“रेखाएं जो जोड़े रखती हैं” – रेखा सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रायन और श्रुति – एक परफेक्ट कपल कहे जाते थे। दोनों ही मल्टीनेशनल कंपनियों में ऊँचे पदों पर थे, आधुनिक जीवनशैली जीते थे और स्वतंत्र सोच के समर्थक भी थे। शादी को पाँच साल हुए थे, पर अब रिश्ते में वो गर्माहट नहीं रही जो शुरू के दिनों में थी।

शुरुआत में सब कुछ अच्छा था। दोनों के विचार मिलते थे, करियर के सपने मिलते थे और पार्टनरशिप में बराबरी का भाव था। लेकिन समय के साथ जैसे रिश्ते “सुविधा” में बदलने लगे।

हर काम “डिवाइड” हो गया था – खर्च, छुट्टियाँ, जिम्मेदारियाँ, यहां तक कि रिश्तों की भावना भी। कोई किसी से ज्यादा उम्मीद न करे – इस सोच ने दोनों के बीच दूरी बढ़ा दी थी।

श्रुति की माँ बीमार थीं और वह चाहती थी कि रायन उनके साथ कुछ समय बिताए। लेकिन रायन ने स्पष्ट कह दिया, “तुम्हारी माँ हैं, तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। मेरा उनके साथ कोई इमोशनल कनेक्शन नहीं है।”

श्रुति स्तब्ध रह गई। क्या रिश्ते अब सिर्फ ‘कनेक्शन’ पर टिके रह गए हैं? क्या मर्यादा, सहानुभूति और एक-दूसरे के प्रति भावनात्मक दायित्वों का कोई मूल्य नहीं?

एक दिन ऑफिस में श्रुति की सहकर्मी सीमा रोती हुई आई। सीमा का तलाक होने वाला था – कारण था “सीमाओं का उल्लंघन और सम्मान की कमी।” सीमा ने कहा, “आजकल रिश्तों में स्पेस तो है, लेकिन समझ नहीं। प्यार तो है, लेकिन मर्यादा नहीं।”

श्रुति के मन में एक चुभन सी हुई। वह जानती थी कि वही चूक उनके रिश्ते में भी हो रही थी – सम्मान की रेखाएं मिट चुकी थीं, और उनके बीच बस एक समझौता रह गया था।

उसी रात वह रायन से बोली, “हमारे बीच कुछ बचा है?”

रायन ने जवाब दिया, “सब कुछ है… घर है, गाड़ी है, आराम है।”

“लेकिन क्या रिश्ते सिर्फ इन चीज़ों से बनते हैं?” श्रुति की आवाज़ कांप गई, “हमने कब एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र की? कब बिना बोले एक-दूसरे को समझा?”

रायन शांत था। शायद वह भी महसूस कर रहा था कि रिश्ता उनके बीच ‘होने’ की औपचारिकता बन गया था, जीने की कोशिश नहीं।

कुछ दिनों बाद, एक पुराने पड़ोसी अंकल-अंटी उनके घर मिलने आए। वे दोनों पचास वर्षों से साथ थे। प्यार से एक-दूसरे को नाम लेकर नहीं, “सुनिए जी” और “आप” कहकर बुलाते थे, फिर भी उनके बीच का अपनापन झलकता था।

अंटी ने हँसते हुए कहा, “हमने कभी एक-दूसरे की सीमाओं को नहीं तोड़ा, शायद इसलिए ये साथ आज तक निभ गया।”

रायन और श्रुति दोनों कुछ पल के लिए खामोश हो गए।

धीरे-धीरे वे दोनों रिश्तों को फिर से समझने लगे। रायन ने श्रुति की माँ से खुद बात करना शुरू किया, कभी दवाइयों की जानकारी पूछता, कभी उनका हालचाल लेता। श्रुति भी रायन की दादी से फोन पर बातचीत करने लगी, जिन्हें वह पहले मुश्किल से जानती थी।

उन्होंने फिर से “मर्यादा, समझ और भावना” को रिश्तों का आधार बनाना शुरू किया।

अब कोई नियम नहीं थे, बस एक-दूसरे के लिए समय, स्नेह और स्वीकृति थी। उन्होंने माना कि स्पेस और स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन बिना मर्यादा के रिश्ते सिर्फ संवेदनहीन डील बनकर रह जाते हैं।

रिश्तों को जोड़े रखने के लिए दीवारें नहीं , रेखाएं चाहिए ,

ऐसी रेखाएं जो रिश्तों में सम्मान बनाए रखें ,सीमाएं तय करे और हमें यह याद दिलाए कि हमें हर संबंध में थोड़ा झुकना ,थोड़ा सुनना,और थोड़ा समझना जरूरी है ।

Rekha saxena

#”रिश्तों की मर्यादा”

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