बरसात की एक रात –    मुकुन्द लाल

#जादुई_दुनिया 

  अंधेरी रात थी। घंटे-आधघंटे के अंतराल पर हल्की बारिश हो रही थी। रह-रहकर बादल के गरजने और बिजली के चमकने का क्रम जारी था। हवाएँ तेज गति से चल रही थी। वृक्षों की डालियाँ इस तरह से हिल रही थी, मानों टूटकर गिर जाएगी। मेढ़कों की टर्र-टर्र की आवाजें वातावरण में कंपन पैदा कर रही थी।

  शहर के प्रसिद्ध डाॅक्टर अशोक अपने भवन के कक्ष में बैठे किसी गंभीर बीमारी से संबंधित टौपिक पर अध्ययन कर रहे थे। उनके परिवार के सभी लोग सो चुके थे। डॉक्टर अशोक भी किताब बंद करके सोने ही जा रहे थे कि अचानक गेट खटखटाने की आवाज हुई। इस आवाज को नज़रअंदाज करते हुए बिस्तर पर लेटे ही थे कि फिर खटखटाने की आवाज हुई। नहीं चाहते हुए भी इस ध्वनि ने उन्हें गेट की ओर जाने के लिए विवश कर दिया ठीक उसी तरह जैसे चुम्बकीय पदार्थ को चुम्बक अपनी तरफ खीच लेता है।

  उन्होंने गेट खोला तो सामने सामान्य वेश-भूषा में एक आदमी खड़ा था। उसके व्यथा युक्त चेहरे पर निरंतर आंँखों से आंँसू बह रहे थे। देखने से ऐसा मालूम पड़ता था कि रोते-रोते उसकी आंँखें सूज गई है 

  उसने हाथ जोड़कर गुहार लगाना शुरू कर दिया, ” बचा लीजिए डाॅक्टर साहब!.. मेरी पत्नी को, मेरे बेटे को, मेरे माता-पिता को, छोटे-छोटे बच्चों को… पूरे परिवार की तबीयत बहुत खराब है…”

  ” क्या हुआ है?… कोई हादसा हुआ है।”

  “अभी कहने सुनने का वक्त नहीं है… सारे लोग मर जाएंगे, इलाज नहीं हुआ तो” रोते हुए उसने कहा।

”  इतनी रात को बारिश में? “डाॅक्टर ने कहा।

 ” मैं आपके पैर पड़ता हूंँ, बचा लीजिए उनको मैं जिन्दगी भर आपका गुलाम रहूँगा, पैसे की चिंता मत कीजिए, आपको मुंँहमांगी दौलत मिल जाएगी, कितना चाहिए एक लाख, दो लाख… चार लाख। “


  डॉक्टर कुछ पल तक मौन रहा फिर उन्होंने सुबह आने के लिए कहा। यह भी कहा कि अभी बारिश हो रही है परन्तु उसने कहा कि बारिश नहीं हो रही है। डॉक्टर ने हैरत के साथ देखा कि सचमुच बारिश बंद हो गई थी। 

  आगन्तुक ने आगे कहा कि सुबह तक तो उसका पूरा परिवार ही मर जाएगा।  

  उसकी गिड़गिड़ाहट और रूदनयुक्त संवाद से

डॉक्टर अशोक का हृदय का पिघल गया। वह जाने के लिए तैयार हो गये। 

  उन्होंने आपातकालीन इलाज व उपचार से संबंधित सामग्रियों और उपकरणों से भरा बैग लेकर आगन्तुक के साथ चल पड़े। नौकर भी रात्रि में अपना घर चला गया था।उनके दिमाग पर उसके रूदन-क्रंदन का ऐसा असर पड़ा कि जाते वक्त किसी को जगाया भी नहीं। 

  बाहर चतुर्दिक अंधेरा था। बिजली की लाइन भी कटी हुई थी। नमीयुक्त बहती हवा की सांय-सांय कीआवाज दिल की धड़कन को बढ़ा रही थी। 

  डॉक्टर बुदबुदाया, ” अंधेरा भी है और गाड़ी भी नहीं है…” 

  उसने अंधेरे में ही हाथ उठाया उसके हाथ में सहसा टाॅर्च आ गया। उसने टाॅर्च जलाया रास्ता रोशनी से जगमगाने लगा। उसने तर्जनी अंगुली से इशारा करते हुए कहा, ” देखिए कार खड़ी है, कोई तकलीफ वहांँ तक पहुँचने में नहीं होगी।” 

  अब डाॅक्टर को उसके साथ जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था। 

  कार में वह आदमी आगे की सीट पर बैठ गया। डाक्टर सहमते हुए पीछे की सीट पर बैग सहित बैठ गए। 

  कार हवा की रफ्तार से दौड़ने लगी। डॉक्टर साहब को पता ही नहीं चल रहा था कि वे कहांँ जा रहे हैं। 

  उन्होंने पूछा, ” कहांँ ले जा रहे हो भाई? कहांँ पर घर है?” 

