बंद खिड़कियां – लतिका श्रीवास्तव

खूबसूरत शहर शानदार सड़कें सड़कों के किनारे विशाल अट्टालिकाएं उन्हीं में दड़बेनुमा फ्लैट्स में रहते परिवार ।

व्यस्तता की आंधी में गोते लगाते धनोपार्जन के चक्रवात में गिरते संभलते जीवन को जीने के यत्न करते परिवार।

ऐसे ही एक मोहल्ले में रहने आई थी मधु ।

अकेले ही रह रही थी वह अपनी मंजिल के फ्लैट में।

ऐसा नहीं था कि आस पास लोग नहीं रहते थे लेकिन अकेला कोई नहीं रहता था सब अपने परिवार के साथ रहते थे और अपने परिवार में ही मस्त रहते थे।अगल बगल से किसी को कोई मतलब नहीं था।

ऐसा नहीं था कि मधु ने किसी से घुलने मिलने की कोशिश नहीं की थी लेकिन इस कोशिश में मिलने वाली प्रतिक्रियाओं ने उसकी कोशिशों को ही धराशाई कर दिया था।आने वाले दिन ही शाम को वह नीचे वाले फ्लैट में मेड का पता लगाने गई थी।

नमस्ते आंटी मैं मधु ऊपर वाले फ्लैट में रहती हूं कहते ही स्नेहा आंटी ने उसे सिर से पैर तक देखा फिर अंदर बुलाया।

अच्छा तुम आई हो ऊपर वाले फ्लैट में।क्या करते है तुम्हारे पापा यहां ट्रांसफर हुआ है क्या।

मेरे पापा तो पिछले माह रिटायर हो चुके हैं।यहां मेरी जॉब लगी है पापा की नहीं मधु ने मुस्कुरा कर कहा।

तुम्हारी जॉब लगी है मतलब क्या तुम यहां अकेली रहोगी दिक्कत नहीहोगी  आंटी का लहजा मधु को अजीब अनुभूति दे गया।

जी आंटी मैं यहां अकेली ही रहूंगी जॉब मेरी लगी है।दिक्कत दूर करने के लिए ही तो आपके पास आई हूं।आपकी मेड मेरे घर में भी काम कर देगी मधु ने स्वीकृति की ही अपेक्षा से उनकी ओर देखा था।

मेरी मेड बहुत व्यस्त है वह नहीं कर पाएगी।तुम तो अकेली रहोगी फिर ऐसा कौन सा काम का पहाड़ रहेगा जिसके लिएमेड रखने की जरूरत है आंटी की बात उसे चुभती सी लगी।

और सुनो मधु मेरे दो बच्चे हैं उनके काम घर के काम सबमें मै बहुत व्यस्त रहती हूं तुम मेरे से किसी सहायता की उम्मीद मत रखना अकेले रहना है तो अकेले रहना भी सीखो कहती स्नेहा आंटी उसे बहुत दकियानूसी महिला लगीं थीं।

पारंपरिक सोच से ग्रस्त स्नेहा आंटी को महिला सशक्ति करण पर लेक्चर देने से कोई फायदा ना था।

वह बिनाकोई जवाब दिए वापिस आ गई।

सबसे नीचे वाले फ्लैट में एक अधेड़ दंपति रहते थे।

डोर बेल बजाते ही अंकल ने दरवाजा खोला।

जी कहिए उसे देखते ही चौड़ी मुस्कान के साथ चहक उठे।

जी नमस्ते मै मधु हूं ऊपर वाले फ्लोर पर रहने आई हु

अच्छा वाह तो वो आप ही हैं।सुबह से आपकी चर्चा है चारों तरफ कि एक लड़की अकेले रहने आई है ।बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर खुशी से वह कह ही रहे थे कि भीतर से तेज आवाज आई किससे मिल कर खुशी मना रहे हो हमसे भी मिल करकभी खुशी हो लिया करो कहती एक महिला तेजी से दरवाजे पर झपटती हुई आ गई और अंकल को धक्का देकर पीछे कर दिया।

हां कहो क्या काम है बेहद बेरुखी से उन्होंने पूछा था तो मधु का तो मन ही बुझ गया।फिर भी हिम्मत करके मेड के बारे में पूछा तो टका सा जवाब सुनने मिल गया कि सुना है अकेली रहती हो क्या अपने काम खुद नहीं कर सकती!!

