प्रस्तुत है, इस विषय पर मेरे हृदय के भाव
इस धरा पर जीवन में हम कई प्रकार के संबंध जैसे माता पिता भाई बहन , दादा दादी ,काका काकी ,बुआ ,मामा ,मौसी आदि बंधन ऐसे होते हैं जो हमें जन्मजात मिलते हैं, पर एक बंधन ऐसा है जो हमें जन्मो जन्मो तक एक बंधन में बांधता है, और वह है पति पत्नी का संबंध …. पति पत्नी का संबंध किसी जादुई दुनिया से कम नहीं है …एक लड़की शादी हो कर दूसरे परिवार में आती है ,और उस परिवार को, व्यक्ति को परिवार के सदस्यों को, अपना बनाती है और उसकी दुनिया एक जादुई दुनिया बन जाती है… अतः आज मैं उसी जादुई दुनिया के बारे में अपने विचार व्यक्त कर रही हूं।
जन्म जन्म का साथ है तुम्हारा
हमारा
कबीर दास जी की शादी हुई, लाली नाम की लड़की से ,कबीर दास जी गरीब थे, लाली दुल्हन के रूप में उनके घर आई, लेकिन बहुत उदास, गुस्से में ,कबीर दास जी ने प्यार से पूछा कि तुम इतनी उदास क्यों हो ?
उसने बोला “तुम से मेरी शादी मेरे पिताजी ने जबरदस्ती कर दी, मैं तो किसी और लड़के को पसंद करती थी।”
कबीर दास जी ने बड़ी सहजता से कहा, कि” कौन है? वह लड़का ?चलो मैं तुम्हें उनसे मिलाए देता हूं।” लाली की आंखें फटी रह गई।
कबीर दास जी तैयार हो गए, लाली भी उनके साथ जाने को तैयार हो गई ।
पुराने समय की बात है, कोई वाहन नहीं थे, पैदल ही चल रहे थे। रास्ता दुर्गम था। लाली थक रही थी। कबीर दास जी ने कहा, चलते चलते थक गई हो, तुम्हें अपने कंधे पर बिठा लेता हूं। लाली उनके कंधे पर बैठ गई, कंधे पर बैठे-बैठे सोचने लगी कि जो आदमी मेरे पसंद के लड़के से मुझे मिलाने ले जा रहा है, मेरे चलने से ,मेरी थकान से ,जिसको इतना दर्द है, वह जीवन में मुझे कितना सुखी रखेगा ।
आधे रास्ते में ही उसने कबीर दास जी को बोला कि चलो मुझे तो अपने घर चलना है, और इस तरह से वह अपने पति के साथ अपने घर आ गई, और पूरा जीवन एक दूसरे के साथ सुख दुख में निर्वाह करके अपना धर्म निभाया।
एक दूसरा प्रसंग और, माता पिता ने बिटिया की सुयोग्य वर देखकर शादी तय कर दी। शादी के पहले वह दामाद से बोले कि मैं हमारी बिटिया को खुश रखना। तब दामाद विनम्र स्वर में बोले, मैं आपकी बिटिया को मकान, गाड़ी वस्त्र ,आभूषण ,भोजन ,सब कुछ दे सकता हूं, लेकिन खुश रहना तो उसके हाथ में है।
खुशी एक ऐसा मंत्र है जो कि साधनों से नहीं बल्कि हृदय से प्राप्त होती है, अगर हम सोचे तो बहुत सीमित संसाधनों में भी हम खुश रह सकते हैं, और पति पत्नी के रिश्ते में तो यह बात और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है।
शादी हुई ,पत्नी परिवार में आई अब वह अपने पीछे अपना भरा पूरा मायका छोड़ कर आई है। उसकी अपनी आदत बन चुकी है। उसकी अपनी सोच बन चुकी है। ससुराल में आते से ही उसमें परिवर्तन होना बहुत मुश्किल है। मान लीजिए ,नया मोबाइल लेते हैं और मोबाइल में डाटा ट्रांसफर करते हैं , डाटा ट्रांसफर होता है उस वक्त मोबाइल के साथ छेड़खानी नहीं करते, क्योंकि उसके हैंग होने का डर रहता है। उसी प्रकार पति पत्नी भी एक दूसरे को डाटा ट्रांसफर होने में समय लगता है। जिस तरह पत्नी का डाटा ट्रांसफर होता है, उसी तरह पति का भी डाटा ट्रांसफर होता है ।
