छुटकू – बीना शुक्ला अवस्थी

आज चॉदनी का जागती ऑखों से देखा सपना पूर्ण हो गया है। इस कालोनी में फ्लैट लेना उसका बहुत बड़ा सपना था। 

आज  सुबह ही उसके फ्लैट की रजिस्ट्री हुई है और वह सीधे यहीं आ गई। उसने हल्के हाथों से उस नन्हें पौधे का सहलाया जो धीरे-धीरे विशालकाय वृक्ष बनने की राह पर अग्रसर है। उसके तने रूपी शरीर पर हाथ फेरते हुये वह बुदबुदाई – ” अब तुम अकेले नहीं हो, मैं आ गई हूॅ तुम्हारे साथ रहने के लिये।”

उसकी आंखें बन्द हो गईं जैसे बरगद के उस वृक्ष ने भी अपनी बॉहें चॉदनी के गले में डाल दी हों – ” तुम आ गईं। मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था। नित्य सभी दैवी शक्तियों से तुम्हारी सफलता की कामना करता था।”

चॉदनी की बन्द ऑखों के समक्ष साकार हो उठा वह दृश्य। उसके बाबू जगदीश मकान बनाने वाले मिस्त्री का काम करते थे लेकिन चांदनी गांव में अपनी अम्मा चम्पा और दादी के साथ रहा करती थी क्योंकि दादी शहर नहीं आना चाहती थीं। वह कहा करती थीं कि जिस घर में ब्याह कर आई हैं, वहीं मरना चाहती हैं।‌

चम्पा चाहती थी कि चांदनी भी स्कूल की मास्टरनी की तरह खूब पढ लिखकर मास्टरनी बने। चॉदनी जब पॉच साल की थी तब उसकी दादी नहीं रही थीं। गांव में एक मकान के सिवा कुछ नहीं था मॉ के न रहने पर जब जगदीश आया तो चम्पा ने स्पष्ट कह दिया – ” अम्मा के कारण इतने साल से मैं गॉव में अकेली रह रही थी। अब हम लोग भी तुम्हारे साथ शहर चलेंगे। आधी रोटी खा लेंगे लेकिन तुम्हारे साथ रहूॅगी। शहर में मैं भी कोई काम कर लूॅगी और दोनों लोग मिलकर बिटिया को पढा लिखा कर मास्टरनी बनायेंगे।”

जगदीश को भी चम्पा की बात सही लगी। शहर जाकर उसने जब अपने बिल्डर पंकज से बात की तो उन्होंने कह दिया – ” मेरे साथ तुम इतने सालों से काम कर रहे हो और आगे भी मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं हूॅ। परिवार को लिवा लाओ, रहने की जगह मैं दिलवा दूॅगा।”

फ्लैट बनाकर बेचना ही पंकज का काम था, इस बार पंकज को बहुत बड़ा काम मिला।‌ बहुत बड़ी जमीन में  कम से कम पॉच सौ फ्लैट बनने थे। पंकज के साथ उसके पॉच पार्टनर और भी थे। बहुत सारे लोग इस प्रोजेक्ट को पाना चाहते थे। जिस दिन पंकज और उसके साथियों को यह प्रोजेक्ट प्राप्त हुआ उनके अनजाने में ही कई दुश्मन तैयार हो गये।

प्रोजेक्ट के समीप की ही बस्ती में ही जगदीश अपने परिवार को ले आया। इस बस्ती में सभी मजदूर वर्ग के लोग रहा करते थे। पंकज के प्रोजेक्ट में अधिकतर मजदूर और कर्मचारी इसी बस्ती के काम करने लगे। पंकज और उसके साथियों का अनुमान था कि प्रोजेक्ट पूर्ण होने में कम से कम पॉच से सात साल लग सकते हैं। चम्पा ने मजदूरी के साथ जो मजदूर अकेले रहते थे उनके लिये खाना बनाने का काम भी शुरू कर दिया। 

बस्ती के समीप ही एक सरकारी स्कूल था। चम्पा की जिद के कारण सात साल की चॉदनी भी बस्ती के बच्चों के साथ स्कूल जाने लगी। चूॅकि बस्ती के अधिकतर स्त्री पुरुष प्रोजेक्ट पर ही काम करते थे। इसलिये स्कूल से आने के बाद बच्चे प्रोजेक्ट वाले स्थान पर ही पहुॅचकर खेला करते थे। 

प्रोजेक्ट शुरू हुये दो वर्ष से अधिक समय बीत चुका था।उस दिन जब चॉदनी और बच्चे प्रोजेक्ट वाले स्थान पर पहुॅचे तो वहॉ पुलिस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का जमघट लगा था। आग इस बुरी तरह फैल गई थी कि उसने प्रोजेक्ट की बिल्डिंग के साथ बस्ती को भी अपनी चपेट में ले लिया था। 

