बड़ी बहू. जा छोटी बहू को जाकर कल के लिए बोल आ, कल देवी जी पूजेंगे, तो सुबह 8:00 बजे ही आ जाएगी ताकि तुम दोनों समय से खाना और कन्या पूजन की तैयारी कर सको ! नहीं मां. आपको पता है 8 दिन से मेरी उससे बोलचाल बंद है मैं उसे बुलाने क्यों जाऊं… छोटी है
वह अपने आप नहीं आ सकती उसे भी तो पता है कि कल हम माताजी पूजेंगे तो उसमें बुलाने की क्या जरूरत है क्या अपना घर समझ कर नहीं आ सकती? हां बेटा क्यों नहीं आ सकती हर बार तो आती ही है लेकिन अभी याद कर 8 दिन पहले नवरात्र स्थापना के दिन तूने उसे क्या कहा था!
तब बड़ी बहू को याद आया उस दिन घर में कलश स्थापना थी छोटी बहू पीछे वाली गली में ही अपने पति के साथ रहती है और दोनों ही स्कूल में शिक्षक हैं, उमा देवी के दो बेटे हैं बड़ा बेटा जो डॉक्टर है अपने परिवार के साथ यहीं साथ रहता है और छोटा बेटा सरकारी अध्यापक है उसकी पत्नी भी अध्यापिका है,
उस दिन जब वह घर आए थे तब बड़ी बहू बोली…. सुमन तू हमेशा इतनी हल्की साड़ियां क्यों पहनती है कभी तो सोच जहां तू जा रही है वह डॉक्टर का घर है, हम दोनों कहीं साथ में भी जाते हैं सब पहचान जाते हैं कि मैं डॉक्टर की पत्नी हूं, और तुम दोनों पति-पत्नी कमाते हो फिर भी तुमने अपने बच्चों को छोटे से प्राइवेट स्कूल में डाला है,
मेरे बच्चों की तो फीस ही ₹100000 साल है,देख रहन-सहन से ही लोग स्थिति का अंदाजा लगाते हैं तेरे बच्चे भी हल्की क्वालिटी के कपड़े पहनते हैं अगर तुझे कभी अच्छी साड़ियों की जरूरत हो तो मुझसे बोल दिया करो मेरे पास तो बहुत सारी साड़ियां है
जो मैं पहनती भी नहीं हूं उस समय बड़ी बहू के मुंह से उसका अहंकार बोल रहा था! तब छोटी बोली… नहीं दीदी मेरी साड़ी कोई हल्की नहीं है बस यह सोच का फर्क है हम जैसे भी रहते हैं मैं उसमें खुश हूं, मुझे दिखाने का कोई शौक नहीं है
तो इसी बात पर दोनों देवरानी जेठानी 8 दिन से नहीं बोल रही! तब उमा देवी ने फिर कहा… बेटा तू उसे अपने पैसों का अहंकार क्यों दिखाती है माना की तेरा पति डॉक्टर है लेकिन हर व्यक्ति एक जैसा तो नहीं हो सकता दोनों भाइयों को हमने समान शिक्षा देने की कोशिश की किंतु बड़े का दिमाग तेज था वह डॉक्टर बन गया और छोटा अध्यापक बन गया! बड़ी बहू मुझे लगता है फिर तो तुझे हमारे भी रहन-सहन पहनावे से शर्म आती होगी!
नहीं मां आप कैसी बातें कर रही है? सचमुच अपने पति के डॉक्टर होने और अपने मायके के धनवान होने से मुझ में अहंकार आ गया था अब ऐसा नहीं होगा मैं जा रही हूं छोटी से अपनी गलती की माफी मांगने! आप सच कह रही हैं रिश्ते अहंकार से नहीं बल्कि त्याग और माफी से टिकते हैं मुझे भी अपनी छोटी बहन जैसी देवरानी से अपने रिश्तों को बना के रखना है ना कि खत्म करना है!
और बड़ी बहू ने छोटी बहू को जैसे ही सॉरी कहा तब छोटी बहू बोली…. दीदी आप माफी मांगती हुई अच्छी नहीं लगती आप बड़ी हैं मैंने भी तो छोटी सी बात का बतंगड़ बना दिया था अब हम दोनों के मन में कुछ भी नहीं है, आप चिंता मत कीजिए मैं कल सुबह समय से आ जाऊंगी और हम दोनों मिलकर हमेशा की तरह सारा काम निपटा देंगे और ऐसा कहकर दोनों गपशप करती हुई चाय का आनंद लेने लगी दोनों के मन में से अहंकार मर चुका था!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
वाक्य प्रतियोगिता..( “रिश्ते अहंकार से नहीं त्याग और माफी से टिकते हैं”)
#रिश्ते अहंकार से नहीं त्याग और माफी से टिकते हैं”