सकते क्या ? अरेऽऽ अब तो हम परिवार के सदस्य होने जा रहे हैं ।

एक दूसरे के सुख दुख के साथी‌। हां, हा़ समधी जी बिल्कुल और सुनाए सब राजी खुशी घर में…सब अच्छे हैं राधे मोहन जी मैंने ये बताने के लिए फोन किया हम, मैं और मेरी धर्मपत्नी कल रविवार आप के घर आ रहे हैं ।

कुछ विवाह से सम्बन्धित बातें जानकारी के लिए। एक बार तो राधे मोहन जी सोच में पड़ जाते हैं । फिर बोले-अच्छा जी बिल्कुल आयें, आप का अपना घर है। फोन कटते ही राधे मोहन जी ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई गायत्री अरे सुनो कहां हो गायत्री।

गायत्री जी पति की आवाज सुनकर आती है क्या हुआ ? इतने उत्तेजित क्यों दिखाई दें रहे हैं… आप, कुछ परेशानी है बहुत जल्दी परेशान हो जाते हैं आप भी, कहते हुए- पास की कुर्सी पर बैठ गई बोलिए।

राधे मोहन जी बोले बेटी के ससुराल वाले आ रहे कल समधी और समधन जी कुछ जरूरी बातें करनी हैं उन्होंने। अब शादी को एक माह रह गया राम जाने क्या जरूरी बातें करनी हैं। मेरा दिल तो बैठा ही जा रहा राधे मोहन जी चहलकदमी करते बोलते बोलते थोड़ा लडखडाये और पास ही बिछे बिस्तर पर बैठ गये ‌।

गायत्री जी भी थोड़ा चिंतित होकर बोलीँ अच्छा, पता नहीं क्या बात करनी होगी ? उस दिन सगाई वाले दिन तो कुछ नहीं कहा बहुत खुश थे सभी, अब जाने क्या आ गया मन में ?  कुछ कह भी नहीं सकते आजकल इंसान का भरोसा ही कितना किया जा सकता है पल भर में मन बदलते देर नहीं लगती है।

 राधे मोहन जी चिंता में पड़ गये कहीं कोई डिमांड तो नहीं है उनकी जो बताने के लिए आ रहे हो । क्या मालूम अब आयें तो पता चले क्या चाहते हैं वे लोग ? 

रविवार की सुबह दरवाजे पर डोरवैल बजती है। तो गायत्री जी जल्दी से दरवाजा खोलतीँ है। अरे आइए समधी समधन जी और फिर खातिर दारी का दौर शुरू होता है । गायत्री जी और राधे मोहन को अधिक दौड़-भाग करते देख समधी समधन राजेश बाबू और बेला जी कहते हैं देखिए-

आप कुछ ज्यादा परेशान हो रहे हैं। आप ये मत समझिए हम लड़की के सास-ससुर है। आप लोग सहज ही व्यवहार कीजिए अपने घर का सदस्य ही समझें हमें । अरे हां हमारी होने वाली बहु को तो बुलाए । ‌गायत्री जी बेटी को आवाज लगाती है…

मानसी, और वो तुरंत हाजिर हो जाती है क्योंकि वो तो दरवाजे के पीछे खड़ी सभी बातें सुन रही होती हैं।

होने वाले सास ससुर को प्रणाम करती है। सास ससुर उसे अपने पास बैठाकर स्नेह से सर पर हाथ रखते खुशी खुशी ढेरों बातें करते आशीर्वाद देते हैं। तभी गायत्री जी कहती हैं मानसी बेटा जाओ कुछ ठन्डा बनाकर ले आओ ।

 मानसी के जाते ही राजेश बाबू कहते हैं देखिए राधे मोहन जी शादी में ज्यादा तामझाम फालतू खर्च करने की जरूरत नहीं है। लोगों का क्या है ? उनके मुंह तो कभी बन्द किये ही नहीं जा सकते।  कितना भी खर्च कर लो, रिश्ते दारों तो बातें बनायेंगे ही बनायेंगे।

तो हमने शादी के लिए एक अच्छा “वैडिंग प्वाइंट” बुक कर लिया है।और हम आपको सुझाव देते हैं आप और हम दोनों परिवार मिलकर वहीं शादी के सभी फंक्शन जो रस्में है पूरी करें आप बताए अगर आप लोगों को हमारा प्रस्ताव उचित लगे तो बोलें। 

