ड्रेस कोड – लतिका श्रीवास्तव 

साब पेपर…..सुनते ही वहीं परिसर में मॉर्निंग वॉक करते हुए विशाल ने जैसे ही दरवाजे पर पड़ा पेपर उठाया ….. साब सलाम आप नए आए हो आते ही आपका फोटू छप गया है  पेपर में ….देखो…और विशाल के पेपर खोल कर देखने तक वहीं खड़ा रहा था वो ….फोटो देख कर विशाल के चेहरे पर आई हंसी को देख कर खुश होता हुआ साब सलाम कहता चला गया था..!

.नया …मैं नया तो नहीं हूं इस शहर के लिए …अपना ही शहर था ये ….नया मैं नहीं हूं बस मेरा रूप नया हो गया है….पेपर के मुख्य पृष्ठ पर उसकी फोटो छपी थी…हार्दिक स्वागत विशाल कुमार जिले के नवीन कलेक्टर …..जिले के सरकारी विद्यालय के छात्र ने नाम रोशन किया….जिले को गर्व है अपने सपूत पर…..!

सरकारी विद्यालय…! हां उसी सरकारी विद्यालय में तो पापा पदस्थ थे….मामूली सी नौकरी थी ईमानदारी का जीवन था परंतु कमाई सूत बराबर थी ….आठ सदस्यीय परिवार में अकेले पिताजी की कमाई से मुश्किल से गुजर होती थी। किसी प्रकार के शौक पालने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती थी…!दो ही जोड़ी कपड़े सबके पास रहते थे उसी को चाहे किसी शादी की पार्टी में पहन लो चाहे जन्मदिन पर चाहे नानी के घर जाना हो..!

एक बार पड़ोस में भव्य समारोह था कलेक्टर को भी आना था….मां बहुत उत्सुकता से अपनी दो में से सबसे अच्छी साड़ी पहन कर कलेक्टर को देखने और मिलने पहुंची ही थीं कि पड़ोसी आंटी ने मां को देखते ही कहा …”सुनिए आप यहां क्या कर रहीं हैं.. ये क्या पहन कर आ गईं हैं…आज की पार्टी का ड्रेस कोड आपको नहीं पता है क्या…देखिए सभी महिलाओं को आज गुलाबी लहंगे में आना था और पुरुषों को ब्लैक सूट और गुलाबी टाई में…”.मां और पिताजी ने चारो ओर देखा तो सभी इसी ड्रेस कोड में दिखाई दिए …विशाल को आज भी दोनों की असहजता और शर्मिंदगी की याद ताजा हो गई थी पिताजी ने जबरदस्ती हंसते हुए मां का हाथ पकड़ा और सीधे घर आ गए थे…मां की आंखों में आंसू थे …. कलेक्टर साहब से इतने पास आकर भी नहीं मिल पाने का मलाल भी था….परंतु पिताजी के सामने  उन्होंने लेश मात्र दुख या बेहतर साड़ी ना होने का दुखड़ा नहीं रोया था…अपने छोटे से घर के छोटे से  आईने में चुपचाप अपनी साड़ी परखती मां से लिपट गया था विशाल उस दिन….

बहुत इतराती हैं ये आंटी …बहुत धन है ना उनके पास बड़े बड़े लोगों से परिचय है उठना बैठना है आपको मिलने नहीं दिया मां देखना उनके घर में चोर आयेंगे और पूरा पैसा चुरा के ले जायेंगे तब उनके पास भी एक भी अच्छी साड़ी नहीं रहेगी…..गुस्सा होते हुए अबोध विशाल से मां ने हंसकर कहा था नहीं बेटा .. .मुझे नहीं मिलना किसी कलेक्टर से ….देखना मेरा बेटा एक दिन खुद कलेक्टर बनेगा तब मैं कलेक्टर साहब की मां कहलाऊंगी और फिर देखना ये सब लोग तेरे से ही नहीं मुझसे भी मिलने के लिए लाइन लगाएंगे ..सुन तू बनेगा ना कलेक्टर बता जल्दी बनेगा ना कलेक्टर…..मां पर जैसे कोई ज़िद सवार हो गई थी उस दिन…!




