“आराध्या, उठ जा बेटा। ले कॉफी पी ले। फिर अपने घाघरे की फिटिंग देख लेना।” माॅं की प्यार भरी आवाज सुनकर आराध्या उठ बैठी और माॅं के हाथ से काफी का मग लेकर काफी पीते पीते अपनी माॅं से बातें करने लगी।
कुछ देर तक बेटी की प्यारी बातें सुनने के बाद कुंतल बेचैन होकर बेटी आराध्या से बोली “आराध्या, यह सब छोड़। बातें तो होती ही रहेगी। पहले, तू यह शादी वाला घाघरा पहन कर देख ले। इसकी फिटिंग वगैरा सही है या नहीं। फिर इसके मैचिंग की ज्वेलरी और बाकी सामान भी तो लाना होगा।”
“ओके, रिलेक्स मम्मा। मैं अभी ट्राई करती हूॅं।”
“अरे! वाह कितनी प्यारी लग रही है।” आराध्या को उस रूप में देखकर कुंतल की ऑंखें खुशी से भर आई।
“बस मम्मा, अब प्लीज रोना मत शुरू कर देना।”
“अरे! रोए इसके दुश्मन। अब तो खुशी से बनड़ी गाने के दिन आए हैं और तू रोने की बात कर रही है, लाडो।” यह आवाज सुनते ही आराध्या और कुंतल दोनों खुशी से उछल पड़ी और आराध्या दौड़कर जल्दी से अपनी नानी माॅं के गले लग झूम पड़ी।
“माॅं, अब तुम आ गई हो ना, अब सब काम सही से हो जाएगा। मैं तो इस आराध्या को समझा-समझा कर हार गई हूॅं। लेकिन, यह तो मानो कुछ समझना ही नहीं चाहती।”
“अच्छा ऐसा क्या है जो तू समझाना चाहती है और आराध्या समझ नहीं रही?” नानी माॅं ने हॅंसते हुए कहा।
“मैं इसे समझा रही हूॅं कि जींस और टॉप के साथ कुछ सूट भी लेकर जा। शादी के शुरुआती दिनों में जींस टॉप डालकर ससुराल में घूमेगी तो सब बातें ही ना बनाऍंगे। लेकिन, यह तो समझ ही नहीं रही।”कुंतल ने झुंझलाते हुए कहा।
यह सुनते ही आराध्या हॅंसते हुए कुंतल के गले झूल गई और अपनी नानी से बोली “नानी माॅं, अब आप ही मम्मा को समझाइए कि इतनी टेंशन ना ले। मम्मा तो हर एक चीज की ऐसी तैयारी कर रही है, मानो मैं ससुराल में नहीं जंगल में जा रही हूॅं ।”
“बस-बस अब बातें बनाना बंद कर। अभी इतनी बड़ी नहीं हो गई है और ले ये सारा सामान अच्छे से बैग में रख ले। खुद से रखेगी तो आराम से मिल जाएगा।” कहकर कुंतल आराध्य को एक-एक बॉक्स पकड़ाने लगी। “इस बॉक्स को ध्यान से रख ले। इसमें सुई, धागे बटन सब कुछ रख दिए हैं। ससुराल में कुछ निकल जाए तो परेशान ना होना।”
यह सुनते ही आराध्या खिलखिला पड़ी “मम्मा अब क्या मुझे निमित्त (आराध्या का होने वाला पति) के यहाॅं सुई, धागा भी नहीं मिलेगा।”
लेकिन, आराध्या की बात अनसुनी कर कुंतल उसके बैग में उसकी जरूरत की एक-एक चीज रखती जा रही थी। सूखे मेवे के डिब्बे, पूजा का सामान, मेडिकल किट और भी बहुत कुछ।
यह देखकर आराध्या चिड़चिड़ाते हुए नानी से बोली “नानी, समझाओ ना मम्मा को। वहाॅं सब मिल जाएगा। निमित्त ने मेरी जरूरत के हिसाब से सारी व्यवस्था कर दी है।” यह सुनकर नानी माॅं मुस्कुरा पड़ी। उन्हें अपना समय याद आ गया। जब वह इसी तरह कुंतल की शादी की तैयारी कर रही थी और कुंतल भी इसी तरह चिड़चिड़ा रही थी।