पुलिस ने बच्चों को प्रोजेक्ट से काफी दूर बाहर ही रोक दिया।‌ उन्हें बताया गया कि पुलिस उनके माता-पिता को बाहर निकाल लेगी। सभी बच्चे सहमे से वहीं बैठकर अपने माता-पिता की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन चॉदनी जाकर अपने उस पौधे को देख रही थी जिसे एक साल  पहले ही उसने और चम्पा ने मिलकर लगाया था।

चम्पा ने वह पौधा लगाते हुये कहा – ” जैसे जैसे तुम बड़ी होगी, यह भी बड़ा होता जायेगा। इसका ख्याल रखना, यह तुम्हारा छोटा भाई है।”

चांदनी ने उसी समय उसका नाम रख दिया – ” छुटकू।”

चांदनी जब भी मन होता, अपने छुटकू से बातें करने आ जाती।‌ इस समय भी जब सब बच्चे डरे सहमे से अपने माता पिता की प्रतीक्षा कर रहे थे, चांदनी अपने छुटकू से बातें कर रही थी – ” तुम तो यहीं थे, बताओ आग कैसे लगी? अम्मा बाबू कहॉ हैं?”

तभी बदहवास सा जगदीश बच्चों के पास आया और उनसे चॉदनी के बारे में पता करके जब चॉदनी के पास आया तो वह बेफिक्री से उसी पौधे के पास खड़ी थी। चॉदनी के पास पहुॅचकर जगदीश उसे गले से लगाकर रोने लगा‌ – ” बाबू, क्यों रो रहे हो? अम्मा कहॉ है?”

आज पंकज ने उसे  काम से दूसरी जगह भेज दिया था। वहीं पर उसे इस भयंकर अग्नि काण्ड की खबर मिली थी। 

पुलिस ने किसी को भीतर नहीं जाने दिया लेकिन यह पता चल गया था कि जो भी मजदूर भीतर थे उनमें से कोई भी जीवित नहीं बचा है।

” बाबू, क्यों रो रहे हो? देखो मेरा छुटकू बड़ा हो रहा है। अम्मा कहती हैं कि मेरे साथ साथ मेरा छुटकू भी बड़ा हो जायेगा।”

उसने पौधे की ओर इशारा करते हुये कहा। पंकज और उसके साथी बेबस से इस भयावह अग्नि को देख रहे थे। कोई कुछ नहीं कर पा रहा था। यह तो स्पष्ट समझ में आ रहा था कि यह आग लगी नहीं है लगाई गई है। तभी पंकज को दिल का दौरा पड़ गया और अस्पताल ले जाने के पहले ही उसने दम तोड़ दिया। इस प्रोजेक्ट में पंकज ने अपनी सारी जमा-पूंजी लगा दी थी। आधी पूंजी पंकज की थी और आधी बाकी चारो साथियों की। इसी कारण इतना बड़ा सदमा वह सहन नहीं कर पाये। सब तरफ हाहाकार मच गया।

पूरा प्रोजेक्ट जॉच के लिये प्रतिबंधित ( सील ) कर दिया गया। जगदीश भी पत्नी को खोने के बाद चॉदनी को लेकर पास के दूसरे शहर चला आया लेकिन अब उसके पास रोजी-रोटी के साथ चॉदनी की परवरिश और चम्पा का सपना पूरा करने की जिम्मेदारी भी आ गई।

वह एक दुकान में काम करने लगा लेकिन चॉदनी और जगदीश अक्सर उस पौधे को देखने आया करते। यह पौधा और चॉदनी चम्पा की निशानी थी। 

चॉदनी भी बहुत मेहनत से पढ़ाई करती और साथ में बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया करती क्योंकि अकेले जगदीश की कमाई से उन दोनों के लिये चम्पा का सपना पूरा करना असम्भव था।

करीब पन्द्रह साल चले इस अग्निकांड की जॉच में पता चला कि पंकज के विरोधियों ने मजदूरों के रूप में अपने कुछ व्यक्तियों को भेजकर यह आग लगवाई थी। पंकज ने बुद्धिमानी दिखाते हुये अपने प्रोजेक्ट का इन्श्योरेंस करवा लिया था। इसलिये मृत मजदूरों का मुआवजा मिल गया। चम्पा की मृत्यु के बदले में मिले मुआवजे को जगदीश ने बैंक में जमा कर दिया ताकि चांदनी की पढ़ाई में कोई व्यवधान न आये। 

आखिर चम्पा और जगदीश का सपना पूरा हुआ और चॉदनी सरकारी स्कूल में अध्यापिका बन गई। 

कुछ सालों बाद एक दिन उन्हें पता चला कि पंकज का बेटा नीरज उस प्रोजेक्ट पर दुबारा काम करने वाला है। 

