मेरी कहानी बनारस के गंगा घाट के इर्द गिर्द घूमती है ! जहाँ भोले नाथ का वाश है! मै बचपन से ही सपने में बनारस के गंगा घाट के सपने देखा करती थी ! मुझे अक्सर ऐसा लगता था जैसे मै बनारस पहुँच गयी हूँ और गंगा घाट पर मै सुबह से उनकी सीढ़ियों पर बैठकर सुकून से माँ गंगा को निहार रही हूँ !
मुझे अक्सर ऐसा लगता जैसे माँ गंगा से मेरा कोई नाता है ! न जाने क्यों मुझे बहुत अच्छा लगता था ! उसकी कल कल बहती धाराएं मेरे मन को बेहद सुकून दे जाती थी !
शाम ढलते ही उसके चारो और घंटियों की ध्वनि वो जलते दीप मन को और इन आँखों को बड़े सुहाते थे! जी चाहता मै इसी तरह सारी जिंदगी गुजार दूँ !
इसी तरह मैने बचपन से यौवन में कदम रखा ! पिताजी मेरे लिए वर ढूढ़ने लगे ! मै माँ से अक्सर बोल उठती ! माँ मुझे विवाह नही करना है! मुझे तो बनारस के गंगा घाट पर जाना है !
माँ हँसकर मुझ से बोल पड़ती ! अरे बिटिआ अभी तो हमारे सर पर इतना कर्जा है ! खेत गिरवी रखे है, वो छुडवाले और फिर तेरे विवाह में भी तो कुछ गहने कपड़े सगुन के चढ़ाने होंगे !
वो सब हो जाये फिर जरूर सब गंगा घाट चलेंगे मगर मध्यम वर्गीय परिवारों का कर्जा चुकता कहाँ है बल्कि वो तो कभी बीमारी कभी त्योंहार कभी और कोई मज़बूरी बनकर हम मध्यम वर्गीय परिवारों के सर पर सवार रहता है !
मै बनारस जाने का सपना लेकर ससूराल आ गई ! मेरा विवाह बिहार के भागलपुर में करा दिया गया ! माँ गंगा भागलपुर में भी थी मगर बचपन से बनारस की माँ गंगा की चाहत लिए मैं बैठी थी! वो चाहत तो मेरी बनारस जाकर ही पूरी हो सकती थी ! ससूराल आकर भी रोज नई नई जिम्मेदारियों और मजबूरियों से मेरा परिचय होने लगा !
मै बनारस जाने की बात किसी से कह नही पाती थी ! मैं तो अपना दुख दर्द भी अपने पति से शर्मीला स्वभाव होने के कारण सांझा नहीं कर पाती थी और बनारस जाने की तो क्या ही कहूं क्योंकि घर के चारों तरफ की मजबूरियों ने मुझे रिश्तों की मर्यादा की चादर ओढ़ा दी थी जो मैं यूं ही उतार तो नहीं सकती थी । मेरे पति धनीराम एक ईमानदार इंसान थे और मन के भी बड़े अच्छे थे।
जो रोज दूसरे के खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करते थे । मैं उन पर अपनी इस चाहत का खर्चा कैसे डाल सकती हूं । यही सोचकर मैं चुप रह जाया करती थी ।
इसी तरह दिन गुजरते गए। एक -बार मैं बहुत बीमार हो गई ! वैध जी ने दवा के साथ साथ मुझे बाहर कही घुमाने को मेरे पति से कहा मगर मेरी बीमारी ने मुझे ऐसा घेरा की मै बिस्तर से ही लग गई !
एक रात जब मै सो रही थी मुझे लगा माँ गंगा अपनी बाहें पसारे मुझे बुला रही है ! मै माँ गंगा के पास बिलकुल करिब पहुँच गयी हूँ अचानक मेरी आँखें खुल गई !
मैंने देखा मेरे पति मुझसे कह रहे थे! देख पारो तुझे बनारस जाना है ना ! मै रात वाली रेल गाड़ी की टिकट ले आया हूँ ! तुम आराम करो ! मै बाकि सारी तैयारियां देख लेता हूँ !
मेरे पति की बातें सुनकर न जाने कहाँ से मेरे बदन में फुर्ती आ गई ! मै तुरंत उठ खड़ी हुई !
मैंने अपने पति से कहा ! आप सही कह रहे है ? हम बनारस जा रहे है ! तब मेरे पति ने कहा ! हाँ पारो तेरी अम्मा से पता चला !तेरा बनारस जाने का सपना तु बचपन से लिए बैठी है !
मैंने उसी दिन से खेतों में ज्यादा मजदूरी का काम करके पाई पाई जोड़ना शुरू कर दिया ! मुझे खुशी है, आज मै तुझे ले जा पा रहा हूँ ! मेरा रोम रोम मेरे पति की बातों को सुनकर उनके प्रति नतमस्तक हो गया !
मै अपनी क्या कहूँ ! आज वर्षो पुरानी मेरी चाहत मेरे पति.के कारण पूरी होने जा रही था ! जिस गंगा घाट को मै बचपन से सपने में देख रही थी । आज वही मै अपनी आँखो से देखूंगी !
मैंने पूरा दिन जैसे तैसे निकाला रात को जब हम दोनों रेल गाड़ी में बैठ गए तो मुझे पूरी तरह यकिन हो गया !
दूसरे दिन हम बनारस पहुँच कर सबसे पहले गंगा घाट पहुँचे !
मैंने जी भर के माँ गंगा और गंगा घाट को अपनी जीती जागती आँखो से निहारा ! ये हूबहू वही गंगा घाट था । जो मै बचपन से सपने में देखती आ रही थी ! सच कहूँ तो आज मै बेहद खुश थी ! मेरे पति के कारण आज मेरी वर्षो पुरानी चाहत पूरी हो चुकी थी ! मैंने अपने पति से कहा । सुनो जी आप मेरी मांग आज फिर से सिंदूर से भर दीजिए ।
जिस तरह ब्याह के वक्त भरी थी। मेरे पति मुझे चकित होकर देखने लगे और कहने लगे। पारो तुम्हारी चाहते तो बड़ी अजीब है । मां गंगा के दर्शन तो समझ पा रहा हूं मगर तेरी मांग में सिंदूर भरने की बात समझ नहीं पा रहा हूं मगर तेरी खुशी के लिए मैं तेरी मांग फिर से जरूर भरूंगा कहकर एक डब्बी खरीद लाए और मेरे मांग में सिंदूर भर दिया।
मैं उन्हें खुश होकर एक पलक देखती रही । वह मुझे बार-बार पुकार रहे थे। पारो तु कुछ कह क्यों नहीं रही है कुछ तो बोल मैंने तेरी मांग भी भर दी है मगर मैं कुछ नहीं बोल पा रही हूं । शायद अब यहां से कहीं और जाने का मन ही नहीं कर रहा है इसीलिए मैं सदा के लिए चुप हो चुकी हूं क्योंकि अब मैं तृप्त हो चुकी हूं।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम