भय की लक्ष्मण रेखा – बीना शुक्ला अवस्थी

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स्वस्तिका ने तीब्र प्रसव वेदना के बाद आज ऑखें खोली तो उसके वक्ष पर हल्का सा भार था और दो नन्हें नन्हें होंठ उसके वक्ष में कुछ ढूंढ रहे थे। उसके ऑखें खोलते ही नर्स और वंशज के साथ डॉक्टर की ऑखें भी खुशी से चमकने लगीं – ” हमें विश्वास था मिस्टर वंशज कि

सन्तान का वात्सल्य अचेतावस्था में भी इनके मस्तिष्क पर प्रहार करेगा।”डॉक्टर ने बच्चे के होंठ स्वस्तिका के स्तन से लगा दिये तो उसकी आंखें एक बार फिर बन्द होने लगीं लेकिन उसके शरीर का अमृत धीरे धीरे शिशु की देह में पहुॅचने लगा।

वंशज की कार काफी देर से ट्रैफिक में फंसी थी। उसकी एक जरूरी मीटिंग थी। वह परेशान सा खिड़की का शीशा खोलकर इधर उधर देख रहा था कि उसकी कार के पास एक लड़की आई – ” सर, हम सबके पास मोबाइल है, अगर हम सब लोग ट्रैफिक पुलिस को फोन करके यहॉ की समस्या बतायें तो वे लोग व्यवस्था सही कर देंगे।” 

वह ट्रैफिक में फंसे हर व्यक्ति से कह रही थी। कुछ लोग उसे ” पागल”  कह रहे थे, कुछ लोग ” कुछ नहीं होगा” कहकर पल्ला झाड़ रहे थे। वंशज ने देखा कि कुछ लोगों पर उसकी बात का असर भी हुआ और लोग ट्रैफिक पुलिस को फोन मिलाने लगे।

वंशज ने भी अपने और अपने ड्राइवर के दोनों सिमों से फोन कर दिये और तमाशा देखने लगा। उसे आश्चर्य हुआ कि सचमुच कुछ ही देर बाद ट्रैफिक पुलिस ने आकर अव्यवस्थित खड़े वाहनों को व्यवस्थित करके काफी देर से लगे जाम से छुटकारा दिला दिया।

वंशज को लगा सचमुच भीड़ में खड़े हर व्यक्ति के पास कम से कम दो सिम वाला मोबाइल तो था ही लेकिन किसी ने भी न सोचा कि अगर दस लोग भी फोन कर देंगे तो एक ही समस्या के लिये बीस फोन पहुॅच जायेंगे। वंशज उस लड़की की बुद्धिमानी का कायल हो गया। वह उसे धन्यवाद कहना चाहता था लेकिन वह तो जैसे गायब हो गई। 

दुबारा वह जयपुर जा रहा था तो वह रेलवे स्टेशन पर किसी लड़की के साथ दिखी। वंशज की ट्रेन आ चुकी थी लेकिन पता नहीं क्यों वह ट्रेन में नहीं गया जबकि उसकी सहेली ट्रेन में बैठ चुकी थी। ट्रेन जा रही थी और दोनों लडकियॉ एक दूसरे को देखकर विदा कह रही थीं। 

” चलिये, अब वह चली गई।” अपने समीप किसी पुरुष स्वर को सुनकर वह चौंक गई और अचरज से वंशज को देखने लगी। उसकी नजरें कह रही थीं – ” आप कौन?”

उसके तेवर देख कर पहले तो वंशज भीतर से परेशान हो गया कि कहीं यह लड़की कुछ गलत न समझ ले।

इसलिये उसने सम्हलते हुये कहा – ” मुझे आपको धन्यवाद देना था।”

” किस बात के लिये? मुझे तो याद नहीं कि मैं आपको जानती भी हूॅ।”

” उस दिन हम सब ट्रैफिक के फंसे परेशान हो रहे थे लेकिन आपकी सूझ बूझ से समस्या तुरन्त हल हो गई थी।”

लड़की सहज होकर हॅस दी – ” अच्छा उस दिन की बात कर रहे हैं आप। भीड़ में कम से कम सौ लोग थे ही लेकिन व्यवस्था को बुरा भला कहने की बजाय एक फोन नहीं कर सके। मेरे अनुरोध के बावजूद कुछ लोगों ने ही फोन किया था। मैं तो उस बात को भूल भी चुकी थी लेकिन आश्चर्य है कि उस एक सेकेण्ड की बात में आपको मैं याद कैसे रह गई?”

” कुछ चेहरे एक पल में ही हृदय में प्रवेश कर जाते हैं।” वंशज ने मन में ही कहा।

वंशज ने कोई उत्तर नहीं दिया और मुस्करा दिया। दोनों साथ साथ चलते हुये रेलवे स्टेशन से बाहर आ गये। बाहर आकर लड़की ने अपनी स्कूटी उठाई और वंशज से बोली – “आपको कहॉ जाना है? अगर आप चाहें तो मैं आपको वहॉ तक छोड़ सकती हूॅ?”

” आप परेशान मत होइये, मैं कैब से चला जाऊॅगा। वैसे क्या मैं आपका नाम जान सकता हूॅ?”

