मेरे दादा जी रेलवे में मेल गार्ड के पद पर कार्यरत थे । उनकी चार लड़कियाँ और चार लड़के थे । वे हमेशा ड्यूटी पर होते थे पर पीछे से पूरे परिवार की देखभाल मेरी दादी कौशल्या जी ही करती थी । दादी हमेशा दादा जी से कहती थी कि आपके रिटायर होने से पहले ही कम से कम तीन लड़कियों की शादी तो करा देते हैं क्योंकि बाद में बेटों को हमारी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ेगी मैं नहीं चाहती हूँ कि वे हमारे बारे में कुछ सोचे क्योंकि सोचिए न बेटे हमारे हैं पर बहुएँ तो दूसरे घर से आएँगी न । दादा जी भी इस बात को मानते थे ।
मेरे पिताजी घर के बड़े बेटे थे । उनके बाद बड़ी बुआ । दादा जी ने पहले इन दोनों की शादी करा दी । दादी एक बेटी को भेज कर दूसरी बेटी बहू के रूप में लाना चाहती थी कि घर सूना न हो जाए ।
बड़ी बहू याने मेरी माँ दादी के रंग में ढल गई थी । फिर दूसरे बेटे के साथ दो लड़कियों की शादी कराई क्योंकि दादा जी रिटायर हो रहे थे । रेलवे में नौकरी करने के कारण और मेल गार्ड होने के कारण उन्हें बड़े बड़े बँगले रहने के लिए मिलते थे । बच्चों की परवरिश और अपनों की मदद में वे अपना खुद का घर नहीं बनवा सके ।
रिटायर होने के बाद दादी के भाई के बँगले में हम शिफ़्ट हुए थे । वे भी रेलवे में ही नौकरी करते थे परंतु उनका परिवार विजयनगरम में रहता था । अकेले थे इसलिए हम वहाँ पहुँच गए । पिताजी फुडकॉरपरेशन ऑफ इंडिया में काम करते थे । हम चार भाई बहन थे । मेरे दूसरे चाचा रेलवे में थे उनकी दो लड़कियाँ थीं । तीसरे चाचा की अभी शादी करनी थी वे जनरल इंश्योरेंस कंपनी में नौकरी करते थे ।
घर हमेशा भरा पूरा रहता था । दादा जी को शुगर की बीमारी हो गई थी जो उस समय बहुत बड़ी मानी जाती थी । हमारे तीसरे चाचा की शादी तय हो गई थी । हम बच्चे सब खुश थे परंतु घर के बड़ों को चिंता सता रही थी । शादी तय होने की चिंता नहीं थी बल्कि मेरे पिताजी का तबादला जबलपुर हो गया था । दूसरे चाचा को वहीं रहना था क्योंकि वे रेलवे में थे । तीसरे चाचा का तबादला अकोला हो गया था । अब दादा जी को चिंता सताने लगी थी कि वे किसके साथ रहें । क्योंकि एक बुआ जिसने दसवीं पास की थी वह है और लास्ट वाले चाचा जी डिग्री कर रहे थे । चार लोगों का भार किसके ऊपर डालें ।
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मेरे पिताजी के हम चार बच्चे थे हमारी पढ़ाई और पालन पोषण में बहुत खर्च होगा । दूसरे नंबर के चाचा की भी दो बेटियाँ थी और चाची हमेशा बीमार रहती थी । क्या करें सोचते हुए बैठे हुए थे कि मेरे तीसरे नंबर के चाचा जिनकी उस समय सबसे ज़्यादा तनख़्वाह थी साथ ही अभी ही शादी हो रही थी आए ।
चाचा ने कहा — पिताजी आप चिंता मत कीजिए मैं हूँ न आप सब मेरे साथ आ जाएँ हम सब मिलकर साथ रहेंगे । दादी को बड़े बेटे से बहुत प्यार था उन्होंने कहा तेरा बड़ा भाई जिसकी तनख़्वाह भी ज़्यादा नहीं है इतने बच्चों को कैसे पालेगा ।
चाचा ने कहा– माँ आप फ़िक्र मत कीजिए हम बाबू को (जो मेरे बाद वाला भाई था) अपने साथ ले जाएँगे । तब जाकर दादा दादी के जान में जान आई पर दुख इस बात का भी था कि इतने सारे लोग इसके ऊपर चढ़ जा रहे हैं ।
हम जबलपुर पहुँच गए पिताजी ने वहाँ किराए पर घर ले लिया । उनका प्रमोशन हुआ अब तनख़्वाह भी बढ़ गई थी । पिताजी बाबू और माता-पिता सबसे मिलने अकोला पहुँचे । दो दिन रहे उन्होंने देखा छोटा भाई भास्कर हमेशा चुपचाप बैठा रहता था । उन्होंने उससे पूछा मेरे साथ चलोगे । चाचा ने हाँ कह दिया बस आते समय उन्हें अपने साथ ले आए और कुछ ही महीनों में अपने ही ऑफिस में उन्हें नौकरी दिला दी और नाइट कॉलेज में बी कॉम पढ़ने को कहा । चाचा भी मुझे और मेरे दोनों भाइयों को पढ़ाते थे खुद भी पढ़ते थे माँ की मदद भी कर देते थे ।
एक दिन पिताजी को बुआ चिट्ठी मिली भाई मेरे लिए भी कुछ करो ना ।
पिताजी ने कहा — चिंता मत करो मैं हूँ न कहकर फ़ौरन अकोला जाकर बुआ को लेकर आए और उन्हें होमसाइंस कॉलेज में बी एस सी में दाख़िला दिलाया ।
इस तरह से बुआ की पढ़ाई हुई और हमारे पिताजी का तबादला रायपुर हो गया । वहाँ पहुँचने के बाद बुआ की शादी और चाचा की शादी भी हो गई थी । तीसरे नंबर के चाचा भी रायपुर आ गए थे । सब भाई अलग अलग रहते थे परंतु त्योहार एक साथ हमारे घर में ही मनाते थे। इस बीच हमारे दूसरे नंबर के चाचा की मृत्यु हो गई थी चाची अपने बच्चों को लेकर मायके चली गई थी और वहीं रहने लगी थी । इस तरह से सब भाइयों ने एक दूसरे की मदद करते हुए माता-पिता की चिंता को दूर किया था ।
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दोस्तों पुराने ज़माने में भाई बहनों में बहुत प्यार होता था वे किसी को भी बेसहारा नहीं छोड़ देते थे । सबकी कोशिश यही रहती थी कि सब खुशहाल ज़िंदगी बिताए । अपनों का साथ मिल जाएगा तो घर में ख़ुशियों को आने से कोई नहीं रोक सकता है । यह सब घरों में होता है मेरे दादा दादी की परवरिश थी नहीं मालूम पर मैंने सबको मिलकर रहना ही देखा था ।
के कामेश्वरी