कर्मों का फल तो इसी धरती पर मिलता है – मंजू ओमर 

शकुन्तला जी अपने कमरे में बैठीं बैठी आंसू बहा रही थी । अपने कर्मों पर ,जो कुछ उन्होंने अपने परिवार के साथ और खास तौर से अपने पति श्रीनिवास के साथ किया था उसकी गणना कर रही थी।आज खुद जिस स्थिति में है उसका हिसाब किताब लगा रही थी। जिसकी जिम्मेदार वो खुद थी कोई और नहीं।और सोचं रही थी अपने कर्मों का फल हर इंसान को इसी दुनिया में रहकर इसी जीवन में मिल जाता है। कहीं और नहीं जाना पड़ता , स्वर्ग नरक सब यही है।

                       शकुन्तला जी अपने परिवार में तीन भाई और इकलौती बहन थी। बड़े लाड़-प्यार से पली थी । उनके पिता जी उन्हें बहुत प्यार करते थे। देखने सुनने में भी अच्छी थी और पढ़ी लिखी भी थी। उनकी शादी जब पिताजी ने श्रीनिवास जी से तय की तो श्रीनिवास जी शकुन्तला को कुछ खास पसंद नहीं थे।

लेकिन श्रीनिवास जी की रेलवे में पक्की नौकरी थी और परिवार से अलग रहते थे तो शकुंतला जी के लिए पिता जी को ये रिश्ता ठीक लगा। क्योंकि शकुन्तला जी बड़े लाड़-प्यार में पली थी और बहुत जिद्दी भी थी । किसी की बात जल्दी नहीं मानती थी। शकुन्तला के पिता जी को पता था कि बेटी परिवार में थोड़ा सामंजस्य नहीं बना पाएगी तो लड़का परिवार से अलग रहता था तो दामाद के रूप में श्रीनिवास जी उनको पसंद आ गए थे।

                   श्रीनिवास जी चार भाई और तीन बहनें और माता पिता का भरा पूरा परिवार था।उनको पता था कि   घर का बड़ा होने के कारण जिम्मेदारी यां उनपर बहुत थी। बहनें तीनों बड़ी थी तो उनका विवाह श्रीनिवास से पहले हो गया था ‌बाकी दो छोटे भाई अभी पढ़ रहे थे।और दूसरे वाले भाई की अभी अभी स्कूल में अध्यापक के पद पर नियुक्ति हुई है। श्रीनिवास जी को अपनी सैलरी से कुछ पैसा घर में देना पड़ता था, क्योंकि घर में माता पिता और छोटे भाई थे । पिताजी काम धंधे से रिटायर थे।

                    अब श्रीनिवास जी की शादी शकुन्तला से हो गई। कुछ दिन ससुराल में रहकर शकुन्तला श्रीनिवास जी के साथ वही चली गई जहां श्रीनिवास जी की पोस्टिंग थी। शादी तो हो गई लेकिन शकुन्तला जी श्रीनिवास जी को दिल से पसंद नहीं करती थी। लेकिन अब शादी हो गई है तो क्या कर सकते हैं।अब वो इसी बात का खुदकं निकालती थी कि घर पर पैसे नहीं भेजों। श्रीनिवास जी थोड़े कड़क स्वभाव थे उन्होंने कहा देखो अभी घर में पैसों की जरूरत है ,भाई पढ़ रहे  है और पिताजी रिटायर है तो जबरदस्ती पैसे भेज देते थे । 

          फिर समय के साथ शकुन्तला को दो बेटे हुए । श्रीनिवास जी के अब तीसरे भाई भी नौकरी पर आ गए थे।अब दोनों छोटे भाई भी घर पर पैसे भेजने लगे थे।अब सिर्फ सबसे छोटा भाई ही रह गया था पढ़ाई करने को। शकुन्तला जी के बच्चे बड़े हो गए थे। ऐसे ही एक दिन श्रीनिवास जी स्कूटर से ड्यूटी जा रहे थे कि सामने से ट्रक से एक्सीडेंट हो गया था।

बड़ा एक्सीडेंट था सिर में काफी चोट आई थी। अस्पताल में भर्ती किया गया ,एक महीने बाद श्रीनिवास जी को होश आया । यादाश्त नहीं थी फिर धीरे-धीरे यादाश्त लौटने लगी ।इस सबमें छै महीने का वक्त लग गया ।आन ड्यूटी एक्सीडेंट हुआ था तो रेलवे ने ही सारा खर्च उठाया। उसके बाद श्रीनिवास जी ने फिर से ड्यूटी ज्वाइन कर ली ।

इतनी बड़ी चोट थी तो दिमाग में कुछ तो असर आ गया था ।थोड़े कड़क मिजाज थे श्रीनिवास जी लेकिन अब उनका गुस्सा जैसे खत्म हो गया था । हंसते रहते थे कुछ चीजें भूल भी जाते थे । बोलचाल में हाव-भाव में थोड़ा अंतर आ गया था । डाक्टर ने कहा इतने बड़े एक्सीडेंट के बाद दिमाग थोड़ा कमजोर हो जाता है ।

                 फिर क्या था शकुन्तला जी अब जैसे उनके ऊपर हावी रहती थी ‌एक तो पहले से ही उनको पसंद नहीं करती थी अब एक्सीडेंट और हो गया। किसी से बात चीत नहीं करने देती थी । पैसे कि सारा हिसाब किताब खुद ही रखने लगी थी । कोई भी व्यक्ति उनसे मिलने आता चाहे वो आफिस का हो या ऐसे ही मिलने नहीं देती पहले खुद उससे बात करती ।