हां मां जरूर बनूंगा मैं कलेक्टर एक दिन …मेरी मां ही बस मेरे से मिलेगी ये आंटी को तो बाहर से ही भगा दूंगा देख लेना…. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू की जगह खुशी देखना चाहता था वो कोई भी बात कोई भी इच्छा जो मेरी मां की इज्जत बढ़ा सके और आंटी को नीचा दिखा सके ऐसी हर ज़िद जी जान से पूरा करने की मेरी भी ज़िद हो गई थी…बिना ये जाने कि कलेक्टर किसे कहते हैं कैसे बनते हैं मैंने कलेक्टर ही बनने की ठान ली थी उस दिन।

मैं भूल गया था उस मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चे के लिए जो निहायत कठिनाई से सरकारी विद्यालय में पढ़ाई कर रहा था कलेक्टर बनने की ख्वाहिश करना आकाश कुसुम लाने जैसा ही था।

आगे की पढ़ाई का खर्चा उठाना पिताजी के लिए असंभव हो चला था कॉलेज की ही फीस देना चादर के बाहर पांव फैलाने जैसा था उस पर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी का खर्चा…!!बिना समुचित कोचिंग लिए कलेक्टर बनना नामुमकिन सा ही था…..और कोचिंग की फीस वहन करना भी नामुमकिन सा ही था….!!मैं इस नामुमकिन को मुमकिन करने की जद्दोजहद में उलझता जा रहा था

पिताजी ने मेरी लगन और उलझन देखते हुए अपने दोस्तों और परिवार वालों से आर्थिक सहायता की याचना की थी पर घर वालों ने तो … “ऊंह घर में कौड़ी नहीं और ख्वाब पल रहे हैं कलेक्टर बनने के!! ऐड़ी भी घिस लोगे तब भी इस जन्म में कलेक्टर का क नहीं बन पाओगे समझे!!अरे पहले अपने को तो देख लो … तुम का हो …!सरकारी स्कूल मा मामूली शिक्षक ना..! तो उतना ही ऊंचा सोचा करो.. तुम्हारो पूत  भी शिक्षक बन जाए यही मनाओ काहे इत्ता उधारी मांगते फिर रहे हो… वो तो कुछ बन ना पायेगा ये उधारी तुम्हारे मूड़ पर ही आ जायेगी तुम पटा ना पाओगे…..!!”

घोर नैराश्य और अवसाद में एक दिन अचानक पिताजी ने मेरी मनचाही कोचिंग की साल भर की पूरी फीस लाकर मेरे हाथ पर रख दी थी…” ले बेटा जा आज अभी से कोचिंग जॉइन कर पढ़ना शुरू कर दे..!विशाल अवाक भी था और परम प्रसन्न भी था ख्वाहिशों को थोड़ी रोशनी मिली थी..।

बाद में पता चला था पिताजी ने अपना स्कूटर बेच दिया था जिसे एक साल पहले ही बहुत शौक से रुपए जोड़ जोड़ कर खरीद पाए थे …बहुत दूर था उनका स्कूल ….. वक्त की कद्र करना सीखो कहने वाले वक्त के सख्त पाबंद  पिताजी को  साइकिल से स्कूल पहुंचने में अक्सर देर हो जाती थी …!पर…दूसरे दिन अपनी वही पुरानी साइकिल झाड़ पोंछ कर चल पड़े थे …अभी तो मेरी ये साइकल बहुत बढ़िया आराम से मुझे स्कूल पहुंचा देगी ….स्कूटर ने मुझे आलसी बना दिया था विशाल की मां..घर से जल्दी निकलूंगा तो स्कूल वक्त से पहुंच ही जाऊंगा……हंसकर कहते हुए साइकल लेकर चले गए थे।




व्यथित उद्विग्न विशाल को गले से लगाते हुए मां ने फिर हौसला दिया था नहीं बेटा दुखी मत होना ….नए जुनून से अपनी पढ़ाई में जुट जा पिताजी की साइकल को कार में बदलते वक्त नहीं लगेगा….।

विशू बेटा इधर आना तो ज़रा…..मां की उत्साहित आवाज से विशाल वर्तमान में आ गया था… हां मां आया…कहता हुआ बड़े से लॉन को क्रॉस करते हुए कलेक्टर बंगला के विशालकाय सुसज्जित बैठक और अतिथि कक्ष के पास गुजरते हुए एक बार फिर से अपने बचपन का छोटा सा किराए का मकान याद करते हुए मां के अत्याधुनिक सुसज्जित कक्ष में पहुंचा तो मां दीवाल पर लगे विशाल आईने के सामने खड़ी एक दर्जन सिल्क की साड़ियों को अपने ऊपर बिखराती हुई व्यस्त मिली उसे देखते ही मुदित होते हुए पूछने लगी अरे विशू ये इतनी ढेर सारी सुंदर सुंदर साड़ियां क्यों मंगवा दिया है मुझे तो सब एक से बढ़ कर एक लग रही हैं समझ ही नहीं पा रही हूं कुछ…अब तू ही बता आज शाम को तेरी वेलकम पार्टी में कौन सी पहनूं….और वो देख तेरे पापा भी परेशान हो रहे हैं जिंदगी भर एक सूट तो सिलवा नहीं पाए और आज इतने सारे अलग अलग रंग और स्टाइल के सूट..!!