” क्या करेंगे नाम जानकर?” कहकर वह मुस्कुराते हुये अपनी स्कूटी स्टार्ट करके चली गई।

वह लड़की तो चली गई लेकिन वंशज के रातों की नींद और दिल का चैन ले गई। वंशज के पापा साड़ियों के थोक विक्रेता थे। वंशज ने आकर पापा से कह दिया कि उसकी ट्रेन छूट गई, इसलिये वह जयपुर नहीं जा पाया।

वंशज की प्यासी ऑखें हर ओर उस लड़की को ढूंढती रहतीं जिसका उसे नाम भी नहीं मालूम था लेकिन कहते हैं ना कि अगर सचमुच किसी से मिलने की सच्ची लगन हो तो ईश्वर को भी तरस आ जाता है।

रेलवे क्रासिंग खुलने के इंतजार में वंशज खड़ा था कि उसके बगल में एक स्कूटी आकर रुकी – ” आप!” दोनों के होंठों से एक साथ निकला।

वंशज ने शरारत से मुस्कराते हुये कहा – ” कुदरत हमें बार बार मिला रही है तो यह उसका कोई इशारा ही है। आज जब तक आप मुझे अपना नाम नहीं बतायेंगी मै आपका पीछा करता रहूॅगा परिणाम चाहे कुछ भी हो।”

” आखिर आप मेरा नाम क्यों जानना चाहते हैं? मैंने तो आपसे आपका नाम नहीं पूॅछा।”

” यह आपकी अपनी समस्या है। आपको मेरा नाम जानने में कोई रुचि नहीं है लेकिन मैं आपका नाम जानना चाहता हूॅ। वैसे मेरा नाम वंशज अग्निहोत्री है।”

तब तक रेलवे क्रासिंग का गेट खुल गया। आगे बढ़ते हुये उस लड़की ने एक शब्द कहा – ” स्वस्तिका।”

” स्वस्तिका!” वंशज के होठ हल्के से बुदबुदाये। जब तक वह कुछ समझ पाता स्वस्तिका की स्कूटी गायब हो चुकी थी।

वंशज अपने सिर पर हल्की सी चपत लगाकर मुस्कराया – ” आज के लिये शायद इतना ही काफी है।”

जल्दी से अपना काम करके घर आ गया। मम्मी से उसने कह दिया कि उसके सिर में दर्द है और वह सोने जा रहा है। कमरे में आकर वह सोशल मीडिया पर स्वस्तिका को ढूंढने लगा। सोशल मीडिया पर उसने स्वस्तिका को ढूंढ कर फ्रेन्ड रिक्वेस्ट भेज दी। अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई। वह हर पॉच मिनट पर देख रहा था कि स्वस्तिका ने उसकी रिक्वेस्ट मंजूर की या नहीं।

तीन दिन बाद वंशज ने देखा उसकी रिक्वेस्ट मंजूर हो गई है। वह खुशी से उछल पड़ा, अब वह स्वस्तिका की प्रोफाइल देख सकता है। उसने तुरंत मैसेज भेजा – बहुत देर कर दी मुझे स्वीकार करने में।”

बदले में स्वस्तिका की स्माइल वाली एमओजी आ गई।

धीरे-धीरे उनके बीच संदेशों के माध्यम से बात होने लगी। वंशज ने अपना व्हाट्सएप्प नम्बर और फोन नम्बर दे दिया लेकिन स्वस्तिका ने न खुद फोन किया और न ही अपना फोन नम्बर दिया।

तीन दिन वंशज आनलाइन नहीं आया तो व्याकुल होकर स्वस्तिका ने उसे फोन कर दिया। किसी लड़की की आवाज आई – ” आप कौन हैं, किससे बात करनी है?”

” मैं स्वस्तिका बोल रही हूॅ। क्या वंशज जी से बात हो पायेगी?”

” भइया को बुखार आ रहा है, वह दवा खाकर सो रहे हैं। उठने पर मैं बता दूंगी।”

स्वस्तिका को चैन नहीं आ रहा था। वंशज बीमार होने के कारण बात नहीं कर रहा था। इतने दिन से अपने मन की जिस भावना को भ्रम मानकर खुद को ही बरगलाती रही, आज उसके पूरे मन मस्तिष्क पर छा गई।‌ हृदय चीख चीखकर कहने लगा कि तुझे भी वंशज से प्यार है।

दो घंटे बाद उसने दुबारा फोन किया तो उसी लड़की ने फोन उठाया और उसके कुछ पूॅछने के पहले ही हॅसते हुये बोल पड़ी – जी हॉ, भइया जग गये हैं।” फिर उसने हॅसते हुये ही कहा – ” लीजिये, कोई आपसे बात करने के लिये तड़प रहा है।” 

फोन के इस ओर स्वस्तिका झेप गई। जब वंशज ने 

” हलो ” कहा तो उससे बोला नहीं गया – ” आप कौन हैं?”

