सुनो! तुम कुछ कहना चाहते हो? रुचि ने अंशुल को रोक कर कहा।
अंशुल हतप्रभ खड़ा रह गया, समझ नही आया क्या जवाब दे, क्या कहे? पूरे छः साल के बाद ये पूछा था रुचि ने।
अंशुल को असमंजस में देख कर रुचि ने ही कहा, शाम को मिल सकते हो, वहीँ?
जी जरूर। इतना कहने में भी अंशुल की सांस अटकी हुई थी।
ठीक है, पांच बजे।रुचि मुस्कुरा कर चली गयी।
विश्वविद्यालय के पास एक रेस्टोरेंट है जहां सारा दिन चहल-पहल रहती है यहां के बच्चो से। अभी साढ़े चार बजे थे अंशुल आकर बैठ गया अपनी परमानेंट सीट पर। उसे लगा आज तो बिल्कुल भी देर नही होनी चाहिए। समय जैसे रुक सा गया था उसकी घड़ी में। और वो चला गया छः साल पहले जब उसने यहां दाखिला लिया था।
प्रदेश का ही नहीं ये देश का भी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है, जहां उसे दाखिला मिला था। उसका सपना था कॉलेज में प्रोफेसर बनना और इस लक्ष्य को पाने के लिए ये सबसे अच्छी जगह थी। कुछ महीने हुए थे, खाली समय में दोस्तो के साथ टहलते हुए अंशुल की नजर पड़ी रुचि पर। वो आगे-आगे चल रही थी, कुछ और लड़कियां साथ थी।
अंशुल की नजर पड़ी उसके बालों पर जो कमर से बहुत नीचे तक दो चोटियों की शक्ल में गूंथे हुए थे। उसने रुचि का चेहरा भी नहीं देखा था पर उसका दिल जोरों से धड़क गया। लगा,यही तो है वो ख्वाबो की परी।
लड़कपन की दहलीज़ छोड़ कर जवानी में कदम रखती जिंदगी में ऐसी जाने कितनी कल्पनाएं, कितनी परियां, कितनी नायिकाएं ख्वाबो में जगाती हैं ये हर कोई जानता है। अंशुल तेजी से आगे निकला और मुड़ कर देखा उसकी तरफ।
सांवला रँग, लंबा कद और औसत सा व्यक्तित्व। पर कुछ तो था रुचि में जो अंशुल को बांध गया।
अब शुरू हुई कवायद रुचि के बारे में जानने की। दोस्तो से लेकर केंटीन के छोटू से होते हुए चपरासी तक दौड़ लगाई गई पर कुछ हाथ न आया। इतना बड़ा विश्विद्यालय जहां हजारों बच्चे पढ़ते हों वहां किसी एक कि जानकारी निकालना सागर में से मोती तलाशने जैसा दुष्कर था। पर जहां चाह वहां राह। एक दिन लाइब्रेरी में फिर दर्शन हो गए अनायास। अंशुल ने वहां क्लर्क को पटाया, केंटीन में लन्च का सौदा किया तब जाकर उसे क्लर्क ने रुचि का कार्ड दिखाया।
क्लास – बीकॉम सेकेंड ईयर, सेक्शन-सी, नाम- रुचि शर्मा। बस इतना काफी था अंशुल के लिए। अब जैसा कि होता है नए नए आशिक की तरह अंशुल आगे-पीछे मंडराने लगे। उसके कॉलेज आने से लेकर वापस जाने तक जब भी अवसर मिलता। दर्शन लाभ के लिए लालायित अंशुल आसपास दिखाई देता।
ईश्वर ने नारी को कुछ अलग सी शक्ति दी है, हर देखने वाली नज़र, आसपास रहने वाले शख्स की हरकतें सब उनके राडार के पकड़ में आ जाती हैं। अंशुल की गतिविधियां भी अछूती न थी इससे। एक दिन केंटीन में अंशुल रुचि के बिल्कुल पीछे बैठा था कि रुचि ने अपनी सहेली से कहा। यार आजकल तो जूनियर भी लाइन मारने लगे हैं सीनियर को। हिम्मत देखो इनकी। अरे पढ़ने आये हो पढ़ाई करो। केरियर बनाओ पहले। ये इश्क-इश्क सब बेकार है। मैं तो बिल्कुल यकीन नहीं करती इन पर।
अंशुल को समझ आ गया कि ये तीर उसे लक्ष्य करके छोड़ा गया है। उस दिन के बाद उसने पीछा करना छोड़ दिया। पर चूंकि कुछ विषय दोनो के एक थे तो रुचि का आर्ट्स विभाग में आना होता था। वो खामोशी से उसे देख लेता। उसे भी लगा मजनू की तरह भटकने से बेहतर है कुछ कर के दिखाया जाए जिससे अच्छा असर पड़े रुचि पर।
