आज एक बहुत ही अच्छी रोमांटिक फिल्म लगी है। शॉपिंग के बाद मैं और निहारिका टिकट के लिए लाइन में लगे थे। हमारे आगे ही एक और जोड़ी भी इस फ़िल्म की टिकट के लिए लाइन में थी। बिल्कुल देहाती! उनकी बातों से लग रहा था वो अपनी शादी के बाद पहली बार साथ फ़िल्म देखने आए हैं। उनकी बातें सुन हम दोनों को कभी हँसी आती कभी खीझ होता। अपनी उत्सुकता में वे इतना बक़बक कर रहे थे कि पूछो मत। मैं मन ही मन सोच रहा था कि हमारे बाजू का टिकट इनको ना मिले। फ़िल्म देखने का मजा ही चला जायेगा। उनकी बोली सुन कभी मैं निहारिका को देखता कभी वो हमें।तभी उनके मोबाइल पर कोई कॉल आया
“हैल्लो! हाँ बाउजी, प्रणाम, घर में सब ठीक है ना? अच्छा.. अच्छा.. नहीं नहीं.. तनी बाहर आये हैं.. पूजा के साथ, अच्छा! क्या..कल आ रहे हैं?.. ठीक है बाबूजी..प्रणाम”
लड़का चहकते हुए बोला
“कल गाँव से माँ बाउजी आ रहे हैं”
लड़की भी खुश होते बोली
“अरे वाह”
फिर अचानक लड़का उदास हो उठा।
“का हुआ?”
“राशन खत्म होने वाला है ना? बाउजी माँ पहली बार आ रहे हैं हमारे शहर आने के बाद। उनको किसी चीज़ का दिक्कत नहीं होना चाहिए। सिनेमा में झूठो का हज़ार रुपया लग जायेगा”
“तुम ठीक कहते हो..चलो दस-दस का पानी पूरी खा लेते हैं”
वे दोनों लाइन से निकल गए। मुझे खुश होना चाहिए था पर ना जाने क्यूँ अच्छा नहीं लगा। निहारिका ने भी पलट कर उन्हें देखा।वे पानी पूरी वाले के पास जा चुके थे। तभी हमारा खिड़की पर नम्बर आया और मैं चौंक गया। निहारिका ने चार टिकट कहा। मगर हम तो दो ही थे। निहारिका मुझे लेकर उनके पास गई
“सुनिये! हमारे पास चार टिकट है। बाकी के दो लोग नहीं आ रहे। क्या आप दोनों ये फ़िल्म देखेंगे”
“जी हमारे पास टिकट का पैसा नहीं है”
“जी पैसे की बात नहीं है, ये टिकट तो ऐसे भी बरबाद जाएगा। अगर आप दोनों देख लेंगे तो काम आ जायेगा”
लड़के ने लड़की को देखा। उसकी आँखों में खुशी तैर गई।
“ठीक है, मगर आप दोनों को भी हमारे साथ पानी पूरी खाना होगा, देखिए मना मत कीजिएगा.. बहुते टेस्टी है” इतना अपनापन था उनकी बोली में की उनपर प्यार आ रहा था।
हमने साथ गोलगप्पे खाएं। साथ पूरी फ़िल्म देखी। पूरे फ़िल्म के दौरान हमने महसूस किया कि इस फ़िल्म के रोमांटिक किरदार भी वे दोनों मासूम जोड़े के आगे फीके हैं..!
विनय कुमार मिश्रा