आज सही मायने में मुझे बेटी मिली – संगीता त्रिपाठी

जिंदगी भर जिसकी कद्र नहीं की,” आज  न जाने क्यों उसकी यादें, मेरी आँखों में आँसू भर रहे हैं..?, “तुम सही कह रही, राधा,.। आखिर हीरे की परख जौहरी ही तो करता हैं, पर हम हीरे की परख समय बीत जाने के बाद कर पाये..।

              जो बहुएँ, आपकी नौकरी तक, हमारे आगे -पीछे घूमती थी, वहीं आपके रिटायर होते ही, अलग हो गई.। उनको डर लग गया,.।अब कहीं उनका पैसा ना खर्च होने लगे..। तब भी छोटी बहू महक हमारा साथ नहीं छोड़ना चाहती थी,। पर हमने पहले ही उसके गुणों की कद्र नहीं की थी,.. कारण.. उसका मायका,..। बाकी बहुओं के मायके की तुलना में कमजोर था..

   .    मेरी ही मति मारी गई थी, जो मै इतना भेद -भाव करने लगी थी.।रवि को भी तो सबके सामने अपमानित कर देते थे.। रवि ने कभी शिकायत नहीं की..।

           राधा जी और महेश बाबू को तीन लड़के ही थे,.. उनदोनो को लड़की न होने का बहुत मलाल था.। जब बड़े बेटे  अमन की शादी की, तो बहू में लड़की की छवि ही देखती थी… कुछ समय बाद दूसरे बेटे  नमन की शादी की,..दोनों बहुएँ संपन्न घराने से थी, खूब दान -दहेज ले कर आई थी, जिसका उनको बहुत गर्व था.।दोनों , बेहद स्वार्थी थी…। दिन भर राधा जी को मस्का लगाती रहती थी.।..  घर के काम के लिए ऑफिस से एक पूरे दिन का नौकर मिला था… अतः गृहस्थी का कोई काम  उन दोनों को नहीं था.।




            तीसरे बेटे रवि ने महक से प्रेम विवाह किया था.। राधा जी और महेश जी को महक का मायका अपने स्तर का नहीं लगा, तो वे तैयार नहीं थे.। पर रवि की जिद से उनको शादी करनी पड़ी….। महक को वे बहू तो बना लाएं, पर दिल से अपना नहीं पाये..। जबकि महक, परिवार के लिए जी -जान से लगी रहती..थी.। महक, रवि की कंपनी में काम करती थी..। दोनों पति -पत्नी साथ जाते, साथ लौटते ..। पर महक घर आने के बाद, घर के कामों को करने में कोताही नहीं करती…। फिर भी दोनों जिठानियाँ उसका मज़ाक उड़ाने में कोई कमी नहीं रखती..।

               आज जब राधा जी और महेश बाबू, बीमार पड़े,.।तो उनको छोटी बहू महक और बेटा रवि बहुत याद आएं…..।अब ऑफिस का पूरे दिन का नौकर नहीं था.. राधा जी ने काफी समय से काम नहीं किया,तो उनसे घर का काम होता ही नहीं..। ऊपर से बुखार ने उनको और तोड़ दिया.।

          सुबह सवेरे.. फ़ोन की घंटी बजी, महेश जी  कमजोरी की वजह से फ़ोन नहीं उठा पाये… थोड़ी देर बाद फिर फ़ोन बजा.. रह रह कर फ़ोन बजता रहा, पर महेश जी बुखार की तीव्रता से उठ नहीं पा रहे थे, यहीं हाल राधा जी का भी था..।

               थोड़ी देर बाद दरवाजा की घंटी बजी, नहीं खुलने पर तोड़ने की आवाज आई,… कमरे में जिस शख्स ने प्रवेश किया… उसे देख, राधा जी और महेश जी के चेहरे पर उम्मीद की किरण दौड़ गई… महक का भाई  और पिता थे.।जो उसी शहर में रहते थे,दोनों की हालत देख  महक के भाई ने चाय बना कर पिलाई, डॉ को बुलाया…, उनके सिर पर ठंडी पट्टी रखी…। महक की माँ घर से खाना बना कर ले आई…..। महक के भाई ने बताया, रवि और महक दो दिन में पहुँचने वाले हैं.।




                   महक के परिवार ने राधा जी और महेश जी की खूब सेवा की, रवि और महक के आने तक दोनों काफी हद तक ठीक हो गए थे… आत्मग्लानि से भरे हुए थे.। जिसकी उन्होंने कभी इज्जत नहीं की, आज मुसीबत में वहीं काम आएं…. बाकी समधियाना और बेटे -बहू उसी शहर में थे ..,रवि ही विदेश चला गया था..।

            महक ने आते ही राधा जी और महेश जी की सेवा का भार अपने ऊपर ले लिया… बेटे बहू को देख कर दोनों ने संतुष्टि की सांस ली…दोनों के ठीक हो जाने के बाद, रवि ने बताया, उस दिन उसने उनलोगों का हाल -चाल जानने के लिए फ़ोन किया था,.. जब कई बार फ़ोन नहीं उठा,तो महक ने अपने भाई को देखने के लिए कहा.. भाई ने सारी स्थिति उन दोनों को बताई.. उन दोनों ने तुरंत पैकअप कर इंडिया की टिकट बुक की… और यहाँ आ गए… राधा जी ने तुरंत महक का हाथ पकड़ बोला क्या तुम लोग मुझे माफ नहीं करोगे, मुझे छोड़ कर चले जाओगे…। आज सही मायने में मुझे बेटी मिली..।

      नहीं माँ, अब आपको छोड़ कर कहीं नहीं जायेंगे… हम सब यहीं रहेंगे.. राधा जी और महेश जी ने अपने समधी -समधन से भी क्षमा मांगी…।

    दोस्तों कई बार देखा गया लोग धनवान रिश्तेदारों की ज्यादा कद्र करते हैं… रिश्तों की कद्र करें, पैसों की नहीं… कब कौन, कहाँ आपके काम आ जाये, पता नहीं चलता..।

  

                 –संगीता त्रिपाठी

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