तभी उसी लड़की की आवाज फिर सुनाई दी – ” भइया आपको तो स्वस्तिका जी को सांसों से पहचान लेना चाहिये और आप उनसे ही पूॅछ रहे हैं – ” कौन?” लगता है कि मेरे सामने शरमा रहे हैं। लीजिये, मैं जा रही हूॅ।”

वंशज को विश्वास नहीं हो रहा था कि स्वस्तिका उसे फोन कर सकती है – ” स्वस्तिका तुम….. तुमने मुझे फोन किया था? सब ठीक है ना।”

स्वस्तिका का रुंआसा स्वर सुनाई दिया – ” तुमने अपनी तबियत खराब के बारे में मुझे क्यों नहीं बताया? मैं कितना परेशान थी‌।”

बदले में वंशज हल्के से हॅसा – ” कैसे बताता मैडम, आपने कभी अपना फोन नम्बर तो दिया ही नहीं और दूसरी बात मेरी इस शैतान बहन मधु ने मेरा फोन छीन लिया था। इसका और मम्मी का विचार था कि यदि मेरे हाथ में मोबाइल रहा तो मैं आराम नहीं करूॅगा। तुम्हारा फोन आने पर आज तीन दिन बाद मुझे अपना फ़ोन मिला है।”

वंशज अभी बात कर ही रहा था कि उसके व्हाट्सएप्प पर स्वस्तिका ने अपना मोबाइल नम्बर भेज दिया।

दोनों के बीच सम्बन्ध प्रगाढ़ होने लगे। वंशज की आत्मा में स्वस्तिका बस चुकी थी लेकिन जब भी जीवन भर साथ चलने की बात करता, वह मुकर जाती – ” नहीं वंश, हम आजीवन अच्छे मित्र ही रहेंगे, इससे आगे किसी सम्बन्ध के लिये मत कहो। मैं कभी किसी से विवाह नहीं करूॅगी।”

” क्यों, ऐसी क्या बात है जो तुम मुझसे नहीं कह सकती। या तो कह दो कि तुम मुझे प्यार नहीं करती, मैं तुम्हारी खुशी के लिये सदैव के लिये तुम्हारी जिन्दगी से चला जाऊॅगा।”

” सचमुच मैं तुम्हें पाना नहीं चाहती। तुम किसी से शादी कर लो, यही मेरी ख्वाहिश है। मुझे तुम्हारी यादों के साथ जीवन बिताने में ही खुशी होगी।”

जब किसी तरह स्वस्तिका उससे विवाह करने के लिये तैयार नहीं हुई तो वंशज ने उसे अपनी सौगन्ध देकर कहा – ” तुम्हें सही कारण बताना पड़ेगा। मैं अपने घर वालों को क्या उत्तर दूॅ जो तुम्हें शीघ्र बहू बनाने के लिये तत्पर हैं।”

” ठीक है, मुझे अपने घर ले चलो, मैं सबके सामने कारण बता दू्ॅगी तो सब लोग खुद मना कर देंगे।”

वंशज ने घर में बता दिया तो पापा भी आ गये। वंशज जब स्वस्तिका को लेकर आया तो उसका आलीशान घर देखकर वह दंग रह गई। आते ही उसने पहले मम्मी पापा के चरण स्पर्श करके मधु को गले लगा लिया – ” आज से तुम मेरी बहन भी हो और सहेली भी।”

उसने मिस्टर और मिसेज अग्निहोत्री के हाथ जोड़कर कहा – ” मम्मी पापा मैं वंशज को बहुत प्यार करती हूॅ लेकिन मैं इनसे शादी नहीं करना चाहती। आप कोई लड़की देखकर इनकी शादी कर दीजिये।”

मधु उसे अपने अंक में समेटे हुये हॉल में ले आई। सब लोग आकर वहीं बैठ गये। मधु ने अपने और मिसेज अग्निहोत्री के बीच में स्वस्तिका को बिठाया। वंशज की मम्मी ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुये कहा – ” बताओ बेटा, तुम क्या कहना चाहती हो? क्या तुम्हें मेरा बेटा अपने योग्य नहीं लग रहा है क्योंकि वंशज और हम सबको तुम बहुत अच्छी लगीं। मुझे अपने वंशज की पसंद पर गर्व है।”

” नहीं मम्मी, वंश को पाना तो किसी का भी सौभाग्य होगा लेकिन मैं वह भाग्यशाली नहीं हूॅ।”

स्वस्तिका बताने लगी। कभी नहीं भूल पाई वे यादें –  पापा का शाम को उसके लिये कुछ लाना, स्कूटर पर बिठाकर घुमाना, पैरों पर खड़े करके झूला झुलाना, सीने से लिपटाकर प्यार करना। 

फिर एक शाम घर में एक फोन आया। मम्मी सुरुचि चीखकर बेहोश हो गईं तो सात साल की स्वस्तिका पड़ोस से अंकल और आंटी को बुला लाई। दो दिन तक पड़ोसी भइया दीदी ने उसे घर नहीं आने दिया। जब वह घर आई तो घर मेहमानों से भरा था। नानी और दादी का पूरा परिवार था। सुरुचि ने बेटी को रोते हुये गले से लगा लिया – ” किट्टी, पापा हम दोनों को छोड़कर चले गये।”

” कहॉ चले गये मम्मी?” सुरुचि ने कोई जवाब नहीं दिया और जोर से रोने लगी। तभी दादी का कर्कश स्वर कानों में पड़ा – ” पहले तो डायन खा गई मेरे राजकुमार को और अब नाटक पसार रही है।”

परिस्थितियां बदल चुकी थीं। राकेश की प्राइवेट नौकरी थी, घर भी किराये का था। राकेश के माता पिता ने स्पष्ट कह दिया कि उनके बेटे के साथ ही बहू और पोती का रिश्ता भी मर गया उनके लिये। 

