रिश्तों का विश्वासघात – ज्योति आहुजा 

 बात कुछ वर्ष पुरानी है ।कुरुक्षेत्र का मेन बाज़ार  हर  रोज़ की तरह चहल–पहल से भरा था। दुकानों की रोशनी में गहनों की चमक आँखों को चौंधिया रही थी।  शारदा ज्वेलर्स की दुकान पर भी भीड़ थी। काउंटर के पीछे महेन्द्र जी और उनकी पत्नी शारदा जी बैठे थे। तभी अचानक एक जानी–पहचानी आवाज़ आई—“नमस्ते … Read more

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