एहसास – के कामेश्वरी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सुरेखा — माँ जब से शादी करके आई हूँ आपकी बातों को ही तो सुन रही हूँ । आप जैसा कहती हैं वैसे ही तो कर रही हूँ फिर भी आप बार-बार उन्हीं बातों को दोहराती हैं। आप बोलते हुए नहीं थकती हैं शायद मैं तो सुन सुन कर थक गई हूँ ।

रागिनी को काटो तो खून नहीं है जैसे हो गई थी ।उसने अपना मुँह बंद कर लिया कुछ नहीं कहा रसोई से बाहर आकर अपने कमरे में चली गई । उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि बहू सुरेखा ऐसा कह देगी । रागिनी की आँखों से आँसू छलक गए । 

सुरेखा की शादी हो कर जब ससुराल में आई थी तो एक अकेली सास ही थी । ससुर जी की मृत्यु हो चुकी थी । देवेंद्र उनका अकेला बेटा था । 

शादी करके आते ही रागिनी अपनी बहू सुरेखा के लिए सारे काम कर देती थी । उससे कहती तो थी कि तू छोटी है ना बेटा लाइफ एनजॉय कर ले परंतु हर जगह बेटे और बहू को सलाह देना नहीं भूलती थी। उन्हें बाहर घूमने भेजती थी । उनका पूरा ख़्याल रखती थी लेकिन उनका हर काम के फ़ैसले में खुद भी बोलती थी । 

सुरेखा अगर काम करने के लिए रसोई में जाती भी  थी तो वह पीछे रहकर उसे सब बताती थी । 

सुरेखा पाँच मिनट हो गए हैं कुकर बंद कर दे । सब्ज़ी को हिला दे ।हाँ एक चम्मच मिर्च ही डालना ज़्यादा मिर्ची हो गई तो देवेंद्र नहीं खा पाएगा ।बेटा रोटी पतली बेल और छोटी बेल आटा ज़्यादा लगाकर मत बेलना इस तरह की हिदायतेंदेती थी । शुरुआत में सुरेखा को अच्छा लगता था कि सारे काम वे खुद कर लेती थी ।उससे पहले से पूछ भी लेती थी कि क्या खाएगी बता वही बना देती हूँ ।

आस पड़ोस के लोगों को बताती थी कि उसकी बहू कितनी अच्छी है। वही उसे काम नहीं करने देती है । 

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सुरेखा को कभी-कभी लगता था कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि अच्छाई की आड़ में सबको यह बता रहीं हैं कि मेरी बहू काम नहीं करती है सारा काम मैं ही करती हूँ ।

शादी के दो साल बाद आज जब बहू सुरेखा ने पलट कर जवाब दिया तब से रागिनी को लगने लगा था कि कहीं मैं ग़लत तो नहीं कर रही हूँ । सोच सोच कर उसकी आँखें छलक जाती थी । 

वह सोचने लगी थी कि जब वह शादी करके आई थी तो उसकी सास ने उसे कुछ नहीं सिखाया था । वह कहती थी कि अपने आप सीख वैसे भी माँ ने तो सिखाया ही होगा । हाँ अगर गलती हो जाती थी तो फिर ख़ैर नहीं होती थी ।

उसे काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था । उसकी चचेरी बहन रमा एक बार उससे मिलने ससुराल आ गई थी तो सास रागिनी की बुराइयों को गिनाने में ही लगी हुई थी । रमा ने जाते हुए कहा कि रागिनी मैं तो तुझसे मिलने आई थी पर  पाँच मिनट तुझसे बात करने को भी नहीं मिला। 

पति के साथ बाहर जाने से लेकर पति पत्नी के हर बात पर सास टिप्पणी करती थी । 

रागिनी को जब लड़का हुआ था तो उसे भी सास ही सँभालने लगी थी। देवेन्द्र के  अच्छे बुरे सबका ख़्याल वही रखती थी। देवेंद्र कुछ  ग़लत करता था तो रागिनी को खरी खोटी सुनाती थी कि इस तरह पाल रही हो । पति भी माँ की तरफ़दारी ही  करते थे । 

इस तरह उसने ससुराल में बहुत ही कष्ट सहे थे ।

 देवेन्द्र जब थोड़ा बड़ा हुआ था तो रागिनी की सास का देहांत हो गया था। रागिनी ने उसे अच्छे संस्कार दिए थे और उस दिन उसने निश्चय किया था कि वह अपनी बहू को बहुत प्यार देगी । 

इसलिए वह सुरेखा के लिए सब कुछ करती थी और प्यार देने की कोशिश में लगी रहती थी । वह यह भूल गई थी कि ज़्यादा प्यार देने की लालसा में उनके हर कार्य में हस्तक्षेप कर रही है। जिससे उसकी बहू और बेटे को साँस लेने में भी तकलीफ़ हो रही है । 

उसी समय फ़ोन की घंटी बजी रागिनी ने फ़ोन उठाया तो रमा थी। रागिनी को उदास देख पूछा बात क्या है रागिनी ? कुछ हुआ क्या आज  बहू की तारीफ़ नहीं करेगी । उसकी बातों को सुनकर रागिनी ने सुरेखा की बात बताई तब रमा ने उसे समझाया कि जीजी आप कुछ ज़्यादा ही उनके जीवन में हस्तक्षेप कर रही हैं । मेरे ख़याल से उन्हें भी अपना जीवन अपनी तरह से जीने का अधिकार है । उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया करें जब वे आप से सलाह मशविरा करना चाहेंगे तो करें परंतु ज़बरदस्ती उन पर अपने विचार प्यार के नाम पर मत थोपें । ऐसे में आप बेटा बहू को खो देंगी। 

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रागिनी रमा से कह रही थी कि —- अरे ! नहीं रमा , मैं तो उन्हें ख़ुशी देना चाहती हूँ । मेरी सास के कारण मैंने बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया था। मैं अपनी बहू को वही तकलीफ़ें नहीं देना चाहती हूँ । हाँ मैं कुछ ज़्यादा ही उनके जीवन में हस्तक्षेप करने लगी थी । इसलिए उन्हें ग़ुस्सा आया होगा । इसीलिए उस बेचारी ने मुझे ऐसा कह दिया है। तू सही कह रही है आइंदा से उनके ऊपर मेरे विचार नहीं थोपूँगी । 

यह सब सुरेखा ने दरवाज़े की ओट में खड़े होकर सुना तब उसे लगा था कि सासु माँ क्यों इतना मेरे लिए करती हैं । उसका हृदय सासु माँ के सम्मान में भर गया था। उसे लगा कि इतनी अच्छी व्यक्तित्व की स्वामिनी के दिल को मैंने दुखाया है । उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था । 

रागिनी जब फ़ोन रख कर आई थी तो सुरेखा ने चाय बनाई और कहा माँ आइए हम मिलकर चाय पीते हैं । दोनों जब चाय पी रहे थे तो रागिनी को लगा कि मैंने अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभाई है अपनी बहू को पा लिया है उसके हृदय को जीत लिया है। बस उसके आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे थे । सुरेखा ने सास को गले लगा लिया। सुरेखा को भी अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास हो गया था । 

दोस्तों बड़ों को समझना चाहिए ।उनके व्यवहार पर सवाल नहीं उठाना चाहिए तभी आप ससुराल में सुखी रह सकते हैं । 

स्वरचित

 के कामेश्वरी

#ससुराल

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