“चांद के पार चलो” करवाचौथ (स्पेशल कहानी)  – रीमा महेंद्र ठाकुर

दीपक की लौ”अचानक तेज हो गयी “

काव्या की आंखे भर आयी ” 

वो सोघने लगी क्या इसबार मेरा चांद मुझे फिर नहीं नजर आऐगा ” 

पिछली बार की तरह “

चार बरस हो गये, 

काव्या की आंखों से झर झर आंसू गिरने लगे “

वो उठकर खडी हो गयी! 

मंदिर से अटैच अपने रूम की ओर बढ गयी! 

उसने पंलग पर पडा मोबाइल उठा लिया “

बस उसके पास एक पुरानी पिक के आलावा कुछ भी न था! 

जिसके सहारे वो विनीत को देख सके “

गैलारी खोलते ही उसके होश उड गये, 

विनीत की पिक गैलरी से” गायब थी! 

उसके सीने में हूक सी उठी”

वो पागलो की तरह गैलरी खंगालने लगी”

इसी में तो थी! जाने कहाँ चली गयी”  काव्या बडबडाई “

इतने मैसेज बाप रे”

पूरी गैलरी भरी पडी है “

ढुढंते ढूंढते उसके सिर में दर्द होने लगा “

अचानक एक नये नम्बर से कॉल “

अब ये कौन है! 




कॉल कट गयी “”

अब वो क्या करें “

दो साल हो गये विनीत से कोई बात न हुई” 

बस सम्पर्क के नाम पर यही एक पिक “

उसकी आँखों में आंसू फिर से जगह ढूढंने लगे “

काव्या ने ओढनी ” से आंखों के कोर को साफ किया! 

और पंलग पर निष्क्रिय होकर लेट गयी! 

उसकी आंखे बंद थी! 

पर आंसुओं की धार ने अपना रास्ता ढूंढ लिया था! 

वो गालों से लुढक कर  नीचे की ओर बढकर जज्ब होने लगे “

काव्या “””

उसके कानो में विनीत की आवाज ने सरगोशी की “

काव्या दरवाजे के सहारे खडी बस विनीत को देखे जा रही थी! 

विनीत  ”   क्या हुआ “

विनीत बालो पर ऊँगली फेरते हुए खुद को कांच में निहारते हुए बोला “

काव्या “”” कुछ नही”

उसका मन हुआ वो  विनीत को बोल दे जो उसके दिल में है”

पर संकोच वश बोल न पायी! 

विनीत ने काव्या की ओर हाथ बढाया “

फिर पीछे कर लिया “

शायद  , शरारतवश ” काव्या को छूने की कोशिश की थी! 

विनीत पंलग पर बैठ गया, फिर नीचे झुककर  होक्स पहनने लगा “

अभी भी काव्या अधीरता से उसे देखे जा रही थी! 

वहाँ क्यूँ खडी हो, यहाँ आ जाओ मेरे पास “

विनीत ने तिरछी नजरों से काव्या को देखते हुए बोला “




काव्या “”” नही मै यही ठीक हूँ! 

विनीत “” अच्छा फिर ठीक है”  मै” ही आ जाता हूँ! 

विनीत ने हाथ बढाकर काव्या के हाथ को पकडकर अपनी ओर खीच लिया “

काव्या सीधे उसके सीने से जा लगी “

विनीत “”” काव्या, 

काव्या “”” हूँ, 

विनीत “”” एक बात पूछूँ, 

काव्या ने विनीत की आंखों में देखते हुए ” हाॅमी भरी “

विनीत “” तुम मुझे इतनी ध्यान से क्यूँ देख  रही थी “

काव्या “” अब देख भी नहीं सकते”

विनीत “” हक हूँ तुम्हारा, पर क्यूँ “

विनीत  काव्या की आंखों में देखते हुए बोला “

काव्या “” पता नहीं क्यूँ ” पर मुझे लगता है तुम खो जाओगे, मुझसे दूर हो जाओगें”

इस बार विनीत को काव्या की आंखों में आंसुओं का सैलाब साफ नजर आ रहा था! 