अगर हम ऐसे फंक्शन करते हैं तो किसी एक परिवार पर दबाव नहीं पड़ेगा दोनों परिवार के काम खुशी खुशी हो जायेंगे न फालतू तुम्हारा खर्च होगा न हमारा राजेश बाबू बोले। 

तभी बेला जी कहतीं हैं देखिए भाई साहब हमें ऐसी घर की बेटी को अपने घर की बहु नहीं बनाना जिसके पिता परेशान होकर कर्ज लेकर अपनी बेटी का विवाह रचायें । वो बेटी जो पिता को कर्ज में डुबोकर ससुराल जायेगी उसका खुद का मन कब शान्ति से रह सकेगा ।

कोई भी बेटी पिता को कर्ज में डुबोकर भला ससुराल में खुश कैसे रह सकती है। इसलिए हमें “कर्ज की बेदी” पर दुल्हन स्वीकार नहीं है ।

न ही कर्ज की बेदी पर फेरे करवाने है । हमें वहां से बहु ले जानी है जो खुशी खुशी अपने बजट में खर्च कर संतुष्टि से बेटी विदा करें। इससे बेटी ससुराल में खुश रहेगी और तभी हमारे घर का वातावरण भी खुशनुमा होगा ।

राजेश जी की बात सुनकर गायत्री जी और राधे मोहन जी आश्चर्यचकित रह जाते हैं। गायत्री जी हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती हैं बोली…. “हम तो धन्य हो गये आप जैसे समधियों को पाकर” गायत्री जी कहती हैं। इसमें परेशानी वाली बात कौन सी है ?

आपने तो ऐसा कहकर हमारी सारी समस्याएं ही सुलझा दी है। हम तैयार हैं। राजेश जी बोले तो पक्का रहा फिर हम निश्चित तारीख के दिन सुबह ही वैडिंग प्वाइंट में आ जायेंगे आप भी पहुँच जायें बाकि वहीं देख लेंगे कैसा करना है। शाम तक बाकी रिश्ते दार मित्र जान-पहचान वाले सभी आमंत्रित जन पहुँच ही जायेंगे।

राधे मोहन जी बोले “ जैसा आप सही समझे बस आप हमें बताएं कितना खर्च होगा मैं सब पेमेंट कर दूंगा “ ।

उनकी बात सुनकर राजेश बाबू थोड़ा ऊंची आवाज में बोले- “क्यों तुम क्यों कर दोगे पेमेंट अरे भई हमारा भी खर्च बच रहा हमें अलग से रिसेप्शन नहीं देनी पड रही तो आधा पेमेंट हमरा भी देना बनता ही है “। 

इसलिए आधा हम देंगे आधा आप दीजिए बराबर बराबर न तेरा न मेरा। सुन्दर प्रस्ताव दोनों परिवार सन्तुष्ट नजर आने लगते हैं। वो राजेश को धन्यवाद देते हैं । तब राजेश बाबू कहते हैं ये सुन्दर विचार मेरे नहीं आपको होने वाले दामाद सोमेश के‌ है ।

ये पूरी रूपरेखा उसने ही तैयार की है। वो चाहता है शादी का बोझ किसी पर भी न पड़े। सब खुशी खुशी निपट जाए। राधे मोहन जी गायत्री जी और मानसी सब बातें सुनकर बहुत खुश होते हैं। माता-पिता की खुशी का कारण बेटी को इतने सुन्दर खुले विचारों वाले परिवार में जा रही है

और मानसी की खुशी का कारण कितना अच्छा पति मिल रहा वरना तो आजकल के लड़के वालों के मुंह बन्द ही कहां होते हैं।

हम लड़के वाले हैं यह घमन्ड सर पर चढ़ कर बोलता रहता है। जब तक शादी न हो जाए दुनिया भर की अपनी मांगे पूरी करवाते रहो । और शादी हो जाये तो ये नहीं दिया वो नहीं दिया के ताने लड़की को सुनाते रहते।

