रिटायरमेँट के अकेलापन में आस का दीपक – डॉ बीना कुण्डलिया 

आज कालेज का पहला दिन था। मालती ने जैसे ही महाविद्यालय में प्रवेश किया, वो डरी डरी सहमी सहमी न जाने क्यों ? उसको ऐसा लग रहा सभी लड़के, लड़कियां जैसे उसको ही देख रहे हैं। वैसे भी स्वभाव गत मालती शर्मीली झेंपू क़िस्म की लड़की थी । बी एस सी फर्स्ट ईयर की क्लासेज कहां होगी

अभी सोच ही रही थी कि सामने एक लड़के को अपनी ही तरह इधर उधर ताक-झांक करते देखा। वो ही एक उसे अकेला दिखा बाकी तो ज्यादातर सभी झूंड में खड़े थे। साहस कर पूछ बैठी। ये बी एस सी फर्स्ट ईयर की क्लासेज किधर हो रही है । क्या आप बतायेंगे ? हाँ, हाँ  वो सामने देखिए,

उसने उंगली से इशारा किया तीनों सैक्शन की क्लासेज वहीं चल रहीं हैं..आप का सैक्शन कौन सा है वो तुरंत बोला ?  जी ए वन मालती सकपका कर बोली।अरे मेरा भी ए वन मै भी फर्स्ट ईयर का स्टुडेंट मेरा नाम अमन दास, क्या मैं आप का शुभ नाम जान सकता हूँ ?

वो उत्सुकता से बोला । जी मैं मालती देशपांडे.. मालती ने थोड़ा झेंपकर, आँखें नीचे झुकाए ही जवाब दिया। चलो साथ साथ चलते हैं।

दोनों चलते रहे बतियाते रहे तो थोड़ी बातचीत के बाद मालती थोड़ा खुल गई और सहजता से बोलने लगी। क्योंकि अमन बातूनी ,हँसमुख किस्म का सँस्कारी लड़का बड़ी इज्जत से पेश आ रहा था। दोनों साथ-साथ क्लास में प्रवेश करते हैं। 

समय बीतता गया दोनों पढ़ने लिखने में अव्वल साथ आते साथ जाते साथ पढ़ते तो दोनों की दोस्ती कब परवान चढ़ गई और दोस्ती कब प्यार में बदल गई दोनों को ही पता नहीं चला। बी एस सी के बाद अमन का अहमदाबाद आई एम एम में एम बीए में स्लैक्स हो गया।

उसको मैनेजमेंट में इन्ट्रेस्ट था। लेकिन मालती को अध्यापन में रूचि तो उसको बी एड करके कैरियर बनाना ही ज्यादा उपयुक्त लगा । दोनों का अपने अपने कार्य में व्यस्तता तो जब अमन दो साल के लिए अहमदाबाद जाने के लिए तैयार हुआ  वह मालती से कहता है। मालती कहीं तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगी। मैं चाहूंगा तुम मेरे आने का इंतजार करो । 

मै दो साल बाद नौकरी लगते ही तुमसे ही शादी करूंगा । मगर क्या तुम्हारे घर वाले इस शादी के लिए तैयार हो जायेंगे ? जो ये जाति बंधन की दीवार हम दोनों के बीच खड़ी है । कहीं ये रोड़ा तो नहीं बन जायेगी ।

मालती कहती हैं- अमन तुम चिंता मत करो मैं अपने घर वालों से बात करूंगी। और इस शादी के लिए राजी करने की पूरी पूरी कोशिश करूंगीँ । अमन खुश हो जाता है।वो कहता है मालती मैं बस इतना कहे देता हूँ । मै शादी करूंगा तो तुम से ही करूंगा वरना सारी जिंदगी अविवाहित ही रहूंगा । ये तुम अच्छे से समझ लो ।

अमन की बात सुनकर मालती खिलखिला कर हंस पड़ती है। वो अमन के खिलंदड़ी स्वभाव को अच्छे से जानती थी । जो हंसी मजाक में कुछ भी कह जाता था। लेकिन मान-मर्यादा का ख्याल रखता । सीमा के अन्दर ही बोलता और मर्यादित शब्दों का प्रयोग करता। जिसके चलते मालती उसकी दीवानी सी हो गई थी।

अमन अहमदाबाद चला जाता है। दोनों की बातचीत फोन तक सीमित हो जाती है। जिसमें दोनों अधूरे स्वप्नों को पूरा करने के वादे कस्में खाते रहते हैं। घन्टों बतियाते मगर अपने कैरियर के प्रति दोनों ही सतर्क थे । मालती का बीएड हो जाता है।

उसको सरकारी स्कूल में अध्यापिका की नौकरी भी मिल जाती है। उसके घर वाले उसकी शादी के लिए दवाब बनाने लगते हैं।

मालती अमन के विषय में घर वालों को बताती है। मगर कट्टर ब्राह्मण परिवार इस रिश्ते के लिए कदापि तैयार नहीं होता है। स्वभाव से झेंपू सँस्कारी वातावरण में पली बढ़ी मालती घर वालों के विरोध में नहीं जा सकी । घर वालों का भारी दबाव उसका विवाह एक व्यवसाई से निश्चित कर दिया जाता है।

अमन को आखिरी बार फोन पर मालती यह बताती है। वह कहती हैं वो अपने घर वालों का विरोध नहीं कर पायेगी । तुम कहो तो वो घर छोड़कर चूपचाप तुम्हारे पास आ सकती है। अमन बहुत दुखी होता है। टूट कर रह जाता है।

लेकिन फिर भी अमन कहता है वो चूपचाप भागकर नहीं वो घर वालों की रजामंदी से रिश्ता चाहता है। हां तुम इंतजार करतीं तो वो तुम्हारे घर वालों से मिलकर बात कर सकता था। लेकिन अब …!

