एस्केलेटर का डर और बहूरानी साहिबा – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

गवारों वाली हरकत मत करो शालिनी….

पैर रखो , नहीं गिरोगी…..

सब देख रहे हैं हसेंगे …..

         संजय , मुझे बहुत डर लगता है ….आपको तो बताया था ना… पिछली दफ़े एस्केलेटर में चढ़ते ही गिर गई थी ….बाप रे , सबने कितना डरा दिया था …अंदर चली जाती तो टुकड़े-टुकड़े हो जाते ….जैसी ना जाने कितनी बातें ….

और फिर मेरे कारण उस समय सबकी आधुनिकता दांव पर लग गई थी…. एक तो मैं डरी हुई थी ऊपर से शर्मिंदा भी और सब लोग मुझे ही …..बाप रे वो वाक्या मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगी संजय…!

    ऐसा करिए आप लोग चलिए… मैं सीढ़ियों से आती हूं … यहां लिफ्ट नहीं है क्या…?  इधर-उधर नजर  दौड़ाती हुई शालिनी ने कहा…।

  तुम ढूंढो लिफ्ट , मैं चला….

ऐसे तो बड़ी मॉडर्न बनती हो , एक एस्केलेटर पर चढ़ा तो जाता नहीं …

मुंह बनाते हुए संजय ने कहा….

आइंदा ऐसी जगहों पर तुम ले जाने लायक ही नहीं हो …..

खून का घूंट पीकर रह गई थी शालिनी…. पर उस वक्त चुप रहना ही उचित समझा….

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उसे बिटिया का वो फोन याद आने लगा….

मम्मी -पापा कुछ दिनों के लिए हमारे यहां आ जाइए….मम्मी इस बार शशांक (भाई) और अस्मिता (भाभी) को भी साथ में आने बोलना ….पूरी फैमिली एक साथ घूमेंगे , फिरेंगे मजा करेंगे…

आ जा मां …तुझे ऐसे ऐसे जगह घुमाऊंगी ना …तू देखती रह जाएगी… पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाना …।

     और तैयारी करते-करते वो घड़ी भी  आ  ही गई और हम सब परिवार पहुंच गए बेटी दामाद के घर…!

घूमने घूमाने का दौर शुरू हुआ और सबसे पहले ये एस्केलेटर रुपी दानव समस्या बन सामने खड़ा हो गया…अभी तो बड़े शहरों में हर जगह इसका सामना करना पड़ेगा…. ओह ….कैसे करूंगी मैं …? सोचते सोचते शालिनी चिंतित हो रही थी…।

थोड़ी देर के बाद बहू अस्मिता और बेटा शशांक जो फोन पर बातें कर रहे थे… बहू शालिनी के पास आकर बोली…. अरे मम्मी जी आप गई नहीं ऊपर ….

मेरा इंतजार कर रही है क्या…?

 पापा जी कहां गए…. ?

     तेरे पापा ऊपर चले गए हैं बेटा…सुन ना अस्मिता …यहां लिफ्ट नहीं है क्या ..? 

नहीं तो मैं वो बगल वाले सीढ़ी से ही ऊपर चली जाऊंगी ….मुझे एस्केलेटर में डर लगता है….।

अरे कोई बात नहीं मम्मी ….हो जाता है…. 

आइए मेरा हाथ पकड़िए…. अपन धीरे से पैर रखेंगे….. वो क्या है ना…. चलते-चलते ही तो आदत पड़ेगी ना… हम सब भी कोई मां के पेट से ही सीख कर थोड़ी ना आए थे …..।

बेटा , पापा ऊपर चले गए हैं तुम दोनों भी जाओ …..वैसे भी पापा नाराज हो रहे होंगे , वहां इंतजार करते होंगे ….

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मैं यही कुछ सामान देखती हूं….

 इस बार शालिनी के आंखों में आंसू थे… बस एक बार बेटा , इसी बार बस.. अगली बार जरूर ट्राई करूंगी…

 ठीक है मम्मी जी  ,आप घबराइए मत…. अपन  इस बारे में बाद में बात करेंगे…. आप आराम से यहां बैठिए हम आते हैं…!

