क्या? सारी जिम्मेदारी बहूओं की ही है – मीनाक्षी गुप्ता

दिनेश जी और मालती देवी दिल्ली के एक सामान्य उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार थे। उनके दो बेटे—विक्रांत, रोहित—और एक बेटी अनीता थी। मालती देवी की उम्र हो चली थी और उनका स्वास्थ्य अब उतना साथ नहीं देता था। बड़े बेटे विक्रांत की शादी कामिनी से हुई। कामिनी बहुत ही सरल और अच्छे स्वभाव की थी। शादी … Read more

नेग का लालच – रश्मि प्रकाश

“ ये क्या कह रही हो दीदी आप…. सच में बड़ी भाभी ने ऐसा कहा…?” आश्चर्य से बड़ी बड़ी आँखें कर राशि ने नीति से पूछा  “ तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ….. जब उन्होंने कहा है तभी तो आपसे कह रही हूँ….हाँ अब विश्वास करना ना करना आपके उपर है।” कह नीति वहाँ … Read more

मुझे बर्दाश्त नहीं है अब अनु का निरादर – मंजू ओमर

सुमित्रा जी एक लोटा पानी लेकर आई और गणेश लक्ष्मी जी की पूजा में बैठे बेटे दीपेश के सामने जलते हुए दीपक में पानी डाल दिया। बेटा दीपेश चौक गया ये क्या किया मां पगला गई हो क्या ,इन जलते दीपक पर पानी क्यों डाल दिया । तुमने गणेश लक्ष्मी जी का अपमान किया , … Read more

बहू भी मनुष्य है – लतिका पल्लवी

दामोदर जी नें घर मे घुसते ही कहा“जल्दी से खाना लगा दो,त्यौहार का दिन है इसलिए आज दुकान मे भीड़ है।कैसे करके खाना खाने के लिए आया हूँ,मै ज्यादा देर नहीं रुक सकता।”खाना अभी नहीं बना है,अर्चना जी ने कहा।तीन बज गया और अभी तक दोपहर का खाना नहीं बना! यह घर मे हो क्या … Read more

परिवर्तन – खुशी

नरेन्द्र जी का एक बहुत बड़ा पब्लिकेशन हाउस था।जहां नए नए लेखकों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता था और बहुत सारे कर्मचारी उनके यहां काम करते थे।सभी कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।घर परिवार में दो बच्चे पीयूष और पायल पत्नी सावित्री और माता पिता दमयंती और लक्ष्मण ।सभी खुश रहते थे और … Read more

बुढ़ापा

महिमा जी अपनी पोती की शादी में सम्मिलित होने कानपुर गईं थीं।वे सोफे पर बैठीं थीं। चाय का दौर चल रहा था और भी रिश्ते दार महिलाएं बैठीं थीं आपस में चुहलबाज़ी, गपशप चल रही थी।तभी रुपाली उनके भतीजे की पत्नी आती दिखाई दी वह कमर झुका कर चल रही थी। एक तो रुपाली का … Read more

क्या सारी जिम्मेदारी बहुओं की ही होती है?

सीता देवी के घर में आज फिर वही बहस छिड़ी हुई थी। आँगन में खड़ी तुलसी के पास बैठी, वो तेज़ स्वर में बोलीं—“देखो, अब घर की जिम्मेदारी तो बहू की ही होती है, हमने भी पूरी उम्र घर संभाला है।” उनकी बड़ी बहू अर्चना रसोई से निकलकर बोली—“माँजी ! मैं भी तो सब करती … Read more

ईश्वर की माया, कहीं धूप, कहीं छाया!

धूप और छाया”—बस यही तो ज़िंदगी का दूसरा नाम है। ईश्वर की माया भी कुछ ऐसी ही है—जहाँ किसी के जीवन में उजाला है, वहीं किसी के हिस्से में अँधेरा आता है।  राजगढ़ गाँव में हरि और मोहन दो भाई थे। पिता के निधन के पश्चात दोनों के जीवन की दिशा ही बदल गई। हरि … Read more

सोने के कंगन

रति ने बचपन में, अधिकतर अपने आसपास सोने से लधी अपने परिवार की महिलाओं को दिखा , उन्हें देखकर रति को भी लगता था कि वह भी एक दिन इसी तरह सोने के जेवर पहनकर किसी महारानी की तरह लगेगी। इतिहास के पन्नों में भी उसने देखा, पुराने समय में रानी -महारानी सोने जेवरों से … Read more

घर का बोझ – शनाया अहम

अक्सर हम लड़कियों को कभी न कभी बोझ समझा जाता है, कभी कभी ही क्या कुछ घरों में तो हमेशा ही बोझ समझा जाता है अहमियत दी जाती है तो उस घर के बेटों को, बेटियाँ तो बोझ समझे जाने के बोझ तले ही दबी रही हैं।  ऐसी ही एक लड़की थी दिया,,, उसका नाम … Read more

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