ढाल – विनय कुमार मिश्रा

भैया जमीन को अब माँ कहते हैं! कहते हैं किसी भी हाल में इसे मैं नहीं बेचने दूँगा। पुरखों की जमीन है। ऐसा नहीं है कि हमारी जमीन बेची नहीं गई। माँ बाऊजी के गुजर जाने के बाद घर की माली हालत खराब थी। जमीन पथरीली है इसलिए उसपर कुछ ज्यादा फसल नहीं होती।भैया ने व्यवसाय शुरू करने के लिए पहली बार जमीन बेची थी तब मैं छोटा था। दूसरी बार जब गुड़िया की शादी थी। तीसरी बार जब मुझसे सात साल छोटे भतीजे को पढ़ाई के लिए बाहर भेजना था। मैं भैया के साथ उनके व्यवसाय में लगा रहा।अब कहते हैं कि मैं निक्कमा हूँ।पढ़ा लिखा नहीं। मेरे कारण हर साल उनका व्यवसाय में नुकसान हो जाता है। मेरे कारण वो कुछ कर नहीं पाए। मैं बोझ हूँ इसलिए अभी तक मेरी शादी भी नहीं हुई। कह दिया उन्होंने मुझे कि अपना अलग रास्ता देखो।

कोई रास्ता नज़र नहीं आया।उन्हीं के दिखाये रास्ते पर चलना चाहा। सोचा कुछ जमीन बेच कर अपना अलग धन्धा शुरू करूँ। पर अब कहते हैं ये जमीन पुरखों की है। इसे अब बेचने नहीं दूँगा।

जब हाथ में कोई हुनर नहीं हो और जेब में पैसा तो ज़िंदगी बहुत रुलाती है। मैं बेबसी में आज अपनी माँ को याद कर आँगन के दरवाजे को पकड़े सिसक रहा था। अचानक कंधे पर किसी ने हाथ रख दिया

“देवर जी ..खाना खा लीजिए, रोते नहीं.. सब ठीक हो जाएगा”

सुबह से इतनी भूख लगी थी कि रोटी देख कर रहा ना गया। अभी दो निवाला ही लिया था कि भैया आ गए

“दे दी आज भी इसे मुफ्त की रोटी! नालायक गया नहीं अभी घर से?” रोटी हाथ से छूटकर थाली में ही गिर गई और साथ में आँसू भी। इससे पहले की भैया भाभी पर चिल्लाते या हाथ उठाते, मैं घर से चला जाना चाहता था। जानता था कि इस घर में भैया के सामने भाभी भी कुछ नहीं कहती

“रुकिए देवर जी!” भैया गुस्से से भाभी की तरफ बढ़े ही थे कि

“आज अगर आपने हाथ उठाया तो मैं भूल जाऊंगी कि आप मेरे पति हैं! नालायक ये नहीं आप हैं, और निक्कम्मे भी”

“सविता!”

“चिल्लाने की जरूरत नहीं। बाइस सालों से देखते आ रही हूँ। जब जब आपको जरूरत पड़ी आपने सब किया। आपने हर चीज़ आसानी से हासिल किया। और इसके लिए मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर रखा है। अपने खुद के बेटे को पढ़ाया और बेटे जैसे भाई को बैल की तरह इस्तेमाल किया?”

“सविता तुम हद से आगे बढ़ रही हो”

“काश कि ये हद पहले तोड़ देती.. आप अपने हिस्से की जमीन बेच चुके हो..बाकी की जमीन सिर्फ देवर जी की है और ये घर तुम्हारे अकेले का नहीं।”

“और देवर जी! आपको अभी अपनी जमीन बेचने की जरूरत नहीं, बैंक में कुछ थोड़े पैसे हैं जो आपकी मेहनत के भी हैं। आप उसी में से…!

“सबिता! तुम भूल रही हो आगे की पूरी ज़िंदगी पड़ी है और हमारा एक बेटा भी है”

“आपका एक बेटा होगा..मेरे दो बेटे हैं”

बचपन से भाभी में…अपनी माँ को ढूँढता था.. आज मेरी माँ.. मेरे सामने ढाल बनी खड़ी थी ..!

विनय कुमार मिश्रा

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