उड़ान – बालेश्वर गुप्ता

         देख रज्जो, तू मेरी बहन जैसी है, इसलिये समझा रही हूं,शालू को संभाल, नही तो पछताएगी।

    क्यो क्या हुआ,सरोज?मेरी शालू ने ऐसा क्या कर दिया,जो मुझे पछताना पड़ेगा।वो तो यहां अब गांव में कितना रहती है, शाम ढले आती है, दिन भर तो वह शहर में ही रहवै है।

      गांव में नही रहती यही तो दिक्कत है, शहर में क्या गुल खिला रही है, इसका भी कुछ पता है?

     क्या कह रही हो सरोज,मेरी शालू पर तोहमत लगा रही हो।कान खोल कर सुन लो,फिर कभी शालू के बारे में मुँह मत खोलना, बिन बाप बच्ची की तरक्की देखी नही जा रही है ना,इसलिये इल्जाम लगा रही हो,कुछ भी बोले जा रही हो।

     सरोज,रज्जो के तेवर देख चुपचाप उठ कर चली गयी।उसके जाने के बाद रज्जो फफक पड़ी।उसे पता था उसने कैसे कैसे जतन करके शालू की परवरिश की थी ।आंखों में आंसू भी थे और रज्जो के सामने पुराने दिन भी तैर रहे थे और वर्तमान भी।

         बड़े अरमान लिये रज्जो आयी थी अपनी ससुराल।आकर निहाल हो गयी थी यहां।हरिया उससे बेइंतिहा प्यार जो करता था।गांव के बाहर ही किसी सेठ ने ईंटो का भट्टा लगाया था,हरिया वही मजदूरी करता था।घर मे बस माँ थी,बीमार रहती थी तो रज्जो घर पर ही रहती और सास की देखभाल करती।

कभी कभार कोई पड़ोसन आ जाती और रज्जो उसके लिये चाय बनाने अपनी छोटी सी रसोई में जाती तो सास पड़ोसन से कहती,भेंना ऐसी बहू बड़े भाग से मिले है।मेरी तो रात दिन सेवा करे है और मजाल जो चेहरे पर जरा भी शिकन आवे।तू ही बता इस बुढ़ापे में और क्या चहिए?पता नही पड़ोसन को सुनकर कैसा लगता पर रज्जो का सीना तो चौड़ा हो ही जाता।

         सासू मां को बुखार क्या आया सारे जतन करने पर भी वे उबर नही पायी और हरिया और रज्जो को छोड़ दूसरी दुनिया मे चली ही गयी।सासू मां जाते जाते, रोती हुयी रज्जो से कह रही थी बिटिया बूढ़ी हूँ जाना तो पड़ेगा पर तू चिंता न करियो,मेरा हरिया तेरा पूरा ध्यान रखेगा और हाँ बेटी तैंने मेरी जितनी सेवा की है ना उसका फल तुझे मिले, भगवान से जरूर कहूंगी।

रज्जो तो सोचती रह गयी पता नही मां जी क्या कह रही हैं?जब तक समझती तब तक तो पंछी उड़ भी गया।रज्जो बिलखती रह गयी।हरिया तो पगला सा गया।बिना माँ के कैसे जिया जायेगा?पर  दुनिया का चक्र तो चलता ही है सो रज्जो और हरिया ने भी जीवन की हकीकत को समझ लिया।

      अब रज्जो और हरिया दोनो मजदूरी पर जाने लगे।इससे आमदनी भी बढ़ने लगी और मां की याद से जो झोपड़ा नुमा घर में समाई थी उससे दिन में निजात मिल जाती।इधर रज्जो के शरीर मे परिवर्तन आना शुरू हुआ तो पड़ोस की काकी बोली रज्जो अब मजदूरी पर मत जाया कर,

बेटी तेरे पांव भारी हो गये हैं। सुनकर रज्जो शर्मा गयी।उसे लग रहा था अब तक वह अधूरी थी अब जाकर पूर्ण होगी माँ बनकर।हरिया भी उसका पूरा ध्यान रखता।गावँ के सरकारी अस्पताल में वह रज्जो को नियमित रूप से दिखाने ले जाता।पड़ोस वाली काकी रज्जो का पूरा सहयोग करती।

