#चित्रकथा
हिना स्तब्ध खड़ी थी। सामने था उसका रहबर, उसका साथी । एक झटके में उसने उसका सब छीन लिया । तलाक़ तलाक़ तलाक़, इन तीन लफ्जों ने उसकी जिंदगी बदल दी । कैसे इतना संगदिल हो गया उसका सनम । वो सामान बाँधने लगी । नन्ही जोया रो रो कर हलकान थी। बार बार उसे गोद में लेकर चुप कराती फिर सामान बाँधती। कुछ ही देर में उसके वालिद उसे लेने आ गये । इरफान बुत बना रहा । उसे तनिक दया नहीं आयी।
जोया रोती रही। ऑटो में बैठ कर हिना वापस पहुँच गयी अपने गुजरे कल में। उसे याद आया वो दौर जब इरफान उस पर जान देता था । उसके सदके पड़ता था। वो नयी नवेली दुल्हन मानो किसी रानी की तरह जीती थी । सब अच्छा था फिर अल्लाह का करम हुआ और हिना की गोद में नन्ही जोया आयी । इरफान थोड़ा मायूस हुआ था
पर जोया के मासूम प्यार में संभल गया । पर दो महीने की जोया जब बीमार पड़ी और तबियत संभलने में नहीं आयी तो दोनों बड़े अस्पताल गये और वहाँ तमाम टेस्ट के बाद पता चला कि जोया को घातक कैंसर है ।
उस दिन से इरफान बदल गया । अब वो बहाने ढूँढता कैसे हिना और जोया से पीछा छुड़ाये। देर रात घर पहुँचता फिर खा कर दूसरे कमरे में सो जाता । परिवार इतना भी मजबूर नहीं था कि ईलाज न करवा पाता । इरफान प्राइवेट कम्पनी में नौकर था । सास को पेंशन आती थी । गाँव में जमीन थी, बाग था। शहर में दो तल्ला का मकान नये ढंग से बना हुआ था ।
मेन बाजार में दो दुकाने थीं जिनका अच्छा मोटा किराया आता था । कुल मिलाकर शहर के रईसों में गिनती होती थी। पर इलाज पर पैसा खर्च करने का इरफान और उसकी माँ का मन नहीं था । दोनों में झगड़े बढ़ने लगे । हिना चुप होने लगी जोया की बीमारी बढ़ने लगी और इरफान का जुल्म बढ़ने लगा ।
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ऑटो घर के बाहर रुका । हिना वर्तमान में लौटी । घर में अम्मी से लिपट कर रोने लगी । अम्मी चुप कराते हुए बोली, ” न रो मेरी गुड़िया…. अल्लाह बड़ा रहम दिल है । सब ठीक करेगा ।” उसके अब्बू सामान रखते हुए बोले, “जोया को अस्पताल कब ले जाना है? “
“दो दिन बाद, ” हिना ने भीगे मन से उत्तर दिया। हिना ने मेहर की रकम 2 लाख रुपये वापस मांग ली थी । पर इरफान पर तो दूसरा निकाह करने की धुन सवार थी। वो रोज हिना को टाल देता। बिना पैसे के इलाज हो नहीं पा रहा था । जोया की बीमारी धीरे धीरे बढ़ रही थी । हिना खामोश होती जा रही थी।
अब जोया डेढ़ साल की हो चुकी थी । इतने बीच हिना के वालिद गुजर चुके थे । मायके की माली हालत पहले ही अच्छी नहीं थी। अब दोनों माँ बेटी आस पास का सीना पिरोना, अचार पापड़ करके या छोटे मोटे काम करके गुजर कर रही थीं । मोहल्ले के रुतबेदार लोगों के प्रयास से हिना की माँ की विधवा पेंशन बन गयी थी। आस पास के लोग थोड़ी बहुत मदद ऐसे ही कर देते थे । डॉक्टर जोया को देखता और बार बार कहता कि
दिल्ली ले जाओ, बच जाएगी । हिना सुन कर रह जाती। एक दिन बोल पड़ी, पैसा नहीं है डॉक्टर साहब । कैसे ले जाऊँ? कोई मदद करने वाला नहीं ।” डॉक्टर को दया आयी तो दवाइयों का इंतजाम वो खुद करने लगे । पर सिर्फ दवा से कैंसर कैसे ठीक होता? जोया हर गुजरते पल के साथ मौत की तरफ बढ़ रही थी,
और हुमा का हौसला टूटता जा रहा था । वो रोज दुआ पढ़ती, सदके करती । जब जोया की तकलीफ़ बढ़ती तो वो आंचल फैला कर खुदा से मिन्नत करती । “या खुदा, मेरे परवरदिगार, रहम कर, मेरे आंचल के फूल पर दया कर, मेरे पास सिर्फ वही है, उसको मुझसे दूर मत कर। मेरे गुनाह माफ कर ।”
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पर दुआ से मुसीबत कब टलती है । डॉक्टर ने एक दिन जवाब दे दिया। जैसे हिना पर कोई कयामत बरसी हो । वो उस दिन से पत्थर हो गयी । और एक दिन जोया इस दुनिया से रुखसत हुई । अब हिना पत्थर थी । चुपचाप बेटी को गुसल कराया कपड़े बदले और कफ़न में लपेट कर कब्रिस्तान पहुँच गयी ।
वहाँ बेटी को अकेले दफना कर वापस लौटी तो आंगन में खड़ी माँ ने बाहें फैलाकर उसे अपने कलेजे से लगा लिया और तब वो इतने दिनों में पहली बार चीख उठी । उसकी चीत्कार से सारा घर भर गया ।
(एक औरत तब चीख उठती है जब उसकी औलाद को वह बचा नहीं पाती तब उसके दिल से आह निकलती है जो चित्र में बखूबी दिखाया गया है ।)
मौलिक
श्वेता
बहुत दुःखद है कहानी का अंत ।