‘ शांति पार्क ‘ की बेंच पर बैठे सुदर्शन जी अपने दो मित्र- श्रीकांत दुबे और जमनालाल से बातें करते हुए सुबह की धूप का आनंद ले रहें थे कि अचानक कलाई पर बँधी घड़ी पर उनकी नज़र पड़ी तो वो उठकर जाने लगे।
” इतनी ज़ल्दी चल दिये..आज तो संडे है..क्या आज भी दफ़्तर..।” श्रीकांत जी ने हँसते हुए उन्हें टोक दिया। उनके कंधे पर हाथ रखते हुए सुदर्शन जी मुस्कुराये,” संडे है, तभी तो जा रहा हूँ..इसी समय तो अनिल से बात होती है..आप तो जानते ही हैं कि अमेरिका का टाइम..।”
” अरे हाँ, याद आया..जाईये-जाईये..बेटे को हमारा प्यार भी बोल दीजिएगा..।” जमनालाल जी बोले तो दोनों मित्रों से कल मिलने का कहकर सुदर्शन जी घर के लिए रवाना हो गए।
सरकारी बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत थे सुदर्शन जी।पत्नी जानकी सुघड़ गृहिणी जो अपने घर को संभालने के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों को निभाना भी बखूबी जानती थीं।
अपनी दोनों संतानों अनिल-सुनील को उन्होंने अच्छी शिक्षा-दीक्षा दी थी।अनिल ने इंजीनियरिंग पास करके एमबीए किया।एक साल प्राइवेट कंपनी में काम करने के बाद वो अमेरिका चला गया।सुनील सीए करके दिल्ली के एक प्राइवेट फ़र्म में अकाउंटेंट था।
समय पर उन्होंने दोनों बच्चों की शादी भी कर दी।बहुओं ने अपना घर संभालने के साथ-साथ सास-ससुर को भी पूरा मान-सम्मान दिया।अनिल रिया और वंश के पिता बने और सुनील के बेटे का नाम था आरव।
दोनों बेटे-बहू अपनी व्यस्तता में भी उनका हाल-समाचार पूछना कभी नहीं भूलते थे।कभी बच्चे उनसे मिलने चले आते तो कभी वो पत्नी संग उनके पास चले जाते थे।
उम्र के साथ शरीर ढ़लने लगा तो मधुमेह ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया, तब वो डाॅक्टर की सलाह मानकर प्रतिदिन ‘ शांति पार्क ‘ में आकर टहलने लगे और यहीं पर उनकी मुलाकात श्रीकांत जी और जमनालाल जी हुई।बातें हुईं..मन मिला और मित्रता में प्रगाढ़ता आती चली गई।
अनिल प्रत्येक शनिवार रात को अपने पिता को वीडियो काॅल करता था जो भारतीय समयानुसार रविवार को सुबह के आठ बजे का समय होता था।इसीलिए सुदर्शन जी घर जा रहे थे ताकि इत्मीनान से वीडियो काॅल पर उनके साथ-साथ जानकी जी भी बहू मीता और रिया- वंश से बात कर सके।
देखते-देखते सुदर्शन जी के रिटायर होने का समय आ गया।आये दिन अखबारों और टेलीविजन पर बुजुर्गों के साथ होने वाली घटनाओं को सुनकर उनके मन में # रिटायरमेंट को लेकर एक
अनजाना भय समाने लगा था।बेटे जब उनसे कहते कि पापा..अब आपको हमारे पास आकर रहना है।माँ को भी तो आराम मिलना चाहिए ना..।तब वो अपने अंदर के भय को छुपाकर उनसे हाँ-हाँ कह देते थे।
एक दिन वो हमेशा की तरह सैर के लिये पार्क में गये तो अपने दोनों मित्रों को उदास देखा।उन्होंने कारण पूछा तब जमनालाल जी बोले कि मेरे एक मित्र ने सोचा था कि सेवानिवृत होकर अपने बेटे के पास रहकर पारिवारिक सुख का आनंद लूँगा लेकिन फिर उनके बेटे ने उन्हें बोझ समझकर अपने साथ ले जाने से इंकार कर दिया।
पत्नी का देहांत पहले ही हो चुका था।अब वो अकेले बैठे-बैठे आँसू बहाते रहते हैं..।तब श्रीकांत जी बोले,” आपके मित्र के साथ हुई घटना से तो मुझे भी घबराहट होने लगी है।मेरे बेटे ने भी हमें अपने साथ ले जाने को कहा है लेकिन अगर नहीं ले गया तो..अकेले हम पति-पत्नी कैसे..।”
श्रीकांत जी बोले जा रहें थें और सुदर्शन जी के हृदय की धडकनें तेज़ हो रही थी।वो थके कदमों से घर लौट आये।न तो ठीक से नाश्ता किया और न ही पत्नी के किसी बात का जवाब दिया।चुपचाप बैंक चले गये।बेमन-से ड्यूटी निभाई और घर आकर बिस्तर पर निढ़ाल हो गये।
अब जानकी जी से रहा नहीं गया।बोलीं,” बताईये न कि क्या बात है? वरना सुनील को फ़ोन करती हूँ।” तब सुदर्शन जी ने उन्हें जमनालाल जी के मित्र के बारे में बताया और चिंतित स्वर में बोले,” जानकी..कहीं हमारे बच्चे भी तो हमें..।