    काकी के सहयोग से जापा पूरा हुआ और रज्जो की गोद मे आ गयी शालू,बिल्कुल माँ जी पर गयी थी।हरिया तो कहता भी अरे रज्जो देख ये तो अम्मा वापस आ गयी है रे।

रज्जो भी हाँ में हां मिला देती।हंसी खुशी दिन बीत रहे थे,शालू भी गांव के स्कूल में जाने लगी थी।पढ़ाई लिखाई में खूब होशियार निकली।रज्जो ने मजदूरी पर फिर जाना शुरू कर दिया था।अब रज्जो को अपना छोटा सा घर सुनसान नही लगता,उसे शालू ने दूर कर दिया था।

      शालू ने इंटर पास कर लिया था,उसे आगे पढ़ाने के लिये शहर भेजना था।रज्जो ने अपनी मजदूरी से कमाए पैसे जोड़ कर रखे थे,हरिया भी उन्हें खर्च नही करने देता था,उसका कहना था अपनी शालू के लिये एक कमरा बनवाएंगे।

       सपने जरूरी थोड़े ही है जो पूरे हो।कोरोना की महामारी दुनिया मे ऐसी फैली चारो तरफ हा-हा कार मच गया।अपने भी अपनो से बचने लगे।मजदूरी मिलनी तो दूर कोई इंसान तक दिखाई नही देता, कोई किसी के मरने तक मे न आता।

ऐसे ही वातावरण में हरिया कोरोना की चपेट में आ गया।हरिया रज्जो और शालू को बिलखता छोड़ खुद ही गावँ के अस्पताल में चला गया। जाते जाते कह गया,रज्जो देख जा रहा हूँ,पता नही आ पाऊंगा या नही,बस मेरी शालू का ध्यान रखना,रज्जो ये मेरी बेटी ही नही माँ भी है।कहते कहते अपने आंसुओ को छुपाते हुए हरिया तेजी से अस्पताल की ओर चला गया।

      सच ही कहा था उसने रज्जो पता नही आ पाऊंगा या नही,सचमुच आया ही नही।दूर से बस उसे दिखा दिया गया,छूने तक नही दिया गया।बिलखते हुए रज्जो आ गई अपने घर,जहां वह थी और थी उसकी शालू।

        हरिया तो चला गया, अब पेट तो भरना था,कोरोना के कारण मजदूरी पर भी जाना बंद हो गया था,सरकारी सहायता पूरी नही पड़ रही थी,फिर शालू की ऑन लाइन पढ़ाई चालू करानी थी तो शालू के कमरे के जुड़े पैसों से शालू के लिये एक टेबलेट खरीदना पड़ा।

उसी के माध्यम से शालू की पढ़ाई आगे बढ़ पायी।धीरे धीरे बचत किये गये पैसे कम होते जा रहे थे।कही किसी प्रकार भी काम काज मिलना संभव ही नही था।लेकिन रज्जो ने शालू की पढ़ाईलिखाई पर आंच नही आने दी।

आखिर यह दौर भी समाप्त हुआ।कोरोना की वैक्सीन लगवाकर सुरक्षित हो जन मानस सामान्य होने लगा तब रज्जो ने गावँ में ही घरों में काम करना शुरू कर दिया।

शालू सुबह ही कोचिंग के लिये शहर जाने लगी।शहर गाँव कुल 20 किलो मीटर ही दूर था और सौभाग्य से गावँ से ही सुबह शहर को बस जाती थी।उससे शालू को सुविधा हो गयी।

      आमदनी सीमित हो गयी थी,शालू का खर्च था ही,रज्जो ने और अधिक घर पकड़ लिये।हाड़ तोड़ मेहनत रज्जो कर रही थी,शालू को पढ़ाने को,अपने हरिया को दिये वचन निभाने को।सबसे बड़ी समस्या सामने तब आयी जब गांव प्रधान के घर से बर्तन साफ करके चलने को हुई