पगली ”  ऐसा कभी नहीं होगा ” विनीत काव्या के गालों को थपथपाते हुए बोला “

अच्छा चलो छोडो ” मै जा रहा हूँ ” 

कुछ भेजना हो तो बता दो “

विनीत   उसे बाहों में जकडते हुए बोला “

बस एक जोडी नूपुर ” काव्या के होठ थरथराऐ”

बस ” विनीत ने आह भरी ” मुझे लगा इस करवाचौथ पता नही क्या मांग लोगी’

मांगूगी न, काव्या मुस्कुराई “

क्या “” विनीत ने पूछा “

चांद के उस पार साथ चलने का वादा “

काव्या गंभीर मुद्रा में  बोली”

विनीत,  “””पक्का, 

काव्या”” पक्का,  

काव्या विनीत से परे होती हुई बोली “

कहाँ जा रही हो”

विनीत ने उसकी कलाई वापस पकड ली”

काव्या की हथेलियों को दबाते हुए बोला “

काव्या “” कही नही “

हमेशा रहूंगी ” पास  , जब तक तुम दिल से न निकाल लोगों”

मै_ भला क्यूँ निकलूंगा, विनीत हंसते हुए बोला “

काव्या मौन हो गयी”




इस जन्म में तो कदापि नहीं “””

विनीत गंभीरता से बोला “

अचानक मोबाइल फिर से बज उठा “

मोबाइल की आवाज से काव्या अतीत से बाहर आ गयी! 

काव्या ने आंखे खोली “

वही नम्बर “

पता नहीं कौन मरा जा रहा है “

पहले ही मूड खराब है” वो झल्लाहट हुए बोली “

फोन कट गया “

काव्या ने फोन की ओर देखा ” उसे उस नये नम्बर वाले पर गुस्सा आ रही थी! 

इस बार फोन करे तो इसकी खबर लेती हूँ! 

वो बडबडाई “

फिर फोन बजा, पहली ही रिंग मे कट गया! 

अब काव्या का सारा दिमाग फोन पर ही अटक गया! 

बहुत देर तक प्रतिक्षा करती रही, पर फोन न आया! 

उसकी छठी इन्द्री सक्रिय हुई “

उसने उसी नम्बर पर फोन लगाया “

सामने से आवाज आयी ” अस्थायी रूप से ये नम्बर बंद है! 

उसके मन में हजारों ख्याल आने लगे “

उसने नम्बर चेक किया “

अरे ये तो बाहर कन्ट्री का है! 

कौन हो सकता है! 

कल करवाचौथ है” कही विनीत का तो नहीं, उसकी धडकने बेतहाशा धडकने लगी “

पूरी रात वो सो न सकी, 

सुबह नीदं लगी, तो  अगले दिन दोपहर हो गयी थी! 

उसकी आंख न खुली “




दो बज चुकी थी, उसका बदन टूट रहा था! 

नूरी आज लेट आयी थी, वो अंदर किचन में बरतन साफ कर रही थी! 

अचानक वेल बजी “

उसका मन न हुआ, वो दरवाजा खोले, और किसके लिए खोले ” कोई मोहल्ले से होगा “

आज तो उसका मन सिगांर करने का भी न हुआ “

मैम ” आप दरवाजा खोल दो” नूरी जल्दी जल्दी हाथ चलाते हुए बोली ”  शायद वो कपड़े सूखा रही थी! 

काव्या बेमन से दरवाजे की ओर बढ गयी! 

दरवाजा खोलते ही, अवार्ड सी देखती रह गयी “

उसे अपनी आंखों पर भरोसा न हुआ ” उसने आंखे मसली “

पर वो खुद पर यकीन नहीं कर पारही थी! 

सामने विनीत खडा था ” जिसने पीठ पर भारी सफारी वैग टांग रखा था! 

काव्या ने उसे टच करने के लिए हाथ बढाया “

और विनीत ने उसे खीचकर सीने से लगा लिया “

इस बार दोनों की आंखे सजल हो गयी! 

कहाँ चले गये थे ” बिना बोले “काव्या ने पूछा”

चांद के पार तुम्हारे लिए नूपुर लेने, विनीत हंसते हूऐ बोला “

पर मैने आपको अकेले जाने के लिए नहीं बोला था! 

आंखो में झकते हुए काव्या बोली “

अब कभी नहीं जाऊंगा, इस जन्म का पक्का वादा “

आज बिन मांगे ही सारी मुरादे पूरी हो इयी थी! 

काव्या विनीत का हाथ खीचती हुई रूम की ओर बढ गयी! 

जहाँ करवाचौथ की पूजा का समान उसकी प्रतिक्षा कर रहा था ! 

रीमा महेंद्र ठाकुर

 

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