सुलोचना जी की भाभी को गुजरे एक साल से ऊपर हो गए थे । माँ से ज्यादा उन्हें भाभी से लगाव था । भैया की कम उम्र में ही शादी हो गयी थी । माँ प्रायः बीमार रहती थीं । इकलौती बेटी घर में होने की वजह से बहुत मान और प्यार मिलता था
माँ बाबूजी और भैया के द्वारा । पर भाभी शांति जी ने भी अपनी ननद को आते ही सिर आँखों पर बिठा लिया । हर छोटी से बड़ी गलत से सही हर चीजों में दोनो के साथ की भागीदारी होती थी । कहीं भी घूमना हो या किसी रिश्तेदार के घर जाना हो या त्योहार में मनपसंद कपड़े खरीदवाना हो शांति जी सब कुछ बिना शिकवा शिकन के करतीं
और..कहते हैं न कि जब तक मां जीवित है बच्चे बूढ़े नहीं होते । शांति और सुलोचना जी में यही सम्बन्ध बन गया था । भाभी में बिल्कुल माँ का रूप दिखता सुलोचना जी को और वह उनसे अपनी अंतरात्मा से जुड़ गईं । जो नहीं जानता था शांति जी और सुलोचना जी को तो माँ बेटी ही समझता था उस शहर में । सुलोचना की माँ यशोदा जी ने तो जैसे गंगा ही नहा लिया ऐसी प्यारी दुल्हन को घर में लाकर ।
यशोदा जी बीमार लाचार एक कोने में पड़ी निहारती रहती थीं घर को, दीवार को तो कभी ननद भाभी की बातें सुनकर मुस्कुरा भी देती थीं । सुलोचना जी के दो भैया थे । इसी बीच एक दिन यशोदा जी का देहावसान हो गया । छोटे वाले रमाकांत भैया जो किसी तरह अपने बलबूते जी रहे थे । उनमें दिमाग की थोड़ी कमी थी , बस किसी तरह बेरोजगार रह के हीन भावना के शिकार न हो जाएं तो एक छोटी सी स्टेशनरी की दुकान चलाते थे जहाँ रमाकांत जी की पत्नी शोभना जी देख रेख करती थीं। बड़े वाले उदय जी जिनकी किस्मत का सितारा बुलंद था । वो राजनीति में जीत हासिल करके अध्यक्ष बने थे और करोड़ों का व्यापार था ।
सुलोचना जी का विवाह भी अच्छे पद प्रतिष्ठा वाले घर और सरकारी ओहदे के ऑफिसर रमेश बाबू से कर दिया गया । इधर शांति जी के दो बेटे हुए । सुलोचना जी बीच – बीच मे शादी के बाद भी मायके जातीं और भतीजों पर खूब स्नेह लुटातीं । भतीजे भी खूब खेलते और बड़े हुए जब तो बहुत प्यार और सम्मान करते ।सुलोचना जी का बचपन वाला गुण अब भी जारी था ।
बच्चों के साथ खेलने में वो बिल्कुल बच्ची बन जातीं । शांति भाभी उन्हें ससुराल में ढलने के तौर तरीके सिखातीं , तो कभी ऐसे रंग नहीं पहनते, ऐसी साड़ी नहीं पहनते ढेरों सलाह देतीं । भतीजे होने पर भी उन्हें भर – भर के बधाई मिली और उन्होंने भी खूब प्यार न्योछावर किया ।
एक दिन अचानक सुलोचना जी का पैर फिसला और वह गिर गईं । डॉक्टर को दिखाया तो पता चला नन्हा मेहमान आने वाला है । सुलोचना जी ने रमेश बाबू से कहा…”सुलोचना की सेवा हम करेंगे रमेश बाबू ! यहाँ मेरे पास भेज दीजिये । ऐसे समय में मायके में रहेगी तो सुविधा होगी ।
रमेश बाबू ने पहले थोड़ा इन्कार किया लेकिन फिर ननद भाभी के सुंदर बंधन को देखकर वो मना नहीं कर सके । हालांकि वो जानते थे कि मेरी माँ शांति भाभी की तरह ध्यान नहीं रख सकतीं इसलिए उन्होंने सुलोचना जी को मायके में ही बच्चे के जन्म के लिए छोड़ा । सुलोचना जी के जुड़वा बच्चे एक बेटा और बेटी हुई । समय ऐसे ही धीरे – धीरे पंख लगाकर उड़ रहा था ।
तीस साल बाद….