सुरुचि के मम्मी पापा सुरुचि और स्वस्तिका को अपने साथ लिवा लाये। कुछ दिन तक तो ठीक रहा लेकिन शीघ्र ही भाई और भाभी के बदले व्यवहार और तानों उलाहनों से तंग आकर और माता पिता की बेबसी देखकर राकेश के जाने के दो वर्ष बाद ही सुरुचि विवाह के लिये राजी हो गई और नौ साल की स्वस्तिका को लेकर अपने नये पति समीर के घर आ गई। 

समीर सुरुचि को तो बहुत प्यार करते थे लेकिन स्वस्तिका को बिल्कुल नहीं पसंद करते थे। पहले तो उसने सुरुचि से स्वस्तिका को अपने मम्मी पापा के पास ही छोड़ने को कहा। उसका कहना था कि स्वस्तिका ही मनहूस है जिसके कारण राकेश अचानक चले गये लेकिन सुरुचि अपनी बेटी को किसी भी तरह अपने से अलग करने के लिये तैयार नहीं हुई।

सुरुचि के अथाह प्यार और समीर की नफरत के बीच स्वस्तिका बड़ी होने लगी। समीर के घर में सब कुछ था लेकिन पिता का प्यार नहीं था। समीर सुरुचि से जितना प्यार करता था स्वस्तिका से उतनी ही नफरत। समीर चाहता था कि सुरुचि जल्दी से उसके बच्चे की मॉ बन जाये लेकिन सुरुचि जानती थी कि यदि समीर को अपना बच्चा मिल गया तो वह स्वस्तिका को और अधिक दुत्कारने लगेगा।

इसलिये वह नहीं चाहती थी कि उसे अब दूसरा बच्चा हो। इसके लिये भी समीर सुरुचि को ही ताने मारता – ” तुम मुझसे छुपकर जरूर कुछ ऐसा करती हो जिससे हमें अपनी संतान नहीं हो रही है।”

” किट्टी भी तुम्हारी ही बेटी है। वह पिता के प्यार को तरसती है, उसे अपना थोड़ा सा प्यार दुलार दो।”

” वह मेरी बेटी नहीं है, फिर भी तुम्हारे कारण उसे अपनाकर सारी सुख सुविधायें तो दे रहा हूॅ। इससे अधिक मैं कुछ नहीं दे सकता। मेरी अम्मा अपने पोते या पोती की रट लगाये हैं और तुम्हें मेरी या मेरे परिवार की इच्छाओं से कोई मतलब ही नहीं है। सोच लो अगर तुमने मुझे मेरा बच्चा नहीं दिया तो मैं तुम्हारी बेटी को अपने घर में नहीं रहने दूॅगा।” 

सुरुचि के सामने अब कोई रास्ता नहीं था। राकेश और उसके घर वाले यदि उसे अपना लेते तो वह कभी दूसरी शादी न करती। मायके लौट नहीं सकती थी।

इसी उधेड़बुन में पॉच साल बीत गये। स्वस्तिका नवीं कक्षा में आ गई और सुरुचि गर्भवती हो गई। समीर खुश रहने लगा, अब वह स्वस्तिका को भी थोड़ा थोड़ा प्यार करने लगा। स्वस्तिका और सुरुचि को लगा कि आने वाले बच्चे के कारण सब बदल जायेगा। सुरुचि का आठवां महीना लग गया तो समीर ने प्रसव के लिये अपनी मॉ और बहन को बुला लिया।

समीर की मॉ ने समीर के हर समय कान भरने शुरू कर दिया – ” अब तुम्हारा अपना बच्चा हो जायेगा तो तुम्हें इस मनहूस को पालने की क्या जरूरत है? यह रहेगी तो सुरुचि तुम्हारे बच्चे पर कम ध्यान देगी, इसे मेरे साथ भेज देना। चौदह साल की हो गई है, गांव के काम सिखा दूंगी और कुछ दिन बाद वहीं गांव में ही शादी करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना।”

” मैं तो पहले ही इसे नहीं लाना चाहता था लेकिन सुरुचि के कारण लाना पड़ा वह नहीं मानेगी।” 

” तुम चिन्ता मत करो, मैं सब ठीक कर दूॅगी।”

लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हुआ। सुरुचि ने समीर से कहा – ” मुझे लग रहा है कि बच्चा पेट में हिल डुल नहीं रहा है। किट्टी तो इतनी धमाचौकड़ी मचाती थी कि क्या बताऊॅ?”

” सारे बच्चे तुम्हारी किट्टी जैसे नहीं होते। यह मेरे समीर का बच्चा है – शान्त और गंभीर। अभी डॉक्टर के यहॉ जाने की जरूरत नहीं है बेकार भर्ती कर लेंगे। डॉक्टरों को तो पैसे से मतलब होता है।”.

समीर ने भी मॉ की बात का समर्थन किया – ” मॉ बहुत अनुभवी हैं। एक दो दिन देख लो, सब सही हो जायेगा।”

” लेकिन समीर, मेरे पेट में दर्द बढ़ता जा रहा है। मुझे डॉक्टर के पास ले चलो।”.