जगदीश और चॉदनी उससे मिलने गये तो पंकज की पत्नी रेवा को देखकर जगदीश की ऑखों में ऑसू आ गये। उसने हाथ जोड़ते हुये कहा – ” भाभी, अचानक क्या से क्या हो गया? भइया इस काम को पाकर कितना खुश थे लेकिन सब बरबाद हो गया।”

रेवा की ऑखों में भी ऑसू थे – ” तभी तो जब हमारे प्रोजेक्ट से प्रतिबन्ध हट गये तो मैंने सोचा कि चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े लेकिन मैं इस प्रोजेक्ट को पूरा अवश्य करूॅगी। यही मेरी ओर से पंकज को श्रद्धांजलि होगी। चाहो तो तुम हमारे साथ काम कर सकते हो।”

जगदीश ने तुरन्त हामी भर दी। तभी रेवा ने जगदीश से पूॅछा – ” जगदीश कोई काम हो तो बताओ। अगर मैं तुम्हारी कोई सहायता कर सकी तो मुझे खुशी होगी। तुम पंकज के बहुत विश्वस्त व्यक्तियों में से थे और उनके जाने के बाद तुम पहली बार मुझसे मिलने आये हो।”

तभी पंकज का बेटा नीरज आ गया। उसने जगदीश को नहीं पहचाना – ” ये लोग कौन हैं मम्मा। कुछ जाने पहचाने से लग रहे हैं ‌”

तब रेवा ने नीरज का जगदीश से परिचय कराया। चूॅकि जगदीश पंकज के साथ बहुत दिन से कार्य कर रहा था और काफी विश्वास पात्र भी था। इसलिये वह कई बार घर भी आता था लेकिन उस समय नीरज काफी कम उम्र का था। इसलिये पहली नजर में पहचान नहीं पाया था। 

रेवा के पूॅछने पर जगदीश तो कुछ नहीं बोला लेकिन चॉदनी ने कहा – ” हम इस प्रोजेक्ट में एक फ्लैट लेना चाहते हैं लेकिन हमारे पास अधिक पैसे नहीं हैं।” 

फिर चॉदनी ने उन लोगों को वह पौधा दिखाते हुये कहा – ” इसे देखती हूॅ तो लगता है कि इसके रूप में मेरी अम्मा जीवित हैं । तभी तो बिना किसी देखभाल के , इतने ऑधी तूफानों को सहन करते हुये यह आज इतना बड़ा और मजबूत हो गया है।”

” हॉ, इस स्थान पर एक छोटा सा पार्क बनाना पंकज की योजना में सम्मिलित था। इसीलिये पंकज ने चम्पा से इस स्थान पर पौधा लगाने को कहा होगा ताकि जब पार्क बने तो इसे हटाना न पड़े।” 

” हॉ भाभी, चम्पा ने भइया से पूॅछकर ही इस पौधे को लगाया था। उन्होंने ही चम्पा को पौधे को लगाने की यह जगह बताई थी।”

अपनी मॉ के कहने पर नीरज ने उन्हें वचन दिया कि जिस स्थान पर वह पौधा खड़ा है उसके चारो ओर वह एक छोटा सा उद्यान बनाकर खूब सारे पेड़ लगवायेगा और उसका नाम ” चम्पा उद्यान ” रखा जायेगा। साथ ही वह उसे ऐसा फ्लैट देगा जिससे वह अपने घर से अपनी मॉ की निशानी देख सके। पैसे उन्हें इकठ्ठे न देकर प्रति माह अपने वेतन से थोड़े थोड़े देने होंगे।

रेवा ने यह भी कहा कि उसे फ्लैट के उतने ही पैसे देने होंगे जितनी लागत होगी। चूॅकि चॉदनी ने अपनी मॉ के साथ मिलकर वर्षों पहले अपने छुटकू को लगाकर इस पार्क का उद्घाटन कर दिया था। तभी वह इस प्रोजेक्ट की पहली ग्राहक बन गई थी। इसलिये उसे अपने फ्लैट की कीमत उस समय के अनुसार ही देनी होगी।

रेवा की इस उदारता और अपनेपन पर जगदीश और चॉदनी दोनों की ऑखों में कृतज्ञता के ऑसू आ गये।

अब यह प्रोजेक्ट बनकर तैयार हो गया है। पॉच सौ बीस फ्लैट के अतिरिक्त एक छोटा सा नगर ही बसा है यहॉ। बच्चों के लिये झूले वाला पार्क, मॉल के अतिरिक्त बहुत कुछ  है। 

 आज चॉदनी ने बिना जगदीश को बताये चुपचाप अपने फ्लैट की रजिस्ट्री करवा ली है। कल उसकी अम्मा की मृत्यु तिथि है। कल वह बाबू को लेकर यहॉ आयेगी और उन्हें यह फ्लैट उपहार में देगी। तब वे दोनों अपने फ्लैट से खड़े होकर इस छुटकू को देखा करेंगे।

लेखिका/ लेखक बोनस प्रोग्राम – नवीं

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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