” अरी जन्मजली! ये तूने क्या कर डाला…अपनी ही छोटी बहन के प्यार पर डाका डाल दिया।ऐसा करने से पहले तूने एक बार भी न सोचा…दूर हो जा मेरी नज़रों से..।” सावित्री जी चीखीं। उनकी आवाज़ सुनकर स्नेहा और संदीप कमरे से निकले।दरवाज़े पर खड़ी अपनी बड़ी बहन स्वाति की माँग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र देखकर दोनों चौंक गये।फिर साथ खड़े निखिल के गले में फूलों की माला देखी तो स्नेहा गुस्से-से चीख पड़ी,” तो ये है दीदी आपका असली रूप…मुझसे तो कहा कि निखिल अच्छा लड़का नहीं है और खुद..छीः
मुझे तो आपको दीदी कहते हुए भी शर्म आती है।” कहते हुए स्नेहा ने अपना मुँह फ़ेर लिया।संदीप ने तो यहाँ तक कह दिया कि तुम बड़ी बहन के नाम पर एक कलंक हो।सबकी बातें सुनकर भी स्वाति कुछ नहीं बोली।वह अपने पति का हाथ पकड़कर चुपचाप नीचे देखती रही।जो लोग कल तक उसे दीदी-दीदी कहकर आगे-पीछे घूमते थे..उसे अपनी पलकों पर बिठाकर रखते थे वही लोग आज उसे इतना कोस रहे हैं, आखिर क्यों?
शहर के मेन मार्केट में देवीलाल जी का एक प्रोविज़नल स्टोर था।दुकान पुरानी थी लेकिन ज़रूरत की सारी चीज़ें उनके पास उपलब्ध होती थी, इसलिए उनके स्टोर पर ग्राहकों की भीड़ हमेशा लगी ही रहती थी।उनकी पत्नी सावित्री एक सुघड़ गृहिणी थी।घर संभालने के साथ-साथ उन्होंने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार भी दिये थे।उनकी तीन संतानों में सबसे बड़ी थी स्वाति।सुंदर, सुशील और समझदार।
स्वाति अपने छोटे भाई-बहन संदीप-स्नेहा से बहुत प्यार करती थी।अपनी पाॅकेट मनी से वो दोनों की हर इच्छा को पूरा करने की पूरी कोशिश करती थी।अपनी पढ़ाई के साथ-साथ वह रसोई में माँ का हाथ बँटाती थी।पिता तो अक्सर ही उसे ‘ मेरा बेटा ‘ कहते थे।
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एक बार संदीप को बहुत तेज बुखार हो गया था।पिता रिश्तेदारी में शादी अटेंड करने गये हुए थे।माता जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था,तब नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली स्वाति ने ही डाॅक्टर को बुलाया था…दवायें लाने बाज़ार भी वह स्वयं दौड़ी थी।माँ को आराम करने को कहकर वह खुद भाई के सिरहाने बैठकर रात भर ठंडे पानी की पट्टियाँ बदलती रही थी।बहन सेवा करे तो भाई को तो ठीक होना ही था।तब सावित्री जी ने अपने पति से कहा था,” अब मुझे कोई फ़िक्र नहीं है..स्वाति अपने भाई-बहनों की ढ़ाल बनकर रहेगी..उनपर कभी कोई आँच नहीं आने देगी।
स्वाति बीए फाइनल ईयर में थी।रईस बाप का बिगड़ैल बेटा निखिल उसी की क्लास में पढ़ता था।लड़कियों के साथ छेड़खानी करना उसकी आदत थी।एक दिन स्वाति लाइब्रेरी से निकलकर अपनी क्लास में जा रही थी कि तभी निखिल आ गया और उसका हाथ पकड़कर ‘ आई लव यू डियर ‘ बोला ही था कि स्वाति ने उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया।भीड़ देखकर निखिल साॅरी बोलकर वहाँ से निकल तो गया लेकिन मन ही मन वह स्वाति से बदला लेने के मंसूबे बनाने लगा।
एक दिन स्नेहा अपनी सहेली से मिलने उसके घर गई जहाँ सहेली के भाई का दोस्त निखिल भी था।सहेली ने निखिल से परिचय करते हुए बताया कि स्नेहा की बड़ी बहन स्वाति तो आपके साथ ही पढ़ती है।बस उसी दिन से निखिल स्नेहा पर डोरे डालने लगा।निखिल हैंडसम तो था ही, साथ ही पैसे वाला भी।स्नेहा उसकी ओर आकर्षित होती चली गई।