” गर्भावस्था में ऐसे हल्के फुल्के दर्द होते ही रहते हैं। मेहनत करो तो बच्चा पैदा होने में आसानी होगी। सामान्य प्रसव हो जायेगा, वरना डॉक्टर आपरेशन का झमेला बता देंगे।” समीर को भी अपनी मॉ की बात ही सही लग रही थी। इसलिये उसने सुरुचि की पीड़ा पर ध्यान नहीं दिया।

तीन दिन बीत गये, जब सुरुचि के पेट का दर्द बढ़ता ही  गया तो उसे डॉक्टर के पास ले गये लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बच्चा तीन दिन पहले ही पेट में मर चुका था और उसका जहर इतना फैल गया था कि सुरुचि को भी बचाया नहीं जा सका।

सास ने अपनी गलती मानने की बजाय स्वस्तिका को थप्पड़ों से मारना और कोसना शुरू कर दिया – ” मना किया था कि इस मनहूस लड़की को मेरी बहू और पोते से दूर रखो लेकिन मेरी किसी ने न सुनी। डायन पहले अपने बाप को खा गई, अब अपनी मॉ और मेरे वंश के चिराग को जन्म लेने के पहले ही खा गई। समीर इस लड़की को कहीं दूर जाकर फेंक आओ, नहीं तो पता नहीं क्या क्या अनर्थ देखना पड़ेगा।” 

स्वस्तिका फटी फटी ऑखों से सुरुचि को देख रही थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मम्मी उसे इस तरह पूरी दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गईं। अब न उसके मम्मी हैं और न पापा। उसके बाल मस्तिष्क में यह बात घर करती जा रही थी कि सचमुच वह मनहूस और अभागी है, तभी तो अनाथ हो गई है।

लेकिन सुरुचि के मरने के बाद समीर में अचानक एक परिवर्तन आ गया। वह बोला – ” नहीं अम्मा भले ही यह मेरी बेटी नहीं है लेकिन सुरुचि की निशानी है। मैं इसे पिता का प्यार भले ही नहीं दे पाया लेकिन इसके पालन पोषण, पढ़ाई लिखाई का पूरा दायित्व मेरा है। यह मेरे साथ रहेगी,  मैं इसे कहीं जाने नहीं दूॅगा।”

स्वस्तिका जो अभी तक समीर को अंकल कहती थी, आकर उससे लिपट गई – ” पापा, आपके सिवा मेरा कोई नहीं है।”

समीर और स्वस्तिका यदि अकेले घर में रहते तो एक दूसरे को अधिक अच्छे से समझ लेते लेकिन अपनी मॉ के दिन रात एक ही बात दोहराते रहने से समीर  मस्तिष्क में भी यह बात घर कर गई कि स्वस्तिका मनहूस है, उसी के दुर्भाग्य और मनहूसियत के कारण राकेश, सुरुचि और उसके बच्चे की मृत्यु हुई है। उसने स्वस्तिका की ओर देखना तक छोड़ दिया, केवल उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर देता।

एक वर्ष के अन्दर समीर ने सारिका से विवाह कर लिया। सारिका एक बेफिक्र और चंचल तितली जैसी लड़की थी। यह विवाह उसकी मर्जी से नहीं हुआ था लेकिन उसके माता-पिता को बिना दहेज के इतना अच्छा लड़का मिल रहा था तो उन लोगों ने सारिका की इच्छा की परवाह किये बिना उसकी शादी समीर से कर दी। 

सारिका स्वस्तिका से बहुत अच्छा व्यवहार करती थी। स्वस्तिका का हाई स्कूल था तो उसने समीर से कहकर उसके कोचिंग क्लास शुरू करवा दिये।‌ स्वस्तिका हाई स्कूल में बहुत अच्छे नम्बरों से पास हो गई और आगे की पढ़ाई शुरू कर दी।

प्रमोशन के साथ समीर की जिम्मेदारी बढ़ गई, अब वह अक्सर टूर पर जाने लगा। घर में केवल स्वस्तिका और सारिका रह गये। सारिका ने स्वस्तिका को सिलाई कढ़ाई का कोर्स यह कहकर शुरू करवा दिया कि यह हाथ का ऐसा हुनर है जो हमेशा काम आयेगा। आगे चलकर वह चाहे तो फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर ले या अपना बुटिक खोल ले। स्वस्तिका का बिल्कुल मन नहीं था, वह पढ़ाई में अपना पूरा ध्यान लगाना चाहती थी लेकिन फिर उसे लगा एक साल की तो बात है। वह घर आकर अधिक मेहनत कर लेगी। सच तो यह है कि वह सारिका को नाराज नहीं करना चाहती थी। 

वह स्कूल से सीधे अपने कोर्स के लिये चली जाती। एक दिन पता नहीं क्या हुआ कि वह जब घर आई तो समीर घर में ही था जबकि वह दो दिन पहले ही एक सप्ताह के लिये बाहर गया था। घर के बोझिल वातावरण को देखकर वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई। 

सारिका और समीर के झगड़े से उसे पता चला कि समीर को पता चला था कि उसके टूर पर जाने के बाद कोई उसके घर आता है। इसी कारण आज उसने सारिका और एक लड़के को रंगे हाथों पकड़ लिया। सुबह जब वह सोकर उठी तो सारिका ने उससे कहा कि समीर हमेशा के लिये घर छोड़कर चला गया है, यदि वह उसके साथ रहना चाहे तो उसे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उसे अपने ऑख और कान बन्द करके रहना पड़ेगा।‌ 

स्वस्तिका के सामने कोई रास्ता नहीं था, वह क्या करती, कहॉ जाती। उसका कोई सहारा नहीं था, समीर भी जा चुका था।‌ उसने सारिका की शर्त मान ली।