मालती का विवाह बिजनेस मैन राघव से हो जाता है। जो स्वभाव से सीदा सादा सज्जन इंसान मगर अकेला ही था। कुछ बरस पहले उसके माता-पिता, बड़े भाई का हवाई दुर्घटना में स्वर्ग वास हो गया था। मालती की गृहस्थी की गाड़ी चलती जाती है। समय बीतता गया मालती दो जुड़वां बेटों को जन्म देती है। अभी बच्चे दस बरस के ही हुए होंगे

मालती के पति राघव सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं। व्यवसाय की मालती को जानकारी नहीं तो सारा व्यवसाय पार्टनर हड़प लेते हैं। थोडा बहुत उन्होंने जो कुछ भी मालती को दिया वो चूपचाप ले लेती है । क्योंकि “ जब इंसान दुखी होता है । गमगीन होता है।

उसमें समझने समझाने की ताकत विलुप्त सी हो जाती है। वो सामने वाले को सही समझने लगता है। अपनी बुद्धि काम करना बन्द कर देती है। तभी तो कहते हैं विपत्ति के समय धैर्य नहीं खोना चाहिए “ ।

समय रफ्तार पकड़ता और मालती स्कूल में प्रिंसिपल के पद पर पहुँच जाती है।वो अपने  दोनों बच्चों की अच्छी से परवरिश करती है। दोनों एम बी ए कर मल्टीनेशनल कंपनी में नियुक्त हो एक अमेरिका और एक आस्ट्रेलिया जाकर बस जाते हैं।

शुरू शुरू में रोज बेटों के फोन आते और वो मालती को साथ चलने को कहते हैं। मगर वो अपने अध्यापन में सन्तुष्ट तो जाने को तैयार नहीं होती है। कुछ समय पश्चात बेटे खबर देते उन्होंने वहीं विवाह कर लिया । मालती क्या कहती.. ठन्डी सांसें भरकर कहती बेटा मिलाना बहुओं से कभी। बेटे भी मिलाने का वादा करते मगर वादा निभाता कौन है भला ? 

लगभग पाँच बरस बीत गये बेटों के फोन आये, बात किए हुए उसको अनेक बार मालती ने कोशिश भी की मगर फोन ऑन हो कट जाता। मालती के रिटायरमेन्ट में एक साल ही शेष बचा था। वो सोचती अभी तो वो व्यस्त हैं ।

स्कूल में समय आसानी से कट जाता है। मगर बाद में क्या होगा ? .. वो सोच सोच परेशान रहती अकेलापन कैसे कटेगा ? पहले सोचा करती थी। बेटों की शादी हो जायेगी तो जल्दी रिटायरमेंट ले लेगी,

और पोते पोतियों के साथ अपना बचपन दुबारा जीयेगी । लेकिन बेटों का विदेश बस जाने का फैसला और रिटायर होने के बाद उसको अकेलेपन का डर वेदना देने लगा । रोज पार्क में टहलने जाती घन्टों बैठ यही सोचती आगे की जिन्दगी कैसे अकेले गुजारेगी । माता-पिता भी नहीं रहें। भाई भाभी पूछते नहीं उनकी अपनी गृहस्थी अपनी दुनिया ।

पार्क में खेलते बच्चों को निहारती अपने बच्चों का बचपना याद करती । कैसे पति राघव के गुजर जाने के बाद कितना मुश्किल जीवन जिया है उसने, मगर यह समय अच्छे-अच्छे घाव को भर देता है। उसने अपने को संभाला टूटने नहीं दिया। वो जानती थी वो ही बच्चों के लिए माँ और पिता दोनों है । वो ही टूट गई तो उसके बच्चों का क्या होगा ?