निखिल ने संदीप से भी दोस्ती कर ली और उसके साथ घर आने लगा।उसने अपनी लच्छेदार बातों से और महंगे उपहार देकर सावित्री जी को भी इंप्रेस कर लिया था।उसने सावित्री जी से यहाँ तक कह दिया था कि फ़ाइनल परीक्षा के बाद मैं पापा का बिजनेस ज्वाइन कर लूँगा और फिर स्नेहा से शादी…।सुनकर सावित्री जी तो गदगद हो उठीं थीं।स्वाति ने कई बार स्नेहा और माँ को निखिल की सच्चाई बताकर उससे दूर रहने को कहा।जवाब में सावित्री जी बोलीं,” बेटी..गलती तो हर इंसान से होती है।निखिल ने तुझे साॅरी कहकर अपनी भूल का प्रायश्चित तो कर लिया था।उसने तो यहाँ तक कहा है कि स्वाति जी की शादी के बाद ही मैं स्नेहा से…।” स्वाति समझ गई कि उन दोनों से बात करना व्यर्थ है।
एक दिन क्लास खत्म होने के बाद स्वाति निखिल से मिली और कड़े शब्दों में बोली,” तुम स्नेहा का पीछा छोड़ दो।” सुनकर निखिल कुटीलता-से मुस्कुराया।
” तुम मुझसे शादी कर लो तो तुम्हारी बहन को छोड़ दूँगा वरना…।”
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” वरना क्या!” स्वाति चीखते हुए बोली।तब निखिल ने उसे मोबाइल में दो तस्वीरें दिखाईं जिसे देखते ही उसका खून खौल उठा था लेकिन फिर उसने खुद को संयत किया और निखिल से पूछी,” कब करनी है शादी?”
” जब तुम कहो डियर…।” कहते हुए निखिल ने स्वाति के गालों पर चिकोटी काटी तो वह तिलमिला कर रह गई। घर आकर उसने एक बैग में कुछ कपड़े और ज़रूरत की चीज़ें रखी।बैग लेकर बाहर जाने लगी तो सावित्री जी ने उसे टोक दिया,” अभी तो आई है… फिर कहाँ जा रही है…और ये बैग कैसा है?”
” कुछ नहीं माँ, काॅलेज़ में फ़ंक्शन है तो रीमा को कुछ ड्रेसेज़ देने जा रही हूँ।घंटे भर बाद आती हूँ।” कहकर स्वाति मंदिर चली गई जहाँ पहले से ही निखिल पहुँचा हुआ था।मंदिर के पुजारी जी ने दोनों की शादी करवा दी और जब स्वाति निखिल के साथ घर आई तो…।
उसी समय देवीलाल जी दुकान से लौटे.. स्वाति को देखकर वो भी चौंक गये लेकिन बेटी की आँखों में उन्हें निश्छलता दिखाई दी।पत्नी से बोले कि एक बार उसकी बात…।” खबरदार जो आपने उसकी तरफ़दारी की..।” सबको अपनी कसम देकर सावित्री जी ने स्वाति को घर से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी बाहर कर दिया।
स्वाति निखिल के साथ अपने ससुराल चली गई जहाँ उसे अपमान के सिवा कुछ नहीं मिला।इसी बीच उसका अबाॅर्शन भी हुआ।जब एक बेटे की माँ बनी तो बाकी दुखों को वो भूलने लगी।
सावित्री जी के घर में कोई भी स्वाति का नाम नहीं लेता था।बेटी के दुख में देवीलाल बीमार रहने लगे।पढ़ाई अधूरी छोड़कर संदीप ने दुकान संभाल ली।स्नेहा ने होम साइंस लेकर बीएससी किया।अपने शहर में ही अच्छा घर-वर देखकर सावित्री जी ने बेटी का ब्याह कर दिया।साल भर बाद संदीप का विवाह करके घर में बहू ले आई।बहू का मुख देखकर चार महीने बाद देवीलाल जी दुनिया को अलविदा कह दिये।उस दिन सावित्री जी को स्वाति की बहुत याद आई।पछतावा भी हुआ कि गुस्से-में बेटी को न जाने क्या-क्या कह दिया था।उनकी ममता ज़ोर मारती तो वो जी भर कर रो लेती थी।
समय के साथ संदीप-स्नेहा दो-दो बच्चों के माता-पिता बन चुके थे।एक दिन संदीप के बचपन का दोस्त अशोक उससे मिलने आया। हाल-चाल पूछने के बाद अशोक ने कहा,” यार..स्वाति दीदी कहाँ हैं? दो दिन बाद रक्षाबंधन है तो सोचा कि उनसे और स्नेहा से राखी..।”