बाद में उसे पता चला कि पकड़े जाने पर भी सारिका ने शर्मिन्दा होने की बजाय स्पष्ट कह दिया कि वह चुपचाप घर छोड़कर चला जाये, वरना उसकी लाश का भी पता नहीं लगेगा। साथ ही किसी को कुछ पता नहीं लगना चाहिये, वरना परिणाम अच्छा नहीं होगा।

सारिका ने सबसे कह दिया कि समीर की विदेश में नौकरी लग गई है और वह दो साल के लिये चला गया है। स्वस्तिका ने सचमुच अपनी आंखें बन्द करके होठ सिल लिये। उसका एक वर्ष का कोर्स पूरा हो गया, अब उसके पास डिप्लोमा था। धीरे-धीरे स्वस्तिका की बारहवीं की परीक्षा भी हो गईं।

वैसे तो स्वस्तिका सारिका क्या कर रही है कभी ध्यान नहीं देती थी क्योंकि सारिका उसका बराबर ख्याल रखती थी। उसकी फीस, किताबें, कपड़ों के अतिरिक्त सारी जरूरतें बिना कहे पूरी हो जाती थीं।

समय बिताने के लिये स्वस्तिका अपने ट्रेनिंग सेंटर से सिलने के लिये कपड़े ले आती। एक दिन सारिका के कमरे का दरवाजा खुला रह गया तो उसे अन्दर होने वाली बातें सुनाई देने लगीं – ” मेरी समझ में नहीं आ रहा कि तुम इस लड़की को क्यों ढो रही हो? इसे भी घर से भगाओ।”

” तुममें अकल तो है नहीं इसलिये आगे की बात सोच नहीं पाते हो। यह लड़की मेरे लिये किसी खजाने से कम नहीं है। जितना इस पर खर्च कर रही हूॅ कई गुना वसूल हो जायेगा।”

” वैसे लड़की है सुन्दर। कभी कभी तो मेरी लार टपक जाती है।”

सारिका ने शायद अन्दर उस लड़के के गाल पर थप्पड़ मारा था – ” अरे… मार क्यों रही हो? मैंने तो ऐसे ही कह दिया है। मेरे लिये तो तुमसे अच्छा कोई है ही नहीं।”

” मेरे होते हुये उसकी ओर देखना भी नहीं क्योंकि मै इसकी किसी ऐसे पैसे वाले घर में शादी करवा दूॅगी जहॉ लडका पागल या विकलांग हो और इसके बदले उस परिवार से ढेर सारा पैसा वसूल कर लूॅगी लेकिन उसके पहले इसकी ऐसी शर्मनाक वीडियो बना लूॅगी जिसे दिखाकर हमेशा ब्लैकमेल किया जा सके।”

” तुम बहुत चालाक हो सारिका पूरी जिन्दगी ऐश करने का इंतजाम कर लिया है।” यह कहकर दोनों ठहाके लगाकर हॅस पड़े।

” और क्या बेवकूफ हूॅ कि इतने दिनों से इसे पाल रही हूॅ। न तो मैं इसकी सगी मॉ हूॅ और न सौतेली। “

थोड़ी देर बाद फिर वही पुरुष स्वर सुनाई दिया – ” क्या कोई ऐसा बेवकूफ मिल गया है?”

” अभी तो नहीं मिला है लेकिन मैं कोशिश कर रही हूॅ, जल्दी ही मिल जायेगा।”

इसके बाद उन दोनों के अंतरंग होने की आवाजें आने लगीं तो स्वस्तिका वहॉ से हटकर अपने कमरे में आ गई। 

उसका दिल कॉप गया सारिका की योजना सुनकर। सचमुच सारिका तो उसकी मॉ ही नहीं है। न सगी और न सौतेली।

क्या करे, कहॉ जाये? कोई भी तो उसका नहीं है, नाना नानी भी अब नहीं हैं लेकिन यहॉ रहकर तो वह ऐसे नरक में पटक दी जायेगी जहॉ से कभी नहीं निकल पायेगी।  आखिर उसने अपने मन में एक निर्णय ले लिया और दूसरे दिन ही ट्रेनिंग सेंटर के सिले हुये कपड़ों के साथ अपनी सारी जमा-पूंजी, दो जोड़ी कपड़े और हाईस्कूल के प्रमाणपत्रों को एक हैंडबेग में डालकर निकल आई। अपना मोबाइल उसने घर में ही बन्द करके छोड़ दिया।सारिका जानती थी कि वह ट्रेनिंग सेंटर के कपड़े सिलती है लेकिन उसने स्वस्तिका से न तो कभी पैसे के बारे में पूॅछा था और न ही उससे पैसे लिये थे बल्कि जेबखर्च के रूप में उसे जबरदस्ती पैसे दे देती। इसीलिये स्वस्तिका के पास काफी पैसे थे।

शायद इसी सारे दिखावे के कारण उसने स्वस्तिका का विश्वास जीत लिया था। अगर खुद न सुनती तो सारिका की इतनी घृणित योजना को कभी न समझ पाती। वह तो उसके दिखावे को ही सच मान रही थी।

घर से निकलकर वह एक अनजान सफर के लिये चल दी। उसने जो ट्रेन सामने खड़ी देखी उसी की टिकट लेकर यहॉ आ गई।‌ स्टेशन से निकल कर वह जिस भी होटल में जाती, उसे अकेले बिना सामान के देखकर उसे ठहरने की जगह नहीं मिली। तब उसने एक बड़ा सा सूटकेस लिया और अपना थोड़ा सामान उसमें रखकर बाकी हैंडबैग में ही रहने दिया। 

