“काॅंख में छोरा, गाॅंव में ढिंढोरा” – श्वेता अग्रवाल

नीरजा अपनी चचेरी बहन चेरी की शादी में जयपुर आई थी। उसकी शादी के बाद पीहर में यह पहला बड़ा फंक्शन था तो वह इसे लेकर बहुत एक्साइटेड थी।

बचपन से ही सजने-संवरने की शौकीन नीरजा अपनी सबसे अच्छी-अच्छी ड्रेसेस छाँट कर लाई थी इस शादी में।आखिर आज मौका भी था और दस्तूर भी। रही-सही कसर उसकी सासू माँ के जड़ाऊँ हार ने पूरी कर दी थी। जो भी उस पुश्तैनी हार को देखता उसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाता।

“नीरजा कहाँ से बनवाया? तेरा यह हार कितना सुंदर है। मुझे भी सेम ऐसा ही बनवाना है।” नीरजा की बुआ ने हार की ओर देखते हुए कहा।

“बुआजी, यह तो माँजी का है। पुश्तैनी है।आजकल कहाँ ऐसे गहने बनते हैं?” नीरजा अपनी बुआ के साथ बातें करने में मशगूल थी।

तभी उसके पति अमन ने उसे पुकारा “नीरू सुनना जरा।”

“जी, बोलिए।”

“एक छोटी सी प्रॉब्लम है।हमारे लौटने का रिजर्वेशन जिस ट्रेन में था वह कैंसिल हो गई है।”

“तो अब हम जाएँगे कैसे? कल मेरी जरूरी मीटिंग है।” नीरजा परेशान होते हुए कहा।

“दूसरी ट्रेन से चलेंगे लेकिन जनरल कोच में जाना होगा। रिजर्वेशन कोच फुल है और सुनो, अभी घंटे भर में ही निकलना होगा।”

“घंटे भर में! लेकिन अभी तो फेरे भी नहीं हुए।”

“हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। यह सुपरफास्ट ट्रेन नहीं है इसलिए इसमें टाइम ज्यादा लगेगा।”अमन ने लाचारी से कहा।

“ठीक है, मैं अपनी पैकिंग कर लेती हूँ।” नीरजा मायूसी से बोली।

“सुनो, जडाऊँ हार को संभाल कर रखना। जनरल कोच में बहुत भीड़ होगी।”

“उसकी आप चिंता ना करें। उसके लिए मैंने घाघरे में सीक्रेट पॉकेट बनवाई है। उसमें रखकर अटैची में सबसे नीचे रख लूँगी। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा।”

दोनों थके-मांदे सुबह-सुबह घर पहुँचे। घर पहुंचते ही अमन तो सोने चल दिया “माँ, मैं रात भर ट्रेन में बैठे- बैठे बहुत थक गया हूँ। सोने जा रहा हूँ।रामू (नौकर) आएगा तो उसे दुकान की चाबी दे देना। मैं आराम करके थोड़ी देर बाद दुकान जाऊँगा।”

“ठीक है। नीरू, जा बेटा तू भी आराम कर ले।”

“नहीं, माँजी।आज मेरी बहुत जरूरी प्रेजेंटेशन है। बस अभी तुरंत तैयार होकर निकलूँगी। थोड़ी देर बाद नीरजा ऑफिस के लिए निकल गई।

उसके जाने के थोड़ी देर बाद

“बेचारी कितनी थकी हुई थी लेकिन फिर भी ऑफिस जाना पड़ा। क्या कर सकते हैं? नौकरी है।चलूँ मैं उसकी अटैची से धोने के कपड़े निकाल लूँ। नहीं तो, शाम को आकर अटैची लेकर बैठ जाएगी।” ऐसा सोचते हुए उसकी सासू माँ सुमन देवी अटैची से धोने के कपड़े निकालने लगी।तभी उनकी नजर नीरजा के घाघरे पर पड़े पान के दाग पर पड़ी “अरे यह दाग तो निकलवाना पड़ेगा। नहीं तो पूरा घाघरा बेकार हो जाएगा।इसे ड्राई क्लीन में भिजवा देती हूँ।”

“कमला ओ कमला”

” जी माँजी”

“सुन तेरे घर के पास जो ड्राईक्लीन है ना उसमें भाभी का घाघरा दे देना धुलने के लिए। बोलना पूरा दाग निकलना चाहिए।”

“आप निश्चिंत रहें माँजी। बहुत ही बढ़िया ड्राई क्लीन है दाग का नामोनिशान नहीं बचेगा।”

“अच्छा अब बातें कम कर औऱ हाथ जल्दी-जल्दी चला।” काम खत्म करके कमला ड्राईक्लीन में देने के लिए घाघरा ले कर चली गई।

शाम को ऑफिस से लौटते नीरजा को जड़ाऊँ हार का ध्यान आया।” सुबह तो हड़बड़ में जड़ाऊँ हार को घाघरे से निकालना ही भूल गई थी। अभी सबसे पहले हार निकाल माँजी को दे देती हूँ।” सोचते हुए नीरजा रूम में गई लेकिन वहां अटैची ना पाकर चौंक गई।

“माँजी रूम से अटैची कहाँ गई? आपने कहीं रखी है क्या?”

