कर्मों का फल – सुनीता माथुर

बहुत समय पहले एक गाँव में हरिदास बहुत ही मेहनती किसान था लेकिन स्वभाव से बहुत आलसी था जब मौसम आता, तो वह बीज तो बो देता, मगर समय पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई नहीं करता हरिदास के बचपन का दोस्त गोपी भी इसी गांव में रहता था और उसके पास ही उसका खेत था

लेकिन—— वह मेहनत करके और समय-समय पर सिंचाई निराई- गुड़ाई करता, खेतों को जोतता और खूब मेहनत करता और अपने दोस्त हरिदास को भी समझता——- कि केवल बीज बोने से ही फसल नहीं होती है———-

उसके संग मेहनत करनी पड़ती है! लेकिन हरिदास को कुछ समझ नहीं आता वह सोचता मैंने बीज वो दिया अपने आप फसल उगआएगी, गांव के किसान भी उसे बहुत समझाते—–अपनी खेती पर ध्यान दो, ताकि अपनी खेती के द्वारा घर अच्छे से चला सको! 

तुम्हारे पिताजी रामदास किसान बहुत मेहनती थे, सरल स्वभाव के थे और हम सब गांव वालों को खेती के नए-नए तरीके भी सिखाते थे, बहुत अनुभवी भी थे, और सब की मदद करने को तैयार रहते थे पर उनके रहते हुए तुमने उनसे कुछ नहीं सीखा लेकिन——-

अब वह इस दुनिया में नहीं हैं!—— उसके दोस्त गोपी और गांव वाले समझाते जैसा कर्म करोगे वैसा “कर्मों का फल” भी मिलेगा——तुम्हें अपने बीवी बच्चों का पेट पालना है कि नहीं——- आलस छोड़ो!

“हरिदास, खेत मेहनत माँगता है, वरना फ़सल नहीं देगा।”

पर हरिदास हँसकर टाल देता –

“कर्म-धर्म कुछ नहीं, भाग्य में लिखा होगा तो अनाज अपने आप उग आएगा।”

मौसम बीता, बरसात भी आई, लेकिन खरपतवार ने खेत घेर लिया। जहाँ दूसरों के खेतों में सोने जैसी लहलहाती फ़सल खड़ी थी, वहाँ हरिदास का खेत बंजर-सा दिखता। उसके पास खाने तक का अनाज नहीं बचा।

 हरिदास सर पकड़ कर बैठ गया अपने बीवी बच्चों को क्या खिलाएगा। अपने दोस्त गोपी और गांव वालों की बात मान जाता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता हरिदास के गांव वाले बहुत मिलनसार थे इसीलिए उसे समझाते थे।

हरिदास का दोस्त गोपी ने खूब मेहनत की थी और अपने खेत को मेहनत से सिंचाई करके फसल उगाई और काफी मुनाफा हुआ पर जब उसे पता चला कि हरिदास परेशानी में है,—— तो वह चिंता में पड़ गया! हरिदास का दोस्त गोपी उतना ही साधारण था, लेकिन हर काम समय पर करता।

जब फ़सल पककर आई तो उसने न केवल अपना परिवार पाला, बल्कि हरिदास को भी दाने-दाने की मदद दी। गोपी को—–

अपनी फसल के कारण अच्छा मुनाफा भी हुआ तो उसने हरिदास की पैसों से भी मदद की यह देखकर हरिदास गोपी के गले लगकर बहुत रोया और बोला कि—– मैं समय पर तुम्हारी बात मान जाता तो आज मुझे यह दिन नहीं देखना पड़ता!

हरिदास को तब समझ आया –”कर्मों का चक्र तो चलता ही रहता है”।

“मनुष्य का भाग्य उसके कर्मों से बनता है। कर्म बोओगे तो ही फल मिलेगा।”

उस दिन से उसने परिश्रम को ही अपना धर्म मान लिया और धीरे-धीरे उसके खेत भी लहलहाने लगे।

 तो दोस्तों इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की कर्म का फल अवश्य मिलता है कि हम अच्छे कर्म करेंगे तो सुख और सम्मान मिलेगा, और बुरे या अधूरे कर्म दुख और अभाव लाएँगे।

                                        सुनीता माथुर 

                                 मौलिक अप्रकाशित रचना 

                                    पुणे महाराष्ट्र

# कर्मों का चक्र तो चलता ही रहता है

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