आखिर एक आटो वाले ने कुछ अतिरिक्त पैसे लेकर उसे एक सस्ते से होटल में कमरा दिला दिया।

स्वस्तिका के पास करीब पन्द्रह हजार रुपये थे जिनसे अभी का काम तो चल जायेगा लेकिन कब तक? इसलिये उसने आसपास पता करना शुरू कर दिया। उसने बताया कि वह एक गरीब परिवार की लड़की है उसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है। इसलिये वह आजीविका की तलाश में यहॉ आई है। शीघ्र ही डिप्लोमा और अपने सिले कपड़ों के आधार पर और एक वेटर की सहायता से उसे एक टेलरिंग शाप में स्त्रियों के कपड़ों की सिलाई का काम मिल गया।

टेलर मास्टर का कहना था कि उसकी दुकान में किसी लड़की के बैठने की व्यवस्था नहीं है तो वह कपड़े घर में सिलकर दुकान पर दे जाया करे। उसके लिये मशीन की व्यवस्था वह कर देंगे लेकिन जब उसने उन्हें अपनी समस्या बताई कि उसके पास तो घर है ही नहीं। तबटेलर मास्टर ने उसे हाथ से करने वाले काम जैसे साड़ियों में फाल लगाना, बटन और तुरपन जैसे काम दे दिये और आश्वासन दिया कि वह आस-पास पता करके उसकी समस्या हल करने में उसकी मदद करेंगे।

शीघ्र ही उसी दुकान में काम करने वाले कारीगर के घर की तीसरी मंजिल में उसे टीन की छत वाला कमरा मिल गया। स्वस्तिका ने कड़ी मेहनत करना शुरू कर दिया।‌ उसने सिलाई को ही अपना कैरियर बनाने का निर्णय किया। अपने स्कूल से बारहवीं का प्रमाणपत्र मंगवा कर प्राइवेट स्नातक का फार्म भरा और साथ ही सिलाई सम्बन्धी कौशल कोर्स या ऐसे ही छोटे छोटे कोर्स करने लगी ताकि उसे अधिक से अधिक कुशलता और प्रवीणता प्राप्त हो सके। 

टेलर मास्टर उसके काम से बहुत खुश थे। स्वस्तिका के आने के बाद उनकी आय बहुत बढ गई थी। स्नातक करते करते उन्होंने अपनी दुकान में स्वस्तिका के लिये एक छोटा सा केबिन बनवा दिया, जहॉ पर बैठकर स्वस्तिका अपना कार्य करती थी और स्त्री ग्राहकों के कपड़ों की नाप लेने लगी ‌

धीरे-धीरे पैसे जमा करके स्वस्तिका ने उसी दुकान के बगल में अपनी एक दुकान खोल ली। अब उसकी दुकान में केवल स्त्रियों के कपड़े सिले जाते थे। समय के साथ स्त्री कारीगरों की संख्या बढ़ती गई और सुकेशा परिधान ने पूरे शहर में अपनी पहचान बना ली।

इतना कहकर स्वस्तिका थोड़ी देर चुप हो गई फिर स्वयं ही बोली – ” यही मेरे जीवन की सच्चाई है।”

सभी मन्त्रमुग्ध से सुन रहे थे तभी मिसेज अग्निहोत्री ने उसके सिर पर हाथ रख दिया -” मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि इतनी प्यारी कोमल सी दिखने वाली लड़की इतनी बहादुर हो सकती है लेकिन दुकान का नाम सुकेशा क्यों रखा तुमने?”

स्वस्तिका हल्के से मुस्कुराई – ” सुरुचि और राकेश को मिलाकर ही यह नाम रखा ताकि हर व्यक्ति मुझसे पहले मेरे मम्मी पापा का नाम ले।”

तभी मिस्टर अग्निहोत्री का भारी स्वर गूंजा – ” लेकिन तुम वंशज से शादी क्यों नहीं करना चाहती? “

” मैं मनहूस और दुर्भाग्य हीन हूॅ पापा। मैं नहीं चाहती कि मेरे दुर्भाग्य की छाया मेरे प्यार पर पड़े। वंशज हमेशा खुश रहें, मेरी हमेशा यही चाहत रहेगी।”

उसकी आंखें आंसुओं से भीग गई – ” छोटी‌ सी जिन्दगी है। जब तक शरीर में ताकत है काम करूॅगी और उसके बाद हरिद्वार के किसी आश्रम में चली जाऊॅगी।”

” ठीक है, अगर तुम वंशज से शादी नहीं कर सकती तो आज से इस घर में मेरी बेटी बनकर रहोगी क्योंकि जब ईश्वर ने मुझे इतनी प्यारी और बहादुर बेटी दे दी है तो मैं अब तुम्हें कहीं जाने नहीं दूॅगी। कौन कहता है कि तुम मनहूस और भाग्यहीन हो तुम तो अंधेरे को दूर करने वाला चमकता हुआ हीरा हो जिसने इतनी विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को आगे बढ़ाया और अपनी पहचान बनाई।”

