डाइनिंग टेबल – कंचन श्रीवास्तव

डाइनिंग टेबल पर एक साथ खाना खाने के लिए बैठे सबको  देख रेखा की आंखें झलक आई जिसे सिर्फ सामने बैठे सुनील ने देखा।

पर चुप रहे क्योंकि बात सिर्फ उसके और उसके पत्नी के बीच की थी इसलिए सबके जाने और उसके बेड पर आने का इंतजार किया।

आते ही एक नज़र उस पर डाली मानों पूछ रहा हो क्यों रो रही थी तुम ।

जिसे वो बिना कहे समझ गई।

समझती भी क्यों न वर्षों का साथ है दोनों का अब साथ रहते रहते इतना जो समझने ही लगा एक दूसरे के मन में  क्या चल रहा , वो बात अलग है कि नज़र अंदाज़ कर देते है ।

तो उसने कहा –

कुछ नहीं यही कि  घर का माहौल कैसा था  एकदम तना तनी वाला कोई किसी से बात नहीं करता  ,कोई किसी से मिलता जुलता नहीं , किसी को कोई समझता ही नही था।यहां तक कि सुख दुख से भी किसी को किसी से कोई मतलब नहीं रहता।

एक ही घर में रहते इतनी वैमनस्यता थी कि घर मकान हो गया था।

कभी कभी तो ऐसा लगता कहीं भाग जाओ घर मकान सा हो गया था काट खाने को दौड़ता था।

पर  रूबी ने अहसास कराया , कि नई पीढ़ी खुले विचारों की और स्वछंद है जीने का तरीका बिंदास है।


यही वजह है कि आज  सब एक साथ बैठकर खा पी रहे घूमने टहलने जा रहे जो कि देखने कितना अच्छा लग रहा।

इस पर मुस्कुराकर सुनील ने कहा-

जब वो खाने की टेबिल पर आपस में बातें कर रहे थे तो उनकी बातों से लगा।

आज की युवा पीढ़ी समझदार  है हम सब की तरह गांठ बांधकर नहीं रखती ।आपसी वैमनस्य को तूल नहीं पकड़ने देती बात जहां की तहां खत्म करके फिर वैसे ही हो जाना चाहती  है ।

इनके हिसाब से  एक तो हम कभी कभार मिलते हैं उस पर भी पुरानी बातों को लेकर बैठ जाएं तो निभाएं कैसे इसलिए पहले तो मनमुटाव आने नहीं देते और गर आ भी जाए तो तूल नहीं पकड़ने देते बल्कि जहां के तहां बात खत्म करके फिर वैसे ही हो जाते हैं।

तो हम बड़े भी  जो गांठ बांध कर बैठे थे एक साथ हैं

सही बात है आज कमजोर पड़ते रिश्तों की डोर को संभालने का काम  रीमा और युवा पीढ़ी ने बखूबी किया

तभी तो हम सब  डाइनिंग टेबल पर एक साथ हैं।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव “आरज़ू

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