आज का समय बहुत ही ख़राब है,, मासूम बच्चियों से लेकर उम्र दराज महिलाएं तक हैवानियत का शिकार हो रही हैं,,,, यहां तक कि लड़कों को भी लोग नहीं छोड़ रहे हैं,,हम सब आये दिन इन नापाक घटनाओं से अवगत हो रहें हैं,,, ऐसा नहीं है कि हम सबके जमाने में ऐसी ओछी हरकतें नहीं होती थी,तब भी होती थी,पर समाज की बदनामी और लोकलाज के डर से सबके मुंह बंद रहते थे,, और वो बेचारी, जिसके ऊपर बीतती थी,सारी जिंदगी किसी राक्षस के दिये हुए ज़ख्मों के साथ, लहुलुहान हुए आत्मा के साथ पल पल मरते, सिसकते हुए जिंदा रहने को मजबूर रहती है,,या नहीं सहन हुआ तो अपनी जिंदगी खत्म कर देती है,
हम सबके जीवन में ऐसे कई नापाक इरादे लेकर दरिंदे आये होंगे, जिनसे हमें अपना बचाव करना मुश्किल हो जाता है। हमारी अपनी इज्जत दांव पर लग जाती है।
पर अपनी सूझ-बूझ से हम इन्हें अच्छा सबक सिखाते हुए अपनी अस्मत अपनी इज्जत की रक्षा करने में सफल हो सकते हैं,बस थोड़ा धैर्य साहस और मनोबल की जरूरत होती है।
,,संयोग से कुछ ऐसी ही घटनाएं मेरे साथ भी घटित हुई हैं।
चलिए,,मैं उनसे कैसे निपटी,, ,, और मैंने अपना बचाव कैसे किया,,आप सबके साथ साझा करना चाहतीं हूं,,,
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,, मेरे पिता जी के गुरु जी के दामाद का ट्रान्सफर हमारे शहर के कालेज में प्रोफेसर पद पर हुआ,, मां पिता जी उस समय अपने गांव फ़सल कटवाने जा रहे थे,, मेरे दो छोटे भाई और मैं, पढ़ाई होने के कारण नहीं जा पाये,,, पिता जी ने मुझे समझाते हुए कहा,,,बेटा,, उनके दामाद जी आ रहें हैं,,दो तीन दिन अपने घर में ही रुकेंगे,,
मकान ढूंढेंगे फिर अपनी पत्नी और बच्चों को ले आयेंगे,, तुम उनकी अच्छे से खातिरदारी करना,, मैंने कहा, जी, ठीक है,, प्रोफेसर साहब सुबह आये,, मैंने उन्हें नाश्ता, खाना खिलाया,, करीब चालीस, पैंतालीस के रहें होंगे,, मैं उस समय बीए तृतीय वर्ष में थी,, उन्होंने मेरे खाने की और मेरी तारीफ़ की,, फिर बैठने को कहा,, चुंकि उम्र में मुझसे बहुत बड़े थे,,तो मैं उनका बहुत मान सम्मान कर रही थी,,मेरा एक भाई स्कूल गया था,, और एक मुझसे ग्यारह साल छोटा भाई,, अपने कमरे में पढ़ रहा था,,
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मैं कुर्सी पर बैठ गई,, उन्होंने बात करते करते कहा कि,, सुना है, तुम बहुत अच्छा गाती हो, कुछ सुनाओ, मैंने कहा कि, नहीं,, ऐसा कुछ नहीं है,पर ज़िद करने पर आंखें बंद कर मैंने एक भजन शुरू किया ही था कि मेरे कंधों पर हाथों का दबाव पीछे से महसूस हुआ,, मुझे जैसे बिजली का करंट लगा,, मैं तेजी से खड़ी हो गई और भाई को आवाज लगाया,,इनको पानी पिला दो,, और मैं भाग कर कमरे में गई और दरवाजा बंद कर दिया,, मैं गुस्सा के मारे थर थर कांप रही थी, हिम्मत कैसे पड़ी, मुझे छूने की,,
,, इसके बाद वो कालेज चले गये।
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अब रात को आठ बजे प्रोफेसर साहब घर आये,, मैंने दरवाज़े में ताला लगा दिया था,, और भाईयों को सख्त मना कर दिया था, बोलने को,,, खटखटाया, मैंने पूछा, कौन है,, मैं हूं, दरवाजा खोलो,,, मैंने कहा,, मेरे घर में ना बिस्तर है, और ना ही चारपाई,,आप अपने रहने की कहीं और व्यवस्था कर लीजिए,, वो घबराते हुए बोले,, अरे, मैं जमीन पर ही सो जाऊंगा, मुझे बिस्तर भी नहीं चाहिए,,,, अरे, नहीं, जीज्जा जी,,आप इतने बड़े प्रोफेसर हैं,
आप कैसे ज़मीन पर सोयेंगे,, उन्होंने बहुत अनुनय विनय किया,, मैं इतनी भंयकर ठंड में कहां जाऊंगा,,मैं माफी मांगता हूं,,पर मैं कठोर बनी रही,जरा सा भी मेरे ऊपर असर नहीं हुआ, शहर में बहुत से होटल और धर्मशाला हैं, कहीं भी जाइये,,,, मैं तुम्हें देख लूंगा, तुम्हारी शिकायत सबसे और तुम्हारे पिता जी से करूंगा,, मैं बोली,, हां, हां, जिससे करना होगा,कर लेना,पर अभी आप अपने रहने का इंतजाम करिए, और वो चले गए,, बाद में मेरे पिता जी ने मुझे बहुत डांटा,,पर मां को बताया तो सब बोले, बहुत ही हिम्मत का काम तुमने किया,,
