नीरा को तीन-तीन बेटों की माॅं बनने का घमंड तो पहले से ही था।चौथी बार भी बेटे की माॅं बनने पर वह आसमान में उड़ने लगी।
उसे अपने चारों बेटे अजूबा लगते थे।उसे भ्रम था कि परिवार और समाज उसके चारों बेटे को देखकर जलते हैं,इस कारण वह सदैव अपने बेटों के साथ रहती। स्कूल ले जाना,ले आना खुद करती।उसके पति रमेश जी काफी पढ़े-लिखे और सुलझे हुए इंसान थे। बेटों के प्रति पत्नी का अंधा प्यार देखकर झुॅंझलाकर पत्नी से कहा बैठते -” नीरा!”बच्चे बड़े हो रहें हैं, उन्हें आत्मनिर्भर बनना सिखलाओ।”
नीरा पति की बात समझने की बजाय पति पर ही बरसते हुए कहती -“तुम्हारे खानदान में किसी को मेरी तरह चार बेटे हैं?सभी मेरे बेटों से जलते हैं।कब मेरे बच्चों का अनिष्ट कर दें,कुछ पता नहीं!”
रमेश जी की पत्नी के सामने बोलती बंद हो जाती।वे पत्नी से बहस न कर अधिकांशतः चुप ही रहने लगें। उन्हें एहसास हो चुका था कि उनकी पत्नी चार बेटों की माॅं बनकर अत्यंत अभिमानी बन गई है।
बेटों को दसवीं पास करने पर रमेश जी ने उन्हें बाहर पढ़ने भेजने की कोशिश की। उन्हें लगता था कि बाहर जाने से बच्चे आत्मनिर्भर बनेंगे और माता की ऑंचल की छाॅंव से निकलकर बाहर की दुनियाॅं से भी परिचित होंगे।
जब-जब रमेश जी ने बेटों को बाहर पढ़ने भेजने की कोशिश की,तब-तब नीरा ने घर में तूफान खड़ा कर दिया।बेटे भी माॅं की तरह अभिमानी और वाचाल निकल गए। पढ़ाई में साधारण होने पर भी चारों लम्बी-लम्बी डिंगे हाॅंका करते थे। परिणाम यह हुआ कि ग्रेजुएट -पोस्ट ग्रेजुएट होने पर भी किसी को अच्छी नौकरी नहीं लगी।
पिता के जीवित रहते चारों बेटे उनकी पेंशन पर ऐश करते।पिता के गुजरते ही सभी कोअपनी औकात पता चल गई।नीरा भी जो सदैव आसमान में उड़ती रहती थी,
अब चारों बेटों की नाकामी के चलते बीमार रहने लगीं।उसका अभिमान गीली मिट्टी की दीवार की भाॅति भहराकर गिर पड़ा।नीरा के छोटे-छोटे देवर के बेटे-बेटियां अच्छे पद पर नौकरी कर रहे थे। उन्हें सफल देखकर नीरा के कलेजे पर सदैव साॅंप लोटते रहते।
बेटों की नाकामी उसके हृदय में शूल की भाॅंति चुभती रहतती।उसके चारों बेटे शादी-शुदा होने के बाद भी अपनी माॅं की पेंशन के लिए लड़ाई करते रहते।माॅं पर पक्षपात करने का आरोप लगाते।नीरा को अब समझ में आ चुका था कि बेटों के दंभ में अगर वह आसमान में नहीं उड़ती,धरातल से जुड़कर बेटों को सही शिक्षा दी होती
तो आज न तो बेटों का ये हाल होता,न ही उसे बुढ़ापे में जिल्लत झेलनी पड़ती। परन्तु अब पछताए होता क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत। सचमुच अहंकार मनुष्य को गहरे गर्त्त में ले जाता है।रावण जैसे महापंडित, महाबलशाली को भी अहंकार ही ने ले डूबा था। आसमान में उड़ने के लिए धरती से जुड़े रहना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)
मुहावरा व कहावतों की लघु-कथा प्रतियोगिता