एक दूसरे को समझने लगते हैं, प्रेम विवाह में तो थोड़ा समझ जाते हैं ,लेकिन अरेंज मैरिज में दोनों की हालत एक जैसी ही रहती है ।
जहां पत्नी पति को अपनाने की कोशिश करती है, उनकी आदतों को समझने की कोशिश करती है, उनकी रुचिओं को जानने की कोशिश करती है, वहां पर पति भी तो अपनी पत्नी को समझने की पूरी पूरी कोशिश करते हैं। होता क्या है, शुरुआत में ही दोनों एक दूसरे को समझने की कोशिश के बगैर ही कोई निर्णय ले लेते हैं, और जो शादी एक खुशनुमा, पावन रिश्ता बन सकती थी, वह बीच में ही टूट जाती है।
कभी-कभी एक दूसरे को निभाते निभाते शादी तो चलती है, पर विचारों की तकरार इतनी अधिक होती है कि शादी में रस नहीं आता ,तो शादी में रस लाने के लिए दोनों पक्षों को बराबरी की कोशिश करना होती है।
इसमें पत्नियों की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है।
हम देखते हैं , नारी स्वतंत्रता, नारी सशक्तिकरण, नारी के मन की आवाज, बहुत सारे बिंदु हैं जिसके अंतर्गत नारी अपने मन के मनोभावों को ,अपने मन की वेदना को इस तरह से दर्शाती हैं, कि उनके ऊपर बहुत ही दुख है, जबकि पति पत्नी का रिश्ता, इतना प्यारा ,इतना सहज, इतना पावन, इतना निर्मल है कि इस रिश्ते में अगर रस लेंगे तो आनंद का झरना ही प्रवाहित होगा।
आप कल्पना कीजिए जिस तरह से पत्नी घर में आती है, उसमें परिवर्तन होता है, वैसे ही पति भी तो अपनी मां को ,अपने परिवार को खुश रखने का जतन भी करते हैं, और अपनी पत्नी को खुश रखने का जतन भी करते हैं।
पति भी अपनी पत्नी की आदतों को, उनके बनाए हुए खाने को, उनकी बनाई हुई चाय को, पसंद करते हैं, परिवार साथ में है तब तक तो ठीक ,लेकिन अलग होने के बाद तो पति पूरी तरह पत्नी के सांचे में ढल जाते हैं।
पत्नी ने अपने मायके में जो रूटीन देखा है, जो रीति रिवाज देखे हैं, जो त्यौहार देखे हैं, वैसा ही वह अपने घर में भी करती है और पति बहुत ही सहजता और सरलता से उसमें ढल जाते हैं ।सब कुछ पसंद करने लगते हैं।
बेचारे पति , पत्नी के, बच्चों के हिसाब से अपना सारा जीवन चलाने लगते हैं।
घर पर आए और अगर पत्नी नहीं दिखे तो उनकी आंखें तलाशने लगती है।
पत्नी अगर कामकाजी है तो उनका पूरा पूरा सहयोग होता है। कि वह अपना कर्तव्य अच्छे से निभाए, वे सहयोग भी देते हैं।
पत्नी को लाना ,ले जाना, छोड़ना सभी कुछ करते हैं ,अगर पत्नी घरेलू भी है तो भी उसके मन को पूरा रखते हैं उनकी फरमाईश को पूरा करने की भी पूरी कोशिश करते हैं ,अगर वह बोले कि मुझे बी सी में जाना है तो बकायदा छोड़ने जाते हैं, लेने आते हैं, जैसा भी हो समय का नियोजन करके पूरी तरह से चलने की कोशिश करते हैं।
पति अगर हमारे लिए कोई गिफ्ट लाए, साड़ी वगैरह, तो उसे पसंद करें और बगैर टिप्पणी के उसे पहने।
