रिटायरमेंट – लक्ष्मी त्यागी

शाम का समय था ,चमनलाल जी ,के लिए फोन आया ,उन्होंने फोन उठाया ,दूसरी तरफ से उनके मित्र केशव लाल जी का फोन था, उलाहना देते हुए बोले -अरे यार! क्या कर रहे हो ?अभी तक यहाँ नहीं पहुंचे। 

आ रहा हूँ ,कहते हुए उन्होंने तुरंत फोन रखा और बच्चों से बोले -जो कार्य मैंने तुम्हें याद करने के लिए दिया है ,वो हो जाना चाहिए उसके पश्चात मैं आऊंगा ,तब तुम्हारे साथ खेलूंगा। 

दादा जी !फोन तो दे दीजिये !उनके पोते ने मुँह बनाते हुए कहा। 

हाँ हाँ फोन भी दूंगा किन्तु उससे पहले, जो कार्य दिया है ,वो पूरा हो जाना चाहिए। अभी मैं जा रहा हूँ ,मेरे दोस्त बग़ीचे में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं किन्तु मेरे आने तक कार्य पूरा हो जाना चाहिए वरना कुछ नहीं मिलेगा ,सख़्त लहज़े में चमनलाल जी बोले। बच्चे मुँह बनाते रहे और चमनलाल जी चले गए। 

जब वो बग़ीचे में पहुंचे ,उनके मित्र उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे ,बोले -अब आ रहे हैं ,ऐसे कहाँ व्यस्त रहते हैं ?अब तो” सेवानिवृत्त” हो चुके हैं फिर किसकी सेवा में व्यस्त हैं, केतन जी व्यंग्य से बोले। 

क्या करूं ?भाई !आजकल के बच्चे भी न…. 

क्या हुआ ?सभी मित्रों के ”कान खड़े हो गए ” घर में सब ठीक तो है ,बहु -बेटा !पत्नी 

हाँ -हाँ सब ठीक है ,मुस्कुराते हुए चमनलाल जी बोले -पहले बात तो पूरी सुन लीजिये !दरअसल अब मैंने अपने पोते और पोती की सेवा शुरू कर दी है। 

क्या मतलब ? उन्होंने आश्चर्य से पूछा। 

भई, अब मेरी नौकरी से तो मुक्ति हो गयी है ,सेवानिवृत्ति के पश्चात मैं भी सोच रहा था ,अब ये ज़िम्मेदारी पूर्ण हुई और अब घूमने -फिरने में ,सुकून से अपनी ज़िंदगी व्यतीत करूंगा।घूमकर भी आया ,रिश्तेदारों से भी मिला लेकिन ये भी कब तक चलता ?

 एक दिन मैंने देखा, बच्चे स्कूल से आते हैं , ट्यूशन चले जाते हैं, ट्यूशन से आने के बाद खेलने में व्यस्त हो जाते हैं, या फोन पर लगे रहते हैं , एक दिन मैंने सोचा -इनका टैस्ट ले लेता हूं , जब मैंने उनका टैस्ट लिया तो मेरे हिसाब से बच्चों को जो पढ़ना समझना चाहिए , उन्हें कोई भी जानकारी नहीं थी। मैंने उनका ‘गृह कार्य’ चेक किया उसमें भी बहुत गलतियां नजर आ रही थी, बच्चों के नंबर भी कम आ रहे थे। तब मुझे एहसास हुआ, कि परिवार की लापरवाही के कारण, लापरवाही भी नहीं कह सकते, उनके माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए तो समय ही नहीं है। दोनों नौकरी करते हैं, तो बच्चों को समय नहीं दे पाते, दिन भर के थके -हारे खा -पीकर सो जाते हैं।

 तब मैंने सोचा -कि मैं अपने समय का इस तरह से सदुपयोग करूंगा , यह हमारी आगे आने वाली  पीढ़ी है, इन्हें संस्कार देने और आगे पढ़ने में, रुचि बढ़ाने का कार्य तो हमारा ही है। आकर फोन पर लगे रहते हैं। इसीलिए मुझे आने में देरी हो गई। अब मैं कम से कम 2 घंटे बच्चों के लिए निकालता हूं। बाकी सारा दिन तो अपने लिए है ही। 

आपने फिर से वही जिम्मेदारियां अपने ऊपर ओट लीं, अब तो कुछ दिन सुकून से बिताते ,केशव जी बोले। 

 इस जीवन का और करना ही क्या है ? किसी अच्छे कार्य में, और यह तो अपने ही घर का कार्य है अपनी ही पीढ़ी को ,अपने रिश्तों से ,परिवार से परिचित कराना है। बच्चों को ही तो पढ़ाना है लोग तो, सेवा कार्य समझ कर बाहर के बच्चों को भी पढ़ाते हैं। अब बच्चे ठीक से पढ़ रहे हैं, और जब बच्चों ने बहू- बेटा को, अपने नंबर दिखाये तो उन्हें भी बहुत खुशी हुई। बहु कहने लगी -‘,पापा जी !आपके इस कार्य से ,आपने हमारी बहुत बड़ी परेशानी हल कर दी ,वरना हम बच्चों के लिए सोचकर, बड़े परेशान रहते थे किन्तु किसी से कुछ कह भी नहीं सकते थे।आपकी छत्रछाया में अब ये सही मार्ग पर चलेंगे। 

भई, सेवानिवृत्ति का मतलब है, हम जो जीविकोपार्जन के लिए सेवा कर रहे थे ,उससे मुक्त हुए हैं। हम जीवन से मुक्त थोड़े ही हुए हैं और जब तक जीवन है, कार्य तो चलता ही रहेगा, बस ईश्वर से यही दुआ है, कि जब तक जीवन है तब तक हम, बच्चे हो या बाहर के लोग, अपना सहयोग देते रहें , हमारी सबसे अच्छी ”सेवानिवृत्ति”यही होगी।  

              ✍🏻 लक्ष्मी त्यागी

Leave a Comment

error: Content is protected !!