सगा रिश्ता – लतिका पल्लवी

मै जा रही हूँ मुझे नहीं रहना है तुम्हारे घर मे। यह कहकर सोनम अपना सूटकेश उठाकर सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी। पीछे पीछे उसकी माँ भी उससे बोलते और मनाते हुए आ रही थी।बोल ना ऐसा क्या हुआ जो तु इतनी गुस्सा हो गईं? कुछ नहीं तुमसे कहना बेकार है तुम नहीं समझोगी। क्या … Read more

सोने की कंगन – मनीषा सिंह 

 तुम्हारा दिमाग तो सही है?  पता भी है सोने की भाव का?एक लाख से ऊपर हो गया ।  मेरी औकात नहीं•• इसलिए तुम इसे भूल जाओ।  देव प्रसाद अपनी पत्नी मालती से बोलें ।  बहुत सोचा है तभी बोल रही हूं! अब तो मुझे #सोने की कंगन इस धनतेरस पर चाहिए ही चाहिए!  वह जिद … Read more

अपनों का दिया दंश – शिव कुमारी शुक्ला 

निशी बेटा कब आ रही हो फोन उठाते ही बुआ की आवाज सुनाई दी। बस बुआ जितनी जल्दी हो सके निकलने की कोशिश करती हूं। हां बेटा जल्दी आ जा भाई की शादी में आकर थोड़ा हाथ बंटा शापिंग भी करनी है। हां बुआ आती हूं। हां सब आना समीर को भी साथ ले आना। … Read more

मैं माफ़ी नहीं मांगूंगी – लक्ष्मी त्यागी

तुम्हें बस एक बार माफ़ी मांगनी है, रागिनी !इसमें इतना मुश्किल क्या है?” — माँ की आवाज़ अब भी उसके कानों में गूंज रही थी। किन्तु रागिनी जानती थी, यह ‘माफ़ी ’ सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि उसकी इज़्ज़त की कब्र  होगी। रागिनी एक तेज़, आत्मसम्मान वाली लड़की है। कॉलेज में उसकी पहचान उसकी ईमानदारी … Read more

अपनत्व की छांव – सुदर्शन सचदेवा 

 ज़रा सुनो ! अवनि एक कप चाय बना दो न, बस वैसे ही जैसे तुम अपने लिए बनाती हो। ये आवाज़ थी सावित्री देवी की — घर की बड़ी और समझदार सास की। रसोई में नन्हे-नन्हे कदमों से भागती बहू “अवनि” ने जवाब दिया — “जी माँ, बस दो मिनट में।” उसके स्वर में घबराहट … Read more

क्या सारी जिम्मेदारी बहुओं की ही है – मंजू ओमर

वेदिका बहू तुमने सारी तैयारी सही से कर ली है न, कोई चीज रह तो नहीं गई है। हां मम्मी  जी , हां बेटा ध्यान रखना देखो ननद की गोद भराई की रस्म है सबकुछ ठीक से होना चाहिए।ये जिम्मेदारी तो घर की बहू की ही होती है ये ध्यान रखना। क्या वेदिका तुम अभी … Read more

रिश्ते की नई सुबह – संजय मृदुल

सुबह सुबह आश्रम के कार्यालय में हम बैठे थे, सावित्री मौसी के बारे में पूरी जानकारी देते। मौसी खामोशी से किनारे बैठी हुई है। मैनेजर ने कहा भाई साब काश ऐसे लोग और हो तो इन बुजुर्गों को कभी भीख न मांगना पड़े। बहुत बुरा लगता है हमें भी, मगर क्या करें नियमो से बंधे … Read more

पूजाघर मे कैसा भेदभाव – संगीता अग्रवाल 

“रसोईघर मेरे लिए पूजाघर के समान है बहू इसलिए ध्यान रखना कभी यहां बिना नहाए मत घुसना क्योंकि यहां खाना नहीं प्रसाद बनता है !” दिव्या की शादी के बाद की पहली रसोई पर ही उसकी सास सीता देवी ने उससे कहा। ” जी मांजी मैं ध्यान रखूंगी इस बात का और आपको शिकायत का … Read more

अपनत्व की छाँव – ज्योति आहूजा

सुजाता आज फिर रसोई में देर तक खड़ी रही। गैस की आँच धीमी थी, पराठे सिक रहे थे, दाल पर तड़का लग रहा था, और बच्चों के डिब्बे सज रहे थे। हर दिन की तरह सबकी जरूरतें पहले, अपनी आख़िरी। कमरे में हँसी की आवाज़ें थीं, हलचल थी, पर उसके भीतर एक गहरा सन्नाटा था। … Read more

चाकलेट  की हिस्सेदारी – उपमा सक्सेना

“नीरू! नीरू चल मामा जी को सारी बोल दे!”मेघा अपनी तीन साल की बेटी को थोड़ा धमकाकर बोल रही थी। मेघा अजीब सी स्थिति मे अपने-आप को फंसा पा रही थी। रक्षाबंधन पर भाई के घर बहुत ही चाव से आई थी।पति नैतिक को भी बहुत मनुहार करके लेकर आई थी। पिता जी दस महिने … Read more

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