हालात – अंजू निगम

स्मिता के मन में सोच की सिलवटें गहरी हो उठी थी। फोन करे, न करे। काफी देर वह इसी दोराहे पर खड़ी रही। आज भी फोन नहीं किया तो बाद में फोन करने का मतलब ही नहीं रह जायेगा, कुछ ऐसी सी बात सोच स्मिता ने अनु को फोन मिला ही लिया।

पहली घंटी पर ही अनु ने फोन उठा लिया।

“कैसी हो ? कुछ.. पता.. लगा ?” ऐसी स्थिति  स्मिता को बहुत अटका जाती है।

” अभी नहीं। केशव गये है।” अनु के स्वर में पीड़ा की गहरी खुरचन उतर आयी थी।

” विनोद कल निकल रहे है। अsss ….कुशल के इग्जाम खत्म होते ही मैं भी आती हूँ।” स्मिता बस इतना ही कह पाई।

“ठीक है।”अनु भी केवल इतना ही जोड़ पाई।

आज अनु की आवाज में पहले जैसा खिलदड़ापन बिल्कुल नहीं था। हर बात को हल्के में उड़ा देने की उसकी आदत को स्मिता जानती थी।

“अनूप का नीदरलैंड से होटल मैंनेजमेंट का कोर्स करने की रिक्वेस्ट अप्रुव हो गयी है।”एक महीने पहले, अनु ने बड़ी ठसक से यह बात स्मिता को बताई तो उसने उसी समय अनु को टोका था।

“आजकल हालात ठीक नहीं फिर उसे दिल्ली में भी तो अच्छा ऑफर मिला है। यहाँ क्यों नहीं ज्वॉइन करता?” स्मिता को स्थिति की गंभीरता समझ आ रही थी मगर इस बार भी अनु का वही अंदाज था और शायद अनूप का भी।

चार दिन पहले और आज सुबह आये अनूप के वीडियो कॉल ने स्थिति को हल्के से लेने का मतलब समझा दिया था।

अंजू निगम

नई दिल्ली

 

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