सुलोचना जी की बेटी पूर्वा की शादी हो गयी और वह अपने पति के साथ विदेश में बस गयी ।बेटा माणिक की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी । एक एक पल जैसे काटने को दौड़ रहा हो और शरीर भार जैसा प्रतीत हो रहा हो ऐसी स्थिति हो गयी । रमेश जी घुटनों से लाचार हो चुके थे । पूर्वा बार – बार मम्मी पापा को साथ रहने के लिए बुलाती थी लेकिन दोनों का मन ही नहीं करता जाने को । घर से निकलना बात – चीत करना लोगों से घुलना मिलना सब बंद कर दिया था रमेश जी और सुलोचना जी ने ।
सुलोचना जी के भैया भाभी ने कई बार आने के लिए खबर भिजवाया, लाने भी गए लेकिन सुलोचना जी ने एक सिरे से इनकार कर दिया । पुरानी बातें यादें, हँसी मुस्कुराहट सब याद दिलाया गया लेकिन वो अपने गम से निकल ही नहीं पा रही थीं बहुत कोशिश किया सबने । पूर्वा साल भर में एक बार आती अपने ससुराल तो मम्मी – पापा से भी मिल लेती थी । पर उसका भी भाई के बिना मायके में जी नहीं लगता ।
मम्मी – पापा को बहुत समझाती थी पर वो भी गमगीन माहौल की शिकार हो जाती थी और रुक नहीं पाती । इसी बीच खबर आई कि शांति भाभी नहीं रहीं । अब तो ऐसा लगा सुलोचना जी को जैसे जिंदगी में जीने के लिए कुछ नहीं बचा ।
भाभी के अंतिम दर्शन के लिए भी वह तैयार नहीं हुईं , लेकिन रमेश जी अपने ससुराल में शामिल हुए । रमेश जी ने बहुत जिद की एक आखिरी मुलाकात के लिए लेकिन हाथ जोड़कर सुलोचना जी ने कहा…”मैं सामना नहीं कर पाऊंगी उनका मुझे मत ले जाइए ।रमेश जी ने बात मानकर उन्हें घर मे रहने दिया और वो चले गए ।
वो दिन भर एकटक पुरानी एल्बम लेकर भाभी तो कभी बेटे को देख – देख आँसू बहातीं तो कभी उनके कपड़े को पकड़ के गले से लगाकर जी भर रोतीं । एक दिन गुस्से से उन्होंने घर का मंदिर भी हटाकर किनारे कर दिया । फिर भाभी की तेरहवीं में शामिल होने के लिए जैसे ही वो अपने मायके गईं घर की दहलीज पार करते ही भाभी के साथ बिताए पल घूम घूम कर ज़ेहन में आने लगे । अंदर से रो रहीं थी वो पर आँसू सूख गए थे ।
जैसे ही भैया पर नज़र पड़ी वो तेजी से भागकर उनके पास मिलाप करने गईं और इस कदर लिपट कर ज़ोर से गले लगकर रोने लगीं जैसे कोई भूखा बच्चा माँ से लिपट कर रोता है । “मेरा मायका नहीं रहा भैया ” । जैसे ही सुलोचना जी ने ऎसा बोला उनके दोनो भतीजे की पत्नियाँ आकर उनके गले से लग गईं…”ऐसा मत बोलिये बुआ ! मम्मी जी गयी हैं
तो क्या हुआ, हम सब हैं आपके साथ । दिनभर मम्मी आपकी बातें करती थीं , कभी हँसती कभी कुछ पुरानी बातें बोलकर मुस्कुराती थीं । हमारे रहते आपने कैसे ऐसा कह दिया कि आपका मायका छूट गया ।इस घर की रौनक में आपका भी अहम हिस्सा है बुआ ।
ऐसे ही साल भर बीते । एक दिन पूर्वा के पति सूरज जी ने बताया पूर्वा माँ बनने वाली है । तब से घर का बोझिल माहौल थोड़ा हल्का हो गया और बच्चे के होने की खबर सुनकर धीरे – धीरे सुलोचना जी की उदासी खत्म तो नहीं लेकिन कम हुई । सबने बहुत समझाया तकदीर मान के आगे बढ़ो तब धीरे – धीरे सुलोचना जी के व्यवहार पहले की तरह सामान्य होने लगा ।
अब पूर्वा को आठवां महीना लग चुका था । इधर सुलोचना जी के सिर में भयानक दर्द और आँखों से धुंधला सा दिखाई देने लगा ।रमेश जी अस्पताल लेकर गए तो पता चला सुलोचना जी को मोतियाबिंद हो गया है , अति शीघ्र ऑपरेशन कराने की आवश्यकता है और तारीख पक्की कर ली गयी । जरुरी सुझाव और दिशा निर्देश डॉक्टर ने दे दिया ।
