बिस्तर पर औंधे मुंह लेटी नीला के कानों में अभी भी पड़ोसन मालती के शब्द गूंज रहे थे।अभी कुछ देर पहले ही वह उसकी छोटी बेटी दिया के साथ बात कर रही थी कि मालती ने आकर दिया को डांट कर कहा,” तू इस बाज़ारू औरत के साथ क्या कर रही है”
और उसे घसीटते हुए घर वापिस ले गई।दिया मां को सवाल पूछती रही पर मालती उसे घसीटते हुए घर ले गई और साथ ही अपनी आंखों से नीला को उनमें में उतर आई उसके लिए नफरत भी जता गई।
नीला के दिलों दिमाग पर फिर वही शब्द हावी हो गए ‘बाज़ारू औरत’.. ये वही शब्द थे जिन्होंने नीला की ज़िंदगी को तहस-नहस कर दिया था।इन दो शब्दों की वजह से उसे अपना वजूद समेटने में कितनी मुश्किलों से जूझना पड़ा था।जीवन के हर मोड़ पर ये शब्द जैसे उसे निगलने के लिए
अपना मुंह खोले बैठे रहते और वह हर बार इन से बचते हुए खुद को समेटे हुए बच जाती।आज उस बच्ची के सामने उसके प्रति इस्तेमाल हुए ये शब्द उसे तीर की भांति चीर गए थे और वह अपने घर में अपने कमरे के बिस्तर पर एक कटे वृक्ष की भांति गिर पड़ी थी।
‘बाज़ारू औरत’ इन शब्दों से सबसे पहले उसी व्यक्ति ने उसे संबोधित किया था जिसकी वह पत्नी थी और उसे उस पर अटूट विश्वास था।उसी व्यक्ति ने उसके विश्वास को चकनाचूर करते हुए उसे यह नाम दिया था।
सुबोध, उसका पति जब उसकी ज़िंदगी में आया तो उसे लगा था कि उसके जीवन में अब रंग भर जाएंगे और वह सोचती थी कि अब उसके पास एक ऐसा रिश्ता होगा जिसमें अपनापन होगा और अपने जीवनसाथी से उसे भरपूर सहयोग मिलेगा।
माता-पिता के गुज़र जाने के बाद मामा मामी के रहमों करमो पर पली नीला सुबोध के साथ अपने नए जीवन के रंगीन सपनों में खो जाती और उसके विवाह के बाद उसके ये सपने कुछ हद तक पूरे हुए भी।सुबोध उसका खूब ख्याल रखताा…दोनों एक साथ आने वाले भविष्य के सुंदर सपने देखते ।
नीला को लगता कि उसके जीवन की अंधेरी रात अब खत्म हो चली थी और आगे का जीवन सुबह के प्रकाश की तरह बाहें फैलाए उसके स्वागत के लिए तैयार बैठा था..पर उसकी यह सोच मात्र भ्रम साबित हुई थी।इतना तो वह शादी के कुछ महीनों में जान पाई थी
कि उसका किसी गैर मर्द के साथ बात करना सुबोध को पसंद नहीं आता था पर यह उसे सुबोध का अपने प्रति प्यार लगता।
उसे लगता जैसे सुबोध उसे किसी दूसरे के साथ बांटना ना चाहता हो..पर उसकी यही सोच उसकी गलतफहमी साबित हुई जब वह पहली बार पड़ोस में रहने वाले लड़के मनोज को उसके ग्रेजुएट होने पर उसे बधाई दे उससे बातें करने लगी थी
और सुबोध ने दफ्तर से आते हुए उसे देख लिया था।उस रात उसने घर में बहुत हंगामा किया था… इतना कि पड़ोसियों को भी पता चल गया।नीला उसे अपनी सफाई देती रही लेकिन सुबोध ने उसकी बात ना सुनने की जैसे कसम खा ली थी।
एक पल में उसने उसके नारीत्व को झिंझोड़ कर रख दिया था। फिर तो यह सिलसिला लगातार चलता रहा। सुबोध को जैसे सनक लग गई थी।अब तो नीला दूध वाले और सब्ज़ी वाले से भी बात करने से घबराती थी।हमेशा उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी और घबराहट रहती।
एक दिन तो हद हो गई जब पड़ोस में रहने वाले बच्चे को चोट लगने पर नीला उसे सामने वाले डॉक्टर साहब के घर ले गई थी। बच्चे के माता-पिता घर नहीं थे और नीला से बच्चे की चोट बर्दाश्त नहीं हुई थी पर वह उसके परिणाम से अनजान थी।
सुबोध ने उसे डॉक्टर साहब के घर से निकलते हुए देखा और उसकी कोई दलील सुनने से इनकार कर दिया और उसे घसीटते हुए घर ले गया और अपना हाथ उस पर उठाते हुए बोला,’ बाज़ारू औरत’… बस यही दो शब्द थी
जिसने उसके बर्दाश्त करने की शक्ति को निचोड़ दिया था। कितनी ही देर तक वह गुस्से और अपमान से कांप रही थी ..पर सुबोध उसको तो जैसे कोई असर ही नहीं हुआ था उससे मारपीट कर और अपने संकीर्ण मानसिकता उस पर थोप कर और वह दूसरे कमरे में आराम से टीवी देख रहा था।
उस रात उनका रिश्ता टूट कर बिखर गया था।अब कुछ भी नहीं तो बचा था उस रिश्ते में।नीला को लगा जो व्यक्ति अपनी पत्नी पर भी विश्वास नहीं कर सकता उसके साथ वह आगे का जीवन कैसे काटेगी।यह सब बातें उसने उसी शहर में रहने वाली अपनी सहेली शोभा को बताई
तो उसने उसे वह घर छोड़ ज़िंदगी को अपने दम पर जीने की सलाह दी।”तू कितनी देर तक उस आदमी की मार खाती रहेगी और अब तो उसने सारी हदें पार कर दी हैं…तू पढ़ी लिखी है…तेरे मामा ने एक काम तो अच्छा
किया है तुझे पूरा पढ़ने की आज़ादी देकर…तू अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं.. तो आगे बढ़” और उसकी सलाह मानते हुए नीला ने सुबोध को छोड़ने का फैसला कर लिया था।
वह उसे छोड़ थोड़ी देर शोभा के घर रही थी।शोभा का एक बच्चा था और उसका पति दूसरे शहर में नौकरी करता था।वहीं रहकर उसने अपने लिए नौकरी ढूंढी और फिर एक कमरे का घर किराए पर लेकर उसमें चली गई
थी।मामा मामी को पता चला तो उन्हें भी बहुत दुख हुआ।उन्होंने सुबोध से बात करनी चाही पर नीला ने मना कर दियाा।
मामा ने नीला को अपने घर में रहने के लिए भी कहा पर नीला नहीं मानी।इधर सुबोध से यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ कि उसकी पत्नी उसे छोड़ आराम से नौकरी कर अपना जीवन जी रही है.. इसलिए शायद वह सभी को उसके बारे में झूठी अफवाह बता रहा होगा
और तभी पड़ोस की मालती ने आज फिर से वह शब्द उसके सामने बोले थे।
नीला को एक पल को लगा कि जीवन के अंधियारे फिर से उसे खुद में समेटने आ गए हैं पर खिड़की से आती रोशनी ने उसमें एक नई उम्मीद बांधी और उसने मन ही मन फैसला लिया कि वह सुबोध की ऐसी ओछी हरकतों पर ध्यान नहीं देगी
और ना ही पड़ोस में रहने वाली मालती जैसे लोगों पर जो कि कान के कच्चे हों।
नीला उठी और हाथ मुंह धो कर अपने लिए चाय बना लाई। उसे यकीन था कि वह जीवन में अपनी नई पहचान बनाने में कामयाब होगी और एक नई शुरूआत ज़रूर।कर पाएगी और यही सोचते हुए वह शोभा को फोन मिलाने लगी।
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गीतू महाजन।