अपने पास बुलाना चाहते हैं लेकिन…।सोचकर मन बहुत डरता है।ज़माने की हवा ठीक नहीं है..आजकल बुजुर्ग भी सुरक्षित नहीं है।” तब जानकी जी को याद आया कि कुछ दिनों पहले उनकी पड़ोसिन भी कह रहीं थीं कि जब तक पिता कमाता रहे, बच्चे उनकी इज्जत करते हैं..काम से छुट्टी मिली नहीं कि उनकी पेंशन पर अपनी गिद्ध नज़र जमा देते हैं।
सुनकर तो उनका दिल भी दहल गया था लेकिन इस समय वो अपने मनोभावों को छिपाते हुए पति को दिलासा देने लगीं,” नहीं-नहीं..हमारे बच्चे ऐसे नहीं हैं।आप तो देखते ही हैं कि कैसे टाइम टू टाइम फ़ोन करके हमें टेंशन फ़्री होकर रहने के लिए कहते रहते हैं।यहाँ आने पर मीता- मधु भी मुझे रसोई में घुसने नहीं देती हैं।”
” वो सब तो ठीक है, फिर भी..।”
” अब कुछ मत सोचिए..।” कहते हुए जानकी जी ने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और खुद भी सोने का प्रयास करने लगीं।
सुदर्शन जी के रिटायर होने से दो दिन पहले दोनों बेटे-बहुएँ घर आ गयें।बच्चों को देखकर दोनों खुश थे लेकिन अंदर से भयभीत भी थें।दफ़्तर से उन्हें भावपूर्ण विदाई मिल गई। अगले दिन सब साथ में बैठकर चाय पी रहे थे तो अनिल बोला,” पापा..अब चलने की तैयारी कर लीजिये..आप चाहे तो पहले सुनील के पास भी जा सकते हैं।क्यों सुनील..।”
” लेकिन बेटा..वो घ..र मैं बेचना नहीं…।” सुदर्शन जी का डर बाहर आ गया।
” ये घर बेचने की बात कहाँ से आ गई पापा..।हम तो आपको साथ ले जाने की बात कर रहें हैं।” कहते हुए सुनील ने उनके हाथ पर अपना हाथ रख दिया ताकि उनका भय दूर हो सके।तब अनिल बोला,”आपने हमें हर काम की आजादी दी है पापा और अब# रिटायरमेंट आपकी स्वतंत्रता है।
घूमने- फिरने की..दोस्तों से मिलने की..अपनी अधूरी इच्छा पूरी करने की..।माँ ने हमारे लिए अपनी इच्छाओं को त्यागा है..अब उन्हें भी वो सब करने की आजादी मिलनी चाहिए ना।पापा..आपके आशीर्वाद से हम दोनों सक्षम है।
हम यहाँ आपसे घर छीनने नहीं बल्कि आप दोनों के साथ समय बिताने के लिए आते हैं।बच्चों को उनके दादा-दादी का साथ मिल सके..उनका आशीर्वाद मिल जाए, हमारे लिये वही सबसे बड़ी पूँजी है।आप दोनों को अपने साथ ले जाने की बात इसलिए कही कि थोड़ा चेंज हो जाएगा।
कुछ समय हमारे साथ रहिये और कुछ समय यहाँ रहिये..अपने हमउम्र दोस्तों के साथ समय बिताइये..।इससे माँ को भी नयी-नयी दुनिया देखने को मिल जाएगी।क्यों माँ..।” हँसते हुए वो जानकी जी की तरफ़ देखा तो वो बोलीं,” मैं भी तो यही कह रही थी।”
” वो..मैं..ज़रा..।” कहते हुए सुदर्शन जी का गला भर आया।भावविभोर होकर उन्होंने अपने दोनों बेटों को गले से लगा लिया।उनके मन से अनजाना भय जा चुका था।माहोल को हल्का करने के लिए अनिल बोला,” पापा..आप सिनेमा कम देखिये…एकता कपूर के सीरियल में यही सब ड्रामा..।”
” पापा..आप इंग्लिश मूवी देखिए.. उसमें…।” चुटकी लेते हुए सुनील मुस्कुराया तो सुदर्शन जी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोले,” बाप से मज़ाक करता है..ठहर..मैं तुझे अभी बताता हूँ।” कहते हुए उन्होंने छड़ी उठा ली तो अनिल भागा और वो उसके पीछे दौड़ने लगे,” नालायक की औलाद…।”
” मेरे पापा नालायक नहीं है…।” सुनील के इतना कहते ही पूरा घर ठहाकों से गूँजने लगा..घर का वातावरण खुशनुमा हो गया जिसे देखकर जानकी जी की आँखें खुशी-से भर आईं।बहुएँ हँसती हुईं किचन में चलीं गईं और वो बच्चों से बोलीं,” चलो.. कहानी सुनते हैं।पहले कौन सुनाएगा..।”
” पहले मैं दादी..।” वंश बोला।
” नहीं, पहले मैं दादी…।” कहते हुए तीनों बच्चे जानकी जी की साड़ी का पल्ला खींचते हुए आपस में झगड़ा करने लगे और वो उन्हें शांत करने लगीं।
विभा गुप्ता
# रिटायरमेंट स्वरचित, बैंगलुरु
समाज में घट रही घटनाओं को देखकर वरिष्ठ नागरिकों का भयभीत होना स्वाभाविक है लेकिन अनिल -सुनील जैसी संतानें अपनों को प्यार-स्नेह देकर उनका डर दूर कर देते हैं ताकि वो अपने रिटायरमेंट लाइफ़ का आनंद ले सकें।