” सचमुच स्वस्तिका तुम अद्भुत हो, अपार क्षमता है तुममें।बस  मेरे जीवन में आना स्वीकार कर लो, हम सब तुमको बहुत प्यार करेंगे।” वंशज उसकी कुर्सी के पास आ गया।

” दूर रहो वंश, अभी उसने फैसला नहीं किया है कि उसे मेरी बेटी बनना है या बहू।” यह वंशज की मम्मी थीं।

” लेकिन मम्मी, कहीं मेरे दुर्भाग्य की छाया से आप लोगों पर कोई विपत्ति आई तो मैं क्या करूॅगी? इससे अच्छा है कि समझ लीजिये कि हम आज आखिरी बार मिल रहे हैं।”

” बेटा, सुख दुख, विपत्ति, दुर्भाग्य जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के अतिरिक्त कुछ नहीं है। वह किसी न किसी माध्यम से घटती ही हैं और रही विपत्ति की बात तो क्या पहले हमारे ऊपर कभी कोई विपत्ति नहीं आई थी? या वह तुम्हारे चले जाने से नहीं आयेगी ? भवतव्यता अवश्यंभावी है, उसे कोई नहीं रोक सकता। इसलिये तुम बिना किसी डर और पूर्वाग्रह के हमारे परिवार का सदस्य बनना स्वीकार कर सकती हो लेकिन निर्णय तुम्हें करना है।” मिस्टर अग्निहोत्री का धीर गंभीर स्वर।

” आप सब बहुत अच्छे हैं और हमेशा मेरे हृदय में विशेष स्थान पर रहेंगे लेकिन अपने मनहूस दुर्भाग्य की छाया का क्या करूंगी जो हर पल मेरे साथ रहती है और मुझे सहारा देने वाले को ही निगल जाती है। अब मुझे न तो किसी को प्यार करना है और न किसी के जीवन में प्रवेश करना है। मैंने एकाकी जीवन का खुद चयन किया है। आप लोग मेरी चिन्ता मत करिये।”

मिसेज अग्निहोत्री ने उसे गले से लगा लिया – ” दुबारा अपने को मनहूस या भाग्य हीन कहा तो थप्पड़ मारूंगी। इतनी बहादुर और निडर होकर एक अनजान शहर में और स्वयं संघर्ष करके अपनी पहचान बनाकर यहॉ तक पहुंचने के लिये  ईश्वर को धन्यवाद देने के स्थान पर अपने अन्दर के डर पर ही अभी तक विजय नहीं पा सकी।”

स्वस्तिका इतना प्यार पाकर सिसकने लगी। उसके सुन्दर कपोल ऑसुओं से तर हो गये। उसने नजर उठाकर देखा तो चार जोड़ी प्यार भरी ऑखें उसे ही देख रही थीं।

तभी एक कोमल स्वर गूंजा – ” हॉ स्वस्तिका अगर तुम्हें बहू बनना स्वीकार होगा तो वंशज अभी तुम्हें अंगूठी पहना देगा और अगर तुम्हें बेटी बनना स्वीकार हो तो वंशज को राखी बांध देना।” मिसेज अग्निहोत्री अन्दर ही अन्दर अपनी ही शरारत के लिये मुस्कुरा रही थीं।

” हॉ स्वस्तिका, दोनों में से एक विकल्प तो तुम्हें चुनना ही पड़ेगा।” मधु और मिस्टर अग्निहोत्री एक साथ बोल पड़े।

स्वस्तिका ने शर्माई सी एक दृष्टि वंशज पर डाली और धीरे से सिर झुकाकर कहा – ” मुझे अंगूठी स्वीकार है।” 

मिसेज अग्निहोत्री भागकर अन्दर गईं और अलमारी से बहुत खूबसूरत दो अंगूठियां निकाल लाईं। स्वस्तिका उनकी ओर देखने लगी तो उन्होंने हंसते हुये कहा – ” तुम्हें अंगूठी स्वीकार है तो मेरे बेटे के हाथ क्या खाली रहेंगे ?”

मधु आकर स्वस्तिका से लिपट गई – ” भाभी, मेरी प्यारी भाभी।” 

एक वर्ष के अन्दर ही वंशज का अंश उसके भीतर समा गया लेकिन पूरे गर्भकाल में उसके अचेतन के भय ने उसे एक पल के लिये भी चैन से नहीं रहने दिया।

इसीलिये प्रसव के बाद जैसे ही उसके कानों में नर्स का स्वर पड़ा – ” डॉक्टर, बच्चा रो नहीं रहा है।”

आशंका और भय से धड़कते उसके हृदय ने जैसे धड़कना ही बन्द कर दिया। वह अचेत हो गई। डॉक्टरों के सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे थे। ऐसा लगा कि जैसे स्वस्तिका ने जीने की आशा ही छोड़ दी हो। 

तभी डॉक्टर को कुछ याद आया उसने स्वस्तिका के गाउन के बटन खोलकर उसके नग्न वक्ष पर बच्चे को लिटा दिया और स्वस्तिका का स्तन बच्चे के मुंह में दे दिया। 

ममता और वात्सल्य की हिलोरें धीरे-धीरे लुप्त मस्तिष्क तक पहुॅचने लगीं और स्वस्तिका ने ऑखें खोलीं तो वक्ष पर लेटा नन्हा शिशु उससे अपना अधिकार मांग रहा था।

स्वरचित एवं अप्रकाशित 

लेखिका/ लेखक बोनस प्रोग्राम – आठवीं कहानी

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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