देहाती लोग कभी नहीं सुधरेंगे !! – स्वाती जैंन

सुनीता बोली सच गाँव के लोगो को शहर के कितने भी तौर – तरीके सीखा लो मगर वे गाँव वाली हरकतें ही करेंगे !! यह सुनकर रुक्मणि जी का दिल एक बार फिर टूट गया , कितनी उम्मीदे लेकर गाँव से आए थे रमाकांत जी और रूक्मणि जी मगर सुनीता दोनों को कुछ भी सुनाने … Read more

मुझे भी जीना है केवल सांसें नहीं लेनी हैं – डॉ बीना कुण्डलिया

रंजना ओ रंजना ऽऽ रंजना ऽ कहां हो । पति बृजेश ने जैसे ही आवाज लगाई, पति की चिल्लाती हुई आवाज सुनकर रंजना जो रसोईघर में नाश्ते, उनके ऑफिस के लिए लंच की तैयारी कर रही दौड़ती हुई आई बोली क्या हुआ ? आप इतने गुस्से में क्यों चिल्ला रहे हैं ? पति बृजेश तो … Read more

लक्ष्मी पूजन क्यों – संध्या त्रिपाठी

       बेटा पीहू , तू फटाफट रंगोली वगैरह बनाकर घर को सजा ले मैं पूजा की तैयारी करती हूं …और प्रियांश तू भी दीदी का साथ देना..! बाप रे ये दीपावली के दिन भी ना कितना काम हो जाता है …व्यस्तता के बीच निधि ने दीया ठीक से जमा कर रखते हुए कहा ।           मम्मी , … Read more

डाक चाचा – डॉ. उर्मिला सिन्हा

डाकिया—एक शब्द नहीं, एक युग की धड़कन। हमारे जीवन के वे अभिन्न अंग थे, जिनकी उपस्थिति पारिवारिक सदस्य से भी बढ़कर थी। उनका हमारे साथ न रहना गौण था, क्योंकि वे तो उन अपनों का प्यार भरा संदेशा लाते थे, जो हमसे कोसों दूर, क्षितिज पार बसे थे। वे संदेशवाहक नहीं थे, वे तो भावनाओं … Read more

उसे समझाती भी तो क्या – रत्ना पांडे

दीपावली पर इस वर्ष मेरे घर वह दीये बेचने वाली कुम्हारन नहीं आई। वह भी क्या करती! वह तो हर वर्ष आती ही थी, किंतु विदेशी चमक-दमक की चकाचौंध ने मुझे इस तरह आकर्षित कर लिया था कि उसे देखते ही मेरा चेहरा बिगड़ जाता था और मैं दीये लेने से इनकार कर देती थी। … Read more

हत्या या आत्महत्या – परमादत्त झा 

आज अचानक रमेश के घर में कोहराम मच गया।शंभू चाचा की रोड दुर्घटना में मृत्यु हो गई। मैं भी देखने गया। दीपावली से पहले का धनतेरस ,उसकी तैयारी का सारा समान कल खरीद लाये थे।हार्ट एटैक भी एक साल पहले हुआ था मगर बायपास सर्जरी से सामान्य जीवन जी रहे थे।जो भी हो हमीदिया विद्यालय … Read more

जो मरता नहीं वो प्यार है – रवीन्द्र कान्त त्यागी

छुट्टी के अब मात्र पांच दिन बचे हैं. जब से ऑस्ट्रेलिया से लौटा हूँ, कॉलेज के ज़माने के एक भी मित्र से मुलाकात नहीं हुई. पांच साल लंगे समय के थपेड़ों ने सब को जहां तहां बखेर दिया है. हर शाम उदास सा इस रेस्टोरेंट की टेबल पर घंटों बैठकर उन बिंदास दिनों की याद … Read more

एक बहु तो बस प्यार की भुखी होती हैं !! – स्वाती जैंन

मम्मी जी आप जब तक मुझे बताएँगी नहीं हुआ क्या है आपका मुँह क्यों चढ़ा हुआ है?? मुझे नहीं समझ आएगा , आखिर एक हफ्ते से देख रही हूं अब नहीं सहन हो रहा हैं ऐसी क्या गलती हो गई है मुझसे कविता ने अपनी सास योगिता जी से कहा !! योगिता जी फिर भी … Read more

मुझे मौत चाहिए – रवीन्द्र कान्त त्यागी

आँखें खुलीं तो मेंने खुद को हस्पताल की बैड पर पाया। सारे परिजन और डौक्टर व नर्सें मुझे घेरे खड़े थे।   “मिष्टर त्यागी, कैसा महसूस कर रहे हैं।” डॉक्टर ने कहा। “क्या हुआ है मुझे। मैं यहाँ? “ऐसा होता है। अगर सर में थोड़ी भी चोट लगे तो इंसान तत्कालीन घटना को भूल जाता है। … Read more

नहले पर दहला – परमा दत्त झा

काम के न काज के दुश्मन अनाज के -यह रमिया थी जो चाचा श्वसुर अनुराग पर भड़क रही थी। अनुराग जी यानि उसके श्वसुर के छोटे भाई।रमिया के पति से मात्र चार साल बड़े। अनुराग जी पांच साल के थे तो भाई भावज के साथ हो गये।नौकर सा व्यवहार सब करते।मकान तक हथियाकर भगा दिया … Read more

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