लाइए पापा मैं बताता हूं एक बढ़िया सा सूट निकाल कर पापा को थमाते हुए विशाल ने हंसकर कहा तो पापा आल्हादित हो कह उठे…” अरे बेटा  सुन…शाम की तेरी पार्टी में शहर के बड़े बड़े लोग आएंगे ….हम दोनों क्या करेंगे वहां जाकर….तेरी पोजिशन खराब हो जायेगी हम लोगों के कारण तुझे संकोच होगा…हम लोग यहीं घर पर रह लेंगे ….इतने नौकर चाकर ठाट बाट है …. हमारा दिल तो इसी से गदगद है.. तेरी मां जब से यहां आईं हैं किचन में कोई काम ही नहीं करना पड़ रहा है कभी जूस कभी सूप कभी फल कभी गरम नाश्ता ..!….ईश्वर तुझे यशस्वी बनाए …!




अरे पापा कैसी बातें कर रहे हैं आप भी…. आप लोगों के बिना मैं जाऊंगा ही नहीं ये सब आप लोगों की तपस्या संघर्ष और आशीर्वाद से ही संभव हुआ है …ये सब बड़े बड़े लोग इसीलिए आज आए हैं क्योंकि आपने मुझे भी इतना लायक बना दिया है….जब आपको अपना स्कूटर बेच कर साइकल से जाना पड़ा था तब ये बड़े लोग नहीं थे ना…!जब मुझे इस लायक बनाने के लिए धन की जरूरत थी तब इन्ही सब लोगों ने ताने मारे थे ना..!ये वही लोग है पिताजी जिन्होंने एक दिन आप और मां को ड्रेस कोड में नहीं होने के कारण बेइज्जत किया था…!ये वही लोग हैं जिन्होंने हमेशा आपकी हंसी उड़ाई और मेरी ख्वाहिशों पर तंज कसे थे मुझ पर अविश्वास किया था..!आप और मां ही थे जो हमेशा से ही मुझ पर मेरी काबिलियत पर दृढ़ विश्वास करते आए…!!

शहर वही है पर आज वक्त बदल गया है …पर आप लोग नहीं बदले…पापा आप सब तब भी मेरे साथ थे अब भी मेरे साथ रहेंगे….अब प्लीज ये सब मत सोचिए ….आप दोनो जल्दी से तैयार हो जाइए आज सबसे पहले हम उस सरकारी स्कूल जायेंगे जो आपकी कर्मभूमि और मेरी नींव सुदृढ़ करने वाली स्थली थी…विशाल ने जल्दी से एक चेक पापा को देते हुए जब भावुकता से कहा… पापा ये लीजिए खाली चेक उस विद्यालय और बच्चों के लिए जितनी धन राशि आपको उचित लगे भर लीजिए जिससे होनहार छात्रों को आगे की पढ़ाई के लिए भटकना या रुकना ना पड़े…!..तो पिताजी भी भावुक हो गए और अपने पुत्र की उदार मानसिकता देख दिल भर आया।

शानदार सूट पहने पापा और सिल्क की सुंदर साड़ी में सजी मां को बाहर निकलते ही वर्दीधारी गार्ड ने सैल्यूट मारा तो दोनों थोड़ा संकुचित हो गए..तब तक गार्ड ने आगे बढ़कर बहुत सम्मान के साथ एक शानदार कार का दरवाजा उनके लिए खोल दिया… तब विशाल  की आत्मविश्वास बढ़ाती हुई निगाहों की हिम्मत से दोनों गौरवांवित होते हुए उस कार में  बैठ गए..!

वक्त बदलने में वक्त नहीं लगता…. कल की साइकल आज कार में बदल गई है… मां ठीक कहती थीं ….आत्मसंतुष्ट प्रसन्न मां पिताजी के साथ बैठते हुए विशाल सोच रहा था और कार नई मंजिलों की ओर अग्रसर हो चली थी।

 #वक्त 

लतिका श्रीवास्तव 

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