अभी वे कुछ बोलती, इससे पहले ही कुंतल एक डायरी ले आई “ले, इसे रख ले।इसमें तेरी फेवरेट रेसिपीज की डिटेल लिख दी है, आलू परांठा, पालक पनीर, दाल तड़का सब कुछ। तुझे वहाॅं खाना बनाने में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।”
यह सुनते ही आराध्या भावुक हो उठी और अपनी माॅं के गले लिपट कर बोली “मम्मा, रिलैक्स। आप टेंशन मत लो। मैं सब कुछ कर लूॅंगी।”
यह सुनकर कुंतल ने उसका चेहरा हाथों में थाम लिया “मैं जानती हूॅं। तू सब कुछ कर लेगी। पढ़-लिखी है, आत्मनिर्भर है। तीन साल से बाहर रहकर खुद ही सब कुछ करती रही है। पर शादी के बाद बेटी, माॅं की अमानत नहीं रहती। हर कदम पर परखी जाती है। मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी को कुछ सुनना पड़े। इसीलिए यह सब कर रही हूॅं।”
यह सुनते ही नानी माॅं के भी ऑंसू बह निकले। उन्हें वह दिन याद आ गया जब उन्होंने कुंतल को विदा किया था। धीरे-धीरे शादी का दिन भी आ गया। विदाई के वक्त कुंतल खुद को रोक नहीं पाई और फूट-फूट कर रो पड़ी।
दूसरे दिन ऑंख खुलते ही कुंतल को ख्याल आया “पता नहीं, आराध्या ने सुबह उठकर कॉफी पी होगी या नहीं? कहीं रस्मों के चक्कर में किसी ने उसे काफी पूछी ही ना हो। बिना कॉफी तो उसके दिन की शुरुआत ही नहीं होती है।”
यह सोचते ही उसने तुरंत आराध्या को फोन लगा दिया। उसका फोन नहीं उठा तो बेचैन होकर अपने दामाद निमित्त को कॉल लगा दिया “बेटा ,आराध्या फोन नहीं उठा रही है। वह ठीक तो है ना? उसे काफी दे देना। जब तक वह काफी ना पिए, उसकी ऑंखें ही नहीं खुलती।”
यह सुनकर निमित्त हॅंसते हुए बोला “मम्मी, आप चिंता मत कीजिए। आराध्या ने काफी भी पी ली है और वह बिल्कुल ठीक है।” यह सुनते ही कुंतल की ऑंखों में खुशी के ऑंसू छलक पड़े।
तभी कुंतल की माॅं वहाॅं आ गई और उसके हाथ में चाय का कप थमाते हुए बोली “ले, पहले चाय पी ले। आराध्या की चिंता में तुम्हें इतना भी ध्यान नहीं रहा कि यदि तुम्हें सुबह-सुबह चाय ना मिले तो सर दर्द शुरू हो जाता है।”
कुंतल ने चाय ली और बोली “माॅं, यहाॅं मुझे इतनी टेंशन हो रही है और आप हॅंस रही
हैं।”
यह सुनकर माॅं ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा “हाॅं बेटा, हॅंस रही हूॅं। क्योंकि, आज ऐसा लग रहा है कि मैं तुझ में खुद को और आराध्या में तुझे देख रही हूॅं।” यह सुनते ही कुंतल भी मुस्कुराने लगी।
दोस्तों, यही तो माॅं का प्यार है जिसे शब्दों में नहीं समझाया जा सकता सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
धन्यवाद
लेखिका- श्वेता अग्रवाल,
धनबाद , झारखंड
कैटिगरी -लेखक /लेखिका बोनस प्रोग्राम (सितंबर माह-पंचम कहानी)
शीर्षक-कॉफी में छुपा प्यार