उल्टे पांव वापिस अपने फ्लैट में आ गई थी मधु।

फ्लैट बहुत हवादार था बड़ी बड़ी खिड़कियां थीं।मधु ने आते ही सारी खिड़कियां खोल दीं। चंद सेकंड के बाद ही दो लड़कों का चेहरा खिड़की पर था।

सुनिए ना आप अकेली रहती हैं हम भी ऊपर अकेले रहते हैं बढ़िया कम्पनी हो गई अब तो हमारी।आते हैं शाम को आपके साथ कंपनी जमाएंगे हंसतेहुए वे लड़के मधु को बेहद घटिया मानसिकता के लगे थे।

झटके से बढ़ के उसने सारी खिड़कियां बंद कर दीं थीं।

उस दिन उसके कमरे की ही नहीं बल्कि मन की भी जैसे सारी खिड़कियां बंद हो गईं थीं।

इन सबके बाद मधु ने वहां कभी किसी से मिलने की कोशिश नहीं की।

ऑफिस की ही एक कलीग ने उसके लिए मेड की व्यवस्था कर दी थी।

सुबह ऑफिस जाना और रात तक वापिस आने के क्रम में ही वह व्यस्त होती गई।

ऑफिस आते जाते मोहल्ले के लोगों की बेरोकटोक कनफ़ूसियाँ फब्तियां उसकी दिनचर्या का अंग थीं जिन्हें चाहकर भी अनसुना नहीं कर पाती थी।

अकेली लड़की रहती है इसके मां बाप को कोई फिक्र नहीं!!

इस तरह अकेले लड़कियों का रहना आना जाना ही अपराधी और अपराध को बढ़ावा देता है

अरे क्या जरूरत है घर से दूर रह कर नौकरी करने की

कैरियर वैरियर सब बहानेबाजियां हैं असल में तो घूमबाजी करनी होती है इन लड़कियों की

मधु ने गांठ बांध ली थी मोहल्ले में किसी से ना ही मिलना है ना किसी से कोई मतलब रखना है।अपने से मतलब रखो बस।अब तो किसी के घर से कोई निमंत्रण आने पर भी वह नहीं जाती थी।कोई कार्यक्रम होने पर भी अपने फ्लैट में बंद रहती थी।

अकेली रहती है ना सामाजिकता व्यवहारकुशलता क्या जाने !!

कमाई करती है ना उसी का घमंड है…!!

कुछ ना कुछ इस तरह की बातें टिप्पणियां मधु को सभी से और दूर कर देते थे।

ऑफिस के कार्य के बाद वह देर रात तक सेल्फ स्टडी करती रहती थी।

….अरे इसके घर की लाइट तो देर रात तक जलती रहती हैं जाने इतनी रात अकेली क्या करती रहती है…सुन कर तो वह आपे से बाहर ही हो गई थी ।उसी दिन मोटे मोटे पर्दे लाकर उसने सारी बंद खिड़कियों पर लटका दिए थे।

बीच में कंपनी ने तीन दिनों का ऑफिस कर दिया।तब भी वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती ना ही खिड़कियां खोल कर देखने की चेष्टा करती।कभी कभी उसे अकेलापन कचोटता था।लेकिन किससे कहे इस शहर में सुनने वाले कान नहीं थे।

एक दिन जब वह वर्क फ्राम होम कर रही थी अचानक बारिश होने लगी लाइट्स चली गईं । मधु का मन किया खिड़की खोल कर ताजी हवा और रोशनी का आनंद लिया जाए।लेकिन डर के मारे वह ऐसा नहीं कर पाई बल्कि चाय का कप लेकर   दरवाजा खोल कर बालकनी में जरूर खड़ी हो गई।

नीचे देखा तो दो बच्चे मिनी और टीपू पानी में भीगते खड़े थे।मधु से नहीं रहा गया उसने ऊपर से आवाज लगाई “इतनी बारिश हो रही है क्यों भीग रहे हो?”