तो  प्रधान जी ने उसका हाथ पकड़ लिया,उस दिन उनकी पत्नी घर पर नही थी।इस आकस्मिक आक्रमण से रज्जो सकपका गयी।प्रधान  रज्जो को अपनी ओर खींचते हुए बोल रहा था,अरे रज्जो क्यों इतना खटती है,मैं हूँ ना,

तेरी सब जिम्मेदारी मेरी,इससे आगे प्रधान कुछ बोलता,रज्जो ने एक झन्नाटेदार तमाचा, उसके मुँह पर जड़ दिया और हाथ छुड़ाते बोली प्रधान जी,इज्जत पाने को काम करती हूं,इज्जत बेचने का काम नही करती।मेरा हरिया मेरे दिल मे है।बदहवास सी रज्जो वहां से भाग आयी।

उसकी बदहवासी को देख काकी सब कुछ समझ गयी।काकी बोली रज्जो बेटी तू चिंता मत कर,शाम के वक्त मैं तेरे साथ चला करूंगी।सुनकर रज्जो रोती रोती काकी से चिपट गयी।

        समय परिवर्तन हुआ, शालू की शिक्षा भी पूरी हुई और उसकी एक बैंक में नौकरी भी लग गयी।शालू ने अपनी माँ से अब काम करने से मना कर दिया था।चैन के दिन आ गये थे।लेकिन एक कसक रज्जो के मन मे रह गयी थी,शालू के हाथ पीले करने की।

उसका सोचना था कि बिटिया के हाथ पीले हो जायेंगे तो वह भी गंगा नहा लेगी।आज जब सरोज ने कहा कि शालू को संभाल तो रज्जो ने सरोज को दुत्कार तो दिया ,पर मन के कोने में एक संशय उभर आया,नई पीढ़ी है, नये ख्याल हैं,

स्वतंत्र विचारों के है कही कुछ गड़बड़ वास्तव में है तो नही,सरोज ने नही तो शालू के बारे में इतना कहने की हिम्मत कैसे की?फिर ख्याल आता उसकी शालू ने उससे कभी न तो कुछ छिपाया और न कभी झूठ बोला।

इसी विचार मंथन में सांझ घिर आयी ,शालू के आने का समय हो रहा था,उसके खाने बनाने की तैयारी के लिये रज्जो उठी ही थी,कि शालू की आवाज ने उसे चौंका दिया।माँ-मां कहते कहते वह रज्जो से लिपट गयी।

फिर बोली माँ आज मैं किसी को तुझसे मिलाने लायी हूँ, देख तो मां ये अनिमेष है मेरे बैंक में ही मेरा कुलिक है।माँ हम एक दूसरे को पसंद करते हैं,

माँ तेरी कसम हमने कोई सीमा नही लांघी है,यदि तू अनिमेष को स्वीकार करेगी तभी हम शादी करेंगे अन्यथा नही?मां जानती है अनिमेष ने खुद कहा है कि उसके माता पिता नही है, लेकिन अब माँ मिल जायेगी।

     इतनी सारी बाते शालू एक ही सांस में बोल गयी, रज्जो बस उसे एकटक देखती रह गयी,ओह हमारी रज्जो इतनी बड़ी हो गयी है।मन ही मन उसे हरिया का ख्याल आ गया,वह बड़बड़ा उठी,सुनते हो घर दामाद आया है, उसे आशीर्वाद नही दोगे क्या?

रज्जो की आँखों से झर झर आंसू टपक रहे थे,अनिमेष ने जैसे ही रज्जो के पांव छुए तो रज्जो ने उसे दोनो हाथों से पकड़ कर उठा कर अपने सीने से चिपका लिया, मुँह से कुछ न बोल पायी,पर आंखों में आंसू और अनिमेष व शालू के सिर पर रखे उसके हाथ बता रहे थे, कि आज उसकी तपस्या का फल उसे मिल गया है।

     सच मे रज्जो को आज सचमुच का रिटायरमेंट प्राप्त हुआ था।रज्जो आज सचमुच गंगा नहा गयी।

     बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

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