“अरे तू अटैची की चिंता छोड़। आ बैठ चाय पी।मैंने सारे कपड़े अटैची से निकलवाकर धुलवा दिए हैं और अटैची को स्टोर रूम में रखवा दिया है।”

“एक मिनट माँजी,सारे कपड़े धुलवा दिए और घाघरा?”

“उसे भी मैंने ड्राईक्लीन भिजवा दिया है। पान का दाग लगा था ना उस पर।तू चिंता ना कर हफ्ते भर में मिल जाएगा।”

“ड्राईक्लीन भिजवा दिया! लेकिन माँजी ड्राईक्लीन में देने से पहले हार तो निकाल लिया था ना आपने घाघरे की पॉकेट से?”

“नहीं, कौन सा हार? मैंने कोई हार नहीं निकाला। घाघरे में कौन हार रखता है!” सुमनदेवी ने चौंकते हुए कहा।

“अपना पुश्तैनी जड़ाऊँ हार।ट्रेन से आते वक्त मैंने सेफ्टी के लिए घाघरे की सीक्रेट पॉकेट में रख दिया था। सुबह ऑफिस जाने की हड़बड़ी में मैं उसे पॉकेट से निकालना भूल गई थी।” नीरजा ने घबराते हुए कहा।

“हे भगवान! यह क्या अनर्थ हो गया मुझसे। मैंने तो बिना चेक किए ही घाघरा कमला को दे दिया ड्राई क्लीन में देने के लिए। अब पुश्तैनी हार तो गया। यह क्या हो गया मुझसे।” सुमन देवी रोने लगी।

“माँजी, इसमें आपकी कोई गलती नहीं है।मुझे ही सुबह ध्यान से हार निकाल देना चाहिए था। आप प्लीज रोना बंद कीजिए। मैं अभी कमला को फोन करती हूँ।” नीरजा ने अपनी सासू माँ को शांत कराते हुए कहा।

“क्या हुआ रिंग जा रही है लेकिन कमला फोन नहीं उठा रही है। मैं फिर ट्राई करती हूँ।”नीरजा ने दोबारा फोन मिलाते हुए कहा।

“कुछ ना होगा ट्राई करने से। उसके हाथ जड़ाऊँ हार लग गया है अब वह हाथ ना आने की।” सुमन देवी रोआँसी आवाज में बोली।

“ऐसी कोई बात नहीं है माँजी, हम तो सालों से कमला को जानते हैं। वह बहुत ईमानदार है।”

तभी नीरजा का फोन बजा “भाभी, मैं कमला आपने इतनी बार फोन किया सब ठीक तो है ना?

“हाँ, सब ठीक है पर तू फोन क्यों नहीं उठा रही थी?” नीरजा ने झल्लाते हुए पूछा।

“फोन बटुए में था इसलिए सुनाई नहीं दिया।”

“अच्छा वह सब छोड़। माँजी ने सुबह तुम्हें घाघरा दिया था ना ड्राईक्लीन में देने के लिए वह लेकर तू अभी घर आ जा। मुझे उसे पहनकर सुबह एक फंक्शन में जाना है उसके बाद ड्राईक्लीन में दे देना।”

“पर भाभी,उसे तो मैंने धुलने दे दिया है।तो क्या हुआ वापस ले आ। तेरी तो पहचान वाला है ना।बोलना दो दिन बाद धुलने दूँगी।”

“नहीं ला सकती।मैं अपनी माँ से मिलने बाहर गाँव आई हूँ। लौटते-लौटते रात हो जाएगी।तबतक तो धुलाईवाली दुकान बंद हो जाएगी।”

“अच्छा सुन, तू मुझे उस दुकान का नाम और पता बता दे। मैं खुद जाकर उससे घाघरा ले आऊँगी।”

“लेकिन भाभी, मुझे उसकी दुकान का नाम नहीं पता। हम तो उसे चमकू धुलाई वाला कहते हैं।”

“अरे नीरू, सब इसके बहाने हैं। न ये आएगी, ना घाघरा।” स्पीकर पर दोनों की बात सुनती सुमन देवी भड़क उठी।”

“नहीं-नहीं माँजी आई शपथ। कोई बहाना नहीं बना रही मुझे सही में उसका नाम नहीं पता। लेकिन मैं एक काम करती हूँ। अपने बड़े बेटे को आपके पास भेज देती हूँ।वह ले जाएगा आपको चमकू की दुकान पर।”

“ठीक है, जल्दी भेज।”

थोड़ी देर बाद,

“मेम साहब मैं चंदू, कमला का बेटा। माई ने बोला है आपको चमकू की दुकान पर लेकर जाने के लिए।”