बच्चों ने आवाज सुन ऊपर देखा वहां मधु को देख बताया घर पर ताला लगा है मम्मी पता नहीं कहां गईं हैं हम लोग स्कूल वैन से आ गए अब कहां जाएं मम्मी का इंतजार कर रहे हैं यहीं खड़े होकर।

मासूम आवाज की परेशानी मधु को चिंतित कर गई।वह तुरंत नीचे आई और दोनों को बहुत प्रेम से बुला कर अपने घर ले आई।

जब तक मम्मी नहीं आ जाती यहीं बैठो बारी बारी से नीचे देख कर पता करते रहेंगे मम्मी आईं या नहीं समझा कर उनके सिर के गीले बाल टॉवेल से पोछ दिए।

तुम लोगों को भूख लगी होगी सहसा मधु को अपने स्कूल के दिन याद आ गए ।

बच्चे चुप थे।समझ नहीं पा रहे थे मधु से बात करें या ना करें।संकोच में थे।

नहीं नहीं दीदी हमे भूख नहीं है दोनों ने समवेत स्वर में कहा।

अच्छा कोई बात नहीं पर मुझे तो भूख है।मै तो मैगी बनाने जा रही हूं मधु ने दोनों के संकोच को भांपते हुए उनके साथ खुलने का यत्न किया।

दीदी आप लंच में मैगी खाती हैं छोटी मिनी ने आँखें चौड़ी करके पूछा।

हां क्योंकि  झटपट बन जाती है हंसकर मधु ने जवाब दिया।

और चटपटी भी लगती है भाई टीपू ने भी उत्साह से कहा।

और बिना भूख के भी खाई जा सकती है …तो फिर आ जाओ साथ में खाते हैं कहती मधु तीन बाउल में मैगी लेकर आ गई।

दोनों भाई बहनों ने एक दूसरे को देखा फिर मैगी पर झपट पड़े ।

पूरी मैगी खत्म होते उनकी मम्मी भी आती नजर आ गईं।

मम्मी हम लोग यहां हैं ऊपर से मिनी की आवाज सुन उसकी मम्मी तेजी से दौड़ती ऊपर आ गईं।

मेरे बच्चों तुम्हीं लोगो की की चिंता खाए जा रही थी मुझे।बारिश भी तेज हो रही थी।तुम लोग ठीक हो ना लिपटा लिया दोनों को।

हां मम्मी एकदम ठीक है।और मैगी भी खा लिया दीदी ने बना कर खिलाया चहक कर टीपू ने कहा तो मम्मी स्नेहा मधु की तरफ देखने लगीं।

माफ करना मधु मेरी उस दिन की बातों का बुरा लगा होगा तुम्हें स्नेहा के स्वर में पश्चाताप था।

ये छोड़िए पहले बताइए आप कुछ परेशान लग रही हैं क्या बात है मधु ने पूछा।

अरे इन बच्चों के पापा की तबियत अचानक बिगड़ गई तो उन्हें लेकर हॉस्पिटल जाना पड़ा वहीं से आ रही हूं।बच्चों की चिंता लगी थी स्नेहा ने चिंता से कहा।

