आज फिर माँ ने दामिनी को बाहर जाने से रोका तो उसने कहा, ” क्यों नहीं जाऊँगी, जो होना था,वो तो हो चुका।” कहकर वो काम के लिए निकल गई।
दामिनी एक बुनाई केन्द्र में सुपरवाजर के पोस्ट पर काम करती थी।घर में माँ और एक छोटा भाई थें।कुछ साल पहले पिता काम करने की बात कहकर घर से जो निकले तो फिर न लौटे।तब दामिनी बीए के फाइनल ईयर में थी।पिता के न लौटने पर उसने इम्तिहान नहीं दिया और घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने के लिए वह एक हस्तकला केन्द्र में काम करने लगी।
पिता के न होने से उसे देखकर मुहल्ले के सभी मनचलों की लार टपकती थी। धर्मेश उन्हीं में से एक था जो कभी उस पर फब्तियाँ कसता तो कभी उसका रास्ता रोक देता था। एक दिन जब वह हस्तकरघा केन्द्र से घर वापस लौट रही थी तब रास्ते में पहले से घात लगाये बैठा धर्मेश उस पर झपट पड़ा।उसने चिल्लाना चाहा तो धर्मेश ने उसी के दुपट्टे से उसका मुँह बंद कर दिया।फिर भी वह उसके चंगुल से भागने में सफल हो गई थी कि तभी एक पत्थर से टकराकर वह गिर पड़ी और फिर धर्मेश ने उसे….।
फटे हुए कपड़ों से अपने शरीर को ढ़कने का प्रयास करती हुई किसी तरह वह घर पहुँची और माँ से लिपट कर फूट-फूटकर रोने लगी।माँ ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानी और इंसाफ़ की उम्मीद लिए थाने पहुँच गई।वहाँ उसकी फरियाद सुनने वालों ने उसे ही चरित्रहीन कह दिया।सबूत-गवाह की माँग करके उसे परेशान करने लगे।दो-तीन दिनों तक थाने के चक्कर लगाने के बाद उसने चुप्पी साध लेना ही उचित समझा और वापस अपनी दिनचर्या में वह लौट आई।
पहले उसे मनचलों की फब्तियाँ सुननी पड़ती थी लेकिन अब…., अब तो उसे मुहल्ले की औरतों की हिकारत भरी नज़रों का भी सामना करना पड़ रहा था।उसे देखकर कोई आँखें फेर लेती तो कोई काना-फूसी करने लगती।आज भी जब वह वहाँ से गुज़र रही थी तो वहाँ खड़ी औरतों में से एक ने कह दिया, ” ये देखो ,आ गई महारानी अपनी इज़्जत लुटवाकर।कोई लाज़-शर्म है ही नहीं इसे।इसका तो हमें बहिष्कार कर देना चाहिए।” दूर खड़े लड़कों ने भी उसे देखकर हा-हा करके हँसना शुरु कर दिया।
यह सब सुनकर वह रुक गई और उन औरतों के पास जाकर तीखे स्वर में बोली, ” शर्म तो उसे आनी चाहिए जिसने गलती की है।न तो मैं आपके घर में घुसूंगी और न ही मेरे छूने से आपलोग अपवित्र होंगे।हां, जिसने मुझे लूटा है वो तो आपके घर में घुसेगा, आपकी बहू- बेटियों को भी यहाँ-वहाँ और न जाने कहाँ-कहाँ टच करेगा।अब आप तय कीजिए कि किसका बहिष्कार करना है।मेरा या ….।” कहते हुए उसने हाथ से धर्मेश की ओर इशारा किया और आगे निकल गई।औरतों ने अपने-अपने पैरों से चप्पलें निकालनी शुरु की, यह देखकर धर्मेश ने वहाँ से खिसकना चाहा तब तक साथ खड़े लड़कों ने उसे दबोच लिया और फिर जो हुआ, कल्पना की जा सकती हैं।सबने मिलकर उसकी जमकर धुनाई की।
जिस भी लड़की अथवा महिला के साथ दुर्व्यवहार होता है तो हमें दोषी का बहिष्कार करना चाहिए न कि पीड़िता का।
—विभा गुप्ता