  ” वो रहा मकान” उंगली के इशारे से कहा। 

  थोड़ी दूरी पर स्थित बाग में सचमुच एक मकान दिखने लगा। 


  उस मकान के पास कार से उतरकर डाॅक्टर अपना बैग लिये उस आदमी के साथ मकान के अंदर जैसे ही दाखिल हुए, दो-चार चमगादड़ चीखते हुए आसमान की ओर उड़ गए। खंडहरनुमा मकान की हालत बता रही थी कि मकान सौ-पचास वर्ष पुराना है। 

  ” मरीज कहांँ है?” डाॅक्टर ने पूछा। 

  ” बगल के हाॅल में मेरा पूरा परिवार है डाॅक्टर साहब बचा लीजिए उन लोगों को अपने इलाज से, नहीं इलाज हुआ तो वे लोग सचमुच मर जाएंगे।

” आइये!” कहता हुआ उसने हाॅल का दरवाजा खोला,’ कर्र-कर्र ‘ की आवाज के साथ हाॅल का बड़ा सा दरवाजा खुला। 

  उसने जमीन पर लेटे हुए दर्जन भर मरीज को दिखाया जो कतार में पड़े हुए थे। उनमें स्त्री, पुरुष, बूढ़े, बच्चे और जवान सभी थे। 

  डॉक्टर अशोक ने आगे बढ़ कर मरीजों को देखना शुरू किया तो उनका दिल आश्चर्यमिश्रित भय से तेजी से धड़कने लगा। 

  डॉक्टर ने देखा कि किसी का हाथ शरीर से अलग है तो किसी का पैर, किसी का सिर धड़ से अलग है तो किसी का शरीर दो हिस्सों में बंटा हुआ है। किसी की भी देह के सभी अंग सही-सलामत नहीं हैं। 

  अशोक बाबू सिर से पैर तक यह दृश्य देखकर भय से कांप उठे। 

  उस आदमी के चेहरे को देखते ही उनके पैर के नीचे की जमीन खिसक गई। उनका शरीर डर से कांपने लगा। 

  उस आदमी की आंँखें लाल-लाल अंगारे की तरह दहक रही थी। उसका चेहरा कुरूप, विकृत  और विचित्र किस्म का दिखने लगा था। 

  वह लगातार मशीनी गति से कहने लगा, “इलाज करो, इलाज करो, जल्दी करो….” 


  “आला(स्टेथेस्कोप) छूट गया है” डाॅक्टर ने कहा। 

  ” यह लो” पलक झपकते ही उसके हाथ में स्टेथेस्कोप आ गया था। 

  डॉक्टर की हालत खराब थी। रस्मी तौर पर एक दो का मुआयना किया स्टेथेस्कोप से। जमीन पर पड़े हुए लोग मरीज नहीं मुर्दे थे। 

  वह पसीने-पसीने हो गया। उसने अपना कोट उतार कर एक पुराने मेज पर रखने के बहाने आगे बढ़ा। 

  उसी क्रम में अशोक वहांँ से भाग खड़े हुए।

परिचित लोकेशन की पहचान कर बेतहाशा दौड़ पड़े।

   अपने घर के पास पहुंँचकर गेट खोला, फिर घर में जैसे ही दाखिल हुए, उनके सामने फिर वही आदमी प्रकट हो गया। 

” डाॅक्टर साहब!… आपका कोट और आला वहीं छूट गया था” कहते हुए उसने उनके हाथों में पकड़ा दिया और वह छपित(गायब) हो गया। 

  डॉक्टर बेहोश होकर वहीं पर गिर पड़ा। 

  डॉक्टर अशोक का इलाज व  उपचार अनुभवी डाॅक्टरों और तांत्रिकों द्वारा प्रारम्भ कर दिया गया था 

  स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

              मुकुन्द लाल 

             हजारीबाग (झारखंड) 

              06-07-2022

3 thoughts on “ बरसात की एक रात –    मुकुन्द लाल”

  1. Eisi mangadhant andhvishwas samaaj me mat failaiye .Hmare desh ke log ham sab behan pichhde huye kahlaate hai ,kyonki aap jaise chand kalam ke jadugar samaj me vyapt amdhvishwas ko dur karne logo ko jaagruk aur vigyanmanash maansikta ki taraf le jaane ki bjaay ,aloukikta, andhviswas ki taraf dhkelte hai .Laanat vijta hu aapki jaisi sonch par

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