,,, अगर मैं साहस और हिम्मत से काम नहीं लेती तो मैं आजीवन किसी से आंख नहीं मिला पाती और हमेशा ही वो घिनौना जख्म मेरे शरीर को घायल करता,,
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,,,, इसी तरह की एक और घटना याद आ रही है,,,ये सरकारी दौरे पर गए थे,, इनके एक बहुत ही ख़ास दोस्त आये थे,,उस समय फोन नहीं था,, वो इनसे मिलकर अपने गांव जा रहे थे,,रात को रूककर सुबह निकलने वाले थे,,
,, मैंने उनकी भी अच्छी खातिरदारी की , मैं अपनी दो साल की बच्ची के साथ रात में अपने कमरे में सोने चली,,इतने में आवाज़ आई,, भाभी जी,, एक जग पीने का पानी रख दीजिए,,
,, मैं देने गई तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा,, मैं पहले तो सन्न रह गई,, बहुत तेज गुस्सा आया,,पर दिमाग ने तुरंत कहा,, नहीं, यहां गुस्सा करने और चीखने चिल्लाने से काम नहीं बनेगा,, इतना लंबा चौड़ा ताकतवर आदमी का मैं विरोध नहीं कर पाऊंगी,, मैंने बड़े ही प्यार से कहा,, मैं आती हूं, बेटी जाग ना जाए,, इसलिए बाहर से दरवाजा बंद कर के आती हूं, और
अपनी सुरक्षा भी तो जरूरी है ना, तो इंतज़ाम कर के बस अभी आई,, पकड़ ढीली होते ही मैं जल्दी से भागी और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया,, सुबह जब बाई आई तो मैं उठकर दरवाजा खोलने गई तो वो साहब जा चुके थे,,,हम सब पहले से ही बहुत परिचित थे, हमारी पारिवारिक मित्रता थी,पर पता नहीं,,,, कब, कैसे, किसी की नीयत ख़राब हो जाये,,इस तरह मैंने अपनी सूझबूझ से अपने आप को बचाया,,
,,,,, एक बार हम और ये नैनीताल बेटियों से मिलने जा रहे थे, हमारे सामने एक प्रोफेसर हिन्दी के बैठे थे,, मेरे पति बहुत ही बातूनी थे,सो गप्पे लगाने लगे,,रात में अपनी सीट पर सोते हुए मुझे किसी के हाथ का स्पर्श अपने चेहरे पर महसूस हुआ,, ये छिछोरी हरकत किसकी है
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,, मैंने करवट बदली,, और खर्राटे लेने लगी,बस फिर वही हाथ आगे बढ़ा,, मैंने झपट कर उंगलियां कस कर मरोड़ दिया, और जोर से हाथ में दांत गड़ा दिए,, जोरों से चिल्लाया,,सब उठ बैठे, क्या हुआ, वो बोला,, किसी कीड़े ने काट लिया,, मैंने अनजान बनते हुए कहा,, प्लीज़,लाईट जलने दीजिए, मुझे भी कीड़ा काट लेगा,,
सुबह मैंने अपनी टांगें फैला दी और उसको जाने नहीं दिया,, मेरे पति देव मुझे हैरानी से देखते,, मना करते,पर
मुझे तो भूत चढ़ा था, सबके जाने के बाद मैं उठी और दो
तीन तमाचे जड़ दिए, बोली,हो सके तो अपने कालेज की
लड़कियों को अपनी बेटी, बहन मानना, वरना किसी दिन जेल की हवा खाओगे,, वो अधेड़ लपक कर भाग लिया,
क्या करूं, सबके सामने तमाशा करने से अच्छा है, ख़ुद ही निपट लो, जहां तक अपने वश में हो,,
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,,मेरे कहने का मतलब हमें खुद को इन हैवानों से बचाना है,, डरने की जरूरत नहीं है,बस
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थोड़ा धीरज, हिम्मत और आत्मविश्वास से काम लेना होगा,,साम दाम, दण्ड भेद,, किसी भी तरीके से अपना बचाव हमें खुद करना होगा, अपनी बुद्धि का प्रयोग करना होगा।
अपने आस पास के लोगों से अपने रिश्तेदारों से, और अपने जान पहचान वालों से,, सबसे चौकन्ना रहें,,
,, सावधान रहें,, सुरक्षित रहें,
,, अपनी रक्षा स्वयं करें,,
सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र
स्वरचित मौलिक
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