     थोड़ी देर बाद कुछ सामान खरीद कर बेटे बहू के साथ संजय भी वापस आए…..हाथ में एक थैला पकड़ाते हुए बोले …..

लो तुम्हारे लिए ….यदि चलती तो अपने पसंद का ले लेती …..

शालिनी सोच में पड़ गई…. अभी तो इतना गुस्सा कर ऊपर गए थे वापस आकर इतने प्यार से कैसे बात कर रहे हैं ….?शालिनी ने संकोच भरे  लहजे में कहा …..सॉरी संजय , मैं अगली बार जरूर ट्राई करूंगी….!

   देखो शालिनी…. मैने तुम्हें  गंवार जैसी उल्टी सीधी कितनी बातें बोली… मैंने सोचा था शायद गुस्से में इस तरह के शब्द इस्तेमाल करूंगा तो तुम्हें इन बातों का बुरा लगेगा और तुम अपनी जिद छोड़कर अपने डर का सामना करोगी…।

     वैसे भी आजकल आधुनिक बनने के चक्कर में लोग क्या-क्या नहीं करते हैं …और एक तुम हो….

 चलो — चलो….तभी पीछे से अस्मिता और शशांक भी आ गए…..

 शशांक ने मम्मी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ….कोई बात नहीं मम्मी …अपन अब सीढ़ी से चलेंगे…. एक्सरसाइज भी हो जाएगा…!

 आइए मम्मी जी….

अपना पर्स दीजिए ….

मैं पकड़ती हूं ….अस्मिता ने शालिनी के हाथों से पर्स ले लिया ….और हाथ पकड़ते हुए धीरे से कहा ….मम्मी जी अपन को कभी ना कभी तो अपना डर भगाना पड़ेगा ना …..

मैं जानती हूं आप एक बार एस्केलेटर  में गिर गई थी और सब ने आपको डरा दिया था …..पर उसके बाद तो आपने मुंबई के मॉल में एस्केलेटर में चढ़ा भी था अच्छे से कई दफे चढ़ी उतरी….

आइए , मैं और आप एक बार ट्राई करते हैं ….

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अस्मिता ने हाथ पड़कर एस्केलेटर पर खड़ा कर दिया… उतरते समय पहले ही समझा दिया …मम्मी जी एक पैर आगे रखिए …फिर दूसरा पैर ….

 एस्केलेटर पर चढ़कर ऊपर जाकर जितनी खुश शालिनी हुई …उससे ज्यादा खुश अस्मिता हो गई….

   चमकते चेहरे और उत्साह भरे स्वर में अस्मिता ने कहा …..देखा मम्मी , मैंने कहा था ना …आप कर लेंगी और एकदम से खुश होकर मम्मी जी को गले लगा लिया…. पहले से ऊपर पहुंचे बेटे और पति भी खुशी से मुस्कुरा रहे थे…!

  सच में… तेरे कारण ही थोड़ा डर कम हुआ ” बहुरानी ” साहिबा….एक बार और चढ़े क्या ….? क्या है ना बेटा ….कई बार चढ़ने उतरने से आदत हो जाएगी …अति उत्साहित होते हुए शालिनी ने कहा…!

     वो क्या है ना संजय … आपने मुझे अस्मिता के समान प्यार से समझाया ही नहीं ….. इसने कितनी मेहनत की मेरे डर भगाने में ….।

    हां शालिनी मैने भी तुमसे इसीलिए डांट कर बात की थी ताकि तुम चढ़ने की कोशिश तो करोगी …पर नहीं तुम्हें तो मेरी कहां सुननी थी….

   तुम्हें तो अपनी प्यारी  ” बहुरानी साहिबा” की ही बात जो माननी थी…!

और सच बताऊं शालिनी….अस्मिता ने ही मुझे बोला था…..पापा जी आप चिंता ना करें…. मुझ पर छोड़ दें …मैं मम्मी जी का डर आज निकाल कर ही रहूंगी ….

मेरे और मम्मी जी के प्यार में बहुत ताकत है …. वो मुझे मना नहीं करेंगी…

देखा बहू… मैने तुम्हारे विश्वास को हारने नहीं दिया ना …और सास बहू हाथ पकड़ कर अगली दुकान की ओर  बढ़ गए …!

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय :

    # बहुरानी 

संध्या त्रिपाठी

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