बहू जी भर कर खाना नहीं देती..….. – भाविनी केतन उपाध्याय 

‘क्या हुआ माँ ? ऐसे मुह बिगाड़ते हैं अपनी भोजन से? छुट्टियों में अपने मायके आई हुई काव्या ने अपनी मां रमा जी से कहा ‘ये भी कोई भोजन है? सब फीका फीका..!! ना नमक है ना मिर्ची..!! कोई स्वाद ही नहीं है ” रमा जी ने उदास होते हुए कहा। ‘माँ, अब इस उम्र … Read more

पर्यावरण और इंसान – आरती झा आद्या 

अवनी जब भी मौका मिलता, कॉलेज की दो चार दिन की छुट्टियों में भी रानीखेत भाग कर आ जाती है.. बहुत लगाव था इस जगह से उसे। उसकी रूम मेट्स भी हँसती कि जहाँ छुट्टियों में हम घर जाने को या नई नई जगह देखने के लिए बेताब रहते हैं… वही ये मैडम रानीखेत जाने … Read more

अपनों का अपनों पर कोई कर्ज़ नहीं होता ‘ –  विभा गुप्ता 

अश्विनी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोली, खुद को अस्पताल के बेड पर देखा तो चकित रह गया।वह सोचने लगा, उसका तो एक्सीडेंट हो गया था, वो यहाँ कैसे पहुँचा,उसे यहाँ कौन लाया? तभी उसके कानों में वार्ड बाॅय की आवाज सुनाई दी,वह अपने सहकर्मी से कह रहा , ” ग्यारह नंबर वाला पेशेंट कितना भाग्यशाली … Read more

हम हैं न – के कामेश्वरी

राधिका रसोई में खाना बनाने वाली बाई को बता रही थी कि खाना क्या बनेगा । उसी समय माया भाभी भाभी पुकारते हुए आती है आती हैं और कहती है भाभी आप यहाँ हैं मैं तो पूरे घर में आपको ढूँढ रही थी ।  राधिका ने कहा— क्या बात है माया ऐसा कौनसा पहाड़ टूट … Read more

अपने तो अपने होते है” – कुमुद मोहन

“रमा! सुनो ग्रीन लेबल टी तो मंगा ली ना, जीजी वही पीती हैं!” “क्यूँ परेशान हो रहे हो? मैंने जीजी की पसंद की हर चीज़ जो जो तुमने बताई सब मंगा ली हैं” रमा ने हंसते हुए विनय से कहा? विनय की बड़ी बहन आज बरसों बाद एक हफ़्ते के लिए रहने को आ रही … Read more

वो पराया अपना –  बालेश्वर गुप्ता

           अरे प्रवीण ये रमेश कई दिनों से कॉलेज नही आ रहा है,क्या हुआ है उसे,बीमार तो नही है।तुम्हारे घर के पास ही तो रहता है।कुछ पता है, उसके बारे मे—       इतने सारे प्रश्न विक्रम ने एक ही सांस में अपने खास दोस्त रमेश के बारे में उसके पड़ौसी प्रवीण से पूछ लिये।        विक्रम एक सम्पन्न … Read more

पराया रक्त पक्का रिश्ता ! – मीनू झा

बहुत सुखी परिवार था हमारा …सुंदर सी बेटी,प्यारा सा बेटा,टूट कर चाहने वाला पति उनकी अच्छी सी नौकरी,भरा पूरा परिवार,नौकरी प्राइवेट ही थी पर आवास सहायक सबकी सेवा मिली हुई थी हमें…पर विधि का विधान कहां कोई जानता है पहले से। पदोन्नति के साथ दूसरे जगह स्थानांतरण… हम दोनों के पैर जमीन पर नहीं थे..शायद … Read more

सासूमां के रूप में एक प्यारी सी मां – सुषमा यादव

कभी कभी हम अपनों को समझ नहीं पाते हैं,, एक कुंठा सी पाले रहते हैं,, जरूरत पड़ने पर क्या हमारे अपने हमारे काम आयेंगे या कोई बहाना बना देंगे,, यदि हम आगे बढ़ कर उनसे मदद नहीं मांगेंगे तो हम उनकी प्रकृति और विचार को कैसे जानेंगे। ,, मदद मांगना हमारी कमजोरी नहीं, हमारे ज्ञान … Read more

अपने भी अपने न होकर गैर हो गये!!!! – अमिता कुचया

आजकल समय बहुत बदल गया है।  सब हिस्सा, धन,  संपत्ति के ही भूखे हों ऐसा लगता है कि आत्मा में प्रेम की जगह मेरा तेरा ने ही  अपनी जगह बना ली हो! विभा के पिता जी एक दुकानदार है।उनका अच्छा बिजनेस है दो बेटे हैं उनके लिए अलग-अलग दुकान करा दी है। बड़ा बेटा अलग … Read more

खँडहर का मन—कहानी -देवेंद्र कुमार

घने जंगल में एक खँडहर था। अंदर और बाहर सब तरफ झाड़-झंखाड़ से घिरा हुआ। खँडहर से कुछ दूर से एक कच्ची सड़क गुजरती थी। वह कोई मेन रोड नहीं थी, इसलिए उस सड़क से आने-जाने वाले लोग भी बहुत कम थे। अक्सर बैलगाड़ियां, घोड़गाड़ी या फिर कभी-कभी भूले भटके कोई कार गुजर जाती थी। … Read more

error: Content is protected !!