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” नाम मत ले उनका..हमारे लिये वो मर चुकी है।” संदीप लगभग चीखते हुए बोला।अशोक हैरान रह गया।संदीप ने उससे कहा कि तू माँ से बातें कर..मैं दुकान होकर आता हूँ।
अशोक ने सावित्री जी की तरफ़ प्रश्न-चिह्न नज़रों से देखा तो उनकी आँखें भर आईं।उन्होंने भरे गले से अशोक को सारी बातें बताईं।सुनकर अशोक असमंजस में पड़ गया।फिर बोला,” चाची…स्वाति दीदी ने इस परिवार की इज्ज़त बचाने… ” कहते-कहते वह चुप हो गया।जब सावित्री जी ने उसे अपनी कसम दे दी तब वह बोला,” कुछ साल पहले की बात है।मैं एक दुकान से निकल रहा था तब मैंने स्वाति दी को एक घर से निकलते देखा। मुझे देखकर वो कतराने लगी तब मैंने उनका पीछा किया।
वो तंग गली के एक छोटे-से कमरे में घुसी तो मैंने उनका रास्ता रोक लिया।मुझे कसम देकर बोली कि माँ-संदीप को मत बताना कि मैं यहाँ रहती हूँ।मैंने पूछा कि लेकिन आप यहाँ कैसे? तब वो बोली,” मुझसे अपने अपमान का बदला लेने के लिये निखिल ने स्नेहा को मोहरा बनाया।उसने फोटो ट्रिक से स्नेहा की दो अश्लील तस्वीरें बनाई थी जिसे वह वायरल करना चाहता था।मैंने उसे ऐसा करने से मना किया तो उसने मुझसे शादी की शर्त रखी।मेरे पास सोचने के लिये टाइम नहीं था अशोक…
निखिल को थोड़ा भी समय देती तो ..स्नेहा का जीवन.. संदीप का कैरियर और पापा का सम्मान..सब मिनटों में खत्म हो जाता।अपने जीते-जी मैं ऐसा हर्गिज़ नहीं होने देती।विवाह के तुरंत बाद मैंने उसके फ़ोन से तस्वीरें डिलीट कर दी।ऐय्याशी और मार-पीट के अलावा निखिल को कुछ नहीं आता था।मेरा बेटा पाँच बरस का था,तभी किसी ने उसकी हत्या कर दी।सास-ससुर ने मुझे घर से निकाल दिया।किसी तरह से यहाँ रहने को जगह मिली और तीन घरों में काम मिला तो बेटे को स्कूल भेज रही हूँ।”
” दीदी..आप ये रख लीजिये…।” मैंने उन्हें रुपये देने चाहे तो उन्होंने लेने से मना कर दिया।चाची..आज संदीप के मन में उनके लिये नफ़रत देखी तो मुझसे रहा नहीं गया और…।” कुछ देर पहले ही संदीप आया था।अशोक के मुँह से सच्चाई सुनकर वो रो पड़ा,” दीदी ने हम सबके लिये इतना बड़ा त्याग किया और मैं…।अशोक..मुझे अभी उनके पास ले चल।”
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सावित्री जी बहू को घर संभालने का कहकर अशोक-संदीप के साथ स्वाति के पास गई।माँ-बेटी की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।संदीप ने शिकायत की,” आपने मुझे राखी क्यों नहीं भेजी?”
” ये देख..पूरे बारह राखियाँ हैं।हर साल रोली-चावल के साथ राखी लिफ़ाफे में रखती थी पर तुझे भेज नहीं पाती थी मेरे भाई…।” स्वाति के हाथ से राखी लेकर संदीप फूट-फूटकर रोने लगा।
रक्षाबंधन के दिन सावित्री जी का घर बच्चों की हँसी- ठहाकों से गूँज रहा था।अपनी बड़ी बहन के साथ बैठकर स्नेहा ने संदीप-अशोक को राखी बाँधी।संदीप स्वाति के हाथ में रुपये रखने लगा तो वो बोली,” नहीं भाई…अशोक ने उपहार दे दिया…मुझे मेरे भाई-बहन…मेरा परिवार मिल गया।” कहते हुए उसने अपनी बाँहें फैलाकर सभी को अपने अंक में समेट लिया।छोटे-छोटे बच्चे बुआजी-मौसी जी’ कहकर उसके आँचल से खेलने लगे।सोफ़े पर बैठकर सावित्री जी अपने सजल नेत्रों से बच्चों की खुशी का आनंद लेते हुए मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बोली,” ऐसी बड़ी बहन सबको मिले।”
विभा गुप्ता
# बहन स्वरचित, बैंगलुरु
बड़ी बहन के स्नेह और त्याग के कारण ही उसे माँ का भी दर्जा दिया गया है।स्वाति उसका सजीव उदाहरण थी।