मीना का भरापूरा परिवार था| अधिकतर सभी रिश्तेदार शहर में ही रहते थे।सास-ससुर के जाने के बाद भी उसने सबसे व्यवहार बनाकर रखा था। मिलनसार होने के कारण मीना के घर रिश्तेदारों का आना-जाना लगा रहता था।मीना ने अपने बेटे रोहित की शादी बड़ी धूमधाम से की थी।बहु नैना को भी वह बहुत प्यार करती थी।
नैना भी शुरू-शुरू में सबके साथ अच्छी रही, आए गए की खूब खातिरदारी करती पर कुछ समय बाद उसका व्यवहार बदल गया।अब कोई भी आता तो वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती। कई बार मेहमानों को बुरा भी लगता था तो मीना बात को संभाल लेती।
सन डे का दिन था,रोहित घर पर था उसकी बड़ी बहन और जीजा जी आए तो नैना ने उनको पानी भी नहीं पूछा।मीना ही लगी रही दामाद और बेटी की खातिरदारी करने में।उनके जाने के बाद रोहित ने नैना को डांटा,तो वह चिल्लाकर बोली-“तुम्हारे रिश्तेदार जब देखो मुँह उठाकर चले आते हैं,न देखते हैं किसी के खाने का समय है या सोने का।
मैं सारा दिन उनकी सेवा में ही खड़ी रहूँ क्या?मेरी भी पर्सनल लाइफ है।” इससे पहले रोहित कुछ बोलता,मीना ने उसे इशारे से चुप करा दिया।रोहित के पिता भी मीना पर गुस्सा होते हुए बोले,तुमने बहु को बहुत सिर चढ़ा रखा है इसे तो रिश्तों की मर्यादा तक का एहसास नहीं है।मीना कुछ नहीं बोली उसने मन में सोच लिया था,
कि समय आने पर वह अपने हिसाब से बहु को समझाएगी।नैना सारा दिन व्हाट्सएप पर लगी रहती थी।एक दिन वह नहाने गई उसका फोन ड्रॉइंगरूम में पड़ा था,मीना डस्टिंग कर रही थी।उसने देखा नैना के फोन पर बार-बार मैसेज आ रहें हैं।
जब फोन के पास जाकर देखा,तो वह नैना की मम्मी के मैसेज थे एक पल को उसने सोचा जाने दो फिर सोचा देखूँ तो सही की दोनों माँ बेटी क्या बातें करती रहती हैं? मैसेज पढ़कर मीना दंग रह गई।कोई माँ कैसे अपनी बेटी को गलत रास्ते पर चलने को कह सकती?
“तू मेहमानों को ज्यादा भाव मत दिया कर, नहीं तो रोज रोज उठकर आ जाएंगे..! तेरी सास है ना,वो जाने उसके रिश्तेदार जाने तू तो बस अपना ध्यान रखा कर।मैं रोहित से बात करूँगी,कि वह अलग घर ले ले।” अब मीना को समझ आ गया,
कि ये आग किसने लगाई है?वरना नैना इतनी बुरी नहीं थी। मीना ने घर में इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया, ना ही नैना से कुछ कहा वह उसके साथ सामान्य बनी रही।
दीपावली का दिन था,मीना ने सुबह से ही सबको जल्दी जल्दी काम निपटाने की हिदायत दे दी थी क्योंकि एक तो लक्ष्मी पूजन का समय शाम को 6 बजे का था दूसरा नैना की पहली दीवाली थी तो बेटी दामाद और शहर में रहने वाली दोनों ननदें भी घर पर आने वाली थीं।मीना ने पति से कहा -“आप बाजार से मिठाई व फल ले आना।
पूजा और रेखा (ननद ) के लिए मैं और नैना गिफ्ट ले आए थे।बेटी और दामाद जी के लिए भी कपड़े ले लिए थे।” दोपहर के खाने के पश्चात मीना पूजा की तैयारी करने लगी। नैना को ड्रॉइंग पेंटिंग का बहुत शौक था इसलिए वो मीना के पास जाकर बोली-“माँ मैं बाहर दरवाजे पर रंगोली बना दूँ।
” “हाँ बेटा क्यों नहीं?बल्कि मैं तुमसे कहने ही वाली थी पर सोचा तुम काम करके थक गई होगी इसलिए नहीं बोला।मीना मुस्कुराते हुए बोली।
नैना ने दरवाजे पर बहुत सुंदर रंगोली बना दी।शाम को पूजा के समय मीना ने कुछ दिए जलाकर पूजा वाले स्थान पर रख दिए और कुछ दिए एक थाली में रखकर नैना को कहा,कि वो बाहर दरवाजे पर दिए जला दे।नैना ने दीपक रखने की लिए दरवाजा खोला,तो देखा कि रंगोली एक तरफ से किसी के पाँव से बिगड़ गई थी| रंगोली को बिगड़ा हुआ देखकर वो बहुत दुखी हो गई
और मीना को आवाज लगाई -” माँ बाहर आओ ” मीना ने सोचा नैना तो दिए जला रही है फिर उसे क्यों बुला रही है? वह बाहर आई और नैना से पूछा-“क्या हुआ बेटा,मुझे क्यों बुलाया ?” नैना रोते हुए बोली- “माँ देखो किसी ने मेरी रंगोली बिगाड़ दी।इतनी मेहनत से बनाई थी।” मीना ने उसे चुप कराया और उसकी बिगड़ी हुई रंगोली को ठीक करते हुए कहा
-“देख बेटा मैंने भी अपने जीवन में रिश्तों की रंगोली बनाई है और उसे प्रेम विश्वास और मर्यादा रूपी रंगों से सजाया है।हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है और हमें उस मर्यादा को कभी नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि जब रिश्तों की मर्यादा टूट जाती है तो बहुत कुछ खत्म हो जाता है।जैसे मैंने आज तेरी बिगड़ी हुई रंगोली को ठीक कर दिया,
ऐसे ही जीवन में कभी कोई मेरी रंगोली बिगाड़े या बिगाड़ने की कोशिश करे तो वादा कर तू भी उसे ऐसे ही ठीक कर देगी।क्योंकि जिन कार्यों को करने में हम अपने सारे यत्न लगा देते हैं उन्हें कोई बिगाड़ता है तो बहुत दुःख होता है?फिर चाहे वो रंगोली हो या रिश्ते?” रंगोली के माध्यम से जो बात मीना नैना को समझाना चाह रही थी,
वह उसे समझ आ गई।आँखों में आँसू भरते हुए बोली -“मैं प्रॉमिस करती हूं माँ,कभी आपकी रंगोली को बिगड़ने नही दूंगी।” मीना ने उसे गले लगा लिया।रोहित ये सारा दृश्य देख रहा था,मन ही मन बोला-“वाह, माँ क्या बढ़िया युक्ति अपनाई आपने, साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।”
दोस्तों जरूरी नहीं कि बोलकर किसी को उसकी गलती बताई जाए| दैनिक जीवन में होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से भी हम अपनी बात कह सकते हैं।इससे प्यार व सम्मान दोनों बने रहते हैं और रिश्तों की मर्यादा भी नहीं टूटती।
कमलेश आहूजा#रिश्तों की मर्यादा