और श्रीनिवास जी से कहती जाओ अंदर मुझे बात करने दो तुम्हें बात करने की कोई जरूरत नहीं है ।इस तरह के व्यवहार से उनके घर अब श्रीनिवास जी से मिलने आने वाले नहीं आते अब। परिवार वालों से भी दूर कर दिया । मां कभी कभार मिलने आती तो उनको भी बाहर से जाने को कह देती । श्री निवास जी के खाने पीने पर भी रोक लगा दी थी।

कहती उनका दिमाग सही नहीं रहता अब इस लिए फालतू चीजें नहीं खानी है।अब शकुन्तला जी तो पति को पहले से ही पसंद नहीं करती थी ,अब हर वक्त बात बात में झिड़कना, चिल्लाना और लड़ाई करना उनकी आदत मैं शामिल हो गया था। हालांकि श्रीनिवास जी एक्सीडेंट के बाद करीब दस साल नौकरी पर रहे । उसके बाद रिटायर हुए।

                   अब श्रीनिवास जी बिल्कुल घर में बंद होकर रह गए ।न कोई दोस्त न नौकरी न कोई परिवार से मेल मिलाप और भी कुंठित हुए जा रहे थे।कहीं कोई शादी ब्याह या फंक्शन में जाना हो तो उनको घर में बंद कर जाती या कभी ज़रूरी है तो गए ही तो वहां खाना नहीं खाना है ,घर पर लौकी की सब्जी और रोटी बनी रखी है वहीं खाना है ।हर वक्त लौकी लौकी खाकर श्रीनिवास जी ऊब गए थे तो जहां कहीं खाने का मौका मिल जाता फिर तो वो तबियत से खा लेते। फिर उनको उल्टी दस्त लग जाते थे।

             घर पुराने तरीके का था ।अब श्रीनिवास जी की भी उम्र हो रही थी थोड़े भारी शरीर के भी थे ।घर में देसी टायलेट था जिसमें उन्हें जाने में परेशानी होती । श्रीनिवास जी शकुन्तला से कहते शकुन एक वेस्टर्न कल्चर का सीट लगवा दो और एक छोटा सा वाशवेशिन लगवा दो बहुत दिक्कत होती है , देखो छोटे ने कितना अच्छा मकान बनवाया है (छोटा मतलब छोटा भाई)तो शकुंतला जी ने डांट दिया कुछ नहीं बनेगा जैसा है वैसा ही रहेगा ।

श्रीनिवास जी तो कुछ कर नहीं सकते थे पैसा सब शकुन्तला जी के पास ही रहता था।अक्सर लड़ाई हो जाती थी तो बच्चों के पास शिकायत जाती , दोनों बच्चे बाहर थे। पापा कुछ न करते हुए भी दोषी करार दिए जाते उन्हीं कै डांट पड़ जाती । बच्चे भी अब ऊब गए थे मम्मी पापा के इस रोज़ रोज़ के झगडे से। शकुन्तला जी ने पति का जीना हराम कर रखा था।बोलती भी बहुत ज्यादा थी शकुन्तला जी।

               फिर एक दिन बाथरूम से आते वक्त श्रीनिवास जी का पैर फिसला और गिर पड़े और कूल्हे की हड्डी टूट गई।बड़ा बेटा बहू लखनऊ में रहते थे तो एम्बूलैंस से वहां ले गए बेटा बहू और वहां उनका आपरेशन कराया ‌और अपने पास रखा। यहां पर घर में शकुन्तला जी अकेले ही रही ।एक बार देखने भी नहीं गई । श्रीनिवास जी फोन करते हलो शकुन तुम भी आ जाओ यहां अकेले बहू को परेशानी होती है तो कभी तो बात करती कभी न बात करती ।और ऐसे ही खींच-तान के रिश्ता चलता रहा और 75 साल की उम्र में श्रीनिवास जी की मृत्यु हो गई।

               अब बहुत बोलने वाली शकुन्तला की बोलती बंद हो गई । खुद भी बीमार हो गई ।दिखाई भी कम देने लगा और सुनाई भी कम देने लगा । फिर छोटा बेटा जो अहमदाबाद में था वो ले गया अपने पास । वहां उनको एक कमरा दे दिया गया है अब चलने फिरने में भी असमर्थ हो गई है । कोई भी बात नहीं करता है ।बस कमरे में अकेले पड़ी पड़ी घुटती रहती है । परिवार के किसी भाई बहन ,देवर देवरानी से संबंध अच्छे नहीं हैं ।

सब भाई बहन और पत्नियां कहती हैं कि भाभी को तो उनके कर्मों की ही सजा मिल रही है जैसा किया है वैसा ही भुगत रही है ।भाई कहते कितना परेशान किया था भइया को ,जीना दूभर कर दिया था भाई का ।अब तरस रही है कि कोई हमसे बोलता नहीं है , मेरे पास बैठता नहीं है घड़ी भर को। क्या करूं बस जिंदगी के दिन काट रही हूं।किस तरह से पति को परेशान करती थी ये सभी जानते हैं ।और सब यही कहते हैं कि भाभी को तो उनके कर्मों की सजा मिल रही है । भाभी भी अकेले पड़ी पड़ी कुछ तो अपने किए पर पछतायी होगी की नहीं।

         पाठकों किए हुए कर्मों का फल इसी जीवन में मिल जाता है ‌स्वर्ग नर्क सब यही धरती पर है और सबके कर्मों की सजा इंसान को यही पर मिल जाता है ।इस लिए किसी के साथ भी बुरा न करें करने से पहले थोड़ा सोचें जरूर । क्यों कि बाद में तो सिर्फ पछतावा हाथ आता है और कुछ नहीं।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश 

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