  पत्थर की तरह मजबूत हो गया था उसका दिल और शरीर। लेकिन आज उन्हीं बच्चों ने उसको भूला दिया। विदेश जाकर अपना घर बसाकर इतने व्यस्त हो गये माँ की खैर खबर लेने की फुर्सत नहीं उनके पास। भूल ही गये परदेश में माँ इंतजार कर रही, बाट जोह रही होगी ।

चलो ठीक है अपने घर में खुशी से है माँ का दिल यही सोच संतोष कर लेता है। वो बड़बड़ाती आँखों में अनायास टपकते आँसूओं को साड़ी के पल्लू से पौछती है।

आज रविवार का छुट्टी का दिन अक्टूबर का आखिरी सप्ताह हल्की-फुल्की ठन्ड का अहसास तो मालती ने हल्का फुल्का नाश्ता किया शाल ओढ़कर पार्क के एक बैंच में आ बैठी । जहां बच्चों का झुंड फुटबॉल खेलने में मगन उनकी आपसी लड़कपन की चहचहाहट मालती को बहुत भा रही थी।

पार्क के एक तरफ ठीक उसके सामने सूखे अमलताश के वृक्ष को भी वो बराबर निहार रही थी। और साथ ही साथ सोचती “ कभी इस वृक्ष पर भी बहार आई होगी। आज बेचारा कैसा ठूंठ सा सूखकर मुरझाए खड़ा है … पार्क की शोभा से विरक्त, शायद इसी आस में खड़ा मौसम बदलेगा और फिर से वो हरा भरा हो जायेगा “!

अभी मालती वृक्ष को निहार ही रही थी उसने अपने सामने एक आकर्षक कठबाडी कुर्ता पजामा पश्मीना शाल ओढ़े आंखों में नज़र का चश्मा लगाए आकर्षक व्यक्तित्व खड़ा जो उसका नाम बराबर पुकार रहा मालती,मालती ऽऽ …

मालती ने उसको देखा तो एकदम चौंक पड़ी अरे अमन तुम यहां। अमन बोला कैसी हो मालती ? मैं यहां बैठ सकता हूँ । हां अमन आओ बैठो क्यों नहीं बैठ सकते भला तुम ?  कहकर मालती किनारे खिसक गई। तुम कैसे हो यहां कहां ? वो अनायास उत्सुकता वश बोल पड़ी।

अमन ने मालती को जी भर नजर से देखा फिर बोला मालती मैं यहीं नौकरी करता हूँ। बीच में विदेश चला गया था। मगर अब यहीं सैटिल हो गया हूँ । हमेशा के लिए सामने ही मकान है मेरा पिता तो रहे नहीं, भाई विदेश में हैं।

बहन की शादी हो गई । साथ में बूढ़ी मांँ रहती है। बस यही है अपनी जिन्दगी । गया था कुछ बरस पहले तुम्हारे घर वही पता चला तुम इस शहर में हो तो मैं भी यहीं सैटिल हो गया। और तुम्हारी पत्नी बच्चे वो कहां है। मालती बोली।

सुनकर अमन बोला कौन से बीवी बच्चे ? मैंने तुमसे कहा था शादी करूंगा तो तुम से वरना सारी जिंदगी अविवाहित ही रहूंगा। अमन अपने उसी अंदाज से बोला जिस अंदाज से मालती उसकी दीवानी हो गई थी।

मालती गुस्सा दिखाते हुए बोली अमन तुमको शादी तो कर लेनी चाहिए थी। अमन उसकी बात अनसूना कर बोला मालती तुम बताओ अपने बारे में। मालती ने अमन को अपने गुजरे बीते पलों का पूरा विवरण दिल खोलकर बोल दिया।

क्योंकि उसको पता था आज उसको सुनने वाला है कोई.. उसके दुख दर्द उसकी पीड़ा को महसूस करने वाला उसका हमदर्द…” एक इंसान उसी के कन्धे पर सर रखकर रोता है, अपने दुख दर्द बांटता है। जिसको वो भीतर से अपना समझता है “ । 

वरना तो ऐरो गैरों के आगे यह आँसू, दुख दर्द तमाशा बन कर रह जाते हैं। कमजोर समझने लगती है ये दुनिया। सर पर सवार होकर जुल्म ढाहने लगती है।

 अमन ने मालती की बातें ध्यान से सुनकर अपना एक हाथ उसके कन्धे पर रखा बोला- शादी न सही मगर दोस्ती का रिश्ता तो अभी भी कायम है हमारा तुम्हारा मालती। चलो मेरे घर तुमको मैं अपनी ‘माँ से मिलवाता हूँ। वो तुमसे मिलकर बहुत खुश होंगी।

वो हमेशा मुझको कहतीं बेटा सब्र रखना। जिस को सिद्दत से दिल की गहराइयों से चाहों तो वो एक न एक दिन तुमको जरूर मिलेगा । पूरी कायनात उसको तुमसे मिलवाने के लिए तत्पर हो जाती है। मेरा घर आज भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है मालती । नमन बोलता जा रहा उसकी आवाज में रूआसी पन स्पष्ट झलक रहा था।

फिर अमन ने खड़े होकर अपना हाथ मालती की तरफ बढ़ाया और मालती अमन के हाथ का सहारा लेकर खड़ी हो गई । फिर वो उसके साथ चल पड़ी उसके घर की तरफ ।आज वो बहुत खुश थी। उसके भीतर की हलचल शान्त हो चुकी थी। चलती जा  रही सोचती जा रही…

अब उसे रिटायरमेन्ट के बाद अकेलापन नहीं काटना पडेगा । आज उसको अपना सच्चा साथी, हमदर्द, दोस्त मिल गया। जो उसके रिटायरमेन्ट के अकेलेपन में आस का दीपक उसके जीवन में जलायेगा ।

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

          26.9.25

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