ज़रूरत – डॉ रत्ना मानिक
पूरे आंगन में लोगों की भीड़ लगी हुई थी। तिल धरने की भी जगह न थी।अंदर के कमरे में माँ दहाड़े मार-मार कर ,छाती पीट-पीट कर रोये जा रही थीं। पापा आंगन में ही एक किनारे तख़त पर विक्षिप्त की सी अवस्था में बैठे हाथों की अंगुलियों पर बुदबुदाते हुए जाने क्या गिन रहे थे।न … Read more