ओह ये तो चिंता की बात है।लेकिन आप बुरा ना माने तो तो आपकी थोड़ी सी चिंता मै  कम कर सकती हूं।इन बच्चों को मै सम्भाल लूंगी आप घर से इनके कपड़े और कुछ समान आदि यहीं भिजवा दीजिए ये मेरे घर में मेरे साथ रह लेंगे।मै इनकी पढ़ाई होमवर्क भी करवा दूंगी और सुबह स्कूल वैन में बिठा भी दूंगी।मेरा अभी वर्क फ्राम होम है तो घर पर ही रहूंगी… अगर आपको उचित लगे मधु ने उनकी तरफ देखते हुए मद्धिम स्वर में कहा तो स्नेहा उसे देखती ही रह गई।

मधु मै तुम्हें कैसे बताऊं तुमने इस समय मेरी कितनी बड़ी चिंता दूर कर दी है।डॉक्टर ने तीन दिनों तक इन्हें हॉस्पिटल में भर्ती रहने के लिए कहा है मेरा वहां रहना बहुत जरूरी है लेकिन बच्चों की चिंता के मारे समझ नहीं पा रही थी क्या करूं स्नेहा का गला भर आया था।

आंटी आप बिल्कुल चिंता मत करिए बच्चों की। मै इनका ख्याल रखूंगी मधु ने आगे बढ़ उन्हें दिलासा दी।

दोनों बच्चे तुरंत मम्मी के साथ नीचे अपने घर गए अपना सभी सामान और घर की चाभी लेकर आ गए।

तीन दिनों तक मधु ने उनका बहुत ध्यान रखा ऑफिस का कार्य भी करती रही।मोहल्ले में सभी को इस बारे में पता चला तो मोहल्ले के कई लोग मधु के घर आए ।देखा तो मधु लैपटॉप पर टीपू का प्रोजेक्ट करवा रही थी।

मधु दीदी से सब बन जाता है।इन्होंने सारे सब्जेक्ट्स का होम वर्क करवा दिया और लैपटॉप पर अपनी पढ़ाई भी करती हैं टीपू ने बड़े उत्साह से सबको बताया तो कुछ लोगों की समझ में आया कि इतनी देर रात तक मधु लाइट जल कर पढ़ाई लिखाई करती रहती थी।

अब लोगों को स्नेहा की मुश्किल समझ में आई और आगे बढ़ कर उसकी सहायता ना करने की अपराध भावना भी जागृत होने लगी।ये लड़की अकेली रह कर भी दोनों बच्चों की देख भाल स्कूल पढ़ाई खाना और अपनी नौकरी सब कुछ कर रही है और हम सब परिवार वाले होकर भी दूसरे परिवार की मुश्किल नहीं समझ पाए ।सहायता की पहल नहीं कर पाए।मतलबी यह लड़की नहीं बल्कि हम लोग हैं।

अब वे बच्चों को अपने  घर ले जाने का आग्रह करने लगे लेकिन बच्चे तो मधु दीदी को छोड़कर जाने को तैयार ही नहीं हुए।

तीसरे दिन रात को स्नेहा जी अपने स्वस्थ पति को हॉस्पिटल से लेकर घर वापिस आ गईं।सरा मोहल्ला उनके घर इकठ्ठा हुआ।मधु भी बच्चों को लेकर उस दिन पहली बार किसी के घर गई थी।

आज हर जुबान मधु की तारीफ कर रही थी।जो लोग कल तक उसे असामाजिक घमंडी मतलबी कहते थे आज सहृदय  उदार सहयोगी और सामाजिक कह रहे थे।संस्कारवान कह रहे थे।

सबके दिमाग की खिड़कियां खुल गईं थीं।

सबकी बातें सुनती मधु धीरे से अपने फ्लैट में वापिस आ गई थी।उसके मन को आज बहुत खुशी महसूस हो रही थी।लोगों की बातें सुनकर नहीं बच्चों का ख्याल करके किसी की सहायता करके एक अलग सुख और संतोष की अनुभूति ने आज उसके मन को सुकून से भर दिया था ..बंद सुप्त भावों को जागृत कर दिया था।उसने धीरे धीरे फ्लैट की सारी बंद खिड़कियां खोल दी थीं …

कुछ तो लोग कहेंगे#

लतिका श्रीवास्तव 

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