“हाँ-हाँ, चल जल्दी ले चल। कितनी देर कर दी।” कहकर नीरजा और सुमन देवी दोनों उसके साथ चल पड़ी।

“मेम साहब, यह रही चमकू की दुकान।” एक छोटी सी ड्राईक्लीन की दुकान की ओर इशारा करते हुए चंदू ने कहा।

“चमकू, ओ चमकू। मेम साहब को तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।”

“जी, कहिए।”

“भाई साहब, आज कमला ने जो घाघरा आपको ड्राईक्लीन के लिए दिया है ना,आप मुझे अभी वापस कर दीजिए।मुझे उसका कुछ काम है। मैं कल उसे धुलाई के लिए भिजवा दूँगी।”नीरजा ने कहा।

“पर मेम साहब, मैं वह आपको वापस नहीं कर सकता।”

“क्यों? वापस क्यों नहीं कर सकता? यह बोल तो रही है कि कल वापस भेज देगी।” सुमन देवी ने गुस्साते हुए कहा।

“माँजी, जब घाघरा मेरे पास है ही नहीं तो कहाँ से दूँ? मैंने तो उसे धुलाई के लिए कारखाने भिजवा दिया है।”

“ठीक है, हमें कारखाने का एड्रेस बताओ हम वहाँ से ले लेंगे।” नीरजा ने कहा।

“लेकिन मेम साहब, कारखाना तो शाम 6 बजे ही बंद हो जाता है अभी तो रात के 8 बज रहे हैं। अब जो होगा कल सुबह 10 बजे कारखाना खुलने पर ही होगा।”

इतना सुनते ही नीरजा और सुमन देवी दोनों का चेहरा उतर गया और वो दोनों खाली हाथ घर की ओर लौट पड़ी। घर के दरवाजे पर अमन उनका इंतजार कर रहा था “कहाँ थी तुम दोनों इतनी रात में और नीरू तुम फोन क्यों नहीं उठा रही थी?”

“मैंने रिंग नहीं सुनी।” घर का दरवाजा खोलते हुए नीरजा ने धीरे से कहा।

“कोई बात है क्या? तुम दोनों के चेहरे पर बारह क्यों बजे हैं?”

इतना सुनते ही सुमन देवी रो पड़ी “अमन बहुत बड़ा नुकसान हो गया वह जड़ाऊ हार —-” फिर उन्होंने सारी घटना सिलसिलेवार उसे बताई।

इतना सुनते ही अमन उठा और जड़ाऊँ हार लाकर सुमन देवी के हाथ में रख दिया। “इसे ही खोज रही थी ना तुम दोनों।”

“हाँ, लेकिन यह तुम्हारे पास कहाँ से आया?” दोनों एक साथ बोली।

“नीरू के ऑफिस जाने के बाद मैंने मोबाइल चार्जर निकालने के लिए अटैची खोली, तभी मेरी नजर घाघरे पर पड़ी और मुझे जड़ाऊँ हार का ध्यान आया तब मैंने यह देखने के लिए कि इसने जड़ाऊँ हार घाघरे से निकाल दिया है कि नहीं जब घाघरा चेक किया तो पाया कि

इसने ऑफिस जाने की हडबड़ में जड़ाऊँ हार घाघरे में ही छोड़ दिया है। तब मैंने इसे निकालकर संभालकर अलमारी में रख दिया। मैंने सोचा था कि दुकान से आकर इसे बता दूँगा। लेकिन इसी बीच इतना सब कुछ हो गया। यह तो वही बात हो गई ‘काॅंख में छोरा,गाॅंव में ढिंढोरा’।”अमन हॅंसते हुए बोला।

“अमन, आई एम सॉरी। मैंने अपना सबक सीख लिया है। यदि आज आप जड़ाऊँ हार को ध्यान से निकालकर अलमारी में नहीं रखते तो मेरी लापरवाही से कितना बड़ा नुकसान हो जाता।आगे से मैं इन बातों का पूरा ध्यान रखूँगी।” नीरजा ने रोते हुए कहा।

“मैं भी आगे से ध्यान रखूँगी। किसी भी कपड़े को अच्छी तरह चेक करके ही धुलने दूँगी।” सुमन देवी ने कहा।

“अच्छा अब बस करिए आप दोनों। ‘अंत भला तो सब भला।’अब आप दोनों फटाफट तैयार हो जाइए। हम किसी बढ़िया से रेस्टोरेंट में चलकर डिनर करते हैं। इतनी भागदौड़ से आप लोग भी थक गए होंगे।” अमन की इस बात पर दोनों मुस्कुरा पड़ी।

धन्यवाद

लेखिका- श्वेता अग्रवाल,

धनबाद झारखंड

कैटिगरी -लेखक /लेखिका बोनस प्रोग्राम (सितंबर माह-चतुर्थ कहानी)

शीर्षक-काॅंख में छोरा,गाॅंव में ढिंढोरा’

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