बहुरानी रोज रोज पैर ना छुआ करो! – मधू वशिष्ठ

कई बार तो ऐसा लगता था मानो उठते ही कोई दौरा पड़ गया या चक्कर आ गए। जी हां घर में नियम था, सवेरे शाम घर के हर बड़े के पैर छूना। नहीं-नहीं, पैर छूने में कोई परेशानी नहीं थी समस्या तब आती थी जब यह फैसला करना कठिन हो जाता था शाम के पैर कब छूने हैं ?

क्योंकि काम तो सुरसा के मुंह के जैसे बढ़ता ही रहता था। अब बड़े बुजुर्ग खाना खाकर कहीं सोने ना चले जाए इस बात का भी ख्याल रखना होता था। कई बार तो रोटी बनाते बनाते बीच में उठने पर रोटी जल चुकी होती थी लेकिन पैर छूकर आशीर्वाद लेना तो जरूरी ही था , वरना ज्यादा डर यह था कि कहीं दूसरे दिन इसी कारण माफी मांगने की लाइन में ना लगना पड़े।

घर में बहुओं के लिए तो कोई छूट नहीं थी, गर्मियों में भी उठते ही बहुत लंबा घूंघट करके टक्कर खाना जरूरी था, भले ही उस घर के सारे मर्द सुबह सवेरे कच्छा धारी गैंग के सदस्य बनकर आराम से घूमते हुए दातुन कर रहे हों।घर में आई नई बहू गायत्री अपने आप को घर की और बहुओं के जैसे आदर्श बहू में ढालने में पूर्ण रूप से लगी हुई थी।

सुबह सवेरे दातुन करते हुए कच्छाधारी जेठ जी के चरण स्पर्श करना भी उसकी दिनचर्या में शामिल हो उठा था। अब क्योंकि जेठानियां गायत्री को पैर छूने से तो मना नहीं कर सकती थी लेकिन सारे जेठजियों को सुबह सवेरे ही मैन बनने पर रोक लगा दी गई। अब वह भी सवेरे कमरे से निकलते हुए अपने खूबसूरत से कुर्ते पजामे पहनकर ही निकलते थे ताकि नई बहू गायत्री को आशीर्वाद देने के बाद उनके जीवन में भी पत्नी की कृपा बरसती रहे।

जी हां गायत्री अच्छी बहू थी और वह अपना अच्छी बहु का तमगा कभी खोना भी नहीं चाहती इसलिए रोज सुबह शाम गायत्री सबके पैर छूकर आशीर्वाद जरूर लेती थी। उस दिन घर में जेठानी जी के बेटे का जन्मदिन होने के कारण मेहमान थोड़े ज्यादा आ गए थे। घर में काम यूं ही कम नहीं होता था और उस दिन और भी ज्यादा हो गया।

सुबह से कब रात हुई पता ही ना चला। सारा काम पूरा करके जब वह अपने कमरे में सोने को गई तो काफी रात हो चुकी थी। यूं भी कई बार थकान के कारण भी नींद नहीं आती है। सोते-सोते गायत्री अपने आप को ही पूरे दिन का लेखा जोखा दे रही थी। शायद यही कारण था कि और बहुओं के जैसे उसे हर दिन किसी ना किसी से कोई भी गलती की माफी कम ही मांगनी पड़ती थी।

पूरे दिन की दिनचर्या में उसने पाया सुबह से सारे कामों में ऐसा कोई काम नहीं है जो कि करना भूल गई हो या कि किसी काम में उससे अनियमितता हुई हो।———–उफ्फ, तभी उसे याद आया कि —-क्योंकि वह शाम को अपने घर के काम में व्यस्त थी तो सासु जी और ससुर जी तो सोने के लिए जा चुके थे। जाते हुए जेठानियों के पैर तो छू लिए थे लेकिन सासु मां का आशीर्वाद लेना तो रह ही गया । कहीं ऐसा ना हो कि सुबह सवेरे उठते ही इस बात का उलाहना सुनना पड़े कि बहु रानी तुमने कल शाम की नमस्कार नहीं की।

बस फिर क्या था, आव देखा ना ताव, गायत्री की नजर घड़ी पर भी नहीं पड़ी जिसमें कि रात का 1:00 बजने को था , वह अपने बिस्तर से उठी और सीधा अपनी सासु मां के कमरे में भड़ाक से दरवाजा खोलती हुई लाइट जला कर उनके पैर छूने को तत्पर। इससे पहले कि वह पैर छुए ,सास और ससुर जी घबराकर उठते हुए, दूर से ही ,खुश रहो ,खुश रहो का आशीर्वाद देते हुए उससे जाने की प्रार्थना करने लगे। पाठक गण खुश रहो का आशीर्वाद देते हुए उनके मन अंदाजा आप स्वयं ही लगाएं।

दूसरे दिन सुबह उठने के बाद गायत्री को देखकर सासु मां ने एक नए नियम का ऐलान किया कि बहुएं सिर्फ सवेरे ही पैर छूआ करेंगी। इतने में ही दोनों जेठ जी भी बोले माताजी सवेरे भी रहने ही दो ना, होली दिवाली कोई खास त्यौहार पर ही पैर छू लेंगी। क्योंकि ससुर जी ने भी उनकी बात का समर्थन किया था तो अंततः यही फैसला हुआ आपस में एक दूसरे को केवल नमस्कार ही कर लिया करो ।पैर छूने की रोज-रोज कोई जरूरत नहीं है

मधू वशिष्ठ

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