बाई और घरेलू सहायिका को काम करने , खाना बनाने के लिए पूछा गया पर बहुत मुश्किल से कोई तैयार हुआ । अगले दिन सोनाली (भतीजा बहू) का फोन आया सुलोचना जी के पास ।बातों बातों में सुलोचना जी ने बताया ऑपरेशन के बारे में तो सोनाली ने कहा.. “बुआजी ! आप मेरे पास आइए, हम दोनो जेठानी देवरानी मिलकर आपकी देखभाल करेंगे । ऐसे समय मे आपको तो रसोई जाना नहीं होगा और ये बाई लोग तो बिल्कुल सफाई पर बिना देखे ध्यान नहीं देतीं । “अरे नहीं सोनाली ! मत करो इतना । तुम्हारे पास बहुत सारे काम और ढेरों जिम्मेदारियां हैं । सुलोचना जी ने फिक्र करते हुए कहा ।
जब सुलोचना जी नहीं सुनी तो सोनाली की देवरानी मानसी ने फोन लेकर कहा..”देखा बुआ ! आपने हमे पराया कर दिया न ? अगर मम्मी जी होतीं तो क्या आप मना कर पातीं ? सुलोचना जी अब निरुत्तर थीं ।
बहुत ही प्यार से फिर मानसी ने कहा..” अब आप उसी तरह ज़िद कर रही हैं जैसे मम्मी जी के सामने करती थीं और पापा जी आपको ससुराल से लाने जाते थे ।आप ऐसे नहीं मानेंगी, मैं इनके साथ आपको लेने कल आ रही हूँ बुआ । कोई बहाना नहीं चलेगा । सुलोचना जी मुस्कुरा रही थीं पर आँखों से आँसू छलक आए ।
अगले ही दिन गाड़ी से दोनो पति पत्नी गए सुलोचना जी के घर ।रमेश जी ने कहा…”एक तो ये जा रही हैं मदद लेने मैं बेकार में क्यों परेशान करूँ जाकर ?
मानसी और उसके पति ने भी भावुक होकर कहा…”मेरे बच्चों के हर शुभ शगुन में आपकी उपस्थिति रही बुआ ।आज आपको कैसे छोड़ दें । यश और नविका (बच्चे) बुआ दादी को बहुत याद करते हैं ।हाँ फूफाजी ! आपसे कैसी परेशानी ? आप साथ रहेंगे ऐसे घड़ी में बुआ के साथ तो बुआ का भी दिल लगा रहेगा ।
मम्मी नहीं है तो हमलोग से भी तो आपका रिश्ता है । सुलोचना जी रमेश जी के साथ अपने मायके आ गईं फिर ऑपरेशन भी अच्छे से हो गया । दिन भर कोई न कोई पड़ोसी मिलने आता इतना तालमेल बिठा कर रखा था । भतीजे के बेटे बेटी भी साथ मे बैठकर खूब बातें और गपशप करते । कितने समय बाद ऐसा पल आया था । डॉक्टर ने आखिरी जाँच पन्द्रह दिन बाद कराने बोला और फिर यात्रा की इजाजत दिया । सुलोचना जी को फोटो पर जब नज़र पड़ती तो भाभी की कमी का एहसास होता ।इतना ज्यादा भतीजे और उनकी पत्नियों ने ख्याल रखा, सेवा किया कि बिल्कुल
महसूस ही नहीं हुआ भाभी और माँ के बगैर मायके आयी हूँ ।
अब जाने की बेला नजदीक आ गयी । गाड़ी के पास जाकर भैया भतीजा , मानसी और सोनाली सब मिलकर फल , मेवे और कपड़े रख रहे थे ।
सुलोचना जी साड़ी ही पहन रही थीं कि मानसी और सोनाली ने पीछे से आकर बुआ को पकड़ते हुए हाथ जोड़कर कहा…”बुआ ! हमसे जाने अंजाने में जो गलती हुई हो माफ करिएगा और बीच बीच मे आते रहिएगा ।
सुलोचना जी ने साड़ी की प्लीट्स ठीक करते हुए दोनो को कंधे से चिपकाते हुए कहा..”ऐसा मत बोलो सोनाली, मानसी । तुम्हीं दोनों की बदौलत तो मेरा मायके बसा हुआ है । #रिश्तों की मर्यादा तुमलोगो ने बना रखा है । इस उम्र में भी ये #रिश्तों की मर्यादा ही है जिसकी वजह से आज मैं बहुत अच्छा महसूस कर रही हूँ ।
शायद ही मेरे जैसा कोई खुशनसीब होगा जिसे इस उम्र में भी मायके वाले इतना मान और अपनत्व दें । तीनों एक साथ गले मिलकर भावुक होकर रो दीं और सुलोचना जी नम आँखों से भाभी की तस्वीर को प्रणाम करके गाड़ी में बैठकर चल दीं ।
#रिश्तों की मर्यादा
मौलिक स्वरचित
अर्चना सिंह