राधे मोहन जी अपने समधी समधन को कहते हैं आप ने तो हमारी सारी समस्याएं ही हल कर दी काफी दिनों से हम बहुत परेशान और सोच में डूबे हुए थे। कि शादी का काम कैसे निपटेगा हमारा बेटा मनु भी अभी छोटा ही है रिश्ते दार भी सभी दूर दूर रहते सभी समय से पहुंचेंगे कामकाज देखभाल के लिए कोई नहीं है ।अब आप लोग साथ होंगे तो सभी काम आसानी से मिलजुलकर निपट ही जायेंगे ।

राजेश बाबू और बेला जी मुस्कुराये और बोले हम आपकी तकलीफ़ अच्छे से महसूस कर रहे हैं। हम भी दो बेटियों के माता-पिता है उनकी शादी भी हमने ऐसे ही की जैसे हम अब करने की सोच रहे हैं। हमारे समधी समधन जी भी बहुत समझदार और अच्छे भले इंसान हैं।

उन्होंने शादी में लेन-देन को लेकर पहले ही हमें कह दिया था वो कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे इसलिए हमने जो उचित था बस वही अपनी बेटियों को दिया ।

हमारी बेटियों को उनके ससुराल में भरपूर सम्मान मिलता है इतने वर्ष हो गये उनको ससुराल भेजे कभी कोई शिकायत नहीं मिली बेटियां भी ससुराल वालों पर अपनी जान देती है।जब भी घर पर आयेंगीं उनका ध्यान ससुराल में ही लगा रहता। 

तभी बेला जी बोली हां सही में बड़ी मिन्नते करके बुलाना पड़ता है बेटियों को ।

गायत्री देवी जी के चेहरे पर अनोखी सी चमक उभरती है। कहती हैं जब बेटियों को ससुराल में इतना मान सम्मान मिलेगा तो अपने आप ही मायके का मोह धीरे धीरे कम हो ही जाता है। वो ससुराल को ही अपना घर जिम्मेदारी समझने लगती है। 

मैं तो धन्य हो गई जाने कितने अच्छे कर्म किए होंगे मैंने, मेरी बेटी को आप जैसे ससुराल वाले और हमें सोमेश जैसा दामाद मिल रहा है। 

ऐसे ही बातें करते करते दिनभर हंसी मजाक का माहौल रहता है फिर मानसी के  होने वाले सास ससुर विदा लेते हैं ।

जाने से पहले बेला जी अपने हाथों से सोने की चूड़ियां निकालकर मानसी को पहनाती है और कहती हैं ये तुम्हारे मायके में शादी से पहले की हमारी तुम्हारी आखिरी मुलाकात अब शादी के बाद ससुराल में ही मुलाकात होगी समझी.. मानसी सासूमां की बातों से शरमाकर कमरे में चली जाती है।

निश्चित समय पर सोमेश और मानसी का विवाह समारोह सम्पन्न हो जाता है। दोनों ही परिवारों के रिश्ते दारों द्वारा खूब बातें बनाई जाती है लेन-देन को लेकर लेकिन दोनों परिवार उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते अपने काम से काम रखते हैं।

तो फिर रिश्ते दार भी क्या बिगाड़ सकते थे। सभी विदा हो जाते हैं केवल खास मेहमान ही वहां रह जाते हैं। सुबह सुबह मानसी की विदाई हो जाती है। ससुराल पहुँच सोमेश मानसी से कहता है क्यों अच्छी रही न शादी सभी कार्यक्रम आराम से निपट गये ।

मानसी कृतज्ञता से कहती हैं सच सोमेश तुम बहुत अच्छे हो तुमने मेरे पिता को कर्ज से बचा लिया वो काफी परेशान रहने लगे थे। सोमेश कहता है वो तो तुमने मुझे समय से सारी बातें बता दीं तुम्हारे पिता कर्ज लेकर शादी कर रहे हैं। तभी मैंने अपने घर में बात की और ये योजना तैयार की और वो सफल हुई ।

मानसी सोमेश का हाथ पकड़ कहती हैं मैं बहुत खुश हूँ मुझे तुम जैसा हमसफ़र मिला सोमेश कहता है मानसी धन्य तो मैं हुआ जो मुझे तुम जैसी दिल की साफ पत्नी मिली जिसने विश्वास कर मुझे सभी बातें बताई… अब देखना,इसी विश्वास और प्रेम से बना हमारा ये रिश्ता, हमारा ये वैवाहिक जीवन कितना सफल रहेगा ।

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

      22. 9. 25

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