कविता का दिमाग खराब हो रहा था .. अकेली.लगी पड़ी थी काम पर … त्यौहार आ रहे थे पर मजाल है बच्चे थोड़ा साथ देदे ..
बेटा अमन जो कि मोबाइल पर गेम खेल.रहा था….
अमन जब देखो तब मोबाइल देखते रहते हो.. मोबाइल बंद करते हो तो टीवी चला लेते हो …टी.वी बंद तो लैपटॉप पर बैठ जाते हो ..
बेटा कुछ काम में सहायता करवा दो … ये डिब्बे जरा रसोई की उपरी स्लैब पर रख दो।
“क्या मम्मा, जब देखो काम-काम बोलती रहती हो… खुद कर लो …मुझसे नहीं होता आपका काम वाम।”- गेम खेलतृ खेलते अमन बोला
कविता- “अरे तुम कर ही क्या रहे हो? गेम ही तो खेल रहे हो, आकर ज़रा हाथ बंटा दो।”
अमन- गुस्से में- ” बोला ना मां.. मुझसे नहीं होते यह काम -वाम…
कविता- “ठीक है मत कर मेरे काम, पर यह गेम छोड़… पढ़ाई तो कर ले.. १२वी के पेपर है … बिन पढ़ाई भला…कैसे पास होगा?”
अमन मुंह बना कर.- “निकलो इस कमरे से आप.. जब देखो .. पढ ले ..पढ ले. ..जब मेरा मन होगा पढ लुंगा मैं।”
तभी गुस्से में आकर कविता ने मोबाइल खीचं लिया और बोली .- “मोबाइल नही देखेगा अब तु… पढ़ाई कर या फिर सैर करने जा..
ऐसे मोबाईल.. टी.वी. में घुसा रहेगा तो बीमारियों का घर बन जाएगा।”
इस पर अमन आप से बाहर हो गया.. और गुस्से में अपनी मम्मा को धक्का दे दिया और बोलने लगा -“होती कौन हो.. मुझे रोकने वाली..
मेरी मर्जी मैं पढूं या मोबाइल देखुं..
मैं आपके काम में देखल देता हुं.. नहीं ना… तो फिर आप कौन होती हो मुझे रोक-टोक करने वाली।”
तभी उसे अहसास हुआ कि मां कराह रही है और मेज
की नोक से सर टकराने की वजह से खून निकलने लगा।
अब अमन के होश आया वो फटाफट उठा और अपनी मम्मा को फर्स्ट ऐड देने लगा।
सॉरी मम्मा.. सॉरी.. मेरी यह मंशा नहीं थी ।
बेटा इसी वजह से कह रही हुं.. ये मोबाइल.. टी.वी पागल बना देंगे तुझे… गेम में खोने के बाद तु होश में नही रहता.. ऐसे ही आपा खो देता है .. कल पापा के टोकने पर तुमने किताबें फेंक दी थी।
सुधर जा बेटा.. इससे पहले कि बहुत देर हो जाए…
अमन.. मम्मा, मैं अब इन गेम्स सृ, इन गैजेट्स से दूर रहुंगा.. प्रॉमिस..
अच्छा. … बताओ क्या हेल्प करनी हे आपकी..
दोस्तो ..
आजकल यही हो रहा है .. ये गैजेट्स बच्चों का दिमाग khraab कर देते है .. बच्चे भटक जाते है …रोक टोक करने पर जल्दी क्रोधित हो जाते है और फिर कुछ गलत कर बैठते है .. इसी लिए समय रहते बच्चों को संभालना चाहिए
अगर कहानी से सहमत हो तो कमेन्ट में बताए
रीतू गुप्ता
स्वरचित