वो एक साल आगे थी, पर कभी-कभी कोई क्लास एक साथ लगती। तो कभी किसी सेमिनार में साथ होने का मौका मिल जाता। सामान्य सी बातचीत होने लगी थी उनमें। कभी पढ़ाई को लेकर कभी ग्रुप में एक साथ हो तो। पर वो अपनी भावनाओं को बांध कर रखता। समय के साथ उसका आकर्षण प्यार में बदल रहा था। पर वो बिल्कुल नहीं चाहता था कि रुचि को पता चले। जब भी दोनो साथ होते वो नजर झुकाए रखता। कम बोलता।
साल गुजर गए दोनो ग्रेजुएशन कर पोस्ट ग्रेजुएशन में आ गए। पर हालात वहीं के वहीं। रुचि जहां पढ़ाई में सामान्य थी वहीं अंशुल लगातार प्रथम आ रहा था।
दोनो में काम चलाऊ दोस्ती हो गयी थी। रुचि अंशुल की भावनाओ को समझती थी पर पूरी तरह अनजान बनी रहती। अंशुल ने भी कुछ न कहने की जैसे कसम खाई हुई थी। बस वो रोज उसके आने के समय पर नियत स्थान पर रहता, उसे एक नजर देखता और चला जाता। न कभी उसने रोका न रुचि ने रुककर पूछा कि क्यों खड़े रहते हो यूँ।
पोस्ट ग्रेजुएशन भी हो गया। रुचि तो पहले ही पीएचडी में आ गयी थी। दोनो के विषय अलग थे मगर समूह एक ही था। बिल्डिंग एक थी तो सारा दिन वो रुचि को देख लेता था। लगभग सब खत्म होने को था। थीसिस जमा हो गयी वायवा भी हो गया। बस अब डिग्री का इंतज़ार है।
हेलो! रुचि की मीठी आवाज से अंशुल वापस वर्तमान में आया।
कब से बैठे हो?
कुछ देर हुआ। तुम कब आई?
बस अभी। तुम इतने खोए हुए थे कि तुम्हे पता ही नहीं चला।
आज खास दिन है। क्या खिलाओगे? रुचि ने सवाल किया।
खास कुछ तो मिलने से रहा यहां। हाँ मैं जरूर कुछ लाया हूँ। यहां कॉफी ऑर्डर कर लें।
रुचि ने सहमति दी- ठीक है, मंगाओ।
एक बात बताओ। आज मुझपर क्यों नजरे इनायत हुई? क्या कर दिया मैंने? अंशुल ने सवाल किया।
कुछ नहीं। अब पढ़ाई खत्म होने वाली है। कुछ दिन में तुम अपने रस्ते मैं अपने। तकदीर देखो मैं एक साल सीनियर थी तुमसे और आज एक साथ पीएचडी कर रहे। साथ ही डिग्री लेंगे।
एक बात कहनी थी तुमसे, तुम्हे याद है जब तुम यहाँ आये थे, मेरे पीछे पड़े रहते थे सारा दिन। मैने कहा था जूनियर सीनियर को लाइन मारने लगे हैं और भी बहुत कुछ। उस दिन के बाद से तुम खामोशी से दूर रहने लगे मुझसे। न पीछा करते न नजर मिलाते न ही कोई कमेंट्स करते। उस समय मुझे लगा नई नई उम्र का फितूर है उतर जाएगा वक्त के साथ।
फिर तुम अच्छे लगने लगे मुझे। सब के साथ तुम्हारा अच्छा व्यवहार, तुम्हारी खमोशी, केरियर को लेकर गम्भीरता। ये सब मेरे मन को बांधने लगा। छः साल हो गए तुम्हे, पर एक दिन भी जाहिर नही किया तुमने की तुम प्यार करते हो मुझे। तुम्हारी आंखे बहुत पारदर्शी हैं, जब तुम मेरे सामने होते हो न, ये इतने रँग बदलती हैं कि मैं सब समझ जाती हूँ जो तुम कहना चाहते। पर मुझे लगा तुम्हारे भविष्य को पहले पुख्ता होने दें। इस प्यार के फेर में पड़कर कुछ खो न जाये दोनो का।
तो आज मैने तुम्हे इसलिये यहां बुलाया है अंशुल, की आज सब कुछ साफ कर दिया जाए। तुम कभी बोलोगे नहीं ये जानती हूँ मैं। मेरे बड़े होने वाली बात गांठ सी जमी हुई है तुम्हारे मन में।
तो मैं आज तुमसे कहती हूँ- मैं प्यार करती हूँ तुमसे। मैं सारा जीवन साथ बिताना चाहती हूँ तुम्हारे। क्या तुम मेरा प्यार स्वीकार करोगे?
अंशुल के शब्द कहीं खो गए थे, सांसे बेलगाम हो गयी थीं और होश सातवे आसमान पर।
उसने अपने बैग से एक पैकेट निकाला, रुचि से कहा माँ ने अक्षय तृतीया पर सत्तू भेजा है, ये खाओगी।
अरे वाह! जरूर। इस शुभ अवसर पर इससे अच्छा क्या हो सकता है।
अंशुल! क्या तुम जीवन भर इसी तरह सत्तू खिलाओगे मुझे?
अंशुल ने चम्मच भर कर सत्तू रुचि को खिला दिया।
संजय मृदुल\
#किस्मत वाली