जब बच्चे होते हैं, तो बच्चों में भी अपना पूरा प्यार उंडेलते हैं ,और पूरे समर्पण से परिवार को चलाने के लिए अपनी जी जान लगाते हैं। होता क्या है? थोड़े से विचारों की टक्कर में, एक दूसरे का अहम टकरा जाता है, ईगो टकरा जाता है, और उस बात को हम इशु बना लेते हैं, और झगड़े बढ़ते जाते हैं। विचार तो कब कहां किसके मिलते हैं? हमारे जन्मदाता माता-पिता के साथ भी कभी-कभी हमारे विचारों की टक्कर हो जाती है। हमारे भाई-बहनों से, हमारे परम मित्रों से, हमारे बच्चों से भी हमारे विचार अलग हो जाते हैं । तब पति तो पूर्णत अलग परिवेश में पले बड़े होते हैं। विचारों की टक्कर तो होती है ,लेकिन एक दूसरे को सभी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ अगर हम स्वीकार कर लेते हैं ,और सच्चे हृदय से एक दूसरे को अपना कर स्वीकार करते हैं, तभी पूर्ण विवाहित जीवन का आनंद आता है।
शादी का रिश्ता इतना गहरा, प्यारा, इतना पावन होता है।
मैं तो इतना समझ पाई हूं, इस रिश्ते को ,उस हिसाब से जब हम छोटे होते हैं ,तब हमारे माता-पिता जतन करते हैं, और जब हमारा विवाह हो जाता है, हमारा जतन हमारे पति करते हैं। तो क्यों ना इस रिश्ते को हम नई ऊंचाइयां दें, और एक दूसरे की कमियों को ना देख कर प्यार से, प्रस्तुत हो। एक दूसरे के सहभागी बने, साक्षी बने, प्यार करें ,तो यह रिश्ता कमाल दिखा सकता है। और हम सब लोग कोशिश करते भी हैं, पूरी पूरी, जिन्होंने अपने वैवाहिक जीवन को पूरी सुंदरता से सार्थकता से जी लिया, उन्होंने जीते जी स्वर्ग का आनंद यही ले लिया।
ईश्वर के बनाए गए इस असीम, पावन, पवित्र रिश्ते का सम्मान करें ।आदर करें, बस व्यर्थ के टकराव से बचे , एक दूसरे के सम्मान करें। मानसिक प्रताड़ना, शारीरिक प्रताड़ना ,व्यसन ,इनका सेवन ना हो, इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है । पति पत्नी को एक दूसरे का सम्मान, सहयोग और किसी तीसरे के सामने एक दूसरे का अपमान कभी नहीं करना चाहिए ,क्योंकि यह आपका बड़प्पन नहीं ,बल्कि दूसरों को हंसने के मौके देता है। अतः अगर आपको कोई बात एक दूसरे की समझ में नहीं आ रही है ,तो अकेले में प्यार से समझाया जा सकता है।
उर्दू में बेडरूम को *ख्वाबगाह* कहा गया है। *सपने देखने की जगह*, जबकि होता यह है कि पति-पत्नी की युद्ध की स्थिति बन जाती है। जिस तरह फ्लाइट में पायलट की केबिन के बाहर लिखा रहता है
,flying is a serious bussiness, please, leave all your worries out side this door.
. इसी तरह से हमें भी हमारे जीवन में सदैव इस भावना के साथ आगे बढ़ना है।
marriage is a serious relationship,leave your worries, complaints,anger,ego,
out our life……
“आओ, एक दूसरे की मुस्कान बन जाए
आओ, एक दूसरे की पहचान बन जाए
हम तुम निभाए कुछ इस तरह इस रिश्ते को,”
हम एक दूसरे की जान बन जाए।” आइए ईश्वर के बनाए हुए पति पत्नी के इस प्रेम रूपी बंधन को हम प्रेम, प्यार, अपनापन ,सहयोग ,समर्पण, त्याग, संस्कार के 7 फेरों से बांधकर अटूट बंधन बना ले।
सुधा जैन